श्रीलंका (Ceylon)

Submitted by Hindi on Sat, 08/27/2011 - 10:08
श्रीलंका (Ceylon) हिंद महासागर में स्थित, भारत से मनार की खाड़ी तथा पाक जलडमरूमध्य द्वारा पृथक्‌, एक बड़ा द्वीप है। इसकी अधिकतम लंबाई 270 मील (उत्तर से दक्षिण), चौड़ाई 140 मील (पूर्व से पश्चिम) तथा क्षेत्रफल 25,332 वर्ग मील है।

यह प्राचीन द्वीप ब्राह्मण साहित्य में लंका, ग्रीक और रोमवासियों में तप्रोवेन, समुद्री व्यापारियों में सेरन द्वीप (सिंहल द्वीप का अपभ्रंश) तथा पुर्तगालवासियों में जेलन (अब सीलोन) के नाम से विख्यात था। रत्नद्वीप के नाम से भी यह विख्यात था। भारतीय महाकाव्य रामायण में महाकाव्य के नायक श्रीराम द्वारा लंका विजय का विशद वर्णन है।

द्वीप का क्रमबद्ध इतिहास राजा विजय के शासनकाल से प्रारंभ होता है। राजा का पदार्पण उत्तर-पूर्व भारत से ईसा के 483 वर्ष पूर्व हुआ और तब से 19वीं शताब्दी के प्रारंभ तक यहाँ राजतंत्र रहा। 1505 ई. में दक्षिण और पश्चिम भाग में पुर्तगालियों ने अपना उपनिवेश स्थापित किया। 17वीं शताब्दी के मध्य में इसपर डच लोगों का अधिकार हो गया। पर 1796 ई. में अंग्रेजों ने डचों को हराकर इसपर अधिकार कर लिया। इस प्रकार 1802 ई. में यह ब्रिटिश उपनिवेश का एक अंग बन गया। 1814 ई. से 1948 ई. तक ब्रिटिश शासनांतर्गत रहने के बाद 4 फरवरी,, 1948 ई. को लंका स्वतंत्र हुआ तथा जुलाई, 1956 में गणतंत्र बना। यह कॉमनवेल्थ का सदस्य भी है।

श्रीलंका के मध्य 4,212 वर्ग मील में फैला एक पर्वतपिंड है जिसे चारों ओर समतल मैदान है। समुद्रतट से पर्वतपिंड की दूरी 45 से 70 मील है। इसकी मुख्य चोटी पिदुरुतलागला 8,296 फुट ऊँची है। तोतापेला (7,740 फुट) तथा आदम (7,352 फुट) अन्य प्रमुख चोटियाँ हैं। नुवारा एलिया, यहाँ का मुख्य स्वास्थ्यवर्धक केंद्र है, जो 6,000 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। बादुला, बंदाराबेला, दियातालावा, हैटन और कैंडी अन्य स्वास्थ्यवर्धक केंद्र हैं।

नदियाँ- यहाँ की सभी नदियाँ दक्षिण के पहाड़ी भाग से निकलती हैं, 206 मील लंबी प्रसिद्ध महावेली गंगा पश्चिमी ढाल से बहती हुई पूर्व में ट्रिंकोमाली के निकट समुद्र से मिलती है। अन्य प्रमुख नदियाँ कालूगंगा और केलानीगंगा हैं जो पश्चिम में क्रमश: कालुबारा और कोलंबो के पास समुद्र से मिलती हैं। यहाँ की सभी नदियाँ छोटी पर नौगम्य तथा सिंचाई की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।

भूगर्भ और खनिज- यहाँ की भूमि कड़े रवादार चट्टानों से निर्मित है। मध्यभाग में खोंडालाइट चट्टान की पट्टी है जिसमें ग्रेफाइट और रवादार चूना पाया जाता है। उत्तर और दक्षिण पूर्व में ''बिजयनक्रम'' की नाइस चट्टानें वर्तमान हैं। उत्तरी भाग में अल्पनूतन युग (Miocene) का चूना पत्थर पाया जाता है। खोंडालाइट के उत्तर में अत्यंत-नूतन-युग (Pleistocene) की चट्टानों की पट्टी है। पूर्वी और पश्चिमी तट पर आधुनिक जमाव का विश्रृंखलित क्रम है। नदियों के कंकड़ों में कीमती पत्थर मिलते हैं जिनमें नीलम मुख्य है।

जलवायु- विषुवत्‌ रेखा के निकट स्थित यह गरम और मानसूनी देश है। गरमी में दक्षिण-पश्चिमी मानसून के प्रभाव के फलस्वरूप दक्षिणी और पश्चिमी भागों में वर्षा होती हैं। जाड़े में उत्तर-पश्चिमी मानसूनी हवा से सारे देश में साधारण वर्षा हो जाती है। इस तरह यहाँ की औसत वर्षा 50 इंच है। पर पहाड़ी भागों में 200 इंच तक वर्षा होती है। मैदानी भागों में औसत ताप 27 सें. रहता है जबकि पहाड़ी प्रदेशों में 15 सें.। यहाँ (कोलंबो) का मानक समय ग्रीनिच समय से 5 घंटा 19 मिनट 23 सेंकड आगे है।

