टपक सिंचाई: जल संरक्षण हेतु समय की आवश्यकता

Submitted by Hindi on Fri, 02/19/2016 - 12:47
Source
जल चेतना तकनीकी पत्रिका, जुलाई 2014

टपक सिंचाईटपक सिंचाई से न सिर्फ जल संरक्षण को बढ़ावा मिलता है अपितु यह सिंचाई विधि फसल उत्पादन बढ़ाने में भी सहायक होती है।

क्या है टपक सिंचाई?


टपक सिंचाई, सिंचाई की वह विधि है जिसमें जल को मंद गति से बूँद-बूँद के रूप में फसलों के जड़ क्षेत्र में एक छोटी व्यास की प्लास्टिक पाइप से प्रदान किया जाता है। इस सिंचाई विधि का आविष्कार सर्वप्रथम इजराइल में हुआ था जिसका प्रयोग आज दुनिया के अनेक देशों में हो रहा है। इस विधि में जल का उपयोग अल्पव्ययी तरीके से होता है क्योंकि सतह वाष्पन एवं भूमि रिसाव से जल की हानि कम से कम होती है। सिंचाई की यह विधि शुष्क एवं अर्ध-शुष्क क्षेत्रों के लिए अत्यन्त ही उपयुक्त होती है जहाँ इसका उपयोग फल बगीचों की सिंचाई हेतु किया जाता है। टपक सिंचाई ने लवणीय भूमि पर फल बगीचों को सफलतापूर्वक उगाने को सम्भव कर दिखाया है। इस सिंचाई विधि में उर्वरकों को घोल के रूप में भी प्रदान किया जाता है। टपक सिंचाई उन क्षेत्रों के लिए अत्यन्त ही उपयुक्त है जहाँ जल की कमी होती है, खेती की जमीन असमतल होती है और सिंचाई प्रक्रिया खर्चीली होती है।

टपक सिंचाई के लाभ


इस विधि में जल का उपयोग अल्पव्ययी तरीके से होता है
टपक सिंचाईटपक सिंचाई में जल उपयोग दक्षता 95 प्रतिशत तक होती है जबकि पारम्परिक सिंचाई प्रणाली में जल उपयोग दक्षता लगभग 50 प्रतिशत होती है। अतः इस सिंचाई प्रणाली में अनुपजाऊ भूमि को उपजाऊ भूमि में परिवर्तित करने की क्षमता होती है।

टपक सिंचाई में उतने ही जल एवं उर्वरक की पूर्ति की जाती है जितनी फसल के लिए आवश्यक होती है। अतः इस सिंचाई विधि में जल के साथ-साथ उर्वरकों को अनावश्यक बर्बादी से रोका जा सकता है।

इस सिंचाई विधि से सिंचित फसल की तीव्र वृद्धि होती है फलस्वरूप फसल शीघ्र परिपक्व होती है।
टपक सिंचाई विधि खर-पतवार नियंत्रण में अत्यन्त ही सहायक होती है।
जल की कमी वाले क्षेत्रों के लिए यह सिंचाई विधि अत्यन्त ही लाभकर होती है।
टपक सिंचाई में अन्य सिंचाई विधियों की तुलना में जल अमल दक्षता अधिक होती है।
इस सिंचाई विधि से जल के भूमिगत रिसाव एवं सतह बहाव से हानि नहीं होती है।
इस सिंचाई विधि को रात्रि पहर में भी उपयोग में लाया जा सकता है।
टपक सिंचाई विधि अच्छी फसल विकास हेतु आदर्श मृदा नमी स्तर प्रदान करती है।
इस सिंचाई विधि में उर्वरकों को घोल रूप में जल के साथ प्रदान किया जा सकता है।
टपक सिंचाई में जल से फैलने वाली पादप बिमारियों के फैलने की सम्भावना कम होती है।
इस सिंचाई विधि में कीटनाशकों एवं फफूँदनाशकों के धुलने की संभावना कम होती है।
लवणीय जल को इस सिंचाई विधि से सिंचाई हेतु उपयोग में लाया जा सकता है।
इस सिंचाई विधि में फसलों की पैदावार 150 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।
पारम्परिक सिंचाई की तुलना में टपक सिंचाई में 70 प्रतिशत तक जल की बचत की जा सकती है।
टपक सिंचाई में अन्य सिंचाई विधियों की तुलना में मजदूरी की कीमत कम होती है।
इस सिंचाई विधि के माध्यम से लवणीय, बलुई एवं पहाड़ी भूमि को भी सफलतापूर्वक खेती के काम में लाया जा सकता है।
टपक सिंचाई में मृदा अपरदन की संभावना नहीं के बराबर होती है, जिससे मृदा संरक्षण को बढ़ावा मिलता है।
टपक सिंचाई में जल का वितरण समान होता है।
टपक सिंचाई में फसलों की पत्तियाँ नमी से युक्त होती हैं जिससे पादप रोग की संभावना कम रहती है।
टपक सिंचाई से उर्जा की भी बचत होती है।

