ट्यूलिप

Submitted by Hindi on Fri, 08/12/2011 - 15:50
ट्यूलिप वसंत ऋतु में फूलनेवाले कंद पौद ट्यूलिप (Tulip) के नैसर्गिक वासस्थानों में एशिया माइनर, अफगानिस्तान, कश्मीर से कुमाऊँ तक के हिमालयी क्षेत्र, उत्तरी ईरान, टर्की, चीन, जापान, साइबीरिया तथा भूमध्य सागर के निकटवर्ती देश विशेषतया उल्लेखनीय हैं। वनस्पति विज्ञान के ट्यूलिया (Tulipa) वंश का पारिभाषिक उद्गम ईरानी भाषा के शब्द टोलिबन (अर्थात्‌ पगड़ी) से इसलिये माना जाता है कि ट्यूलिप के फूलों को उलट देने से ये पगड़ी नामक शिरोवेश जैसे दिखाई देते हैं। ट्यूलिपा वंश के सहनशील पौधों का वानस्पतिक कुल लिलिएसिई (Liliaceae) है। टर्की से यह पौध 1554 ई0 में ऑस्ट्रिया, 1571 ई0 में हॉलैंड और 1577 ई0 में इग्लैंड ले जाया गया। इस पौधे का सर्वप्रथम उल्लेख 1559 ई0 में गेसनर ने अपने लेखों और चित्रों में किया था और उसी के आधार पर ट्यूलिपा गेसेनेरियाना (Tulipa gesenereana) का नामकरण हुआ। अल्प काल में ही इसके मनमोहक फूलों के चित्ताकर्षक रूपरंग के कारण यह पौधा यूरोप भर में सर्वप्रिय होकर फैल गया है।

ट्यूलिपा वंश के पौधों के वैविध्य के कारण उनका यथोचित वर्गीकरण कठिन है। लगभग 100 जातियों के 4,000 पौधों का वर्णन मिलता है। अत: साधारणतया इन्हें अगेती और पिछेती फूलनेवाले पौधों के दो मुख्य वर्गों में विभक्त किया जाता है। फूलों में गंध का सर्वथा अभाव ट्यूलिप रहता है। मनमोहक, विशुद्ध और मिश्रित लाल, सुनहरे और बैगनी रंगों में इन फूलों का रूपरंग दर्शकों को मोहित कर लेता है। फूलों की पंखुड़ियाँ एकदली और बहुदली दोनों प्रकार की होती हैं। पौधे छोटे ही होते हैं, परंतु उनके भूमिगत कंदों के बीच में से निकले हुए फूलदार डंठल की ऊँचाई 760 मिमी. तक होती है।

ट्यूलिप के सर्वप्रिय प्रमुख पौधों में निम्नलिखित विशेषतया उल्लेखनीय हैं:
1. ट्यूलिपा कौफमैनियाना रिगेल (Tulipa Kaufmanniana Regel)- यह जल्दी फूलना शुरू कर देता है। फूलों को रंग लाली लिए पीला रहता है।

2. ट्यूलिया क्लुसियाना वेंट (Tulipa Clusiana Vent)- ये फूल सबसे अधिक सुंदर ओर आकर्षक होते है। फूलों का रंग मोती की तरह सफेद और पंखुड़ियों के बाहरी ओर गुलाबी बैगनी रंग की धारियाँ बनी रहती हैं।

3. ट्यूलिपा आइक्लेरी रिगेल (Tulipa Eichleri Regel.)- ये गहरे लाल रंग के आकार में बड़े और बहुत सुंदर होते हैं।

4. ट्यूलिपा ग्रैगि रिगेल (Tulipa Greigii Regel.)- इसका फूल भी गहरे लाल रंग का और कटोरे के आकार का होता है।

5. ट्यूलिपा स्टेल्लैटा हुक (Tulipa Stellata Hook.)- यह भारत के उत्तर-पश्चिमी हिमालय के क्षेत्रों और विशेषतया कश्मीर से कुमाऊँ तक 1,500 से लेकर 2,500 मीटर तक की ऊँचाई पर पाया जाता है।

बगीचों में लगाने के लिये पौधों के कंद को वर्षा के पश्चात्‌ और सर्दी से पूर्व (लगभग दीपावली के निकट) भूमि में छोड़ देना चाहिए। रेतीली मिट्टी, जो पानी सोख सके और जिसमें अच्छी गहराई तक गोबरपत्ती की पक्की खाद मिली हो, सर्वोत्तम पाई गई है। नई और कच्ची खाद इन कंदों के पास कभी नहीं रहनी चाहिए। यदि क्यारियों में पानी एकत्र होने की संभावना हो तो उनको आसपास की जमीन से ऊँचा उठाकर बनाना चाहिए। कंदों को मिट्टी में 100 से लेकर 150 मिमी. की एक जैसे गहराई पर और लगभग 150 मिमी. के अंतर पर रखना चाहिए। अलग अलग गहराई पर कंद लगाने से उनमें फूल भी विविध समयों पर लगेगे। अत्याधिक सर्दी और पाले से पौधों को पत्तों से ढककर बचाना चाहिए।

गमलों में लगाने के लिये अच्छी मिट्टी के साथ गाय के गोबर की दो वर्ष पुरानी खाद और थोड़ा सा बालू मिला देने से ट्यूलिप के पौधे खूब पनपते हैं। चार छ: सप्ताह तक कंदों को गमलों में दवाऐ दखने से इनकी जड़ें जम जाती हैं। गमलों को भी सर्दी और पाले से बचाने की आवश्यकता पड़ती है। इन गमलों को फिर किसी उपयुक्त खुले स्थान पर रखकर हल्की सी धूप और कभी पानी देते रहना चाहिए। फूल निकल आने पर धूप और अधिक पानी से बचाव जरूरी है। गृह की सजावट के लिये सदा फूलदार गमलों की जरूरत रहती है।

ट्यूलिप के पौधों के विस्तार के लिये पुराने कंदों से संलग्न नवजात कंदों स ही सहायता ली जाती है। इस विधि से सफलता प्राप्त करने के लिये विशेष अनुभव की आवश्यकता होती है।

सं. ग्रं. एनन : दि डैफोडिल ऐंड ट्यूलिप ईयर बुक, दि रायल हॉर्टिकल्चर सोसायटी, लंदन (1946) (सद्गोपाल)

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संदर्भ
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