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योजना, 15 नवंबर, 1993
समुद्री औषधियाँ अपेक्षाकृत एक नया विषय है तथा इस क्षेत्र में अब तक की गई प्रगति कोई महत्त्वपूर्ण नहीं है। मानव शरीर की भाँति पृथ्वी पर भी तीन-चौथाई के लगभग जल है जिसमें अनेक प्रकार की वनस्पतियाँ व जीव प्रचुर भाग में हैं।
महासागर विकास विभाग, भारत सरकार द्वारा “समुद्री संसाधनों से औषधियाँ” का प्रकाशन स्तुत्य है। यह पुस्तक हिन्दी पाठक का संभवतः पहली बार एक ऐसे जगत से प्रामाणिक रूप से परिचय कराती है जिसके विषय में जानकारी नहीं के बराबर है। हालाँकि हिन्दी जगत का जन समुद्र मंथन और फलस्वरूप अमूल्य निधियों के प्रादूर्भाव, जिनमें विष से लेकर अमृत तक औषधियाँ भी सम्मिलित रही है, भली-भाँति परिचित है।हिन्दी में इस तरह का प्रयास सराहनीय है। जहाँ तक पुस्तक की विषय वस्तु का प्रश्न है, यह निबंधों का संकलन है जो अम्बेडकर जयन्ती के अवसर पर 28 फरवरी को केन्द्रीय औषधि अनुंसधान संस्थान द्वारा इस विषय पर आयोजित एक विचार गोष्ठी में पढ़े गए।
समुद्री औषधियाँ अपेक्षाकृत एक नया विषय है तथा इस क्षेत्र में अब तक की गई प्रगति कोई महत्त्वपूर्ण नहीं है। मानव शरीर की भाँति पृथ्वी पर भी तीन-चौथाई के लगभग जल है जिसमें अनेक प्रकार की वनस्पतियाँ व जीव प्रचुर भाग में हैं। नितांत असमान पर्यावर्णीय दशाओं के अन्तर्गत समुद्र में पाई जाने वाली प्रजातियाँ पृथ्वी पर पाई जाने वाली प्रजातियों से काफी भिन्न हैं। कई औषधियाँ पदार्थों वाले जीवों की भी पहचान कर ली गई है, परन्तु इनमें से एक प्रतिशत से कम की ही जैव सक्रियता के लिये जाँच की गई है।
पुस्तक के अनुसार समुद्र अनेक औषधियों से भरा पड़ा है। जिसके द्वारा कैंसर, एड्स तथा अन्य गम्भीर बीमारियों के इलाज तथा रोकथाम संभव हैं। इनसे मानव स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिये नए रास्ते खुलेंगे। पुस्तक में कुछ ज्ञात समुद्री सम्पदाओं के गुणों का वर्णन है तथा समुद्री उत्पादों की भी चर्चा है। समुद्र से मिलने वाले रसायनों, धातुओं, द्रव्यों इत्यादि के बारे में बहुत कुछ जानकारी दी गई है। आयुर्वेद, होम्योपैथी और यूनानी पद्धतियों में समुद्री उत्पादों के महत्व पर भी प्रकाश डाला गया है। समुद्र से प्राप्त विषयों के औषधीय उपयोगों की भी चर्चा की गई है। समुद्री जीवों की उपयोगिता के बारे में भी बताया गया है।
इस प्रकार कुल मिलाकर पुस्तक जानकारी वर्द्धक है। जानकारी अभी प्रारम्भिक स्तर पर है क्योंकि इस दिशा में अनुसंधान अभी शैशवावस्था में ही है। विषय में रुचि रखने वाले पाठकों को भविष्य में अनुसंधानों की टोह लेते रहना होगा।
गणेश मंत्री ने अपने लेख में ठीक ही लिखा है कि सागर मंथन करिए, प्रकृति की एक-एक बात जानिए, विज्ञान को और गहराई तथा ऊँचाई दीजिए, अपनी विद्या को, अपनी निधियों को मनुष्य जाति के कल्याण और मंगल के लिये सुरक्षित रखिए, अभी सागर मंथन करना होगा और एक-एक बात को जानना होगा।
गोपाल स्वरूप मिश्र, क्वार्टर नं. 5,सेक्टर-7, रामकृष्णपुरम, नई दिल्ली
‘समुद्र संसाधनों से औषधियाँ’, संपादक मंडल द्वारा संकलित; प्रकास—महासागर विकास विभाग, केन्द्रीय कार्यालय परिसर, नई दिल्ली-110003, पृष्ठ सं. 141।