विंध्याचल की हरी-भरी वादियों से घिरी सागर झील एक विशाल सागर की तरह लहराती रही है। कभी इसका जलीय विस्तार 6,000 एकड़ था। झील को पाट-पाट कर वहां बड़ी-बड़ी इमारतें बन गई हैं और अब इसका विस्तार 600 एकड़ मात्र रह गया है। कहा जाता है सागर झील का निर्माण एक लाखा बंजारे ने करवाया। वह गाय-बैल का बड़ा व्यापारी था। जब राजस्थान से वह विशाल पशुओं का रेवड़ लेकर उस स्थान पर आया तो उसे पानी की बहुत कमी पड़ी। उसके साथी बंजारों ने बहुत खुदाई की, यहां तक की बहुत बड़ा क्षेत्र खोद डाला लेकिन पानी नहीं निकला। उसके पशु प्यासे मरने लगे। रात को अपने इष्ट का स्मरण कर वह सो गया। रात में उसे स्वप्न आया कि यदि अपने पुत्र और पुत्रवधु को सोने के हिंडोले पर झुलाये तो पानी आयेगा। उसने ऐसा ही किया और देखते-ही-देखते वह स्थान पानी से भर गया और एक सुंदर झील अस्तित्व में आ गई। नेहरूजी ने सागर के सौंदर्य से अभिभूत होकर कहा था, “मैं सागर में हूं या स्विट्जरलैंड में हूं”।
गढ़पैरा के योगी राजा अदनशाह ने 1660 में झील के उत्तरी तट पर एक दुर्ग का निर्माण कराया। दुर्ग के चारों ओर परकोटा खिंचवाया था, उसी परकोटे से लगा सागर शहर बसा है। विशाल लहराती झील सागर सी ही लगती रही होगी, इसलिए इसका नाम सागर पड़ा होगा।
गढ़पैरा के योगी राजा अदनशाह ने 1660 में झील के उत्तरी तट पर एक दुर्ग का निर्माण कराया। दुर्ग के चारों ओर परकोटा खिंचवाया था, उसी परकोटे से लगा सागर शहर बसा है। विशाल लहराती झील सागर सी ही लगती रही होगी, इसलिए इसका नाम सागर पड़ा होगा।
Hindi Title
सागर झील
गुगल मैप (Google Map)
विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia)
झील की उत्पत्ति
सागर झील की उत्पत्ति के बारे में वैसे तो कोई प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है लेकिन कई किंवदंतियां प्रचलित हैं। इनमें सबसे मशहूर कहानी लाखा बंजारा के बहू-बेटे के बलिदान के बारे में है। जानकारों का मानना है कि यह प्राकृतिक तरीके से बना एक सरोवर हो सकता है, जिसे बाद में किसी राजा या समुदाय ने जनता के लिए अधिक उपयोगी बनवाने के उद्देश्य से खुदवा कर विशाल झील का स्वरूप दे दिया होगा। लेकिन यह केवल अनुमान है क्योंकि इसका कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। ऊदनशाह ने जब 1660 में यहां छोटा किला बनवाकर पहली बस्ती यानि परकोटा गांव बसाया, तो तालाब पहले से ही मौजूद था।
अन्य स्रोतों से
संजय करीर, डेली हिंदी न्यूज़ डॉट कॉम
सागर के बारे में यह मान्यता है कि इसका नाम सागर इसलिए पड़ा क्योंकि यह एक विशाल झील के किनारे स्थित है। इसे आमतौर पर सागर झील या कुछ प्रचलित किंवदंतियों के कारण लाखा बंजारा झील भी कहा जाता है। सागर नगर इस झील के उत्तरी, पश्विमी और पूर्वी किनारों पर बसा है।
दक्षिण में पथरिया पहाड़ी है, जहां विश्वविद्यालय कैंपस है। इसके उत्तर-पश्चिम में सागर का किला है। नगर की स्थिति और रचना पर इस झील का बहुत प्रभाव है। लंबे समय तक झील नगर के पेयजल का स्रोत्र रही लेकिन अब प्रदूषण के कारण इस्तेमाल नहीं किया जाता।
झील की उत्पत्ति के बारे में वैसे तो कोई प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है लेकिन कई किंवदंतियां प्रचलित हैं। इनमें सबसे मशहूर कहानी लाखा बंजारे के बहू-बेटे के बलिदान के बारे में है।
जानकारों का मानना है कि यह प्राकृतिक तरीके से बना एक सरोवर हो सकता है, जिसे बाद में किसी राजा या समुदाय ने जनता के लिए अधिक उपयोगी बनवाने के उद्देश्य से खुदवा कर विशाल झील का स्वरूप दे दिया हो। लेकिन यह केवल अनुमान है क्योंकि इसका कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। ऊदनशाह ने जब 1660 में यहां छोटा किला बनवाकर पहली बस्ती यानि परकोटा गांव बसाया, तो तालाब पहले से ही मौजूद था।
झील के संबंध में डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के जियॉलाजिस्ट स्वर्गीय डॉ डब्लूडी वेस्ट का मत था कि जब उपरिस्थ ट्रप के हट जाने के कारण विंध्य दृश्यांश (आउट क्रॉप) जो अंशत: झील को घेरे हुए हैं, अनावृत्त हो गए, तब इस झील का प्रादुर्भाव हुआ।
