संघनित्र (Condenser)

Submitted by Hindi on Sat, 08/27/2011 - 10:50
संघनित्र (Condenser) भाप को ठंढा कर द्रव रूप में लाने के लिए जिस उपकरण का प्रयोग किया जाता है, वह संघनित्र कहलाता है। अर्क उतारने या शराब चुआने के अनेक प्रकार के भभकों (stills) के रूप में इनका विस्तृत उपयोग अति प्राचीन काल से चला आ रहा है। सरलतम रूप में यह एक नली होती है, जिसे ठंढे पानी से, या अन्य प्रकार से ठंडा रखा जाता है, जिससे भाप द्रव रूप में बदल जाए । उपर्युक्त क्रिया को आसवन कहते हैं।

इसमें एक पात्र में रखे किसी पदार्थ को गरम कर, भाप में बदल देते हैं और उस भाप को संघनित्र की सहायता से ठंडा कर फिर तरल रूप में ले आते हैं। इस क्रिया का सरल रूप तब देखने में आता है जब उबलती हुई दाल के बरतन पर पानी भरा कटोरा रख देने पर, कटोरे के नीचे, अथवा चाय की केटली से निकलती हुई भाप के आगे ठंडा बरतन रखने से उसपर, पानी की बूँदें बन जाती हैं।

रासायनिक क्रियाओं में रसायनज्ञ, जस्टस फॉन लीबिख, द्वारा प्रचलित संघनित्र का व्यापक प्रयोग होता है। यह संघनित्र चित्र 2. में दिखाया गया है तथा इसी क्रिया समझाई गई है। जल अथवा अन्य द्रव पदार्थ का आसवन (distillation) कर, शुद्ध पदार्थ पाने के लिए इसका उपयोग होता है। प्रभाजी आसवन में भी संघनित्र काम में आता है (देखें चित्र 3)।गैसों की दाव कम करके तथा उन्हें ठंडा करके भी गैस द्रव रूप में लाई जाती है। इस क्रिया में ठंडा करनेवाले उपकरण को भी संघनित्र कहते हैं (देखें गैसों का द्रवण)। ये कई प्रकार के होते हैं। किंतु सब में किसी कम तापवाले पदार्थ से एक नली या बरतन को ठंडा करते हैं और उसमें स द्रव में बदली जानेवाली गैस को गुजारते हैं। (भगवान दास वर्मा)

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संदर्भ
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बाहरी कड़ियाँ
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