आधुनिक चिकित्सा पद्धति के आविष्कार से पहले महामारियों में लाखों व्यक्ति काल-कवलियत हो जाया करते थे। पश्चिमी जगत में इन महामारियों की पराजय के बाद अब विकासशील देश भी इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं जिनमें भारत भी शामिल है। इसके फलस्वरूप मनुष्य की औसत आयु में वृद्धि हो रही है।
श्रमिकों की औसत आयु बढ़ाना तथा उनकी व्यावसायिक बीमारियों से रक्षा करना हमारी राष्ट्रीय नीति का एक महत्त्वपूर्ण अंग बन चुका है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में घातक बीमारियों पर नियन्त्रण, मृत्युदर में कमी, पौष्टिक आहार तथा बुनियादी दवाओं की आपूर्ति जैसे अनेक तरीके अपनाए जा रहे हैं। लेखक का कहना है कि इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए न केवल दृढ़ इच्छाशक्ति की आवश्यकता है अपितु योजनाओं का ईमानदारी से क्रियान्वयन किया जाना भी जरूरी है। व्यावसायिक स्वास्थ्य वास्तव में एक प्रतिबंधात्मक औषधि है। अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन एवं विश्व स्वास्थ्य संगठन की 1950 में हुई संयुक्त समिति की प्रथम बैठक में व्यावसायिक स्वास्थ्य को इस प्रकार परिभाषित किया गया है- व्यावसायिक स्वास्थ्य का उद्देश्य कर्मचारियों के उत्तम शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा करना तथा कार्यस्थल पर ऐसा वातावरण निर्मित करना है ताकि वे शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रहकर कार्य कर सकें एवं अपनी कार्यक्षमता बढ़ा सकें।जिस प्रकार शहरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाली जनसंख्या के स्वास्थ्य का ध्यान रखने का जिम्मा स्थानीय नगरपालिका एवं ग्राम पंचायतों या स्वास्थ्य विभाग का होता है, उसी प्रकार एक औद्योगिक संगठन में कार्यरत कर्मचारियों का सामुदायिक स्वास्थ्य उसे उद्योग द्वारा उपलब्ध कराए गए मकान, पानी, साफ-सफाई, पौष्टिक भोजन तथा उसे उपलब्ध शिक्षा की व्यवस्था पर निर्भर करता है। इसके अलावा एक औद्योगिक कर्मचारी का स्वास्थ्य उसके कार्यस्थल की कार्यदशाओं से भी प्रभावित होता है।
अतः हम कह सकते हैं कि उद्योग में कार्यरत कर्मचारियों का स्वास्थ्य मनुष्य एवं भौतिक, रासायनिक एवं जैविक तत्वों के बीच की क्रियाओं, मनुष्य एवं मशीन के बीच की क्रियाओं तथा मनुष्य एवं मनुष्य के बीच की क्रियाओं पर निर्भर करता है।
सर्वप्रथम औद्योगिक कर्मचारियों एवं भौतिक तत्वों के मध्य की क्रियाओं को ही लें। उच्च तापमान पर कार्य करने के कारण श्रमिकों को शारीरिक असुविधाओं के साथ अनेक बार लू लग जाती है, त्वचा से सम्बन्धित बीमारियाँ हो जाती हैं तथा कार्यक्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसके विपरीत कम तापमान पर कार्य करने वाले श्रमिकों को चिल ब्लेन्स, एरिथ्रो साईनोसिस, इमरशन फुट, फ्रास्ट बाइट आदि बीमारियाँ हो जाती हैं। उद्योग में कम एवं अधिक रोशनी में कार्य करने के कारण श्रमिकों को आँखों की बीमारियाँ तथा सिर में दर्द हो जाता है। मशीनों में घर्षण के फलस्वरूप उत्पन्न ध्वनि के कारण कानों की सुनने की शक्ति कम हो जाती है तथा कार्यक्षमता पर भी प्रभाव पड़ता है। कार्य के दौरान पैराबैंगनी