तारपीन

Submitted by Hindi on Fri, 08/19/2011 - 17:07
तारपीन सगंध वाष्पशील तैल है। वाष्पशील तैलों में इसका स्थान सर्वोपरि है। इसके उपयोग का पहले पहल उल्लेख 1605 ई0 में मिलता है। तब से इसका उपयोग दिन दिन बढ़ता गया और पीछे व्यापक रूप से व्यापार शुरू हो गया। 1650 ई0 में तो यह व्यापार की प्रमुख वस्तु बन गया था। धीरे धीरे अमरीका में भी इसका व्यापार चमका और 1800 ई0 तक यह अमरीका में व्यापार के लिये महत्व की वस्तु बन गया था। अमरीका के अनेक राज्यों में भी इसका निर्माण शुरू हो गया। 1900 ई0 में जॉर्जिया इसके उत्पादन का प्रधान केंद्र बन गया था। संपूर्ण विश्व में इसका वार्षिक उत्पादन सवा दो सौ लिटर वाले 10 लाख पीपे कूता गया है, जिसका लगभसग आधा केवल अमरीका में ही उत्पादित होता है।

निर्माण -


लंबें पत्तेवाले चीड़ के पेड़ों के लंबे घड़ों की छीलने से एक प्रकार का स्राव निकलता है। जिसे रेजिन कहते हैं। इस रेजिन में ही तारपीन रहता है। पीछे देखा गया कि चीड़ लकड़ी के भंजक या वाष्प आसवन, या विलायक निष्कर्षण, से भी तारपीन प्राप्त हो सकता है। पेड़ के छेदने से जो तेल प्राप्त होता है, उसे गोंद तारपीन या 'गमस्पिरिट ऑव टरपेंटाइन' भी कहते हैं और काठ के वाष्प आसवन या विलायक निष्कर्षण से जो तेल प्राप्त होता है, उसे काठ तारपीन कते हैं। इन विभिन्न विधियों से प्राप्त तेलों में विशेष अंतर नहीं हैं। इन सभी के उपयोग प्राय: एक से ही हैं। पेड़ से जो स्राव प्राप्त होता है उसे ओलियोरेजिन कहते हैं। इसमें वस्तुत: तारपीन में धुला हुआ रेजिन रहता है। ओलियोरेजिन कहते हैं। इसमें वस्तुत: तारपीन में घुला हुआ रेजिन रहता है। ओलियोरेजिन को ताँबे के भभके में आसुत करते हैं। तारपीन और जल निकल जाते हैं और विभिन्न गुरुत्व के कारण अलग अलग स्तरों में बँट जाते हैं। आसवन पात्र में जो ठोस या अर्ध ठोस पदार्थ रह जाता है उसे रोजिन कहते हैं (देखे रोजिन)। एक पाउंड ओलियोरेजिन से 9.242 पाउंड तारपीन और 0.8 पाउंड रोजिन प्राप्त होता है। यदि रोजिन को विलायक नैफ्था से उपचारित किया जाए तो नैफ्था में उसका एक अंश धुल जाता है। विलयन से विलायक को निकाले पर जो अवशिष्ट अंश बच जाता है उसे चीड़ रोजिन कहते हैं।

भंजक आसवन वैसे ही संपंन्न होता है जैसे कोयला बनाने में कठोर काठ का आसवन होता है। जो उत्पादन प्राप्त होते हैं, उनमें कुछ गैसें रहती हैं और कुछ द्रव प्राप्त होता है। द्रव के आसवन से तारपीन प्राप्त होता है, जिसे डिस्टिल्ड बुड टरपेंटाइन कहते हैं। इसके परिष्कार से परिष्कृत तारपीन प्राप्त होता है। निष्कर्षण के लिए लकड़ी को छोटी चैलियों में काटते और तैफ्था या पेट्रोल से निष्कर्ष निकालते हैं। लकड़ी को जलाने के काम में लाते हैं। उत्पाद को फिर प्रभाजक स्तंभ की सहायता से अम्लप्रतिरोधी मिश्रधातु के पात्र में पृथक करते हैं। सल्फेट विधि से लुगदी निर्माण में चीड़ से कुछ तैल संघनित होकर प्राप्त होता है। जिसमें 40 से 60 प्रतिशत तारपीन और 10 से 20 प्रति शत चीड़ का तेल रहते हैं। प्रभाजक आसवन से ये पृथक किए जा सकते हैं। स्प्रूस (spruce) से लुगदी बनाने में जो तैल प्राप्त होता है, उसे सल्फाइट तारपीन कहते है।

उपयोग -


लगभग 40 प्रतिशत तारपीन पेंट और वार्निश में 45 प्रति शत रसायनों और औषधियों के निर्माण में, 6 प्रति शत जूता, स्याही और इसी प्रकार के अन्य पदार्थो में, 5 प्रतिशत रेलमार्गों और जहाजों में और अल्पमात्रा, लगभग 3 प्रतिशत, अन्य कामों में लगती है। यह मोम तथा अन्य पॉलिशों के और कृमिनाशकों के निर्माण में तथा घरेलू कामों में विलायक के रूप में प्रयुक्त होता है। इससे कपूर, टरपिनिऑल और अन्य बहुमूल्य औषधियाँ बनती है। औषधि के रूप में भी इसका उपयोग होता है।

संगठन -


तारपीन कार्बनिक यौगिकों को मिश्रण है। ये कार्बनिक यौगिक टरपीन (देखें टरपीन) है। प्रधानतया इसमें ऐल्फा-पाइनिन रहता है।

सल्फाइट तारपीन में प्रधानतया पैरा-साइमिन रहता है, जो रासायनिक संरचना में तारपीन सा ही होता है और वास्तविक तारपीन के स्थान में उद्योग धंधों में प्रयुक्त हो सकता है।

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विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia)




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संदर्भ
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बाहरी कड़ियाँ
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