श्री पद्रे

Submitted by admin on Wed, 04/28/2010 - 18:21
श्री पद्रेश्री पद्रेश्री पद्रे खुद को पेशे से किसान और दिल तथा जुनून से अपने को पत्रकार कहते हैं, जबकि देखा जाये तो असल में श्री पद्रे इन दोनों का समुचित मिश्रण हैं। श्री पद्रे कृषि पत्रकारिता के गुरू हैं, लेकिन इस कृषि पत्रकारिता को वे “स्व-सहायता पत्रकारिता” कहते हैं। भारत में कृषि का क्षेत्र बड़ी निराशा की अवस्था में है, इस बात को सभी मानते हैं। लेकिन इस क्षेत्र में भी तेजी से एक नई प्रकार की अर्थव्यवस्था उभर रही है जो कि नई सोच, नव-उद्यमिता, आविष्कारशीलता के साथ परम्परागत भी है, और श्री पद्रे इसी सोच का प्रतिनिधित्व करते हैं।

श्री पद्रे, कर्नाटक की सीमा पर बसे केरल के एक गाँव वाणीनगर के मूल निवासी हैं। सन् 1985 में जब सुपारी के भाव एकदम गिर गये थे तब परेशान किसानों ने ऑल इंडिया सुपारी उत्पादक संघ बनाकर कई विशेषज्ञों को उनकी समस्याओं का हल खोजने हेतु प्रेरित और अनुबन्धित किया। श्री पद्रे को उस समय एक पत्रकार की हैसियत से बुलाया गया था। एक नव-विचार के तहत “Areca News (सुपारी समाचार)” नामक एक छोटा समाचार पत्र निकालने का सुझाव आया और पद्रे ने इसे छापने का संकल्प लिया। इस समाचार पत्र के शुरुआती अनुभवों के दौरान उन्हें महसूस हुआ कि गरीब किसानों के पास सही जानकारी का अभाव है। अभी तक खेती के अधिकतर लेख, समाचार-पत्र और पुस्तकें नौकरशाहों या वैज्ञानिकों द्वारा लिखे जाते थे, जिन्हें ज़मीनी ज्ञान बिलकुल नहीं था। इसलिये श्रीपद्रे ने एक पत्रिका “किसानों द्वारा, किसानों के लिये” निकालने का फ़ैसला किया। हालांकि सुपारी उत्पादक संघ इस पहल को लेकर सशंकित थी, लेकिन फ़िर भी सब राजी हुए और “आदिके पत्रिके” नाम से किसान पत्रिका का पहला अंक नवम्बर 1988 को प्रकाशित होकर आया। अब श्रीपद्रे को अन्य अनुभवी किसानों को मनाना था तथा उनके नये विचारों, आईडिया, देसी आविष्कारों और अनुभवों को लिखने हेतु प्रेरित करना था। पद्रे ने उन्हें भरोसा दिलाया कि उनका “स्थानीय ज्ञान” बहुत अमूल्य है, लेकिन फ़िर भी अनुभव लिखने के मामले में किसान हीन भावना से ग्रस्त दिखे। तब श्री पद्रे ने किसानों के लिये एक कार्यशाला आयोजित की जिसमें उन्हें “रिपोर्ट लिखना” सिखाया गया। धीरे-धीरे किसान अपने अनुभव, अन्य खेतों की रिपोर्टिंग, इंटरव्यू आदि भी लिखने लगे।

वर्तमान में “अदिके पत्रिके” की 75,000 प्रतियाँ प्रकाशित होती हैं जिसकी कीमत सिर्फ़ 7 रुपये प्रति पत्रिका रखी गई है, इसे अब खेती से सम्बन्धित विज्ञापन भी मिलने लगे हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो यह पत्रिका अब सुपारी किसानों के लिये एक सन्दर्भ स्रोत बन चुकी है।

श्रीपद्रे सिर्फ़ यहीं नहीं रुके हैं, अब उन्होंने अपना ध्यान कर्नाटक और केरल की ज़मीन पर जल संरक्षण की ओर देना शुरु किया है। जल संरक्षण और रेनवाटर हार्वेस्टिंग क्षेत्र में विश्व की आधुनिकतम तकनीक का अध्ययन करके वे किसानों को इसके बारे में बताते और शिक्षित करते हैं ताकि उनके खेतों का भूजल स्तर ऊँचा उठाया जा सके। रेनवाटर हार्वेस्टिंग और जल संरक्षण पर उन्होंने अब तक सात पुस्तकें लिखी हैं और कर्नाटक के कन्नड़ दैनिक “विजय कर्नाटका” में वे “पानी” विषय पर एक साप्ताहिक कॉलम भी लिखते हैं। उन्होंने एक वाटर फ़ोरम (जलकूटम) भी गठित की है जिसमें मिट्टी और जल के संरक्षण और रेनवाटर हार्वेस्टिंग की तकनीक पर चर्चाएं आयोजित की जाती हैं। केरल के कासरगौड़ जिले में श्री पद्रे ने काजू के पेड़ों पर Endosulfan नामक रसायन नहीं छिड़कने सम्बन्धी अभियान को सफ़लतापूर्वक चलाया और किसानों को एंडोसल्फ़ान के खतरों तथा उसकी वजह से फ़ैल रहे जल प्रदूषण और स्वास्थ्य संबंधी खतरों के सम्बन्ध में समझाया, तथा इसका छिड़काव रुकवाने में सफ़लता हासिल की। इसी वजह से एण्डोसल्फ़ान के दुष्प्रभावों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचाना गया।