उत्तराखंड हिमालय में जलवायु परिवर्तन का अध्ययनः प्राचीन वर्षा के बदलते रुझान

Submitted by RuralWater on Sat, 03/07/2020 - 12:40
Source
राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, रुड़की, उत्तराखंड, भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान, देहरादून

 उत्तराखंड हिमालय में जलवायु परिवर्तन उत्तराखंड हिमालय में जलवायु परिवर्तन

सारांश

जलवायु परिवर्तन की विषय वस्तु अपने आप में अत्यंत विस्तृत है, परन्तु इस क्षेत्र में वर्षा के बदलते रुझान उत्पादन व चरम (extreme) घटनाओं द्वारा जनित जल सम्बन्धी आपदाएं प्रभावित होती हैं। वर्षा के रुझानों का अनुसन्धान जलवायु की परिवर्तशीलता पर होने वाले प्रभावों व किसी क्षेत्र के जल संसाधनों में आने वाले परिवर्तन के मूल्यांकन के लिए अत्यावश्यक है। उत्तराखंड भारतवर्ष के उत्तरी भाग का एक राज्य हैं। इसको प्रायः देवभूमि के नाम से संबोधित किया जाता है क्योंकि सम्पूर्ण राज्य में जगह जगह हिन्दू मंदिर व तीर्थस्थान पाए जाते हैं। हिंदुत्व साहित्य में उदवतदो महत्त्वपूर्ण पवित्र नदियों का यहां पर उद्गम स्थल है जो की गंगा व गंगोत्री तथा यमुना व यमुनोत्री है। कुल 13 जिलों सहित किमी है जिसमें से 93% पर्वतीय भाग है व कुल 65% वन क्षेत्र है। राज्य का उत्तरी भाग अधिकार हिमालयी चोटियों व हिमनदों से भरा हुआ है। जून 2013 में कुछ दिनों तक भारी अतिवृष्टि की वजह से जिनको संभावित रूप से मृत माना जा सकता है। प्रस्तुत अध्ययन मे लम्बी अवधि (1901 से 2013) के gridded, 0.25 डिग्री, दैनिक वर्षा के आंकड़ों का उपयोग किया गया है। दस ग्रिड स्थलों (5 गढ़वाल व 5 रुद्रपुर पर वर्षा के दैनिक आंकड़ो का 113 सालों (1901-2013) के लिए विश्लेषण और प्रसंस्करण किया गया है। रुझानों का विश्लेषण parameteric (regression analysis) एवं नॉनu paraameteric (Mann-Kendall (MK) स्टेटिस्क्सि द्वारा किया गया। रिग्रेशन व MK टेस्ट के आधार पर बहुत से स्थलों पर वर्षा में उतरते व बढ़तें हुए रुझानों के अलावा विसंगतियां भी विश्लेषण से प्राप्त हुए। अंत में यह निष्कर्ष निकलता है कि बहुत से variabls में सांख्यिकीय रूप से पिछले 11 दशकों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं।

Abstract

The subject area of climate change is vast, but the changing pattern of rainfall is a topic within this field that deserves urgent and systematic attention, since it affects the availability of freshwater, food production and the occurrence of water related disasters triggered by extreme events. The detection of trends in rainfall is essential for the assessment of the impacts of climate variability and change on the water resources of a region. Uttarakhand is a state in the northern part of India. It is often referred to as the "Land of the Gods" due to the many holy Hindu temples and pilgrimage centres found throughout the state. Two of the most important rivers in Hinduism originate in the region, the Ganga at Gangotri and the Yamuna at Yamunotri. The state is divided into two divisions, Garhwal and Kumaon, with a total of 13 districts. Uttarakhand has a total area of 53,484 km², of which 93% is mountainous and 65% is covered by forest. Most of the northern part of the state is covered by high Himalayan peaks and glaciers. In June 2013, several days of extremely heavy rain caused devastating floods in the region, resulting in more than 5000 people missing and presumed dead. The present study aims to determine trends in the annual, seasonal and monthly rainfall over Uttarakhand State. Long term (1901-2013) gridded daily rainfall data at 0.25 deg grid have been used. Daily rainfall data at ten grid centre locations (five each in Garhwal and Kumaon divisions) in the vicinity of Haridwar, Tehri, Uttarkashi, Rudraprayag, Joshimath, Almora, Bageshwar, Munsiyari, Pithoragarh and Rudrapur have been processed and analysed for a period of 113 years (1901-2013). Historical trends in daily rainfall have been examined using parametric (regression analysis) and non-parametric (Mann-Kendall (MK) statistics). On the basis of regression and MK test, rising and falling trend in rainfall and anomalies at various stations have been analysed. The result shows that many of these variables demonstrate statistically significant changes occurred in last eleven decades.

