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दैनिक भास्कर, 13 जून 2014
दिल्ली में एक जगह है लोधी गार्डन। इसे आप एक बड़ा ऑक्सीजन टैंक कह सकते हैं। क्योंकि यहां हर तरह के पेड़ हैं। प्राकृतिक खूबसूरती कोने-कोने में बिखरी है। ढेरों लोग यहां सुबह-शाम वॉक के लिए आते हैं। योगेश सैनी भी उन लोगों में शामिल हैं। पिछले साल एक रोज सुबह के वक्त उन्होंने देखा कि नगर निगम के लोग गार्डन के पुराने कचरादानों को बदलकर नए लगा रहे हैं। फिर अगले दिन देखा कि नए कचरादानों के इर्द-गिर्द काफी कचरा पड़ा हुआ है। क्योंकि लोग कचरादान में कचरा नहीं डाल पा रहे हैं। वह यहां-वहां गिर जाता है।
अक्सर शाम के वक्त पार्क का स्टाफ इधर-उधर पड़े कचरे को इकट्ठा कर उसे कचरादान में डालते देखा जा सकता था। सैनी को यह देख आश्चर्य हुआ कि कचरादान नए हैं। साफ-सुथरे हैं। लेकिन उन लोगों की इन पर नजर ही नहीं पड़ रही है, जिन्हें इनका उपयोग करना है। और ऐसे में नए कचरादान आखिर किसके काम आ रहे हैं। इन्हें लगाने का मकसद क्या है। सैनी की यह चिंता सिर्फ लोधी गार्डन को लेकर थी लेकिन देश के बाकी शहरों में भी तो यही हाल है। देश क्या, सात अरब की आबादी वाली पूरी दुनिया में चिंता का यह एक बड़ा कारण है।
आकलन है कि दुनिया में हर व्यक्ति रोज करीब 1.5 किलोग्राम कचरा फेंकता है और यह (कचरा) जल व वायु प्रदूषण के बाद दुनिया की तीसरी बड़ी समस्या बन रहा है। इस पर सैनी ने संजीदगी से सोचा। वे पेशे से उद्यमी हैं। फोटोग्राफर हैं। आसपास के डेवलपमेंट पर बारीकी से नजर रखते हैं। उन्होंने औरों की तरह पैसे की फिजूलखर्ची की शिकायत करते रहने के बजाए ऐसा करने के बारे में सोचा जो कुछ अलग हो। जिससे लोगों की नजर कचरादानों पर सहज ही पहुंच जाए। वे आकर्षक हों और लोग उनमें ही कचरा डालने में दिलचस्पी लेने लगें।
दिल्ली स्ट्रीट आर्ट नामक इस विधा को क्रिएट करने में सैनी को सिर्फ कुछ घंटे लगे। इसके तहत उन्होंने कचरादान की एक डिजिटल इमेज तैयार की। इसके जरिए कचरेदान की शक्ल ही बदल देने की योजना थी। उन पर शानदार कंप्यूटराइज्ड ग्राफिक्स के जरिए एक संदेश देने की भी योजना थी, ताकि लोग उन्हें इस्तेमाल करें। यह योजना बनाने के बाद सैनी को थोड़ा वक्त लगा ऐसे लोगों को ढूंढने में जो सही तरीके से इसे लागू कर पाएं। कुछ वक्त नगर निगम के अधिकारियों को इस पर राजी करने में लगा। लेकिन आखिर में प्रयास सफल हुए।
सैनी को हर तरफ से समर्थन मिला और पिछले साल सितंबर से दिसंबर के बीच 75 कलाकारों ने कचरादानों की शक्ल बदल डाली। सिर्फ लोधी गार्डन ही नहीं बाकी पार्कों के कचरादान को भी डिजाइन किया गया। लोगों ने ही नहीं राजनेताओं ने भी इस प्रयास की तारीफ की। उस समय दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित ने इसका समर्थन किया। दिल्ली स्ट्रीट आर्ट के कलाकारों को सर्टिफिकेट और स्मृति चिन्ह आदि देकर सम्मानित किया गया। आज दिल्ली का लोधी गार्डन बिल्कुल अलग-सी दिखने वाली जगह के तौर पर सामने है।
लोधी गार्डन में 100 से अधिक आर्ट वर्क उसकी खूबसूरती को बढ़ा रहे हैं। ये लोगों को कचरादान का सही इस्तेमाल करने का संदेश देते हैं। उन्हें इसके लिए प्रोत्साहित भी करते हैं। इसका असर ये हुआ है कि पार्क में यहां-वहां कचरा बिखरे होने की समस्या लगभग खत्म हो चुकी है। देश के दूसरे शहरों में इस आइडिया पर काम किया जा सकता है। लोगों को इस तरह आर्ट वर्क के जरिए साफ-सफाई की ओर प्रेरित व प्रोत्साहित किया जा सकता है।
