युवाओं की अरुचि, सरकार की गलत नीतियों और बुजुर्गों की लापरवाही के चलते गांव के तालाबों और कुओं की वह दौलत लगभग खो दी है, जिस पर न जाने उसकी कितनी पीढ़ियों ने जीवन बसर किया था। भौतिक विकास की बयार के साथ परंपराओं और मूल्यों के दम तोड़ने के साथ गांव के शक्तिवाला, भूतलीवाला, रत्तीवाला और मुंशी की बगीची वाला जोहड़ दम तोड़ चुके हैं। गुड़गांव की अत्यंत पॉश कालोनी पालम विहार के साथ बसा है दौलताबाद। एक जमाने में रसभरे देसी टमाटर और मीठी गाजर की खेती के लिए दिल्ली और हरियाणा में मशहूर इस गांव में अब चारों ओर दूर-दूर तक बिल्डर्स का मोर्चा दिखता है।
दिल्ली की सीमा से तकरीबन 3 किलीमीटर दूरी पर स्थित इस गांव में जमीन की कीमतें आसमान छू रही हैं। इसी का परिणाम है कि यहां के किसानों के पास आज रुपयों की भरमार है।
गांव के सेवानिवृत्त शिक्षक किशनचंद कहते हैं, यह अलग बात है कि युवाओं की अरुचि, सरकार की गलत नीतियों और बुजुर्गों की लापरवाही के चलते गांव के तालाबों और कुओं की वह दौलत लगभग खो दी है, जिस पर न जाने उसकी कितनी पीढ़ियों ने जीवन बसर किया था।
भौतिक विकास की बयार के साथ परंपराओं और मूल्यों के दम तोड़ने के साथ गांव के शक्तिवाला, भूतलीवाला, रत्तीवाला और मुंशी की बगीची वाला जोहड़ दम तोड़ चुके हैं।
भूतलीवाला तालाब को अब पूरी तरह समतल कर दिया गया है। शक्तिवाला तालाब शक्ति का प्रतीक था। थोड़ा बहुत पानी धोबीवाली जोहड़ी और बुज्जनवाली में है। बाकी सब खेतों में तब्दील हो गए हैं। तालाब ग्रामीणों की सारी अनहोनी और कष्ट अपने ऊपर ले लेता था।
दिल्ली प्रशासन में शिक्षक निर्मल बताते हैं कि इस तालाब का पानी कभी सूखता नहीं था और गंगाजल की तरह निर्मल होता था। इसमें शौच साफ करने की बात तो दूर आसपास में मल विसर्जन तक की मनाही थी।
गांव के तकरीबन ढाई दर्जन कुओं में पानी की बूंद नहीं है। इन्हीं कुओं की बदौलत ग्रामीण टमाटर और गाजर की खेती करते थे। अब गांवों में जो थोड़ी-बहुत जमीन बची है, उस पर लगभग सभी किसान सरसों का उत्पादन करते हैं।
हां, एक बात बहुत सुकून देने वाली है। गांव के भीतर के दो कुएं जरूर बचे हैं। इन पर पनघट का जमघट खूब जमता है। ऑडी और दूसरी मंहगी कार, चमचमाती गगनचुंबी अपार्टमेंट, स्कॉच और पालम विहार की क्लब संस्कृति के बीच लंबे घूंघट में ठेठ हरियाणवी बोली के साथ सिर पर मटका और पनघट का स्वर कंक्रीट के इस जंगल में मेरे जैसे गमछे वालों को शास्त्रीय संगीत का सा सुखद अहसास देता है।
यह गांवों के खासतौर से रंगीली गली के बुजुर्गों की जिद्द है कि जो इन कुओं के सिवाय कहीं और का पानी ही पीना पसंद नहीं करते। जिंदगी के 95 बसंत देख चुके ग्रामीण चौधरी रामप्रसाद बताते हैं, कुएं हमारे समाज की ताकत थी। नए लड़कों ने कई बार इन्हें बंद कराने या इनमें पंप लगाने की बात कही।
कुएं का स्वभाव कि उससे आवश्यकता के हिसाब से लिया जाए तो वह कभी रीतता नहीं हैं और बुझाता रहता है प्यास। साथ ही खड़े ओमप्रकाश कहते हैं, जिस समाज का कुआं नहीं रीतता, वह समाज हरा-भरा रहता है हमेशा। ऐसे गुड़गांव जहां बाल्टी भर पानी को कुएं का प्रतीक मान कुआं पूजा जाता है, में कम-से-कम दौलताबाद के दो कुएं इस परंपरा को अपने मूल स्वरूप में जीवंत रखे हुए हैं। दौलताबाद के पनघट बताते हैं कि जहां बुजुर्गों ने समझदारी से काम लिया वहां पानी की ताकत, विरासत बची हुई है।