विद्वानों के मतानुसार ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि अधिक प्रतिरोधी विंध्य क्वार्टजाइट दक्षिण से उत्तर की ओर के जलप्रवाह पर बांध का काम करता है। बाद में पश्चिम की ओर का जलप्रवाह रोकने के लिए एक छोटे से बांध का निर्माण भी किया गया।
पूर्व में इस झील का क्षेत्रफल कितना था इसके बारे में भी कोई विश्वसनीय जानकारी मौजूद नहीं है। कुछ अभिलेखों में एक समय इसे करीब 600 हैक्टेयर में फैला बताया गया है। लेकिन उपलब्ध सरकारी अभिलेखों में करीब चार दशक पूर्व इसे लगभग 1 वर्गमील क्षेत्र में फैला बताया गया है।
वर्तमान में शहर के विस्तार और नगरवासियों में अपनी विरासत को सहेजने के प्रति चेतना की कमी के चलते झील के चारों ओर भीषण प्रदूषण तथा अतिक्रमण का बोलबाला है, जिसके चलते यह ऐतिहासिक झील तिल-तिल कर मर रही है।
हाल ही में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय झील संरक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत सागर झील को प्रदूषण मुक्त करने और इसके संरक्षण के लिए 22 करोड़ रुपए की योजना को मंजूरी दी है।
साभार - डेलीहिन्दीन्यूज.कॉम
सागर झील का इतिहास
सागर के बारे में यह मान्यता है कि इसका नाम सागर इसलिए पड़ा क्योंकि यह एक विशाल झील के किनारे स्थित है। इसे आमतौर पर सागर झील या कुछ प्रचलित किंवदंतियों के कारण लाखा बंजारा झील भी कहा जाता है। सागर नगर इस झील के उत्तरी, पश्विमी और पूर्वी किनारों पर बसा है।
दक्षिण में पथरिया पहाड़ी है, जहां विश्वविद्यालय कैंपस है। इसके उत्तर-पश्चिम में सागर का किला है। नगर की स्थिति और रचना पर इस झील का बहुत प्रभाव है। लंबे समय तक झील नगर के पेयजल का स्रोत्र रही लेकिन अब प्रदूषण के कारण इस्तेमाल नहीं किया जाता।
झील की उत्पत्ति:
झील की उत्पत्ति के बारे में वैसे तो कोई प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है लेकिन कई किंवदंतियां प्रचलित हैं। इनमें सबसे मशहूर कहानी लाखा बंजारे के बहू-बेटे के बलिदान के बारे में है।
जानकारों का मानना है कि यह प्राकृतिक तरीके से बना एक सरोवर हो सकता है, जिसे बाद में किसी राजा या समुदाय ने जनता के लिए अधिक उपयोगी बनवाने के उद्देश्य से खुदवा कर विशाल झील का स्वरूप दे दिया हो। लेकिन यह केवल अनुमान है क्योंकि इसका कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। ऊदनशाह ने जब 1660 में यहां छोटा किला बनवाकर पहली बस्ती यानि परकोटा गांव बसाया, तो तालाब पहले से ही मौजूद था।
आधिकारिक मत:
झील के संबंध में डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के जियॉलाजिस्ट स्वर्गीय डॉ डब्लूडी वेस्ट का मत था कि जब उपरिस्थ ट्रप के हट जाने के कारण विंध्य दृश्यांश (आउट क्रॉप) जो अंशत: झील को घेरे हुए हैं, अनावृत्त हो गए, तब इस झील का प्रादुर्भाव हुआ।
विद्वानों के मतानुसार ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि अधिक प्रतिरोधी विंध्य क्वार्टजाइट दक्षिण से उत्तर की ओर के जलप्रवाह पर बांध का काम करता है। बाद में पश्चिम की ओर का जलप्रवाह रोकने के लिए एक छोटे से बांध का निर्माण भी किया गया।
वर्तमान स्थिति:
पूर्व में इस झील का क्षेत्रफल कितना था इसके बारे में भी कोई विश्वसनीय जानकारी मौजूद नहीं है। कुछ अभिलेखों में एक समय इसे करीब 600 हैक्टेयर में फैला बताया गया है। लेकिन उपलब्ध सरकारी अभिलेखों में करीब चार दशक पूर्व इसे लगभग 1 वर्गमील क्षेत्र में फैला बताया गया है।
वर्तमान में शहर के विस्तार और नगरवासियों में अपनी विरासत को सहेजने के प्रति चेतना की कमी के चलते झील के चारों ओर भीषण प्रदूषण तथा अतिक्रमण का बोलबाला है, जिसके चलते यह ऐतिहासिक झील तिल-तिल कर मर रही है।
आशा की किरण:
हाल ही में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय झील संरक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत सागर झील को प्रदूषण मुक्त करने और इसके संरक्षण के लिए 22 करोड़ रुपए की योजना को मंजूरी दी है।
साभार - डेलीहिन्दीन्यूज.कॉम
संदर्भ
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