सस्यकर्तित्र

Submitted by Hindi on Sat, 08/27/2011 - 13:54
सस्यकर्तित्र (अर्थात्‌ फसल काटने के औजार) देश के विभिन्न भागों में फसलों की कटाई विभिन्न समय में विभिन्न यंत्रों द्वारा की जाती है। फसल की कटाई, पकने के बाद, जितनी जल्दी की जा सके उतना ही अच्छा समझा जाता है, क्योंकि मुख्यत: फसल खेत में खड़ी रहने पर फसल के शत्रुओं से, तथा कभी-कभी अधिक पकने पर बालियों से दाने गिर जाने से, बहुत हानि होती है। उत्तर प्रदेश में खरीफ की फसल की कटाई लगभग मध्य अगस्त से लेकर नवंबर के महीने तक चलती रहती है और कहीं-कहीं पछेती के धानों की कटाई दिसंबर में भी होती है। इसी प्रकार रबी की फसलों की कटाई प्रदेश के पूर्वी जिलों में मार्च से लेकर पश्चिमी जिलों में अप्रैल के अंत तक चलती रहती है। यह ऐसा समय होता है जब खेत में चूहे भी लग जाते हैं और आँधी के समय ओले गिरने का भी डर रहता है। इसलिए हर किसान यह चाहता है कि जितनी जल्दी उसकी फसल कटकर खलिहान में पहुँच जाए उतना ही अच्छा है।

जैसा ऊपर बताया गया है, विभिन्न फसलों के काटने के लिए विभिन्न यंत्रों का प्रयोग किया जाता है, परन्तु यह निश्चित है कि यंत्र की बनावट तथा कटाई का ढंग स्थानीय सुविधा पर अधिकतर निर्भर करता है। यंत्र की बनावट भी फसल के तने की मोटाई अथवा मजबूती पर बहुत सीमा तक निर्भर करती है।

इससे पहले कि यंत्रों का विवरण दिया जाए, यह कह देना आवश्यक होगा कि उत्तर प्रदेश में ऐसी बहुत-सी फसलें हैं जिनकी कटाई के लिए कोई यंत्र प्रयुक्त नहीं किया जाता, बल्कि उन्हें हाथ से ही पौधे से चुन लिया जाता है, जैसे मक्का, ज्वार-बाजरा, कपास, मूँग नं. 1 तथा बहुत सी सब्जियों इत्यादि में।

फसलों की कटाई में प्रयुक्त होने वाले साधारण यंत्रों का विवरण निम्नलिखित प्रकार है:

गँड़ासा- उत्तर प्रदेश में गन्ना, अरहर, तंबाकू, ज्वार, बाजरा तथा मक्का, जिनके तने मोटे और मजबूत होते हैं, गँड़ासे से काटे जाते हैं। गँड़ासे में 1½ फुट लंबा, शीशम या बबूल की लकड़ी का बना हुआ बेंट रहता है, जिसमें काटने के लिए इस्पात का बना हुआ 1 फुट लंबा और 4 इंच चौड़ा, कटाई की ओर से तेज धार वाला, फलका लगा रहता है। गँड़ासे से कटाई करने की विशेषता यह है कि कटाई करने वाला जमीन से लगभग 1½ इंच या 2 इंच ऊपर तने पर, गँड़ासे को जोर से मारता है, जिसके प्रभाव से तना कटकर गिर जाता है। यह यंत्र बहुत पुराना है और मजबूत तने वाली फसलों को काटने के लिए अभी तक किसी नए यंत्र ने इसका स्थान नहीं लिया है। इस यंत्र की कीमत लगभग पाँच रुपए है और कार्यक्षमता खेत में उगे हुए पेड़ों के घनत्व और उनके तने की मोटाई एवं मजबूती पर निर्भर है।

हँसिया- हँसिया का प्रयोग, पतले तने वाली फसलों, जैसे गेहूँ, जौ, चना, धान इत्यादि, की कटाई के लिए किया जाता है। इस यंत्र से कटाई करने में, फसल के तनों को बाएँ हाथ से मुट्ठी में पकड़ लेते हैं और दाएँ हाथ से तने के ऊपर हँसिया को रगड़कर अपनी ओर खींचते हैं, जिससे फसल कट जाती है। हँसिया की आकृति अर्धचंद्राकार होती है। कुछ ऐसी हँसियाँ होती हैं जिनमें दाँतें बने रहते हैं और कुछ बिना दाँतों की बनी होती है। दाँतेदार हँसियों की कार्यक्षमता बिना दाँतों की हँसियों से अधिक होती है। हँसिया इस्पात की बनी होती है, जिसमें लकड़ी की मुठिया लगी होती है। एक हँसिया की कीमत लगभग एक रुपए होती है। यद्यपि इसकी कार्यक्षमता खेत में खड़े हुए पौधों को घनत्व पर निर्भर करती है, परंतु साधारणतया खेतों में एक एकड़ गेहूँ, जौ या धान आदि की कटाई के लिए चार-पाँच आदमी पर्याप्त होते हैं।

रीपर- गेहूँ, जौ और जई की कटाई के लिए, पश्चिमी देशों में रीपर का प्रयोग किया जाता है। हमारे देश में भी कुछ बड़े आकार वाले फार्मों पर बैलों से चलनेवाले रीपर का प्रयोग होता है। रीपर में लगभग 4 फुट लंबी कटाई की पट्टी (cutter bar) लगी रहती है, जिसमें लगभग 25 से 30 तक काटने वाले चाकुओं (knife and ledger) का सेठ लगा रहता है। जब रीपर आगे को चलता है, तब पहिए घूमते हैं, जिनके प्रभाव से कटाई की पट्टा में गति आ जाती है। इस यंत्र की कीमत लगभग 1,500 से 2,000 रु. क्षक होती है और यह अनुमान लगाया गया है कि यह एक दिन में चार से पाँच एक़ड़ तक गेहूँ की कटाई हँसिया से करने में लगभग 15 रु. खर्च आता है। इस प्रकार यह यंत्र उन फार्मों के लिए तो बहुत ही सुविधाजनक है जहाँ कटाई के मौसम में मजदूरों की बहुत ही कमी अनुभव होती है; परंतु इस यंत्र का लाभ वे छोटे किसान, जिनकी जोत भी कम है और जिनके खेतों का आकार भी छोटा है, नहीं उठा सकते।

इस यंत्र का प्रयोग करने में एक दूसरी असुविधा यह भी है कि खेत की अंतिम सिंचाई के बाद, खेत की मेड़ नम अवस्था में ही तोड़नी पड़ती है। दूसरे यह चार-पाँच इंच ऊंचे से फसल की कटाई करता है, इसलिए भूसे की काफी मात्रा खेत में ही रह जाती है, इस भूसे की कीमत उन देशों के किसानों के लिए जहाँ खेती मशीनों या घोड़ों से की जाती है, नहीं के बराबर है; परंतु हमारे देश में, जहाँ बैलों के चारे का साधन भूसा है, इसका काफी मूल्य है। इन उपर्युक्त असुविधाओं के कारण ही, अच्छा कार्यक्षम होते हुए भी, यह यंत्र जनप्रिय नहीं हो सका है।

कंबाइन- गेहूँ और जौ की फसल की कटाई करने के लिए अन्य विकसित देशों में तथा भारत में, बड़े विस्तार के फार्मों पर कंबाइन मशीन का प्रयोग किया जाता है। इस मशीन में ही इंजन लगा रहता है, जिसकी सहायता से मशीन चलती है। इस मशीन गाहने और फसल काटने की संयुक्त मशीन यह खेत में घूमकर फसल काटती, गाहती तथा अनाज को साफ करती है। डंठल खेत में खड़ा छट जाता है। के चलने से, खेत की फसल काटकर सीधे मशीन में चली जाती है। और अंदर ही अंदर मँडाई, ओसाई और छनाई होकर साफ अनाज एक तरफ बोरों में भरता चला जाता है तथा भूसा एक तरफ गिरता चला जाता है। यहाँ यह जानना आवश्यक है कि मँडाई केवल अनाज की बालियों की ही होती है, शेष लाक की नहीं। इस प्रकार शेष फसल की लंबी-लंबी लाक एक तरफ इकट्ठी हो जाती है। इस मशीन की कीमत लगभग 20,000 रु. से 30,000 रु. होती है, जिसे मामूली किसान तो क्या बड़े-बड़े किसान भी नहीं खरीद सकते। इसकी कार्यक्षमता उच्च कोटि की होते हुए भी भारत के किसानों के लिए, इसकी संस्तुति नहीं की जाती, क्योंकि इसमें भी काफी मात्रा में भूसे की हानि होती है। हमारे देश में उन फसलों की, जैसे आलू, घुँइया, प्याज, मूँगफली, शकरकंद आदि, जिनका आर्थिक दृष्टि से उपयोगी भाग भूमि के नीचे रहता है, कटाई के लिए खुरपा एवं कुदाल का प्रयोग किया जाता है। इन्हें खोदने के लिए इस प्रदेश में अभी तक कोई विशेष यंत्र नहीं बना है। अन्य देशों में ऐसी फसलों की खुदाई, पोटेटो डिगर या ग्राउंड-नट डिगर से की जाती है। अमरीका में, जहाँ मक्का और कपास हजारों एकड़ बोई जाती है, मक्का के भुट्टे तथा कपास की कटाई के लिए भी विशेष प्रकार की मशीनों का प्रयोग किया जाता है। हवाई द्वीप में, जहाँ गन्ना मुख्य आर्थिक फसल है, गन्ने की कटाई भी एक विशेष मशीन से की जाती है।

इसमें संदेह नहीं है कि संसार का प्रत्येक किसान यह चाहता है कि फसल पकने के बाद कटाई जितनी जल्दी हो सके, की जाए परंतु इसको कार्यान्वित करने के लिए ऐसे कटाई यंत्रों की आवश्यकता जिनसे कटाई के श्रम तथा समय की बचत हो सके। ऐसे यंत्रों की सिफारिश करने से पहले, किसान की भौतिक एवं आर्थिक परिस्थितियों का अध्ययन आवश्यक है और सिफारिश इनकी अनुकूलता के अनुसार होनी चाहिए। यही कारण है कि रीपर, कंबाइन, तथा अन्य कटाई यंत्रों के अति श्रम तथा समय बचाने वाले यंत्र होने के बावजूद, अपने देश के किसानों के लिए, जिनकी जोतों और खेतों के आकार छोटे हैं, जिन्हें आर्थिक तंगी है तथा जिनके पास श्रम का अभाव नहीं है, अधिक कीमत वाले होने के कारण सिफारिश नहीं की जा सकती। आवश्यकता इस बात की है कि कृषि यंत्रों के अनुसंधान के आधार पर ऐसे कटाई यंत्र, जो हमारे देश के किसानों की भौतिक एवं आर्थिक परिस्थिति के अनुकूल हों, बनाए जाएँ, जिससे श्रम एवं समय की बचत भी हो। डा. जगदीशसरन गर्ग.]

Hindi Title


विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia)




अन्य स्रोतों से




संदर्भ
1 -

2 -

बाहरी कड़ियाँ
1 -
2 -
3 -