धोबीवाली जोहड़ी की कृपा से कुईं भी बची है। यहां धोबी कपड़े धोते थे। पुराना समाज पानी की ताकत और शुद्धता को समझता था तभी तो धोबियों के कपड़े धोने के लिए अलग जोहड़ी बनाई गई थी। और वहीं कुआं इसलिए कि इन्हें पानी के लिए भटकना न पड़े।
देश के सर्वाधिक शिक्षित प्रांतों में से एक नंबर वन हरियाणा के विकास मॉडल का एक कड़वा सच आज भी यह है कि दलितों के पीने के लिए पानी का कुआं यहां आज भी अलग है। पानी का कोई रंग नहीं है और वह सबका मैल धो देता है, लेकिन जाति का रंग मानव स्वभाव पर इतना गहरा चढ़ गया है कि उसने धोबीवाली कुईं दलितों के लिए अलग कर दी है। एक ग्रामीण इसके पक्ष में बाकायदा दलील भी देते हैं, भाई दलितों का कुआं अलग इस लिए बनाया गया है ताकि उनसे किसी का टकराव न हो।
गांव के पास ही स्थित अत्यंत प्रतिष्ठित बाबा प्रकाशपुरी के सदानीरा तालाब का स्वरूप अब बदल गया है। आश्रम के व्यवस्थापकों ने इसे 90 प्रतिशत पक्का कर दिया है, यहां तक कि तालाब के तल का एक छोटा सा कोना ही कच्चा छोड़ा गया है।
इसी में बोर से पानी भरा जाता है। यह वही तालाब है हलवाई जिसका पानी ब्याह-शादियों में छोला उबालने के लिए मांगते थे। इस तालाब का पानी इतना मीठा था कि एक दशक पहले तक लोग यहां से टैंकर भरकर ले जाते थे, बाद में जब लोगों ने इसे कारोबार बना लिया तो आश्रम ने इस पर रोक लगाई।
दौलताबाद के साथ ही बसे राजेंद्र पार्क, सूरत नगर, पालम विहार, न्यू पालम विहार, आदि पिछले डेढ़ दशक में बसी बस्तियों में जन स्वास्थ्य विभाग की आपूर्ति है, सबमर्सिबल की भरमार है, लेकिन अक्सर यहां पानी का संकट गहरा जाता है। अब गांव में भूजल स्तर 80 से 100 फुट तक चला गया है।
यह हालत तो तब है जबकि गांव के साथ से ड्रेन बहती है और दौलताबाद की ओर इस ड्रेन की पुश्त भी नहीं बनाई गई है। पूरा गांव और ये बस्तियां सबमर्सिबल पंप चलाता है। भूजल संकट का इससे बड़ा कारण चारों ओर बन रहे बहुमंजिला अपार्टमेंट हैं। इनके निर्माण में पानी की भयावह खपत होती है। जिनमें से कई ने तो उच्च न्यायालय और केंद्रीय भूजल प्राधिकरण की रोक के बावजूद धड़ल्ले से अत्यधिक पावरफुल सबमर्सिबल लगा रखे हैं।
क्रमश:
दिल्ली की सीमा से तकरीबन 3 किलीमीटर दूरी पर स्थित इस गांव में जमीन की कीमतें आसमान छू रही हैं। इसी का परिणाम है कि यहां के किसानों के पास आज रुपयों की भरमार है।
गांव के सेवानिवृत्त शिक्षक किशनचंद कहते हैं, यह अलग बात है कि युवाओं की अरुचि, सरकार की गलत नीतियों और बुजुर्गों की लापरवाही के चलते गांव के तालाबों और कुओं की वह दौलत लगभग खो दी है, जिस पर न जाने उसकी कितनी पीढ़ियों ने जीवन बसर किया था।
भौतिक विकास की बयार के साथ परंपराओं और मूल्यों के दम तोड़ने के साथ गांव के शक्तिवाला, भूतलीवाला, रत्तीवाला और मुंशी की बगीची वाला जोहड़ दम तोड़ चुके हैं।
भूतलीवाला तालाब को अब पूरी तरह समतल कर दिया गया है। शक्तिवाला तालाब शक्ति का प्रतीक था। थोड़ा बहुत पानी धोबीवाली जोहड़ी और बुज्जनवाली में है। बाकी सब खेतों में तब्दील हो गए हैं। तालाब ग्रामीणों की सारी अनहोनी और कष्ट अपने ऊपर ले लेता था।
दिल्ली प्रशासन में शिक्षक निर्मल बताते हैं कि इस तालाब का पानी कभी सूखता नहीं था और गंगाजल की तरह निर्मल होता था। इसमें शौच साफ करने की बात तो दूर आसपास में मल विसर्जन तक की मनाही थी।
गांव के तकरीबन ढाई दर्जन कुओं में पानी की बूंद नहीं है। इन्हीं कुओं की बदौलत ग्रामीण टमाटर और गाजर की खेती करते थे। अब गांवों में जो थोड़ी-बहुत जमीन बची है, उस पर लगभग सभी किसान सरसों का उत्पादन करते हैं।
