टीकमगढ़ की स्थलाकृति एवं जलविज्ञान

Submitted by admin on Sat, 07/30/2011 - 00:31
स्थलाकृति एवं जलविज्ञानजिले की स्थलाकृति तरंगित अवस्था में पायी जाती है, जिसका 67.7 प्रतिशत भाग 300 मीटर ऊँचा है तथा 3.6 प्रतिषत भाग 450 मीटर ऊँचा है। स्थलाकृति की दृष्टि से जिले को तीन बेसिनों यथा बेतवा बेसिन, जामिनी बेसिन तथा उर-धसान बेसिन में विभक्त किया गया है।

जिले की उच्चावचीय संरचनाएं अंतः श्रवण एवं विसर्जन के अनुपात को प्रभावित करती है। उच्चावच के अनुसार समतल पठारी भागों में वर्षा का 70 प्रतिशत से अधिक विर्सजन एवं वाष्पीकरण हो जाता है। सम्पूर्ण जिले में जल रिसाव की गति एक समान नहीं है क्योंकि वह अद्योगत चट्टानों की प्रकृति, वनस्पतियों की सघनता धरातल की प्रवणता रन्ध्रों की उपस्थिती संधि विभंग, संस्तर तल तथा जलस्तर की गहराई पर निर्भर करती है। जिला का भुमि जल स्तर 20 से 30.4 मीटर के मध्य है।

नदियों के खड़े ढाल के कारण स्थाई जल स्तर में विविधता पायी जाती है जो सिंचाई हेतु कूप निर्माण के लिए उपयुक्त है। भूमिगत जल की आपूर्ति सतही जल राशियों, झीलों, तालाबों तथा नदियों से होती है। जिले में तीव्र जल विसर्जन के कारण नदियों के जल का उपयोग कम हो पा रहा है। विसर्जित जल को अधिकतम रोककर ही उसका उपयोग किया जा सकता है। जिले की अधिकतर नदियाँ सतत वाहिनी नहीं है। जिले का ढाल दक्षिण से उत्तर की ओर है, जहां से नदियाँ वृक्षाकार प्रतिरूप में प्रवाहित होती हैं। जिले की प्रमुख नदियाँ धसान, जामिनी एवं बेतवा हैं, जिनकी सहायक उर, सपरार एवं जमड़ार हैं।

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