सवाल पूछो, ज़िंदगी बदलो

Submitted by Hindi on Fri, 08/05/2011 - 11:41
चौथी दुनिया ने पिछले अंक से अपने पाठकों एवं आम लोगों तक सूचना का अधिकार क़ानून की जानकारी पहुंचाने के रूप में एक नई पहल की है। चौथी दुनिया आपको देगा वह ताक़त, जिससे आप पूछ सकेंगे सही सवाल। क्योंकि, एक सही सवाल आपकी ज़िंदगी बदल सकती है। हम आपको बताएंगे कि कैसे सूचना का अधिकार क़ानून का इस्तेमाल कर आप दिखा सकते हैं घूस को घूंसा। अगर आपको इस क़ानून के इस्तेमाल से संबंधित कोई परेशानी हो या कोई सुझाव चाहिए तो भी आप हमसे संपर्क कर सकते हैं।

सूचना कौन देगा


प्रत्येक सरकारी विभाग में जन सूचना अधिकारी (पीआईओ) का पद होता है। आपको अपनी अर्जी उसके पास दाख़िल करनी होगी। यह उसका उत्तरदायित्व है कि वह उस विभाग के विभिन्न भागों से आप द्वारा मांगी गई जानकारी इकट्ठा करे और आपको प्रदान करे। इसके अलावा कई अधिकारियों को सहायक जन सूचना अधिकारी के पद पर नियुक्त किया जाता है। उनका कार्य जनता से आरटीआई आवेदन लेना और पीआईओ के पास भेजना है।

आरटीआई आवेदन कहां जमा करें


आप अपनी अर्जी-आवेदन पीआईओ या एपीआईओ के पास जमा कर सकते हैं। केंद्र सरकार के विभागों के मामलों में 629 डाकघरों को एपीआईओ बनाया गया है। मतलब यह कि आप इन डाकघरों में से किसी एक में जाकर आरटीआई काउंटर पर अपना आरटीआई आवेदन और शुल्क जमा करा सकते हैं। वहां आपको एक रसीद भी मिलेगी। यह उस डाकघर का उत्तरदायित्व है कि वह उसे संबंधित पीआईओ के पास भेजे।

यदि पीआईओ या संबंधित विभाग आरटीआई आवेदन स्वीकार न करने पर


ऐसी स्थिति में आप अपना आवेदन डाक द्वारा भेज सकते हैं। इसकी औपचारिक शिक़ायत संबंधित सूचना आयोग को भी अनुच्छेद 18 के तहत करें। सूचना आयुक्त को उस अधिकारी पर 25,000 रुपये का अर्थदंड लगाने का अधिकार है, जिसने आवेदन लेने से मना किया था।

पीआईओ या एपीआईओ का पता न चलने पर


यदि पीआईओ या एपीआईओ का पता लगाने में कठिनाई होती है तो आप आवेदन विभागाध्यक्ष को भेज सकते हैं। विभागाध्यक्ष को वह अर्जी संबंधित पीआईओ के पास भेजनी होगी।

अगर पीआईओ आवेदन न लें


पीआईओ आरटीआई आवेदन लेने से किसी भी परिस्थिति में मना नहीं कर सकता। भले ही वह सूचना उसके विभाग/कार्यक्षेत्र में न आती हो। उसे अर्जी स्वीकार करनी होगी। यदि आवेदन-अर्जी उस पीआईओ से संबंधित न हो तो वह उसे उपायुक्त पीआईओ के पास पांच दिनों के भीतर अनुच्छेद 6(3) के तहत भेज सकता है।

क्या सरकारी दस्तावेज़ गोपनीयता क़ानून 1923 सूचना के अधिकार में बाधा है नहीं। सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के अनुच्छेद 22 के अनुसार सूचना का अधिकार क़ानून सभी मौजूदा क़ानूनों का स्थान ले लेगा।

अगर पीआईओ सूचना न दें


एक पीआईओ सूचना देने से मना उन 11 विषयों के लिए कर सकता है, जो सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुच्छेद आठ में दिए गए हैं। इनमें विदेशी सरकारों से प्राप्त गोपनीय सूचना, देश की सुरक्षा, रणनीतिक, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों की दृष्टि से हानिकारक सूचना, विधायिका के विशेषाधिकारों का उल्लंघन करने वाली सूचनाएं आदि। सूचना का अधिकार अधिनियम की दूसरी अनुसूची में उन 18 अभिकरणों की सूची दी गई है, जिन पर यह लागू नहीं होता। हालांकि उन्हें भी वे सूचनाएं देनी होंगी, जो भ्रष्टाचार के आरोपों और मानवाधिकारों के उल्लंघन से जुड़ी हों।

क्या प्रथम/द्वितीय अपील की फीस है


प्रथम अपील/द्वितीय अपील की कोई फीस नहीं है। हालांकि कुछ राज्य सरकारों ने फीस का प्रावधान किया है।

क्या फाइल नोटिंग मिलता है


फाइलों की टिप्पणियां (फाइल नोटिंग) सरकारी फाइल का अभिन्न हिस्सा है। और इस अधिनियम के तहत सार्वजनिक की जा सकती है। केंद्रीय सूचना आयोग ने 31 जनवरी 2006 के अपने एक आदेश में यह स्पष्ट कर दिया है।

सूचना क्यों चाहिए, क्या उसका कारण बताना होगा


बिल्कुल नहीं कोई कारण या अन्य सूचना केवल संपर्क विवरण (नाम, पता, फोन नंबर) के अतिरिक्त देने की ज़रूरत नहीं है। सूचना क़ानून स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से संपर्क विवरण के अतिरिक्त कुछ नहीं पूछा जाएगा।

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विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia)




अन्य स्रोतों से




संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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