सतत कृषि से होगी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित

Submitted by Hindi on Wed, 03/15/2017 - 16:43
Source
कुरुक्षेत्र, फरवरी 2017

भारत सरकार का पूरा जोर टिकाऊ खेती को प्रोत्साहित करने पर है। परम्परागत खेती के उपायों के साथ अपनी पुरानी प्रजातियों वाली फसलें, परम्परागत नस्ल वाली गायें व अन्य पशुधन को बढ़ावा दिया जा रहा है। सतत खेती के उद्देश्य से उसे जोखिम से बचाने के हर सम्भव उपाय किये जा रहे हैं। खेती की मूलभूत कठिनाइयों को दूर करने के लिये समग्र नीतियाँ बनाई गई हैं, जिसके नतीजे आने में समय थोड़ा जरूर लगेगा, लेकिन फायदे बहुत होंगे।

सतत कृषि से होगी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चितसीमित प्राकृतिक संसाधनों के बीच माँग व आपूर्ति के बढ़ते अंतर से विश्व के समक्ष खाद्य सुरक्षा का गम्भीर खतरा पैदा हो गया है। इन चुनौतियों से निपटने के लिये टिकाऊ खेती ही एकमात्र उपाय है। जलवायु परिवर्तन जैसी समस्या से कृषि की मौजूदा प्रणाली खतरे की जद में है। दुनिया के लगभग सभी देशों के नीति नियामक और कृषि वैज्ञानिक इस दिशा में प्रयासरत हैं। इसीलिये भारत सरकार का पूरा जोर टिकाऊ खेती को प्रोत्साहित करने पर है। परम्परागत खेती के उपायों के साथ अपनी पुरानी प्रजातियों वाली फसलें, परम्परागत नस्ल वाली गायें व अन्य पशुधन को बढ़ावा दिया जा रहा है। सतत खेती के उद्देश्य से उसे जोखिम से बचाने के हर सम्भव उपाय किये जा रहे हैं। घाटे से आजिज होकर आत्महत्या जैसे कठोर कदम उठाने वाले किसान समुदाय के कल्याणार्थ कई योजनाएँ शुरू की गई हैं। खेती की मूलभूत कठिनाइयों को दूर करने के लिये समग्र नीतियाँ बनाई गई हैं, जिसके नतीजे आने में समय थोड़ा जरूर लगेगा, लेकिन फायदे बहुत होंगे।

लागत को घटाना और उपज का उचित व लाभकारी मूल्य दिलाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा है। इन मुश्किलों व चुनौतियों से निपटने के उपाय किये बगैर न खेती का भला होने वाला है और न ही खेतिहरों का। खेती को टिकाऊ बनाने और उसके सतत विकास की कल्पना को साकार करने में कृषि और उससे जुड़े उद्यमों पर समग्र नीति बनाने की जरूरत है। खेती को टुकड़े-टुकड़े में बाँटकर उसकी समस्याओं को सुलझाने के उपाय नाकाफी साबित हुए हैं। अनाज की पैदावार बढ़ाकर लोगों को पेट भरने में भले ही सफलता मिल गई हो, लेकिन इससे खेती का सिर्फ एकांगी विकास हुआ है। दलहन व तिलहन की पैदावार में फिसड्डी साबित होने से आयात निर्भरता बढ़ी है। प्रोटीन की कमी से गरीबों में कुपोषणता बढ़ी है। इन गम्भीर चुनौतियों से निपटने के लिये सतत कृषि पर जोर देना ही एकमात्र उपाय है। खेती के बुनियादी ढाँचे को मजबूत बनाने के लिये सरकारी निवेश के साथ निजी निवेश को भी लुभाने की जरूरत है।

खेती को घाटे से उबारने की पहल


खेती को घाटे से उबारने और किसानों को आत्महत्या जैसे घातक कदम उठाने से रोकने के लिये समग्र नीति की जरूरत है। साहूकारों की सूदखोरी से किसानों को बचाने के लिये अति रियायती दरों पर सहजता से कृषि ऋण मुहैया कराने के बाबत कृषि ऋण 9 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है। खेती के इनपुट उन्नत बीज, संतुलित खाद, कीटनाशक और सिंचाई जैसी मूलभूत जरूरतों को समय से उपलब्ध कराने को प्राथमिकता दी जाने लगी है। खेती के समक्ष कुछ ऐसे खतरे हैं, जिनसे निपटने के लिये सरकार की ओर से कारगर पहल की गई है, जिससे खेती व खेतिहरों के दिन बहुरने की आस बढ़ गई है। खेती को जोखिम से बचाने के लिये प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शुरू की गई है।