हां, एक बात बहुत सुकून देने वाली है। गांव के भीतर के दो कुएं जरूर बचे हैं। इन पर पनघट का जमघट खूब जमता है। ऑडी और दूसरी मंहगी कार, चमचमाती गगनचुंबी अपार्टमेंट, स्कॉच और पालम विहार की क्लब संस्कृति के बीच लंबे घूंघट में ठेठ हरियाणवी बोली के साथ सिर पर मटका और पनघट का स्वर कंक्रीट के इस जंगल में मेरे जैसे गमछे वालों को शास्त्रीय संगीत का सा सुखद अहसास देता है।
यह गांवों के खासतौर से रंगीली गली के बुजुर्गों की जिद्द है कि जो इन कुओं के सिवाय कहीं और का पानी ही पीना पसंद नहीं करते। जिंदगी के 95 बसंत देख चुके ग्रामीण चौधरी रामप्रसाद बताते हैं, कुएं हमारे समाज की ताकत थी। नए लड़कों ने कई बार इन्हें बंद कराने या इनमें पंप लगाने की बात कही।
कुएं का स्वभाव कि उससे आवश्यकता के हिसाब से लिया जाए तो वह कभी रीतता नहीं हैं और बुझाता रहता है प्यास। साथ ही खड़े ओमप्रकाश कहते हैं, जिस समाज का कुआं नहीं रीतता, वह समाज हरा-भरा रहता है हमेशा। ऐसे गुड़गांव जहां बाल्टी भर पानी को कुएं का प्रतीक मान कुआं पूजा जाता है, में कम-से-कम दौलताबाद के दो कुएं इस परंपरा को अपने मूल स्वरूप में जीवंत रखे हुए हैं। दौलताबाद के पनघट बताते हैं कि जहां बुजुर्गों ने समझदारी से काम लिया वहां पानी की ताकत, विरासत बची हुई है।
धोबीवाली जोहड़ी की कृपा से कुईं भी बची है। यहां धोबी कपड़े धोते थे। पुराना समाज पानी की ताकत और शुद्धता को समझता था तभी तो धोबियों के कपड़े धोने के लिए अलग जोहड़ी बनाई गई थी। और वहीं कुआं इसलिए कि इन्हें पानी के लिए भटकना न पड़े।
देश के सर्वाधिक शिक्षित प्रांतों में से एक नंबर वन हरियाणा के विकास मॉडल का एक कड़वा सच आज भी यह है कि दलितों के पीने के लिए पानी का कुआं यहां आज भी अलग है। पानी का कोई रंग नहीं है और वह सबका मैल धो देता है, लेकिन जाति का रंग मानव स्वभाव पर इतना गहरा चढ़ गया है कि उसने धोबीवाली कुईं दलितों के लिए अलग कर दी है। एक ग्रामीण इसके पक्ष में बाकायदा दलील भी देते हैं, भाई दलितों का कुआं अलग इस लिए बनाया गया है ताकि उनसे किसी का टकराव न हो।
गांव के पास ही स्थित अत्यंत प्रतिष्ठित बाबा प्रकाशपुरी के सदानीरा तालाब का स्वरूप अब बदल गया है। आश्रम के व्यवस्थापकों ने इसे 90 प्रतिशत पक्का कर दिया है, यहां तक कि तालाब के तल का एक छोटा सा कोना ही कच्चा छोड़ा गया है।
इसी में बोर से पानी भरा जाता है। यह वही तालाब है हलवाई जिसका पानी ब्याह-शादियों में छोला उबालने के लिए मांगते थे। इस तालाब का पानी इतना मीठा था कि एक दशक पहले तक लोग यहां से टैंकर भरकर ले जाते थे, बाद में जब लोगों ने इसे कारोबार बना लिया तो आश्रम ने इस पर रोक लगाई।
दौलताबाद के साथ ही बसे राजेंद्र पार्क, सूरत नगर, पालम विहार, न्यू पालम विहार, आदि पिछले डेढ़ दशक में बसी बस्तियों में जन स्वास्थ्य विभाग की आपूर्ति है, सबमर्सिबल की भरमार है, लेकिन अक्सर यहां पानी का संकट गहरा जाता है। अब गांव में भूजल स्तर 80 से 100 फुट तक चला गया है।
यह हालत तो तब है जबकि गांव के साथ से ड्रेन बहती है और दौलताबाद की ओर इस ड्रेन की पुश्त भी नहीं बनाई गई है। पूरा गांव और ये बस्तियां सबमर्सिबल पंप चलाता है। भूजल संकट का इससे बड़ा कारण चारों ओर बन रहे बहुमंजिला अपार्टमेंट हैं। इनके निर्माण में पानी की भयावह खपत होती है। जिनमें से कई ने तो उच्च न्यायालय और केंद्रीय भूजल प्राधिकरण की रोक के बावजूद धड़ल्ले से अत्यधिक पावरफुल सबमर्सिबल लगा रखे हैं।
क्रमश: