सूखे और बाढ़ की दोहरी मार, ये है बिहार

Submitted by Hindi on Fri, 08/03/2012 - 10:02
Source
नेशनल दुनिया, 22 जुलाई 2012

कोसी, गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, कमला बलान, महानंदा और अघवारा नदी समूह की अधिकांश नदियां नेपाल से निकलती हैं। इन नदियों को 65 प्रतिशत जलग्रहण क्षेत्र नेपाल और तिब्बत में है। नतीजतन नेपाल से अधिक पानी छोड़े जाने पर बिहार के गांवों में तबाही मच जाती है। 2007 की बाढ़ में 22 जिले प्रभावित हुए थे। 2008 में कोसी नदी पर कुसहा बांध टूटा तो जलप्रलय की स्थिति पैदा हुई।

बिहार सूखे और बाढ़ की दोहरी मार झेलने को अभिशप्त रहा है। नेपाल में हो रही भारी बारिश से छह जिलों में बाढ़ की स्थिति है और लगभग 28 जिलों में कम बारिश के कारण सूखा मंडरा रहा है। राज्य सरकार ने बाढ़ को लेकर अलर्ट जारी किया है और सूखे की स्थिति का अध्ययन करने के लिए आपदा प्रबंधन विभाग ने जिलों से रिपोर्ट मांगी है। मंत्रिमंडल ने सूखा प्रभावित इलाकों में किसानों के लिए डीजल अनुदान मंजूर किया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कैंप लगाकर अनुदान बांटने के निर्देश दिए हैं। इधर, कुछ दिनों से हो रही बारिश से उम्मीद जरूर जगी है लेकिन अब तक हो चुके नुकसान की भरपाई मुश्किल है।

प्रदेश में इस वर्ष दो लाख 85 हजार एकड़ क्षेत्रफल में धान के बिचड़े लगाने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन सभी जिलों में अब तक सिर्फ डेढ़ लाख एकड़ में ही बिचड़े गिराए जा सके हैं। मक्के की भी बुआई नहीं हो सकी है। दलहन भी प्रभावित हुई है। मधेपुरा, गया व भोजपुर को छोड़ कर अन्य सभी जिलों में बारिश की स्थिति नकारात्मक है। सरकार ने सिंचाई के लिए डीजल अनुदान मद 619 करोड़ रुपए का आवंटन किया है। किसानों को तीन बार सिंचाई के लिए प्रति एकड़ 600 रुपए का अनुदान देने की घोषणा की गई है।

गौरतलब है कि वर्ष 2010-11 में कम बारिश के बाद में राज्य सरकार ने सूबे के सभी 38 जिलों को सूखाग्रस्त घोषित किया था। इस बार अगर सूखा ग्रस्त संबंधी अधिसूचना जारी होती है तो सूखे से निपटने के लिए आपदा राहत निधि तथा राष्ट्रीय आपदा आकस्मिकता निधि से दी जाने वाली सहायता के प्रावधान तत्काल प्रभाव से लागू हो जाएंगे। वर्ष 2009-10 में भी राज्य सरकार ने 26 जिलों को सूखाग्रस्त घोषित किया था।

पटना जिले में जिले में 23 मिमी बारिश हुई है जबकि 84 मिमी बारिश होनी चाहिए थी। अब तक 60 फीसदी धान के बिचड़े ही डाले जा सके हैं। जमुई समेत लगभग 28 जिलों की यही स्थिति है। कृषि विभाग ने जिलों से इस बाबत रिपोर्ट मंगाई है। किसान प्राइवेट बोरिंग के भरोसे धान के बिचड़े डालने में लगे हैं लेकिन यह काफी महंगा पड़ रहा है। लगभग 50 फीसदी से अधिक सरकारी नलकूप खराब पड़े हैं। सरकार ने बंद पड़े इन नलकूपों को चालू कराने के भी निर्देश दिए हैं।

दूसरी ओर, बिहार के आठ जिलों में बाढ़ ने दस्तक दे दी है। नेपाल जलग्रहण क्षेत्र से निकलने वाली नदियां उफान पर हैं। मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, शिवहर, बेतिया, मोतिहारी, किशनगंज और कटिहार के अलावा खगड़िया के तीन हजार गांव बाढ़ की चपेट में हैं। तटबंधों में दरार दिखने लगी हैं। बाढ़ की प्रलंयकारी लीला में हर साल एक लाख लोगों के घर बह जाते हैं। कोसी, गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, कमला बलान, महानंदा और अघवारा नदी समूह की अधिकांश नदियां नेपाल से निकलती हैं। इन नदियों को 65 प्रतिशत जलग्रहण क्षेत्र नेपाल और तिब्बत में है।

नतीजतन नेपाल से अधिक पानी छोड़े जाने पर बिहार के गांवों में तबाही मच जाती है। 2007 की बाढ़ में 22 जिले प्रभावित हुए थे। 2008 में कोसी नदी पर कुसहा बांध टूटा तो जलप्रलय की स्थिति पैदा हुई। सूबे का 76 प्रतिशत भूभाग बाढ़ के दृष्टिकोण से संवेदनशील है। कुल 94,160 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में से 68,800 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र बाढ़ के लिहाज से संवेदनशील हैं। बिहार में बाढ़ से हर साल 28 जिलें में तबाही मचती है, पर केंद्र सिर्फ 15 जिलों को ही बाढ़ग्रस्त मान कर सहायता देता है। इस बार भी कोसी तटबंध के बीच बसे गांवों में तबाही का दौर शुरू हो गया है।