तरंगों के प्रभाव से आँखों की अनेक बीमारियाँ जैसे- कन्जंक्टीवाइटिस, किरेटायटिस आदि हो जाती हैं। दूसरी ओर रासायनिक तत्व औद्योगिक श्रमिकों पर तीन तरह से असर करते हैं- त्वरित क्रिया, श्वास के द्वारा एवं पेट में भोजन के द्वारा। अनेक रसायनों के मध्य कार्य करने से श्रमिकों को डर्मेटाइटिस, एक्जिमा, अल्सर, कैंसर आदि बीमारियाँ हो जाती हैं। कार्य के दौरान कच्चे माल के बारीक कण उड़कर श्वास द्वारा शरीर के अंदर प्रवेश करते हैं जिससे न्यूमोकोनियोसिस, सिलीकोसिस तथा एन्थाकोसिस बीमारियाँ हो जाती हैं। कार्य के दौरान ही अनेक रासायनिक तत्व जैसे लेड, मरक्यूरी, आर्सेनिक, जिंक, क्रोमियम, केडमियम, फाॅसफोरस आदि भोजन के साथ शरीर में प्रवेश कर अनेक बीमारियों को जन्म देते हैं।
पशुओं के मध्य कार्य करने वाले श्रमिकों तथा पशुओं से बने उत्पादों को बनाने वाले उद्योगों में कार्य करने वाले श्रमिकों को जैविक तत्व-वायरस, बैक्टीरिया, फन्गस आदि प्रभावित करते हैं एवं इससे उन्हें ब्रुसेलोसिस, लेप्टोसिपिरोसिस, अन्थ्रेक्स, हाइडेटिडोसिस, टिटेनस जैसी अनेक बीमारियाँ हो जाती हैं।
औद्योगिक श्रमिकों द्वारा लम्बे समय तक मशीनों पर कार्य करने से उन्हें थकान और उनकी पीठ तथा जोड़ों एवं मांसपेशियों में दर्द हो जाता है जिससे उनके स्वास्थ्य एवं कार्यक्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। श्रमिकों का स्वास्थ्य अनेक सामाजिक मनोवैज्ञानिक समस्याओं से भी प्रभावित होता है। कार्य के प्रति अरुचि, असुरक्षा की भावना, श्रमिकों एवं प्रबन्धकों के मध्य असौहार्द्रपूर्ण सम्बन्ध भी श्रमिकों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
श्रमिकों के स्वास्थ्य की रक्षा कैसे की जाए-इस विषय पर अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन एवं विश्व स्वास्थ्य संगठन की संयुक्त समिति ने 1953 में कुछ अनुशंसाएँ की थीं। इन अनुशंसाओं का पालन कर प्रबन्धक अपने उद्योग में कार्यरत श्रमिकों के स्वास्थ्य की रक्षा कर सकते हैं:
1. कैन्टीन से पौष्टिक भोजन सामग्री प्रदान करना तथा घर से टिफिन लाने वाले श्रमिकों के लिए भोजन ग्रहण करने हेतु पृथक से साफ-सुथरी जगह उपलब्ध कराना।
2. श्रमिकों को समय-समय पर बीमारियों से बचाव के लिए टीके लगवाना।
3. स्वच्छ पेयजल, साफ-सुथरे शौचालय, उद्योग परिसर की साफ-सफाई, उपयुक्त रोशनी, खिड़की तथा कार्यस्थल पर तापमान नियन्त्रित करना।
4. श्रमिकों का मशीनों एवं कच्चे माल के बारीक कणों से बचाव।
5. उन्हें उचित हवा-रोशनी वाला मकान प्रदान करना।
तालिका-1
विभिन्न आयु-समूहों में दस प्रमुख बीमारियों से भारत में होने वाली मौतों का प्रतिशत, 1993
आयु समूह | एक वर्ष से कम | एक वर्ष-चार वर्ष | 5 वर्ष से 14 वर्ष | 15 वर्ष से ऊपर | कुल | |||||||||||
लिंग | पु. | म. | कुल | पु. | म. | कुल | पु. | म. | कुल | पु. | म. | कुल | पु. | म. | कुल | |
1. | एस्थमा और ब्रानकाइटिस | 2.1 | 2.6 | 2.3 | 1.4 | 1.4 | 1.4 | 0.5 | 1.3 | 0.8 | 96.0 | 94.7 | 95.5 | 100 | 100 | 100 |
2. | हार्ट-अटैक | 0.3 | 0.2 | 0.2 | 0.2 | 0.2 | 0.2 | 0.6 | 0.7 | 0.7 | 98.9 | 98.9 | 98.9 | 100 | 100 | 100 |
