टेहरी गढ़वाल

Submitted by Hindi on Fri, 08/12/2011 - 14:39
टेहरी गढ़वाल उत्तर प्रदेश के कुमायूँ क्षेत्र में विस्तृत जिला (पहले एक देशी राज्य था) जिसके उत्तर में उत्तर काशी, दक्षिण एवं दक्षिणपूर्व में गढ़वाल, पूर्व में चमोली तथा गढ़वाल और पश्चिम में देहरादूर जिला है। इस जनपद तथा क्षेत्रफल 1,745 वर्ग मील है। लगभग समूचा क्षेत्र पर्वतीय एवं वन्य है उत्तर काशी की ओर साधारणत: पर्वतों की ऊँचाई (20,000-23,000 फुट) एवं विषमता बढ़ती जाती है। ऊँची पर्वतचोटियाँ सदैव हिमाच्छादित रहती हैं। पर्वतीय ढालों पर मिट्टी का जमाव बहुत पतला है और बहुधा कृषि के योग्य नहीं रहता। उनपर जगह जगह सुविधानुसार सीढ़ीनुमा छोटी-छोटी क्यारियों में खेत बनाकर पौधे उगाते हैं जिसमें वर्षा ऋतु की मूसलाधार वर्षा में मिट्टी बह न जाए। नदियों की तलहटियों में मिट्टी गहन एवं घनी होती है और फलत: उसमें फसलें अच्छी होती हैं। धरातलीय ऊँचाई नीचाई के कारण जिले का जलवायु विभिन्न सौसमों में सर्वत्र समान नहीं रहता। घाटियों में ग्रीष्म ऋतु में असह्य गर्मी पड़ती है और जाड़े में लगभग 4,000 फुट ऊँचाई पर भी वर्फ पड़ती है। गेहूँ, जौ, धान, मड़ुआ, तथा आलू यहाँ की प्रमुख उपज है। लकड़ी, अन्य वन्य वस्तुओं, चावल, घी तथा आलू का निर्यात होता है तथा कपड़े, चीनी, नमक, लोहे के सामान, बरतन, दाल, तेल, मसाले तथा अन्य विविध उपभोग्य वस्तुओं का आयात होता है।

आजीविकार्थ बहुत से पुरुष अपने परिवार छोड़कर मैदानों में चले जाते हैं, अत: जिले की जनसंख्या में प्रति हजार पुरुषों पर 1,202 स्त्रियों का औसत है। केवल 2.2 प्रतिशत लोग नगरों में निवास करते हैं। टेहरी (4,508) के अतिरिक्त नरेंद्र नगर (1,632) तथा देवप्रयाग (1,456) अन्य नगर हैं। जिले में बहुत से हिंदू तीर्थस्थान है और प्रति वर्ष लाखों लोग यहाँ आते हैं। टेहरी यहाँ का प्रशासनिक नगर है। यहाँ अनेक विद्यालय, चिकित्सालय और सार्वजनिक संस्थाएँ हैं। तीर्थयात्रियों के लिये अनेक मंदिर और धर्मशालाएँ बनी हैं। विदेशी और मैदानी वस्तुओं का वितरण यहीं से होता है।

1 अगस्त, 1949 ई0 को उत्तर प्रदेश में विलयन के पहले टेहरीगढ़वाल राजपूत रियासत (क्षेत्रफल 4,200 वर्ग मील) थी जिसे हाल में टेहरी गढ़वाल तथा उत्तर काशी नामक दो जनपदों में बाँट दिया गया है। पहले गढ़वाल (चमोली के साथ) भी इसके साथ एक ही राजवंश के अधीन था। नेपाली युद्ध के बाद 1815 ई0 में अँगरेजों ने इन्हें अलग किया और राजा सुदर्शन शाह को केवल टेहरी-गढ़वाल प्राप्त हुआ। (काशीनाथ सिंह)

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संदर्भ
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