सहजन (Horse-radish tree, Drum stick plant)

Submitted by admin on Tue, 07/19/2011 - 11:22

सहजन (http://jkhealthworld.com)


सहजन के पेड़ अधिकतर हिमालय के तराई वाले जंगलों में ज्यादा पायें जाते हैं। सहजन के पेड़ छोटे या मध्यम आकार के होते हैं। इसकी छाल और लकड़ी कोमल होती है। सहजन के पेड़ की टहनी बहुत ही नाजुक होती है जो बहुत जल्दी टूट जाती है। इसके पत्ते 6-9 जोड़े में होते हैं। फलियां 6-18 इंच लम्बी 6 शिराओं से युक्त और धूसर होती हैं। सहजन के पेड़ तीन प्रकार के होते हैं जिन पर लाल, काले और सफेद फूल खिलते हैं। लाल रंग के फूल वाले पेड़ की सब्जी खाने में मीठी और सफेद रंग के फूल वाले पेड़ की सब्जी कटु होती है।

तासीर : सहजन का स्वभाव गर्म होता है।

विभिन्न भाषाओं में सहजन के नाम :

हिन्दी

सहजन।

संस्कृत

शोभानजना।

अंग्रेजी

Horse radish tree, Drum stick plant.

राजस्थान

सेनणा, सहजन।

पंजाबी

शुभांजना।

बंगाली

सजीना।

तेलगु

शोरगी।

मराठी

शोरगी।


 

गुण : सहजन का प्रयोग दर्द निवारक दवा बनाने में किया जाता है। इसके फूल और फलियों की सब्जी बनाकर खाते हैं। सहजन की पत्तियों में विटामीन `ए` व `सी` कैरोटिन और एस्कॉर्बिक एसिड के रूप में बहुत मिलता है। इसकी 100 ग्राम पत्तियों में लगभग 7 ग्राम कैरोटिन होता है, जिसे हमारा शरीर विटामिन `ए` में बदल देता है, जो आंखों के रोगों के लिए जरूरी होता है। इसकी मुलायम हरी पत्तियों की सब्जी बनाकर सेवन कर सकते हैं। इसकी पत्तियों को दूसरी सब्जी के साथ मिलाकर भी पका सकते हैं। इसकी सब्जी खाने की ओर कम लोगों का ध्यान जाता है, लेकिन इसके गुण देखते हुए इसकी सब्जी अधिक खानी चाहिए।

यह चटपटा, गर्म, मीठा, हल्का, जलन को शांत करता है, भूख को बढ़ाता है, बलगम को नष्ट करता है, वातनाशक, वीर्यवर्धक, फोड़े-फुंसी को खत्म करता है, गण्डमाला, गुल्म, प्लीहा तथा विद्रधि नाशक है तथा दस्त अधिक लाता है, सहजन के बीज आंखों के लिए लाभकारी तथा सिरदर्द दूर करने वाला है।

इसकी शाखा की एक बहुत अच्छी खासियत है कि इसे जमीन में गाड़ दिया जाये तो इसका पेड़ उग जाता है।

अन्य स्रोतों से

भली फली सहजन (1)


क्या आप जानते हैं?

फिलीपीन्स, मैक्सिको, श्रीलंका, मलेशिया आदि देशों में भी सहजन की काफ़ी माँग है।
दक्षिण भारतीय लोग इसके फूल, पत्ती का उपयोग विभिन्न प्रकार के व्यंजनों में साल भर करते हैं।
इस पौधे के सभी भागों का उपयोग विभिन्न कार्यों में किया जाता है।
सहजन के बीज से तेल निकाला जाता है और छाल पत्ती, गोंद, जड़ आदि से आयुर्वेदिक तवाएँ तैयार की जाती हैं।
इसमें दूध की तुलना में ४ गुना कैलशियम और दुगना प्रोटीन पाया जाता है।
सहजन के बीज से पानी को काफी हद तक शुद्ध करके पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

सहजन, सुजना, सेंजन और मुनगा या मुरुंगा अत्यंत सुंदर वृक्ष तो है ही अनेक पोषक तत्त्वों से भरपूर होने के कारण उपयोगी और स्वास्थ्यवर्धक भी है। मोरिंगा ओलेफेरा वानस्पतिक नाम वाला यह पौधा लगभग १० मीटर उंचाई वाला होता है किन्तु लोग इसे डेढ़-दो मीटर की ऊँचाई से प्रतिवर्ष काट देते हैं ताकि इसके फल-फूल-पत्तियों तक हाथ आसानी से पहुँच सके। सहजन के पौधे में मार्च महीने के आरंभ में फूल लगते हैं व इसी महीने के अंत तक फल भी लग जाते हैं। इसकी कच्ची-हरी फलियाँ सर्वाधिक उपयोग में लायी जातीं हैं।