वनस्पति- श्रीलंका के दक्षिण पश्चिम के वर्षावाले क्षेत्रों में सदाबहार वन हैं। विषुवतीय वन की तरह यहाँ ऊँचे पेड़ हैं जिनमें गटापार्चा, सिनकोना और रबर मे वृक्ष मुख्य हैं। पहाड़ी भागों के वृक्षों के कद छोटे हैं। अधिक ऊँचाई पर कोणधारी वन पाए जाते हैं। आबनूस, सेटिनउड तथा झाड़ीदार वृक्ष शुष्क पतझड़ वन की विशेषता हैं। दक्षिणी और पश्चिमी तटवर्ती क्षेत्रों में नारियल के सघन क्षेत्र हैं।

जीवजंतु- घने जंगलों में स्थानीय उपजाति के हाथी पाए जाते हैं। पालतू तथा जंगली भैंसों के अलावा हिरन की चार, बंदरों की पाँच, मगर की दो तथा साँपों की पाँच जातियाँ पाई जाती हैं। विषधर साँपों कोबरा और वाइपर मिलते हैं। घने जंगलों में चीते मिलते हैं। यहाँ 372 प्रकार के पक्षियों के होने का ज्ञान है जिनमें से 120 जाति के पक्षी ठंढे दिनों में एशिया के देशों से यहाँ चले आते हैं।

कृषि- यहाँ कृषि तथा चरागाह के अंतर्गत क्रमश: 37 और 4.56 लाख एकड़ भूमि है। धान की खेती अधिक भूमि पर होते हुए भी देश इसमें स्वावलंबी नहीं है। रबर उत्पादन में इसका स्थान मलाया और हिंदचीन के बाद है। चाय उत्पादन में इसका तीसरा स्थान है। इलायची, कोको, तंबाकू औैर कपास अन्य प्रमुख फसलें हैं। फलों में आम, केला, नाशपाती, नारंगी, अनार और काजू भी होते हैं।

उद्योग धंधे- श्रीलंका हाथकरघा उद्योग, चटाइयों, टोकरियों, काँच की चूड़ियों, लकड़ी तथा हाथीदाँत की चीजों, चाँदी, एवं पीतल के बरतनों आदि के कुटीर उद्योगों के लिए विख्यात है। बड़े उद्योगों में सूती वस्त्र, सीमेंट, काँच और चमड़े के कारखाने स्थापित किए गए हैं। तटवर्ती क्षेत्रों का मुख्य धंधा मछली पकड़ना है जिनमें यंत्रचालित नौकाओं का व्यवहार होता है। पकड़ी जानेवाली मछलियों में बानिटो, टूना, स्पाइनल, मैक्रेल, ट्राउट, कॉर्क, क्वीनफिश, कैटफिश इत्यादि मुख्य हैं।

जनसंख्या- यहाँ की कुल जनसंख्या है। कोलंबो यहाँ की राजधानी, बंदरगाह एवं प्रमुख औद्योगिक तथा शिक्षाकेंद्र है। कोलंबो की जनसंख्या, जैफना की जनसंख्या, कैंडी की जनसंख्या तथा गाल की जनसंख्या है।

धर्म- यहाँ बौद्ध धर्म की प्रधानता है जिसका प्रचार ईसा के 300 वर्ष पूर्व हुआ था।

शिक्षा- यहाँ नि:शुल्क शिक्षा प्रणाली है। 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए स्कूल शिक्षा अनिवार्य है। सीलोन विश्वविद्यालय की स्थापना 1921 ई. में हुई है, जहाँ कला, विज्ञान, औषध, नियम, इंजीनियरी व्यवसाय, कृषि एवं पशुचिकित्सा की शिक्षा का प्रबंध है। शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी, सिंहली या तमिल है।

यातायात- 1958 ई. में रेलमार्ग की लंबाई 898 मील थी। हवाई मार्ग स्थानीय एवं विदेश के मुख्य शहरों को मिलाता है।

व्यवसाय- चावल, सूतीवस्त्र, तरल ईधंन, आटा, मछली, चीनी, उर्वरक, कोयला तथा दूध, से बनी सामग्री का आयात तथा चाय, रबर, नारियल का तेल, इलायची, कोको तथा सुपारी का निर्यात होता है।

संविधान एवं राजनीति- श्रीलंका तटस्थ देश है। संविधान के अनुसार संसद् की दो सदनें हैं, सिनेट तथा हाउस ऑव रिप्रेजेंटेटिव, जिनकी सदस्यसंख्या क्रमश: 30 और 151 है। शासनकार्य मंत्रिमंडल द्वारा संपन्न होता है जिसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है। 1964 ई. में सिंहली यहाँ की राष्ट्रभाषा है।

श्रीवास इनके माता पिता श्रीहद से नवद्वीप में आ बसे थे। यहीं सं. 1510 में इनका जन्म हुआ। ये आरंभ में निष्ठुर, नास्तिक तथा दंभी थे पर स्वप्न में प्रेरणा प्राप्त कर भक्त हो गए। श्री गौरांग ने इन्हें तथा इनके परिवार को प्रत्यक्ष अवतारी महाभावावेश का दर्शन दिया था और एक वर्ष इनके गृह पर रहकर भक्ति का प्रचार किया। श्री गौरांग के कृष्णलीलाभिनय में इन्होंने नारद जी की भूमिका ग्रहण की थी। श्री गौरांग के पुरी चले जाने पर यह श्रीहद चले गए और वहाँ भक्तिकीर्तन का प्रचार किया। 1590 में श्रीगौर के अंतर्धांन होने पर यह भी अंतर्हित हो गए। इस संप्रदाय के पंचतत्व में यह भी एक हैं। ((स्वर्गीय) ब्रजरत्न दास)

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संदर्भ
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बाहरी कड़ियाँ
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