3. | न्यूमोनिया | 56.9 | 51.5 | 54.2 | 20.8 | 26.8 | 23.7 | 9.1 | 9.8 | 9.4 | 13.2 | 11.9 | 12.7 | 100 | 100 | 100 |
4. | फेफड़े में ट्यूबरक्यूलोसिस | 0.8 | 0.5 | 0.7 | 1.1 | 0.9 | 1.1 | 1.1 | 3.8 | 2.0 | 97.0 | 94.8 | 96.2 | 100 | 100 | 100 |
5. | कैंसर | 0.2 | 0.2 | 0.2 | 0.8 | 0.7 | 0.8 | 2.0 | 2.4 | 2.2 | 97.0 | 96.7 | 96.8 | 100 | 100 | 100 |
6. | एनीमिया | 15.1 | 15.2 | 15.1 | 13.6 | 15.2 | 14.5 | 7.0 | 8.2 | 7.7 | 64.3 | 61.4 | 62.7 | 100 | 100 | 100 |
7. | प्रीमेच्युरिटी | 100.0 | 100.0 | 100.0 | - | - | - | - | - | - | - | - | - | 100 | 100 | 100 |
8. | पेरालिसिस | 0.4 | 0.5 | 0.5 | 1.1 | 0.8 | 0.9 | 1.5 | 1.6 | 1.5 | 97.0 | 97.1 | 97.1 | 100 | 100 | 100 |
9. | ग्रेस्ट्रोएण्टरिटिस | 18.5 | 14.9 | 16.5 | 19.7 | 20.0 | 19.8 | 13.3 | 13.2 | 13.2 | 48.5 | 51.9 | 50.1 | 100 | 100 | 100 |
10. | मोटर यान दुर्घटना
| - | 0.6 | 0.2 | 3.2 | 9.9 | 4.8 | 9.3 | 20.5 | 12.0 | 90.1 | 69.0 | 83.0 | 100 | 100 | 100 |
पु.=पुरुष, म.=महिला स्रोतः- स्टेटिस्टिक्स ऑन चिल्ड्रन इन इंडिया, 1996, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक कोऑपरेशन एण्ड चाइल्ड डेवेलपमेन्ट, नई दिल्ली, पृष्ठ क्र. 74 |
इसके अलावा औद्योगिक श्रमिकों को पौष्टिक भोजन ग्रहण करने हेतु प्रेरित किया जाना चाहिए एवं यदि आवश्यक हो तो उनके लिये प्रशिक्षण कक्षाएँ भी आयोजित की जानी चाहिए।
चिकित्सकीय अध्ययनों के अनुसार एक मध्यम एवं भारी कार्य करने वाले पुरुष को 475 ग्राम अनाज, 80 ग्राम दाल, 125 ग्राम हरी सब्जियाँ, 75 ग्राम कंदमूल, 75 ग्राम अन्य सब्जियाँ, 30 ग्राम फल, 40 ग्राम चिकनाई, 40 ग्राम गुड़ तथा 400 ग्राम दूध प्रतिदिन ग्रहण करना चाहिए।
एक महिला श्रमिक को प्रतिदिन 350 से 475 ग्राम अनाज, 70 ग्राम दाल, 125 ग्राम हरी सब्जियाँ, 75 ग्राम कंदमूल, 75 ग्राम अन्य सब्जियाँ, 30 ग्राम फल, 200 ग्राम दूध, 40 ग्राम चिकनाई तथा 30 ग्राम गुड़ ग्रहण करना चाहिए।
पंचवर्षीय योजनाओं में स्वास्थ्य पर व्यय
पंचवर्षीय योजनाएँ | कुल योजना राशि (करोड़ रुपये में) | स्वास्थ्य सेवाओं पर व्यय | प्रतिशत |
प्रथम | 1960.00 | 65.20 | 3.30 |
द्वितीय | 4672.00 | 140.00 | 3.00 |
तृतीय | 8576.50 | 225.90 | 2.60 |
चतुर्थ | 13778.80 | 335.50 | 2.10 |
पंचम | 39426.20 | 760.80 | 1.90 |
षष्ठम | 97500.00 | 1821.00 | 1.86 |
सप्तम | 1,80,000.00 | 3392.89 | 1.88 |
अष्टम | 434100.00 | - | 1.7* |
* योजना के प्रथम चार वर्षों में इसी दर पर व्यय। |
भारत की पंचवर्षीय योजनाओं पर नजर डालें तो पता चलता है कि प्रथम पंचवर्षीय योजना में स्वास्थ्य पर 65.20 करोड़ रुपये व्यय किए गए थे (योजना का 3.3 प्रतिशत) जोकि सातवीं पंचवर्षीय योजना में बढ़कर 3392.89 करोड़ रुपये हो गए (योजना का 1.88 प्रतिशत)।
मात्र सुझावों एवं योजनाओं से इस समस्या का समाधान सम्भव नहीं है। इसके लिए आवश्यक है दृढ़ इच्छाशक्ति और विश्वास की तथा योजनाओं को ईमानदारी से क्रियान्वयित करने की।
(लेखक सारनी- बैतूल, मध्य प्रदेश के शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्राध्यापक हैं।)