शिप्रा को क्षिप्रा के नाम से भी जाना जाता है। इसका उद्गम पारिजात पर्वत का केवड़ेश्वर नामक स्थल है। अवन्ती या उज्जयनी नगर के ठीक बीचों-बीच बहने वाली शिप्रा का महात्म्य विक्रमादित्य की राजधानी, एवं सात पवित्र महापुरियों में से अत्यन्त पवित्र नगर उज्जैन में बहने से और बढ़ जाता है। स्कन्द पुराण अवन्ती खण्ड के 26वें अध्याय में शिप्रा स्नान कर महाकाल के दर्शन करने से मृत्यु भय से मुक्त होना बताया गया है। भगवान के स्वेद बिन्दु से उत्पन्न शिप्रा काफी दूर तक बहकर नर्मदा नदी में समाहित हो जाती है। बृहस्पति के सिंह राशि में आने पर इसके तट पर कुम्भ का मेला लगता है। सोमतीर्थ, देवप्रयाग, योगतीर्थ, कपिलाश्रम, दशास्वमेध, स्वरगता नदी का संगम, व्यासतीर्थ, पाप मोचन तीर्थ और नो नदी तीर्थ आदि तटतीर्थ के लिए शिप्रा की अत्यधिक महिमा है।
स्कन्द पुराण में अवन्ती खण्ड के 69वें अध्याय में शिप्रा नदी की महिमा का वर्णन करते हुए सनत कुमारजी ने व्यास जी से शिप्रा का महात्मय बताते हुए कहा है- ‘इस समस्त पृथ्वीतल में शिप्रा समान पुण्यदायिनी कोई अन्य नदी नहीं है। इसके किनारे क्षण भर में मुक्ति प्राप्त होती है। यह पवित्र नदी बैकुण्ठ में शिप्रा, स्वर्ग में ज्वरहनी, यमद्वार में पापहनी तथा पाताल में अमृत संभवा नाम से विख्यात है। शिप्रा पुण्यप्रदा नदी है। तीनों लोकों को पवित्र करने वाली है तथा सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाली है। इसके दर्शन मात्र से सभी पापों का विनाश होता है। यों तो शिप्रा सर्वत्र कल्मषनाशिनी है किन्तु अवन्तिका में इसका विशेष महात्म्य है।’
स्कन्द पुराण में अवन्ती खण्ड के 69वें अध्याय में शिप्रा नदी की महिमा का वर्णन करते हुए सनत कुमारजी ने व्यास जी से शिप्रा का महात्मय बताते हुए कहा है- ‘इस समस्त पृथ्वीतल में शिप्रा समान पुण्यदायिनी कोई अन्य नदी नहीं है। इसके किनारे क्षण भर में मुक्ति प्राप्त होती है। यह पवित्र नदी बैकुण्ठ में शिप्रा, स्वर्ग में ज्वरहनी, यमद्वार में पापहनी तथा पाताल में अमृत संभवा नाम से विख्यात है। शिप्रा पुण्यप्रदा नदी है। तीनों लोकों को पवित्र करने वाली है तथा सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाली है। इसके दर्शन मात्र से सभी पापों का विनाश होता है। यों तो शिप्रा सर्वत्र कल्मषनाशिनी है किन्तु अवन्तिका में इसका विशेष महात्म्य है।’
Hindi Title
शिप्रा
अन्य स्रोतों से
संदर्भ
1 -
2 -
2 -