परिचय

पृथ्वी की जलवायु किसी भी कालखंड में स्थिर नहीं रही है। जलवायु परिवर्तन और जलविज्ञानीय तंत्र पर इसके प्रभाव सम्पूर्ण विश्व के जल संसाधनों पर खतरे कि तरह मंडराते रहे हैं। जलवायु में परिवर्तनशीलता के कई प्राकृतिक कारण हैं जैसे कि सूर्य द्वारा उत्सर्जित उर्जा के परिमाण में होने वाले परिवर्तन, सूर्य व पृथ्वी के मध्य दूरी में होने वाले परिवर्तन, ऊपरी वातावरण में ज्वालामुखीय प्रदूषण और ग्रीन हाउस गैसों कि उपस्थिति आदि (ब्रस्सयूर और रोएच्क्नेर, 2005; स्काफ्फेता एंड वेस्ट, 2005)। जलवायु व् मानवीय प्रभावों को जलवायु-विज्ञानों साहित्य में ‘‘फोर्सिंग्स्स’’ कहते हैं जिसके कारण वातावरण की विकिरण ऊर्जा में बदलाव आते हैं इसके ऊर्जा संतुलन को बनाए रखने के प्रयास में पृथ्वी गर्म व ठंडी होती है। धनात्मक फोर्सिंग्स के कारण पृथ्वी गर्म होती है व ऋणात्मक फोर्सिंग्स के कारण ठंडी। इनमें से एक फोर्सिंग्स ग्रीन हाउस गैसों से प्रेरित है, जो कि पृथ्वी की ऊर्जा संतुलन में इन्फ्रा रेड विकिरण को सोखकर बदलाव लाता है अन्यथा यह विकिरण अन्तरिक्ष में चला जाता। CO2, CH4 नाइट्रस ऑक्साइड, ट्रोपोस्फेरिक ओजोन, CFCS और जल वाष्प मुख्य ग्रीन हाउस गैस हैं। जल वाष्प के सिवाय सभी ग्रीन हाउस गैस कि सांद्रता मानवीय क्रिया कलापों पर निर्भर करती है। जो अन्य फोर्सिंग्स हैं उसमें रिफ्लेक्टिव एरोसोल्स (ज्यादातर जीवश्मीय इंधन के जलने से उत्पन्न सल्फेट के कण), काले कार्बन कण, पृथ्वी कि सतह के परिवर्तन, सौर-उत्सर्जन में बदलाव, और वातावरण के तापमान में बदलाव के कारण बादलों के आवरण में परिवर्तन शामिल हैं (PCC 2013)। वर्षण, विकिरण, तापमान एवं धारा का जल प्रवाह पारिस्थितिकी तंत्र (इकोसिस्टम) को प्रभावित करने वाले महत्त्वपूर्ण मौसमीय कारक हैं। जलवायु परिवर्तन के कठिन प्रक्रिया को समझना और इस समस्या से निबटने के लिए समाज को प्रशिक्षित करना वैज्ञानिक समुदाय के लिए एक चुनौती है। वर्षा का बदलता पैटर्न तत्काल और व्यवस्थित ध्यान देने योग्य है क्योंकि यह खाद्य आपूर्ति की उपलब्धता को प्रभावित करेगा (डोरे, 2005) व इसके अलावा इसके कारण एक्सट्रीम इवेंट्स के कारण जल सम्बन्धी आपदाओं का आगमन इसी वजह से होता है। वर्षण वर्षाजल प्रणाली के लैंड फेज का एक प्रमुख प्रेरक बल है, और इसकी पद्धतिओं में परिवर्तन जल संसाधनों पर सीधा प्रभाव डाल सकता है। क¨ई भी अतिवृष्टि व कम वर्षा या वर्षा के वितरण में परिवर्तन कालिक व स्थानिक रन ऑफ के वितरण, मृदा नमी, भू जल भण्डारण को प्रभावित करेंगे तथा बाढ़ व सूखे कि आवृत्ति में परिवर्तन करेंगे।

दक्षिणी पश्चिमी मानसून, जो कि लगभग देश में कुल 80% वर्षा लाता है ताजे जल व सिंचाई जल की उपलब्धता हेतु अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। भारतीय रीजन के ऊपर जलवायु परिवर्तन, विशेषतः दक्षिणी पश्चिमी मानसून का देश के कृषि उत्पादन, जल संसाधन प्रबंधन और समग्र अर्थव्यवस्था पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। IPCC 2013 के अनुसार भविष्य में होने वाले जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि, भूख के खतरे बहुत प्रभावित होंगे और इसके साथ साथ हिमनदों के पिघलने कि गति तीव्र हो जाएगी। जलवायु परिवर्तनों के कारण एशिया के बहुत से नदी बेसिनों में ताजे जल कि उपलब्धता में कमी आने कि सम्भावना है। इस कमी के साथ साथ जनसंख्या वृद्धि और बढ़ते जीवन स्तर का 2050 तक एशिया में लगभग एक बिलियन आबादी पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। बढ़ते हुए हिमनदों के पिघलने के कारण हिमनदों के पिघलने से आने वाली बाढ़ों कि संख्या में वृद्धि होगी, ढाल अस्थिर हो जाएंगे व अंततः हिमनदों के पीछे जाने कि वजह से नदियों में जल प्रवाह कम होगा (IPCC, 2013). लाल (2001) ने भारतीय जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर चर्चा की। गोसाईं व अन्य (2006) ने जल संसाधनों के भारतीय नदी तंत्रों पर जलवायु परिवर्तन प्रभावों को परिमाणात्मक रूप में प्रस्तुत किया।

