सिंधु

Submitted by admin on Sun, 03/07/2010 - 16:01

यह नदी दुनिया की बड़ी नदियों में से एक है। भारत के लिए इसका सबसे बड़ा ऐतिहासिक महत्त्व यह है कि ‘सिंधु’ शब्द के आधार पर ही ‘हिदं’ ‘हिदूं’ और ‘हिन्दुस्तान’ का नाम भारत को मिला। अंग्रेजी के ‘इंडिया’ का आधार भी सिंधु का नाम ही है जिसे यूनानियों ने प्राचीन काल में ‘इंडस’ नाम दिया था। इसका उद्गम तिब्बत में मानसरोवर की उत्तरी दिशा में लगभग 5,182 मीटर की ऊंचाई पर है। अपने उद्गम से लगभग 172 मील उत्तर-पश्चिम की दिशा में बहने के बाद यह अपनी सहायक नदी धार से मिल जाती है। इसकी धारा लगभग 4,210 मीटर की ऊंचाई पर बहती है। यह लद्दाख के ऊंचे नगर लेह से होकर गुजरती है। इसमें जस्कर नदी का विलय कराकोरम दर्रे के पास होता है। वहां से इसका रुख पश्चिम दिशा की ओर हो जाता है। स्कर्दू के करीब से बहती हुई यह दक्षिण दिशा में मुड़ जाती है। जब यह कोहिस्तान पहुंचती है तो अटोक के करीब इसमें अफगानिस्तान की नदी ‘काबुल’ का विलय हो जाता है। फिर यह नदी मैदानी क्षेत्रों में प्रवेश कर जाती है।

दक्षिण में सुलेमान श्रेणी के समानांतर बहती हुई यह नदी आगे चलकर अपने में ‘हारो’ ओर ‘सोहन’ नदियों को मिला लेती है। जैसाकि प्राय: सभी लोग जानते होगें, पंजाब की पांच नदियों झेलम, चेनाब, रावी, व्यास और सतलुज की धाराओं को ‘पंचनद’ कहा जाता है। पंचनद की जलधारा भी पठानकोट के पास सिंधु नदी में मिल जाती है।

वहां से सिंधु लगभग आठ सौ किलोमीटर दक्षिण की ओर बहती हुई कराची के निकट पहुंच जाती है। यहां से यह कई छोटी-छोटी धाराओं में बंटकर विशाल डेल्टा क्षेत्र बनाने लगती है और फिर अरब-सागर में विलीन हो जाती है। औद्योगिक और ऐतिहासिक दोनों दृष्टि से इस नदी का अपना ही महत्व है। इस नदी की कुल लंबाई लगभग 2,880 किलोमीटर आंकी गई है, जिसमें से 1,610 किलोमीटर की दूरी यह पाकिस्तान में तय करती है।

प्रस्तुति - मीनाक्षी सुलेलान