वर्गीकरण | |||
वर्गीकरण | शिवालिक शैलसमूह | कालविभाजन | जीवाश्म |
उपरि शिवालिक | गोलाश्म संगुटिकाश्म (Boulder conglomerate) पिंजार स्टेज (Pinjor stage) टैट्राट स्टेज़ (Tatrot stage) | निम्न अत्यंतनूतन युग (Lower Pleistocene) अतिनूतन युग (Pliocene) | प्राइमेट्स, स्यार, कुत्ता, बिल्ली, शेर, चीता, लोमड़ी, हाथी, घोड़ा। राइनोसिरस (Rhinoceros), गैंडा, हिपोपॉटैमस, भैंसा, ऊँट आदि। |
मध्य शिवालिक | धोक पठान स्टेज (Dhok Pathan stage) नागरी स्टेज (Nagari stage) | पॉन्टैन (Pontain) सारमेशैन (Sarmatian) | प्राइमेट्स, मांसाहारी जीव और रोडेंट्स (Rodents)। स्तनधारी जीव, प्राइमेट्स, शिवाथेरियम, मांसाहारी जीव, सूँड़धारी जीव, जिराफ। |
पूर्व शिवालिक | चिंजी स्टेज (Chinji stage) कमलियाल स्टेज (Kamlial stage) | टॉरटोनिऐन (Tortonian) हेल्वीशैन (Helvetian) | पक्षी वर्ग, रेंगनेवाले जीव (घड़ियाल, छिपकली साँप, कछुआ आदि)। मछली। |
शिवालिक नाम हरिद्वार की शिवालिक पर्वतश्रेणी के आधार पर दिया गया है, जहाँ पहले पहल शैलसमूहों में से कशेरुकी जीवों के जीवाश्मों का एक भंडार मिला था। ये जीवाश्म इतने अधिक और इतने प्रकार के थे कि उनसे उस युग के जीवविकास पर अत्यधिक प्रकाश पड़ता है। धीरे धीरे इस समूह के निक्षेप भारत के अन्य भागों में भी मिले। इस प्रकार बलूचिस्तान के मकरान, सिंध के मंचर, असम के टिघम, डूपीटीलाएवं डिहिंग ओर वर्मा के इरावदी शैलसमूह शिवालिक समूह के विभिन्न दृष्टांत हैं।
शिवालिक शैलसमूह अलवण जलीय निक्षेपों से, जिनमें बलुआ पत्थर, मृत्तिका, गोलाश्म मृत्तिका, पंकाश्म मुख्य बना है। ये निक्षेप आधुनिक मिट्टी की ही भाँति हैं। इनमें केवल इतना अंतर है कि समय के बीतने से ये कड़े हो गए हैं।
विस्तार तथा वर्गीकरण- शिवालिक समूह के निक्षेप समस्त दक्षिणी हिमालय प्रदेश में एक पतली लीक के रूप में फैले हैं। ये निक्षेप असम, उत्तर प्रदेश, शिमला, पंजाब, कश्मीर, बलूचिस्तान एवं सिंध में विशेष रूप से विस्तृत हैं। इनका वर्गीकरण ऊपर दिया हुआ है।
शिवालिक समूह का महत्व- जीवविकास की दृष्टि से शिवालिक समूह का महत्त्व भारतीय स्तरित-शैल-विज्ञान (stratigraphy) में विशेष है। जो स्तनधारी जीव, अल्पनूतन युग के अपरान्ह के जीव जगत् में मुख्य थे, उनके जीवाश्म अत्यधिक संख्या में शिवालिक शैलसमूहों में मिलते हैं। विद्वानों का मत है कि पानी और भोजन की बहुतायत के कारण दूर दूर से जानवर हिमालय प्रदेश में रहने के लिए आए। उदाहरणार्थ, सुअर, हिपोपॉटेमस और सूँड़धारी जीव मय अफ्रका से अरब और ईरान होते हुए भारत आए थे। गैंडा, घोड़ा और ऊँट उत्तरी अमरीका से आए हुए माने जाते हैं। इस समूह में न केवल विभिन्न वर्ग के जीवों के जीवाश्म मिलते हैं, अपितु इस समूह के काल में समस्त जीवविकास इतन शीघ्रता से हो रहा था कि ऐसे भी जीवाश्म मिलते हैं जिनमें दो जीवों के अंग हैं। इनमें शिवाथेरियम नामक जीव मुख्य हैं। शिवालिक का यह अनन्य जीवों का खजाना यदि शंताश रूप में भी रह गया होता, तो शायद आजकल पृथ्वी इन्हीं जीवों से ढँकी रहती और भोजन, पानी कभी का समाप्त हो चुका होता, परंतु प्रकृति के नियम विचित्र हैं। समस्त जगत् के स्वामी होते हुए भी इन जीवों का अंत भी उतनी ही शीघ्रता से हुआ जितनी श्घ्रािता से इनका विकास हुआ था। अत्यंतनूतनयुग की हिमनद अवधि और अतिशीतोष्ण जलवायु के फलस्वरूप सभी ताल, तालाब जम गए, जीव मरने लगे, महामारी का प्रकोप हुआ और शनै: शनै: इन जीवों का अंत हो गया। जो कुछ जीव बच पाए, उन्हीं की संतान आधुनिक जगत् के जीव हैं।
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