सरित के बोल खुले अनमोल

Submitted by admin on Mon, 07/29/2013 - 12:51
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काव्य संचय- (कविता नदी)
नहीं रहते प्राणों में प्राण,
फूट पड़ते हैं निर्झर – गान।
कहाँ की चाप, कहाँ की माप,
कहाँ का ताप, कहाँ का दाप,
कहाँ के जीवन का परिमाप,
नहीं रे ज्ञात कहाँ का ज्ञान।

सरित के बोल खुले अनमोल,
उन्हीं में मुक्ता-जल-कल्लोल,
एक संदीपन का हिन्दोल,
एक जीती प्रतिमा बहमान।