शिमला जिला के नारकंडा ब्लॉक के तहत ग्राम पंचायत जरोल में स्थित तानी जुब्बढ़ झील एक सुंदर पर्यटक स्थल है। यहाँ नाग देवता का प्राचीन मन्दिर हैं। हर वर्ष यहाँ पर मई मास में मेले का आयोजन किया जाता है जो की लगभग तीन दिनों तक चलता है इस मेले में चतुर्मुखी देवता मेलन मेले की शोभा बढ़ाते हैं। इस मेले में दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शनों के लिए आते हैं। यह झील नारकंडा से 9 किलो मीटर दूर समुद्रतल से 2349 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस झील का एक पुरातन इतिहास रहा है। इतनी ऊंचाई पर समतल मैदान के बीचों-बीच आधा किलोमीटर के दायरे लबालब पानी से भरी इस झील को देख कर हर कोई सोच में पड़ जाता है। इस झील की खोज का श्रेय उन भेड़ बकरी पलकों को जाता है जो यहाँ भेड़ और बकरियों को यहाँ चराने आते थे। समतल मैदान होने के कारण इन पशु पालकों ने यहाँ पर खेती करने की सोची। खेती करते समय उन पशु पालकों को यहाँ ठंडे इलाके के बावजूद सांप नजर आते थे।
वे उन साँपों को मारने का प्रयास करते तो वो वही पर लुप्त हो जाते थे। इतना होने पर भी वे पशु पालक वहां पर खेती करते रहे। एक दिन खेती करते समय एकाएक 18 जोड़ी बैल मैदान के मध्य छिद्र हो जाने से वहां उत्पन्न हुई जलधारा में समा गए। इस जलधारा से मैदान पानी से पूरा भर गया। मान्यता है की इस दृश्य को देखने वाले अभी हैरान परेशान ही थे की वहां नाग देवता जी की प्रतिमा उभर आई। लोगों ने इसे देव चमत्कार मानते हुए नाग देवता की स्थापना यहाँ कर दी। आज भी नाग देवता का मंदिर यहाँ पर आलौकिक है और लोगों में बेहद मान्यता है। उस समय उस चमत्कार में गायब हुए चरवाहे और बैल सैंज के समीप केपु गाँव में निकले। यह सब कैसे हुआ इसे देव चमत्कार ही माना जाता है। इसके प्रमाण आज भी केपु के मंदिर में देखे जा सकते हैं।
कुछ भी कहा जाये परन्तु आज भी पुरातन काल में हुए इन चमत्कारों के प्रमाणों को देख कर लोग चकित रह जाते हैं। इस क्षेत्र का प्राकृतिक सौंदर्य अद्भुत तो है ही और पर्यटकों को आकर्षित भी करता है। आवश्यकता है इस क्षेत्र को और अधिक विकसित करने की क्योंकि यहाँ पर्यटन की आपार संभावनाएं हैं।स्थानीय निवासी इस मेले में जरूर शिरकत करते हैं। झील के चारो ओर देवदार के वृक्ष इस स्थल की सुन्दरता को और भी बढ़ा देते हैं। ठंडी-ठंडी हवा वातावरण को और भी सुहावना बना देती है। इस मेले में खेल कूद प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है जिसमें वॉलीबाल क्रिकेट इत्यादि प्रतियोगिता प्रमुख है।
वे उन साँपों को मारने का प्रयास करते तो वो वही पर लुप्त हो जाते थे। इतना होने पर भी वे पशु पालक वहां पर खेती करते रहे। एक दिन खेती करते समय एकाएक 18 जोड़ी बैल मैदान के मध्य छिद्र हो जाने से वहां उत्पन्न हुई जलधारा में समा गए। इस जलधारा से मैदान पानी से पूरा भर गया। मान्यता है की इस दृश्य को देखने वाले अभी हैरान परेशान ही थे की वहां नाग देवता जी की प्रतिमा उभर आई। लोगों ने इसे देव चमत्कार मानते हुए नाग देवता की स्थापना यहाँ कर दी। आज भी नाग देवता का मंदिर यहाँ पर आलौकिक है और लोगों में बेहद मान्यता है। उस समय उस चमत्कार में गायब हुए चरवाहे और बैल सैंज के समीप केपु गाँव में निकले। यह सब कैसे हुआ इसे देव चमत्कार ही माना जाता है। इसके प्रमाण आज भी केपु के मंदिर में देखे जा सकते हैं।
कुछ भी कहा जाये परन्तु आज भी पुरातन काल में हुए इन चमत्कारों के प्रमाणों को देख कर लोग चकित रह जाते हैं। इस क्षेत्र का प्राकृतिक सौंदर्य अद्भुत तो है ही और पर्यटकों को आकर्षित भी करता है। आवश्यकता है इस क्षेत्र को और अधिक विकसित करने की क्योंकि यहाँ पर्यटन की आपार संभावनाएं हैं।स्थानीय निवासी इस मेले में जरूर शिरकत करते हैं। झील के चारो ओर देवदार के वृक्ष इस स्थल की सुन्दरता को और भी बढ़ा देते हैं। ठंडी-ठंडी हवा वातावरण को और भी सुहावना बना देती है। इस मेले में खेल कूद प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है जिसमें वॉलीबाल क्रिकेट इत्यादि प्रतियोगिता प्रमुख है।
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विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia)
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