गढ़वाल के पश्चिमी सीमान्त में स्थित टोंस नदी घाटी में सम्मोहक प्रकृति स्थली है। भारत की प्रमुख पौराणिक व वैदिक नदी ‘तमसा’, जो कालान्तर में अंग्रेजी उच्चारण के कारण टौंस कहलाती है, की यह उद्गम स्थली दिव्य व अलौकिक नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर है। प्रमुख पर्यटन स्थल ‘हर की दून’ का आकर्षण पर्यटकों को बरबस खींच लेता है। असीमित स्वार्गिक सौंदर्य के कारण यह क्षेत्र विश्व भर के पर्यटकों को आमंत्रित करता है। स्वर्गारोहिणी कालनाग व बंदरपूंछ का वानस्पतिक वैभव एवं वन्य जीवन के साथ यहां की लोक-संस्कृति, लोक-कला भी कम मुग्धकारी नहीं है। क्षेत्रीय अनूठे रस्मोरिवाज, नृत्यगान, मेले व त्यौहार तथा नारी सौंदर्य से अभिभूत यह घाटी बेहद अनुपम व लुभावनी है।
रूपिन और सूपिन नदियां इस सीमान्त क्षेत्र के सौंदर्य की जीवंत धड़कनें हैं, जिनमें पचासों अल्हड़ स्रोत धाराएं किल्लोल करती हैं।
हिमाचल प्रदेश व उत्तरकाशी के सीमावर्ती पर्वत से रूपिन नदी का उद्भव हुआ है। जाखा, कितरवाड़ी, डोडरा (हिमाचल प्रदेश) गांवों से बहती हुई पुनः उत्तरकाशी जनपद में लौट आती है। सूपिन नदी लिवाड़ी, फिताड़ी गांवों से गुजरती हुई ‘हर की दून’ से आने वाली नदी में सांकरी के पास मिल जाती है और आगे रूपिन नदी भी नैटवाड़ स्थान में सूपिन से आ मिलती है।
नैटवाड़ से टौंस अथवा तमसा नाम से पहचाने जाने वाली यह नदी मोरी हनोल त्यूंजी कोटी होकर कालसी के निकट यमुना में समाहित हो जाती है।
कई नदियों के नाम तमसा हैं, जिनमें एक वह तमसा है जो हिमालय से निकलकर दक्षिण ओर से बहती है, जहां महाराजा दशरथ द्वारा कई यज्ञों का अनुष्ठान किया गया था। दूसरी तमसा वह है जो ऋक्ष पर्वत से निकल कर चित्रकूट के पार्श्व से बहती हुई वाराणसी और प्रयाग के बीच में गोपीगंज से कुछ दूर भीटी नामक स्थान में गंगा से मिलती है। महर्षि बाल्मीकि की आश्रम स्थली जहां उन्होंने रामायण की रचना की थी, यहीं पर है। लव और कुश को जन्म देने वाली इस पुण्य भूमि में वनवासी सीता ने जो बट लगाया था वह सीताबट कहलाता है। तीसरी तमसा हरिद्वार के नीचे से बहकर कानपुर में आकर गंगा में समाहित हो जाती है।
रूपिन और सूपिन नदियां इस सीमान्त क्षेत्र के सौंदर्य की जीवंत धड़कनें हैं, जिनमें पचासों अल्हड़ स्रोत धाराएं किल्लोल करती हैं।
हिमाचल प्रदेश व उत्तरकाशी के सीमावर्ती पर्वत से रूपिन नदी का उद्भव हुआ है। जाखा, कितरवाड़ी, डोडरा (हिमाचल प्रदेश) गांवों से बहती हुई पुनः उत्तरकाशी जनपद में लौट आती है। सूपिन नदी लिवाड़ी, फिताड़ी गांवों से गुजरती हुई ‘हर की दून’ से आने वाली नदी में सांकरी के पास मिल जाती है और आगे रूपिन नदी भी नैटवाड़ स्थान में सूपिन से आ मिलती है।
नैटवाड़ से टौंस अथवा तमसा नाम से पहचाने जाने वाली यह नदी मोरी हनोल त्यूंजी कोटी होकर कालसी के निकट यमुना में समाहित हो जाती है।
कई नदियों के नाम तमसा हैं, जिनमें एक वह तमसा है जो हिमालय से निकलकर दक्षिण ओर से बहती है, जहां महाराजा दशरथ द्वारा कई यज्ञों का अनुष्ठान किया गया था। दूसरी तमसा वह है जो ऋक्ष पर्वत से निकल कर चित्रकूट के पार्श्व से बहती हुई वाराणसी और प्रयाग के बीच में गोपीगंज से कुछ दूर भीटी नामक स्थान में गंगा से मिलती है। महर्षि बाल्मीकि की आश्रम स्थली जहां उन्होंने रामायण की रचना की थी, यहीं पर है। लव और कुश को जन्म देने वाली इस पुण्य भूमि में वनवासी सीता ने जो बट लगाया था वह सीताबट कहलाता है। तीसरी तमसा हरिद्वार के नीचे से बहकर कानपुर में आकर गंगा में समाहित हो जाती है।
Hindi Title
तमसा नदी
अन्य स्रोतों से
संदर्भ
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