सूखे ने फिर मारा

Submitted by admin on Sat, 08/01/2009 - 08:50
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विष्णु पाण्डेय / कानपुर July 27, 2009/ hindi.business-standard.com
ऐसा लगता है मानों उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके के लिए सूखा एक नियति बन गई है। लगातार चार सालों तक सूखे की मार झेलने के बाद एक बार फिर इस इलाके के लिए हालात कुछ ऐसे ही नजर आ रहे हैं। ऐसे समय में सबसे अधिक परेशानी किसानों को हो रही है क्योंकि इस बार मॉनसून के दौरान औसत की तुलना में 40 फीसदी बारिश भी नहीं हुई है।

ऐसे किसान जो धान के पौधों की रोपाई के लिए मॉनसून का इंतजार कर रहे थे उन्हें अब समझ में नहीं आ रहा कि वे क्या करें। समुचित जलापूर्ति के अभाव ने उनकी मुश्किलों को और बढ़ा दिया है।

भारतीय किसान संघ के जालौन इकाई के अध्यक्ष रामगोपाल सिंह ने बताया कि किसान धान के पौधों की रोपाई के लिए अच्छी बारिश की आस में बैठे थे। पर बारिश ने एक तरह से उन्हें धोखा दिया है। इन किसानों के पास अब पौधों को सूखता देखने के अलावा कोई और चारा नहीं है।

एक तो बारिश ने किसानों का साथ नहीं दिया और अब ऊपर से सिंचाई के लिए नहरों में भी पानी नहीं है। बारिश नहीं होने की वजह से नहरों का पानी भी सूखने लगा है। किसानों के पास इतना पैसा भी नहीं है कि वे सिंचाई के कृत्रिम साधनों का इस्तेमाल कर सकें।

किसानों के लिए पंप खरीदना मुमकिन नहीं है और अगर वे इसका इंतजाम कर भी लेते हैं तो इलाके में बिजली की व्यवस्था इतनी अच्छी नहीं है कि उनकी समस्या सुलझ जाए। इन किसानों को उम्मीद थी कि इस दफा तो खेती अच्छी रहेगी पर इन उम्मीदों पर अब जैसे पानी फिरने लगा है। इसका असर अब धीरे धीरे दिखने भी लगा है।

राज्य कृषि विभाग के अनुसार बुंदेलखंड में पिछले साल 88,829 हेक्टेयर जमीन पर धान की फसल उगाई गई थी पर इस साल इसमें 70 फीसदी की जबरदस्त गिरावट आई है। इस सीजन में केवल 27,225 हेक्टेयर जमीन पर ही धान की खेती की जा रही है।

इस सीजन में कोई उम्मीद बाकी नहीं रहने के कारण अब किसान रोजगार की तलाश में दिल्ली, पंजाब, सूरत और अहमदाबाद का रुख करने लगे हैं। उनके पास जो थोड़ा बहुत पैसा बचा था वह धान की खेती में बरबाद को चुका है।

उत्तर प्रदेश के झांसी जिले में तो हालात और भी बदतर हैं। यहां जलस्तर इतना घट चुका है कि लोगों को पीने का पानी तक नसीब नहीं हो रहा है तो ऐसे में खेती के लिए पानी की उम्मीद तो बेकार है। धान की फसल को नुकसान पहुंचने से मवेशियों के लिए चारे का इंतजाम करना भी किसानों को भारी पड़ रहा है। जो किसान पशुपालन को ही एकमात्र सहारा मान रहे थे उनकी उम्मीदों को भी झटका लगा है।

लगातार 4 साल के बाद एक बार फिर बुंदेलखंड में पीछे पड़ा है सूखे का भूत।

अब तक औसत की 40 फीसदी भी बारिश भी नहीं हुई है इस इलाके में
किसान कर रहे दिल्ली, पंजाब, सूरत का रुख।।