उत्तर बिहार में बाढ़ प्रतिवर्ष आने वाली आपदा है, जो हजारों लोगों व पशुओं पर कहर ढाती है तथा लाखों की सम्पति को भारी नुकसान पहुंचाती है। उत्तर बिहार में इस आपदा के आने का कारण सिर्फ मानवकृत अव्यवस्था है। सम्बन्धी गंभीर समस्याओं का हल नहीं निकल पाया है। भारत के मानवकृत व प्राकृतिक आपदाओं में उत्तर बिहार की बाढ़ इस श्रेणी में सबसे पुरानी समस्या होने के बावजूद जस की तस बनी हुई है।
उत्तर बिहार की पृष्टभूमि
उत्तर बिहार आठ मुख्य नदियों का क्रीड़ा स्थल है - घाघरा, गंडक, बुढ़ी गंडक, बागमती, कमला, भुतही बलान, कोसी और महानन्दा। ये सभी नदियां गंगा में जाकर मिलती हैं। ऐसा अंदाजा लगाया गया है कि भारत के कुल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का 16.5 प्रतिशत बिहार में है जबकि भारत की बाढ़ प्रभावित 22.1 प्रतिशत आबादी बिहार राज्य के जलौढ क्षेत्र में रहती हैं। जनगणना 2001 के अनुसार बिहार की कुल आबादी 8 करोड़ 28 लाख है जो भारत की कुल आबादी का 8.06 प्रतिशत है। बिहार में जनसंख्या का घनत्व 880 प्रतिवर्ग किलामीटर है, जबकि हमारे देश की जनसंख्या का घनत्व औसतन 324 वर्ग किलोमीटर है।
बिहार राज्य भौगोलिक दृष्टि से भारत का सबसे अत्याधिक बाढ़ प्रभावित राज्य है। बिहार के कुल भौगोलिक क्षेत्र 94 लाख 20 हजार हेक्टेयर में से 68 लाख 80 हजार हेक्टेयर क्षेत्र बाढ़ प्रभावित है जो कुल बाढ़ प्रभावित इलाके का 73.3 प्रतिशत है। उत्तर बिहार के कुल 58 लाख 50 हजार क्षेत्र में से 44 लाख 50 हजार हेक्टेयर क्षेत्र बाढ़ प्रभावित है जिसका मतलब यह हुआ कि उत्तर बिहार का 77 प्रतिशत हिस्सा बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित है।
बिहार के कुल 38 जिलों में से 18 जिलें प्रतिवर्ष बाढ़ के चपेट में आते हैं जिससे लाखों जानमाल का नुकसान होता है। वे जिलें हैं - सुपौल, दरभंगा, भागलपुर, पश्चिमी चम्पारन, पूर्वी चम्पारन, मुज्जफरपुर, सीतामढ़ी, खगड़िया, शिवहर, मधुबनी, अररिया, सहरसा, समस्तीपुर, मधेपुरा, किशनगंज, कटिहार, बेगुसराय व पूर्णिया।