Saraswati River in Hindi

Submitted by Hindi on Wed, 07/27/2011 - 10:48
विलुप्त हो चुकी सरस्वती नदी प्राचीन भारत की जीवनधारा थी। वैदिक काल में वह सदानीरा महानदी थी, जो हिमालय से अवतरित होकर सागर में समाहित होती थी। प्राचीन ऋषि-महर्षियों को वेदों जैसे अनमोल ग्रंथों की रचना करने के लिए प्रेरित करने वाली सरस्वती, महाभारत की भी साक्षी रही थी। उत्तर महाभारत काल में उसके जल स्तर में कमी होने लगी। पौराणिक काल में वह पवित्र सरोवरों का रूप धारण कर लघुरूपधारिणी वंदनीय नदी बनकर रह गयी। कालांतर में सरस्वती जलशून्य होकर विस्मृत हो गयी।

कुछ बुद्धिजीवियों का मानना है कि सरस्वती एक काल्पनिक नदी है, इस नाम की न कोई नदी है और न थी। यह सत्य है कि सरस्वती नदी अब अपने मूल रूप में नहीं है लेकिन प्रमाणों के अभाव में सरस्वती नदी के अस्तित्व को नकार देना मूर्खता है। प्रमाणों को खोज पाने में मिली असफलता से यह निष्कर्ष नहीं निकलता कि सरस्वती काल्पनिक नदी है। दुर्भाग्यवश हम इन बुद्धिजीवियों की बातों को सत्य मानकर सत्य की खोज करना ही छोड़ देते हैं। सन 2002 तक सरस्वती नदी की खोज के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाये गए। पिछले कुछ वर्षों में हुए अनुसंधानों से पता चला है कि सरस्वती नदी हिमालय के रुपिन-सुपिन ग्लेशियरों से निकल कर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान तथा गुजरात से होती हुई अरब सागर तक बहती थी। आज से लगभग चार हज़ार वर्ष पहले यह जलशून्य हो गई। सरस्वती की खोज एक कठिन कार्य है क्योंकि लम्बा समय होने के कारण अधिकतर प्रमाण नष्ट हो गए हैं लेकिन इससे हताश होकर हम अपनी सांस्कृतिक धरोहर की खोज करना नहीं छोड़ सकते। अगर हम इन बुद्धिजीवियों की बात मानकर सत्य की खोज करना छोड़ देते तो महाभारत में वर्णित द्वारका नगरी को भी कभी न खोज पाते। काश विलुप्त सरस्वती की जीवनगाथा में अंतर्निहित भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के उदय की गाथा को ये बुद्धिजीवी समझ पाते। भारत के अधिकांश प्राचीन ग्रंथों में सरस्वती नदी का वर्णन मिलता है। ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, मनुस्मृति और महाभारत में सरस्वती का वर्णन किया गया है।

ऋग्वेद में सरस्वती की सर्वाधिक जानकारी है। सरस्वती की स्तुति में 75 मन्त्र हैं, जो ऋग्वेद के नौ मण्डलों में समाहित हैं। इन मन्त्रों की रचना विभिन्न ऋषियों ने काल एवं परिस्थितियों के अनुरूप की। ऋग्वेद 7:95:2 में कहा गया है, ' एकमेव चैतन्यमयी पवित्र सरस्वती नदी पर्वतों से अवतरित होकर सागर में समाहित होती है। वह इस भूलोक में राजा नहुष की प्रजा को पौष्टिक तत्त्व, दूध एवं घी प्रदान करती है।' ऋग्वेद 2:41:16 में स्तुति की गयी है, ' हे सरस्वती! आप माताओं में श्रेष्ठ माता, नदियों में उत्तम महानदी और देवियों में अग्रगण्य देवी हो। हे माता ! हम सब अज्ञानी हैं। आप हमें ज्ञान प्रदान करें।' ऋग्वेद के मन्त्र 2:41:17, 18 में वर्णन मिलता है कि सरस्वती माता से सुखमय जीवन का आश्रय प्राप्त होता है। साथ ही वे अन्न तथा बल प्रदान कर सत्य के मार्ग पर चलने वाली हैं। ऋग्वेद मन्त्र 6:61:10,12; 7:36:6 में सरस्वती को सात बहनों वाली और सिन्धु नदी की माता कहा गया है। इन मंत्रो से प्रकट होता है कि ऋग्वेदिक काल में सरस्वती सदानीरा महानदी थी, जो हिमालय की हिमाच्छादित शिखाओं से अवतरित होकर आज के पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी राजस्थान, सिंध प्रदेश व गुजरात क्षेत्र को सिंचित कर शस्य-श्यामला बनती थी। इस सन्दर्भ में ऋग्वेद मन्त्र 10:75:5 एवं 3:23:4 के आधार पर यह कहा जा सकता है कि शतुद्री (सतलज), परुशणी (रावी), असिक्नी (चेनाब), वितस्ता, आर्जीकीया (व्यास) एवं सिन्धु, पंजाब की ये सभी नदियाँ सरस्वती की सहायक नदियाँ थीं।

मनुस्मृति 3:17 के अनुसार 'देवनदी सरस्वती व दृषद्वती के मध्य देवताओं द्वारा निर्मित जो भूप्रदेश है उसे ब्रह्मावर्त कहते हैं।' स्पष्टः ब्रह्मावर्त का निर्माण सरस्वती और दृषद्वती द्वारा संचित मृदा से हुआ होगा। यही स्थल महाभारत काल में कुरुक्षेत्र कहलाया। ब्राह्मण ग्रंथों में सरस्वती नदी के शिथिल होकर सर्पाकार मार्ग से पश्चिम दिशा में बहने का वर्णन मिलता है। ताण्डय ब्राह्मण 25:10:11,12 मन्त्र सरस्वती नदी के वृद्धावस्था में प्रवेश होने का संकेत करते हैं। इन ग्रंथों में पहली बार सरस्वती के उद्गम स्थल प्लक्षप्रसवण एवं विनशन, राजस्थान के मरुस्थल का वह स्थान जहाँ सरस्वती विलुप्त हुई, उनका उल्लेख मिलता है। इन मन्त्रों से ज्ञात होता है कि सरस्वती का उदय हिमालय से होता था। ब्राह्मण काल में सरस्वती राजस्थान के मरुस्थल में विनशन में आकर सूख चुकी थी। इसी प्रकार महाभारत और पुराणों में सरस्वती का वर्णन किया गया है।

पिछले कुछ वर्षों में उपग्रह से लिए गए चित्रों के माध्यम से वैज्ञानिकों ने एक ऐसी विशाल नदी के प्रवाह-मार्ग का पता लगा लिया है जो किसी समय पर भारत के पश्चिमोत्तर क्षेत्र में बहती थी। उपग्रह से लिए गए चित्र दर्शाते हैं कि कुछ स्थानों पर यह नदी आठ किलोमीटर चौड़ी थी और यह चार हज़ार वर्ष पूर्व सूख गई थी। किसी प्रमुख नदी के किनारे पर रहने वाली एक विशाल प्रागैतिहासिक सभ्यता की खोज ने इस प्रबल होते आधुनिक विश्वास को और पुख़्ता कर दिया है कि सरस्वती नदी अन्ततः मिल गई है। इस नदी के प्रवाह-मार्ग पर एक हज़ार से भी अधिक पुरातात्त्विक महत्व के स्थल मिले हैं और वे ईसा पूर्व तीन हज़ार वर्ष पुराने हैं। इनमें से एक स्थल उत्तरी राजस्थान में प्रागैतिहासिक शहर कालीबंगन है। इस स्थल से कांस्य-युग के उन लोगों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी का ख़ज़ाना मिला है जो वास्तव में सरस्वती नदी के किनारों पर रहते थे। पुरातत्त्वविदों ने पाया है कि इस इलाक़े में पुरोहित, किसान, व्यापारी तथा कुशल कारीगर रहा करते थे। इस क्षेत्र में पुरातत्त्वविदों को बेहतरीन क़िस्म की मोहरें भी मिली हैं जिन पर लिखाई के प्रमाण से यह संकेत मिलता है कि ये लोग साक्षर थे लेकिन दुर्भाग्यवश इन मोहरों की गूढ़-लिपि का अर्थ नहीं निकाला जा सका है। आज सिंधु घाटी की सभ्यता प्राचीनतम सभ्यता जानी जाती है। वास्तव में यह सभ्यता एक बहुत बड़ी सभ्यता का अंश है, जिसके अवशिष्ट चिन्ह उत्तर में हिमालय की तलहटी (मांडा) से लेकर नर्मदा और ताप्ती नदियों तक और उत्तर प्रदेश में कौशाम्बी से गांधार (बलूचिस्तान) तक मिले हैं। अनुमानत: यह पूरे उत्तरी भारत में थी। यदि इसे किसी नदी की सभ्यता ही कहना हो तो यह उत्तरी भारत की नदियों की सभ्यता है। इसे कुछ विद्वान प्राचीन सरस्वती नदी की सभ्यता या फिर सरस्वती-सिन्धु सभ्यता कहते हैं। कालांतर में बदलती जलवायु और राजस्थान की ऊपर उठती भूमि के कारण सरस्वती नदी सूख गयी।

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सरस्वती


विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia)

सरस्वती नदी


ऋग्वेद तथा अन्य पौराणिक वैदिक ग्रंथों में दिये सरस्वती नदी के सन्दर्भों के आधार पर कई भू-विज्ञानी मानते हैं कि हरियाणा से राजस्थान होकर बहने वाली मौजूदा सूखी हुई घग्घर-हकरा नदी प्राचीन वैदिक सरस्वती नदी की एक मुख्य सहायक नदी थी, जो ५०००-३००० ईसा पूर्व पूरे प्रवाह से बहती थी। उस समय सतलुज तथा यमुना की कुछ धाराएं सरस्वती नदी में आ कर मिलती थीं. इसके अतिरिक्त दो अन्य लुप्त हुई नदियाँ दृष्टावदी और हिरण्यवती भी सरस्वती की सहायक नदियाँ थीं ,लगभग १९०० ईसा पूर्व तक भूगर्भी बदलाव की वजह से यमुना, सतलुज ने अपना रास्ता बदल दिया तथा दृष्टावदी नदी के २६०० ईसा पूर्व सूख जाने के कारण सरस्वती नदी भी लुप्त हो गयी। ऋग्वेद में सरस्वती नदी को नदीतमा की उपाधि दी गयी है। वैदिक सभ्यता में सरस्वती ही सबसे बड़ी और मुख्य नदी थी। इसरो द्वारा किये गये शोध से पता चला है कि आज भी यह नदी हरियाणा, पंजाब और राजस्थान से होती हुई भूमिगत रूप में प्रवाहमान है।

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संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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