सर्व तपै जो रोहिणी

Submitted by Hindi on Mon, 03/22/2010 - 12:26
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घाघ और भड्डरी

सर्व तपै जो रोहिणी, सर्व तपै जो मूर।
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।।


भावार्थ- यदि रोहिणी पूरी तरह से तपे और मूल में भी उसी तरह गर्मी रहे और जेठ की परिवा भी उसी प्रकार तपे तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे, ऐसा घाघ का मानना है।