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पंचायतनामा, 04-10 अगस्त 2014, पटना
गांव के आसपास 1980 में जहां 1400 पेड़ थे, वहीं आज उनकी संख्या बढ़ कर 65 हजार हो गई है। इस ग्राम पंचायत को देश के पहले पॉलीथिन मुक्त गांव के रूप में भी जाना जाता है। गांव के विकास के लिए हर जाति, वर्ग के लोगों को सहभागी बनाया गया। यहां महिला पंचायत का भी अस्तित्व है, जिसकी सदस्य सिर्फ महिलाएं ही होती हैं। जल प्रबंधन का ही असर है कि यहां का हर किसान साल में तीन फसलें उगाता है। इससे उनकी आर्थिक स्थिति काफी सुधर गई है। गांव में कुल 47 चेकडैम, चार झील व सात जल रिसन तालाब व भूजल संचय के लिए 10 नाले हैं। गुजरात के राजकोट जिले में स्थित राजसमधियाला गांव जलछाजन के कारण आदर्श गांव बन गया। जलछाजन से इस गांव की गरीबी दूर हुई और जलछाजन पर अध्ययन के लिए यह गांव देश-विदेश में चर्चित हो गया। दो दशक पूर्व तक यह गांव पानी की किल्लत को झेलता था, पर आज पानी के कारण इस गांव की आय का स्तर ऊंचा हो गया है।
1985 के आसापास इस गांव का जलस्तर 250 मीटर तक नीचे गिर गया था। गांव वालों के साथ पर्यावरण वालों के लिए भी यह बड़ी चिंता की बात थी। ऐसे में ग्रामीणों ने चेकडैम, तालाब आदि का निर्माण कर गांव में जलछाजन अभियान की शुुरुआत की। इस गांव में बदलाव की शुरुआत हुई पंचायती राज व्यवस्था के कारण।
1978 में हुए पंचायत चुनाव में अंग्रेजी में एमए युवा हरदेव सिंह जाडेजा यहां के सरपंच बने। उन्होंने गांव की जरूरतों, समस्याओं व संभावनाओं को चिन्हित किया। जडेजा ने पानी बचाने को सर्वोच्च प्राथमिकता दी और पेड़ लगाने का अभियान शुरू किया।
पंचायतनामा से एक बार उन्होंने बातचीत में कहा था कि उन्होंने सरकारी योजनाओं का भरपूर लाभ उठाया। आमतौर पर सरकार द्वारा प्रदत्त सुविधाओं का लाभ पंचायतें इस हद तक नहीं उठा पाती हैं। दरअसल जल स्तर के काफी नीचे गिर जाने के कारण भूवैज्ञानिक सर्वे के आधार पर इस गांव को सूखा विकास कार्यक्रम में शामिल किया गया।
जडेजा ने ग्रामीणों को मंत्र दिया : बारिश के पानी को रोक लो और उसको जमीन के अंदर ले जाने की व्यवस्था बनाओ। 1986-87 के बीच गांव में 12 चेकडैम बनाए गए व हजारों वृक्ष लगाए गए। इस पंचायत ने डीआरडीए से मिले पैसों का भरपूर उपयोग किया।
गांव के आसपास 1980 में जहां 1400 पेड़ थे, वहीं आज उनकी संख्या बढ़ कर 65 हजार हो गई है। जलछाजन के शानदार उपायोें के कारण आज इस पंचायत की सालाना उपज पांच गुणा तक बढ़ गई है। इस ग्राम पंचायत को देश के पहले पॉलीथिन मुक्त गांव के रूप में भी जाना जाता है।
गांव के विकास के लिए हर जाति, वर्ग के लोगों को सहभागी बनाया गया। यहां महिला पंचायत का भी अस्तित्व है, जिसकी सदस्य सिर्फ महिलाएं ही होती हैं। जल प्रबंधन का ही असर है कि यहां का हर किसान साल में तीन फसलें उगाता है। इससे उनकी आर्थिक स्थिति काफी सुधर गई है। गांव में कुल 47 चेकडैम, चार झील व सात जल रिसन तालाब व भूजल संचय के लिए 10 नाले हैं।
इस पंचायत में हाइड्रोलिक प्रेसर के माध्यम से संग्रहित वर्षा जल को भूमि के अंदर प्रवेश कराने की व्यवस्था की गई है। इस पहल के कारण यहां के खेतों को पहले की तुलना में तीन गुणा पानी मिल पाता है। बेहतर जल प्रबंधन से आयी संपन्नता के कारण लोगों का जीवन स्तर काफी सुधरा है। इसका असर यह भी हुआ कि यहां के लोगों की शिक्षा का स्तर ऊंचा हो गया।
इस गांव में अपराध भी नहीं होता और यहां के मामलों के थाने-कचहरी तक पहुंचने की भी नौबत नहीं आती है। यहां हर आदमी को ग्राम विकास के द्वारा बनाए गए नियमों व कायदों का पालन करना पड़ता है। इसमें किसी भी हाल में किसी व्यक्ति को ढील नहीं दी जाती है। इस समिति में 11 लोग होते हैं। इस समिति का नेतृत्व हरदेव सिंह जडेजा ही करते हैं। ग्राम विकास समिति व ग्राम पंचायत की समिति आपसी तालमेल से काम करते हैं।