टपक सिंचाई

टपक सिंचाई की हानियाँ


टपक सिंचाई प्रणाली का आरंभिक संस्थापन खर्चीला होता है।
टपक सिंचाई में उपयोग होने वाली पाइपों को चूहों द्वारा क्षति पहुँचाने का खतरा होता है।
गाढ़े जल को इस सिंचाई विधि से उपयोग में नही लाया जा सकता क्योंकि इससे निकास के जाम होने का खतरा होता है।
इस सिंचाई विधि में पादपों के समीप लवण के संचय का खतरा रहता है।

इस सिंचाई का आविष्कार सर्वप्रथम इजराइल में हुआ था

टपक सिंचाई प्रणाली


एक आदर्श टपक सिंचाई प्रणाली, पम्प ईकाई, नियन्त्रण प्रधान, प्रधान नली एवं उप-प्रधान नली, पार्श्विक एवं निकास से बनी होती है।

टपक सिंचाई में जल उपयोगपम्प इकाई जल स्रोत से जल को लेकर के पाइप प्रणाली में जल के रिहाई हेतु उचित दबाव बनाती है। नियन्त्रण प्रधान में कपाट होता है जो पाइप प्रणाली में जल की मुक्ति एवं दबाव को नियन्त्रित करता है। इसमें जल की सफाई हेतु छलनी भी होती है। कुछ नियन्त्रण प्रधान में उर्वरक जलकुंड अथवा पोषक जलकुंड भी होता है। यह सिंचाई के दौरान नपी मात्रा में उर्वरक को जल में छोड़ता है। अन्य सिंचाई विधियों की तुलना में टपक सिंचाई का यह एक प्रमुख लाभ है।

प्रधान नली, उप-प्रधान नली एवं पार्श्विक, नियन्त्रण प्रधान से जल की पूर्ति खेत में करते हैं। प्रधान नली, उप-प्रधान नली एवं पार्श्विक आमतौर से पालिथीन की बनी होती हैं अतः इन्हें प्रत्यक्ष सौर ऊर्जा से नष्ट होने से बचाने हेतु जमीन में दबाया जाता है। आमतौर से पार्श्विक नलियों का व्यास 13-32 मिमी. होता है।

टपक सिंचाई हेतु उपयुक्त फसलें


टपक सिंचाई कतार वाली फसलों (फल एवं सब्जी), वृक्ष एवं लता फसलों हेतु अत्यन्त ही उपयुक्त होती है जहाँ एक या उससे अधिक निकास को प्रत्येक पौधे तक पहुँचाया जाता है। टपक सिंचाई को आमतौर से अधिक मूल्य वाली फसलों के लिए अपनाया जाता है क्योंकि इस सिंचाई विधि की संस्थापन कीमत अधिक होती है।

सिंचाई विधिटपक सिंचाई का प्रयोग आमतौर से फार्म, हरित गृह आवासों तथा आवासीय बगीचों में होता है। टपक सिंचाई लम्बी दूरी वाली फसलों के लिए उपयुक्त होती है। सेव (मैलस प्यूमिलो), अंगूर (वाइटिस विनिफेरा), संतरा (साइट्रस रेटीकुलेटा), नीम्बू (साइट्रस लेमन), केला (मूसा पैराडिसिआका), खजूर (फोनिक्स सिलवेस्ट्रीस), अनार (पुनिका ग्रेनेटम), नारियल (काकस न्यूसिफेरा), बेर (जिजिफस मारिसियाना) एवं आम (मैन्जिफेरा इण्डिका) जैसी फसलों की सिंचाई टपक सिंचाई विधि द्वारा की जा सकती है। इनके अतिरिक्त टमाटर (लाइकोपरसिकम, स्केलुण्टम), बैंगन (सोलेनम मेलोन्जियाना), खीरा (कुक्युमिस सेटाईवस), कपास (गासिपियम हरसुटम), गन्ना (सैकरम आफिसिनेरम) एवं मक्का (जिया मेज) जैसी फसलों की ंसिंचाई भी टपक सिंचाई विधि से सफलतापूर्वक की जा सकती है।

सिंचाई विधिअन्त में इस निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है कि टपक सिंचाई वह तकनीक है जिसमें जल का उपयोग अल्पव्ययी तरीके से पौधों की ंसिंचाई हेतु होता है। सिंचाई की यह तकनीक न सिर्फ जल एवं मृदा संरक्षण को सुनिश्चित करती है अपितु इससे फसल पैदावार भी अधिक होती है। अतः टपक सिंचाई आज जल जैसे महत्वपूर्ण संसाधन के संरक्षण हेतु समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।


संपर्क अरविन्द सिंह, ओल्ड डी/3, जोधपुर कालोनी, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी-221 005, उत्तर प्रदेश, ई-मेल: dr.arvindsingh@gmail.com, arvindsingh_bhu@hotmail.com