सॉयल हेल्थ कार्ड


खेती की सबसे मूलभूत जरूरत मिट्टी की जाँच है, जिससे पता चले कि मिट्टी में किन तत्वों की कमी है। बोई जाने वाली फसल के हिसाब से पोषक तत्वों की कमी को पूरा किया जा सके। सरकार की इस योजना के तहत देश के कुल साढ़े तेरह करोड़ (13.5 करोड़) किसानों को सॉयल हेल्थ कार्ड देने की योजना चलाई जा रही है। अगले साल तक देश के सभी किसानों को यह सुविधा प्राप्त हो जाएगी। इसमें निरंतरता लाने के लिये स्थानीय स्तर पर मिट्टी की जाँच की प्रयोगशालाएँ स्थापित की जा रही हैं। इनमें सरकारी प्रयोगशालाओं के साथ निजी क्षेत्र की कम्पनियाँ भी मिनी किट तैयार कर उपलब्ध करा रही हैं।

दूसरी हरितक्रांति


कृषि में अंधाधुंध खाद व कीटनाशकों के प्रयोग के बावजूद अब फसलों की उत्पादकता बढ़ाए नहीं बढ़ रही है। हरितक्रांति वाले राज्यों पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पैदावार की वृद्धि दर नहीं बढ़ पा रही है। इसके लिये जहाँ किसानों को अपनी खेती की तकनीक में बदलाव करने की जरूरत पर जोर देने की जरूरत है, वहीं इसके लिये उन्हें जागरूक करना होगा। दूसरी तरफ सतत या टिकाऊ कृषि के लिये दूसरी हरितक्रांति के लिये देश के पूर्वी क्षेत्र के राज्यों का चुनाव किया गया है। लेकिन इस दिशा में आधे-अधूरे मन से पहल की गई है, जिससे नतीजे भी उसी तरह के आ रहे हैं।

जलवायु परिवर्तन


यह एक ऐसी चुनौती है, जिससे पूरी दुनिया की खेती जूझ रही है। बढ़ते तापमान से अनाज की पैदावार में कमी आने की प्रवृत्ति शुरू हो गई है। कृषि वैज्ञानिकों के समक्ष यह एक बड़ी चुनौती है। इस दिशा में भारत ने भी कारगर पहल की है। गेहूँ की पैदावार को बचाने के लिये उन्नत बीज और आधुनिक तकनीक पर बल दिया जा रहा है। खेतों की जुताई से लेकर फसल की कटाई के बाद तक की तकनीक में आमूल बदलाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। किसानों के खेतों तक पहुँचाने की मैराथन कोशिशें भी हो रही हैं। पशुधन और दुग्ध उत्पादन की वृद्धि दर को बनाए रखने के उद्देश्य से सरकार ने गोकुल मिशन और परम्परागत प्रजातियों को उन्नत बनाने पर जोर दिया है। इसके लिये सरकार ने अलग से बजट का प्रावधान किया है। आगामी वित्तवर्ष 2017-18 के आम बजट में भी इसके बाबत 800 करोड़ रुपये के प्रावधान का प्रस्ताव है।

हर खेत को पानी


प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले भाषण में ही हर खेत को पानी पहुँचाने और प्रति बूँद अधिक उत्पादन (पर ड्रॉप मोर क्रॉप) का नारा बुलंद किया था। सरकार ने इस दिशा में काम शुरू भी कर दिया है। पिछली सरकार के दौरान आधी-अधूरी और लम्बित पड़ी सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करने को प्राथमिकता दी गई है। आने वाले सालों में लगभग एक सौ सिंचाई परियोजनाएँ पूरी हो जाएँगी। कुल ढाई सालों में 12.5 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचित करने में सफलता मिली है। इसे और गति देने पर विचार किया जा रहा है। सम्भव है आगामी आम बजट में इसे प्राथमिकता दी जाए। माइक्रो सिंचाई परियोजनाओं पर ज्यादा जोर दिया जाएगा। फिलहाल देश की 60 फीसदी भूमि असिंचित है। सिंचित खेती के सहारे खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ाने की कोशिश है।

दलहन व तिलहन पर जोर


देश में दलहन व तिलहन की खेती से किसानों ने मुँह मोड़ लिया है। इसी के चलते खाद्य तेल और दालों की आयात निर्भरता बढ़ गई है। सालाना लगभग 1.50 लाख करोड़ रुपये की लागत से खाद्य तेल और दालें आयात की जा रही हैं। अगर इतनी बड़ी धनराशि का निवेश कृषि क्षेत्र में कर दिया जाए तो देश के समूचे कृषि क्षेत्र की तस्वीर बदल जाएगी। सरकार ने इस ओर ध्यान देना शुरू भी कर दिया है। साल-दर-साल दलहन व तिलहन के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भारी बढ़ोत्तरी की जा रही है, ताकि किसानों का रुझान इसकी खेती की तरफ बढ़े। इसी मकसद से किसानों को उन्नत प्रजाति के दलहन व तिलहन के बीजों की आपूर्ति की जा रही है। यही कारण है कि पिछले दो सालों की अवधि में इसकी खेती का रकबा और पैदावार में वृद्धि दर्ज की गई है।

(लेखक कृषि व खाद्य विषयों के विशेषज्ञ हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण के राष्ट्रीय ब्यूरो, नई दिल्ली में डिप्टी ब्यूरो चीफ हैं।), ई-मेल : surendra64@gmail.com