दोनों के बीच समझ इस कदर है कि कभी किसी बिंदु पर टकराव की स्थिति नहीं आती। गांव के विकास कार्यक्रमों,महत्वपूर्ण फैसलों व नीति एवं नियम के संदर्भ में फैसला ग्राम विकास समिति ही लेती है और फिर इसके बारे में ग्राम पंचायत की समिति से चर्चा की जाती है। इस गांव ने गुजरात सरकार का पहला निर्मल ग्राम पुरस्कार भी प्राप्त किया है।
1985 के आसापास इस गांव का जलस्तर 250 मीटर तक नीचे गिर गया था। गांव वालों के साथ पर्यावरण वालों के लिए भी यह बड़ी चिंता की बात थी। ऐसे में ग्रामीणों ने चेकडैम, तालाब आदि का निर्माण कर गांव में जलछाजन अभियान की शुुरुआत की। इस गांव में बदलाव की शुरुआत हुई पंचायती राज व्यवस्था के कारण।
1978 में हुए पंचायत चुनाव में अंग्रेजी में एमए युवा हरदेव सिंह जाडेजा यहां के सरपंच बने। उन्होंने गांव की जरूरतों, समस्याओं व संभावनाओं को चिन्हित किया। जडेजा ने पानी बचाने को सर्वोच्च प्राथमिकता दी और पेड़ लगाने का अभियान शुरू किया।
पंचायतनामा से एक बार उन्होंने बातचीत में कहा था कि उन्होंने सरकारी योजनाओं का भरपूर लाभ उठाया। आमतौर पर सरकार द्वारा प्रदत्त सुविधाओं का लाभ पंचायतें इस हद तक नहीं उठा पाती हैं। दरअसल जल स्तर के काफी नीचे गिर जाने के कारण भूवैज्ञानिक सर्वे के आधार पर इस गांव को सूखा विकास कार्यक्रम में शामिल किया गया।
जडेजा ने ग्रामीणों को मंत्र दिया : बारिश के पानी को रोक लो और उसको जमीन के अंदर ले जाने की व्यवस्था बनाओ। 1986-87 के बीच गांव में 12 चेकडैम बनाए गए व हजारों वृक्ष लगाए गए। इस पंचायत ने डीआरडीए से मिले पैसों का भरपूर उपयोग किया।
गांव के आसपास 1980 में जहां 1400 पेड़ थे, वहीं आज उनकी संख्या बढ़ कर 65 हजार हो गई है। जलछाजन के शानदार उपायोें के कारण आज इस पंचायत की सालाना उपज पांच गुणा तक बढ़ गई है। इस ग्राम पंचायत को देश के पहले पॉलीथिन मुक्त गांव के रूप में भी जाना जाता है।
गांव के विकास के लिए हर जाति, वर्ग के लोगों को सहभागी बनाया गया। यहां महिला पंचायत का भी अस्तित्व है, जिसकी सदस्य सिर्फ महिलाएं ही होती हैं। जल प्रबंधन का ही असर है कि यहां का हर किसान साल में तीन फसलें उगाता है। इससे उनकी आर्थिक स्थिति काफी सुधर गई है। गांव में कुल 47 चेकडैम, चार झील व सात जल रिसन तालाब व भूजल संचय के लिए 10 नाले हैं।
इस पंचायत में हाइड्रोलिक प्रेसर के माध्यम से संग्रहित वर्षा जल को भूमि के अंदर प्रवेश कराने की व्यवस्था की गई है। इस पहल के कारण यहां के खेतों को पहले की तुलना में तीन गुणा पानी मिल पाता है। बेहतर जल प्रबंधन से आयी संपन्नता के कारण लोगों का जीवन स्तर काफी सुधरा है। इसका असर यह भी हुआ कि यहां के लोगों की शिक्षा का स्तर ऊंचा हो गया।
इस गांव में अपराध भी नहीं होता और यहां के मामलों के थाने-कचहरी तक पहुंचने की भी नौबत नहीं आती है। यहां हर आदमी को ग्राम विकास के द्वारा बनाए गए नियमों व कायदों का पालन करना पड़ता है। इसमें किसी भी हाल में किसी व्यक्ति को ढील नहीं दी जाती है। इस समिति में 11 लोग होते हैं। इस समिति का नेतृत्व हरदेव सिंह जडेजा ही करते हैं। ग्राम विकास समिति व ग्राम पंचायत की समिति आपसी तालमेल से काम करते हैं।
दोनों के बीच समझ इस कदर है कि कभी किसी बिंदु पर टकराव की स्थिति नहीं आती। गांव के विकास कार्यक्रमों,महत्वपूर्ण फैसलों व नीति एवं नियम के संदर्भ में फैसला ग्राम विकास समिति ही लेती है और फिर इसके बारे में ग्राम पंचायत की समिति से चर्चा की जाती है। इस गांव ने गुजरात सरकार का पहला निर्मल ग्राम पुरस्कार भी प्राप्त किया है।