फंडा : अगर आप उद्यमी हैं तो आपमें यह दृष्टि होनी चाहिए कि आपका आइडिया किस तरह की शक्ल अख्तियार करेगा। कैसे नतीजे देगा और यह आइडिया लोगों के काम आ पाएगा या नहीं। उन्हें संतुष्ट कर सकेगा या नहीं।
अक्सर शाम के वक्त पार्क का स्टाफ इधर-उधर पड़े कचरे को इकट्ठा कर उसे कचरादान में डालते देखा जा सकता था। सैनी को यह देख आश्चर्य हुआ कि कचरादान नए हैं। साफ-सुथरे हैं। लेकिन उन लोगों की इन पर नजर ही नहीं पड़ रही है, जिन्हें इनका उपयोग करना है। और ऐसे में नए कचरादान आखिर किसके काम आ रहे हैं। इन्हें लगाने का मकसद क्या है। सैनी की यह चिंता सिर्फ लोधी गार्डन को लेकर थी लेकिन देश के बाकी शहरों में भी तो यही हाल है। देश क्या, सात अरब की आबादी वाली पूरी दुनिया में चिंता का यह एक बड़ा कारण है।
आकलन है कि दुनिया में हर व्यक्ति रोज करीब 1.5 किलोग्राम कचरा फेंकता है और यह (कचरा) जल व वायु प्रदूषण के बाद दुनिया की तीसरी बड़ी समस्या बन रहा है। इस पर सैनी ने संजीदगी से सोचा। वे पेशे से उद्यमी हैं। फोटोग्राफर हैं। आसपास के डेवलपमेंट पर बारीकी से नजर रखते हैं। उन्होंने औरों की तरह पैसे की फिजूलखर्ची की शिकायत करते रहने के बजाए ऐसा करने के बारे में सोचा जो कुछ अलग हो। जिससे लोगों की नजर कचरादानों पर सहज ही पहुंच जाए। वे आकर्षक हों और लोग उनमें ही कचरा डालने में दिलचस्पी लेने लगें।
दिल्ली स्ट्रीट आर्ट नामक इस विधा को क्रिएट करने में सैनी को सिर्फ कुछ घंटे लगे। इसके तहत उन्होंने कचरादान की एक डिजिटल इमेज तैयार की। इसके जरिए कचरेदान की शक्ल ही बदल देने की योजना थी। उन पर शानदार कंप्यूटराइज्ड ग्राफिक्स के जरिए एक संदेश देने की भी योजना थी, ताकि लोग उन्हें इस्तेमाल करें। यह योजना बनाने के बाद सैनी को थोड़ा वक्त लगा ऐसे लोगों को ढूंढने में जो सही तरीके से इसे लागू कर पाएं। कुछ वक्त नगर निगम के अधिकारियों को इस पर राजी करने में लगा। लेकिन आखिर में प्रयास सफल हुए।
सैनी को हर तरफ से समर्थन मिला और पिछले साल सितंबर से दिसंबर के बीच 75 कलाकारों ने कचरादानों की शक्ल बदल डाली। सिर्फ लोधी गार्डन ही नहीं बाकी पार्कों के कचरादान को भी डिजाइन किया गया। लोगों ने ही नहीं राजनेताओं ने भी इस प्रयास की तारीफ की। उस समय दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित ने इसका समर्थन किया। दिल्ली स्ट्रीट आर्ट के कलाकारों को सर्टिफिकेट और स्मृति चिन्ह आदि देकर सम्मानित किया गया। आज दिल्ली का लोधी गार्डन बिल्कुल अलग-सी दिखने वाली जगह के तौर पर सामने है।
लोधी गार्डन में 100 से अधिक आर्ट वर्क उसकी खूबसूरती को बढ़ा रहे हैं। ये लोगों को कचरादान का सही इस्तेमाल करने का संदेश देते हैं। उन्हें इसके लिए प्रोत्साहित भी करते हैं। इसका असर ये हुआ है कि पार्क में यहां-वहां कचरा बिखरे होने की समस्या लगभग खत्म हो चुकी है। देश के दूसरे शहरों में इस आइडिया पर काम किया जा सकता है। लोगों को इस तरह आर्ट वर्क के जरिए साफ-सफाई की ओर प्रेरित व प्रोत्साहित किया जा सकता है।
फंडा : अगर आप उद्यमी हैं तो आपमें यह दृष्टि होनी चाहिए कि आपका आइडिया किस तरह की शक्ल अख्तियार करेगा। कैसे नतीजे देगा और यह आइडिया लोगों के काम आ पाएगा या नहीं। उन्हें संतुष्ट कर सकेगा या नहीं।