आयुर्वेद में ३०० रोगों का सहजन से उपचार बताया गया है, लेकिन आधुनिक विज्ञान ने इसके पोषक तत्वों की मात्रा खोजकर संसार को चकित कर दिया है। इसकी फली, हरी पत्तियों व सूखी पत्तियों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम, विटामिन-ए, सी और बी कॉम्पलैक्स प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। एक अध्ययन के अनुसार इसमें दूध की तुलना में ४ गुना कैलशियम और दुगना प्रोटीन पाया जाता है। क्षेत्रीय खाद्य अनुसंधान एवं विश्लेषण केंद्र लखनऊ द्वारा सहजन की फली एवं पत्तियों पर किए गए नए शोध से पता चला है कि प्राकृतिक गुणों से भरपूर सहजन इतने औषधीय गुणों से भरपूर है कि उसकी फली के अचार और चटनी कई बीमारियों से मुक्ति दिलाने में सहायक हैं। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार इसे दुनिया का सबसे उपयोगी पौधा कहा जा सकता है। यह न सिर्फ कम पानी अवशोषित करता है बल्कि इसके तनों, फूलों और पत्तियों में खाद्य तेल, जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने वाली खाद और पोषक आहार पाए जाते हैं।

इसके फूल, फली व पत्तों में इतने पोषक तत्त्व हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मार्गदर्शन में दक्षिण अफ्रीका के कई देशों में कुपोषण पीडित लोगों के आहार के रूप में सहजन का प्रयोग करने की सलाह दी गई है। एक से तीन साल के बच्चों और गर्भवती व प्रसूता महिलाओं व वृद्धों के शारीरिक पोषण के लिए यह वरदान माना गया है। लोक में भी कैन्सर व पेट आदि शरीर के आभ्यान्तर में उत्पन्न गांठ, फोड़ा आदि में सहजन की जड़ का अजवाइन, हींग और सौंठ के साथ काढ़ा बनाकर पीने का प्रचलन है। यह भी पाया गया है कि यह काढ़ा साइटिका (पैरों में दर्द), जोड़ो में दर्द, लकवा, दमा, सूजन, पथरी आदि में लाभकारी है। सहजन के गोंद को जोड़ों के दर्द और शहद को दमा आदि रोगों में लाभदायक माना जाता है। आज भी ग्रामीणों की ऐसी मान्यता है कि सहजन के प्रयोग से विषाणु जनित रोग चेचक के होने का खतरा टल जाता है।

दुनिया में करोड़ों लोग भूजल का प्रयोग पेयजल के रूप में करते हैं। इसमें कई तरह के बैक्टीरिया होते हैं जिसके कारण लोगों को तमाम तरह की जलजनित बीमारियाँ होने की संभावना बनी रहती है। इन बीमारियों के सबसे ज्यादा शिकार कम उम्र के बच्चे होते हैं। ऐसे में सहजन के बीज से पानी को काफी हद तक शुद्ध करके पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। क्लीयरिंग हाउस के शोधकर्ता और करंट प्रोटोकाल्स के लेखक माइकल ली का कहना है कि सहजन के पेड़ से पानी को साफ करके दुनिया मे जलजनित बीमारियों से होने वाली मौतों पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है। इसके बीज से बिना लागत के पेय जल को साफ किया जा सकता है। इसके बीज को चूर्ण के रूप में पीस कर पानी में मिलाया जाता है। पानी में घुल कर यह एक प्रभावी नेचुरल क्लैरीफिकेशन एजेंट बन जाता है। यह न सिर्फ पानी को बैक्टीरिया रहित बनाता है बल्कि यह पानी की सांद्रता को भी बढ़ाता है जिससे जीवविज्ञान के नजरिए से मानवीय उपभोग के लिए अधिक योग्य बन जाता है। भारत जैसे देश में इस तकनीक की उपयोगिता असाधारण हो सकती है, जहाँ आम तौर पर ९५ फीसदी आबादी बिना साफ किए हुए पानी का सेवन करती है।

दो दशक पूर्व तक सहजन का पौधा प्राय: हर गांव में आसानी से मिल जाता था। लेकिन आज इसके संरक्षण की आवश्यकता का अनुभव किया जा रहा है। इस पौधे के विरल होते जाने का कारण यह है कि इस पर भुली नामक एक कीट रहता है, जिससे अत्यंत ही खतरनाक त्वचा एलर्जी होती है। इसी भयवश ग्रामीण इस पौधे को नष्ट कर देते हैं। एक ओर जहाँ विशेषज्ञ इसे भुली से मुक्ति के उपाय खोजने में लगे हैं वहीं दूसरी ओर सहजन का साल में दो बार फलने वाला वार्षिक प्रभेद तैयार कर लिया गया है, जिससे ज्यादा फल की प्राप्ति होती है।

१० मई २०१०

बाहरी कड़ियाँ
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विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia)

सहजन


सहजन (Drumstick tree) एक एक बहुत उपयोगी पेड़ है। इसे हिन्दी में सहजना, सुजना, सेंजन और मुनगा आदि नामों से भी जाना जाता है। इसका वनस्पति वैज्ञानिक नाम "मोरिंगा ओलिफेरा" ( Moringa oleifera ) है। इस पेड़ के विभिन्न भाग अनेकानेक पोषक तत्वों से भरपूर पाये गये हैं इसलिये इसके विभिन्न भागों का विविध प्रकार से उपयोग किया जाता है।

वेबस्टर शब्दकोश ( Meaning With Webster's Online Dictionary )
हिन्दी में -

शब्द रोमन में






संदर्भ