वैश्विक औसत वर्षा में वृद्धि का अनुमान है, लेकिन क्षेत्रीय और महाद्वीपीय पैमानों पर वृद्धि और कमी दोनों अपेक्षित हैं (IPCC 2007)। भारत में विभिन्न लेखकों द्वारा बारिश के समान रुझान की रिपोर्ट की गई थी (थपलियाल व कुलश्रेष्ठ, 1991; रूपा कुमार व अन्य, 1992; कोठारी व सिंह, 1996; सिन्हा रे व डे, 2003; सिंह व अन्य, 2008अ)। हालांकि भारत में मानसून की वर्षा में लंबी अवधि के दौरान कोई रुझान नहीं पाए गए हैं, विशेषतः सम्पूर्ण भारतवर्ष के स्केल पर, कुछ कुछ स्थानों पर महत्त्वपूर्ण लम्बी अवधि के वर्षा परिवर्तन प्राप्त किए गए हैं (श्रीवास्तव व अन्य. 1998; कुमार व अन्य 2005; कुमार व अन्य, 2009)। भारत में 21 वीं सदी के दौरान विभिन्न वैश्विक जलवायु मॉडल (GCM½) और क्षेत्रीय जलवायु मॉडल (RCM) का उपयोग करके जलवायु परिवर्तन के अनुमानों ने बढ़ते तापमान और बदलते पैटर्न को दिखाया (रूपा कुमार व अन्य, 2006; राजेंद्रन व किटोह, 2008)

पिछले कई दशकों में कई निज व संयुक्त शोध द्वारा जलवायु परिवर्तन के अध्ययन किए गए। रेखीय संबंध वर्षा के रुझान का पता लगाने के लिए उपयोग किए जाने वाले सबसे सामान्य तरीकों में से एक है (हमीद व अन्य, 1997; सिल्वा, 2004)। दोनों पैरामीट्रिक और गैर पैरामीट्रिक परीक्षण व्यापक रूप से प्रवृत्ति अध्ययन के लिए उपयोग किए जाते हैं। गैर parameteric विधि का लाभ ये है कि इसमें केवल स्वतंत्र आंकड़ों कि ज़रुरत होती है व डेटा में आउटलेयर को सहन कर सकते हैं (हमीद व राव, 1998)। समय श्रृंखला में रुझानों का पता लगाने के लिए लोकप्रिय गैर-पैरामीट्रिक परीक्षणों में से एक टेस्ट मान-केंडल टेस्ट है (मान, 1945; केन्डाल, 1955)। इस टेस्ट के दो महत्त्वपूर्ण कारकों में से एक सिग्निफिकेंस लेवल है जो रुझानों कि सामर्थ्य प्रदर्शित करता है और दूसरा ढलान की परिमाण जो रुझानों कि दिशा के साथ साथ परिमाण भी प्रदर्शित करता है (बर्न व एल्नुर, 2002)।

परीक्षण का लाभ यह है कि यह वितरण-मुक्त है, आउटनैच के खिलाफ मजबूत है और कई अन्य आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले परीक्षणों (हेस व अन्य, 2001) की तुलना में अधिक शक्तिशाली है। पिछले दशक में जलवायु परिवर्तन के बहुत से अध्ययन मान-केंडल टेस्ट के अनुप्रयोग द्वारा किए गए हैं। मोदारेस्सा व् सिल्वा (2007) ने ईरान में वर्षा रुझानों का अध्ययन किया: बिर्सन व् अन्य (2005) ने इस टेस्ट के प्रयोग से स्विट्ज़रलैंड में जल प्रवाह रुझानों के अध्ययन किए; शान यू व अन्य (2002) ने ताइवान में जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तनों के प्रभाव के अध्ययन किए। अरोड़ा व अन्य (2005) द्वारा भारतवर्ष में तापमान रुझानों के अध्ययन किए; झांग व अन्य (2005) द्वारा चीन के यांग्तज़े बेसिन के वर्षा, तापमान एवं जल प्रवाह के रुझानों का विश्लेषण किया। मैकबीन व रोवर्स (1998) ने ग्रेट लेक हेतु वर्षण, तापमान, नदी-जल-प्रवाह के ऐतिहासिक रुझानों के ऊपर परिक्षण किए जिसमें रिग्रेशन विश्लेषण व मान-केंडल टेस्ट सांख्यिकी को प्रयोग में लाया गया।

उपरोक्त पृष्ठ भूमि को ध्यान में रखते हुए, वर्तमान अध्ययन को भारत के उत्तराखंड राज्य में वर्षा की प्रवृत्ति का मूल्यांकन करने के लिए किया गया है। अध्ययन के लिए चुना गया उत्तराखंड राज्य हिमालयी क्षेत्र में स्थित है। राज्य के पर्वतीय भाग में गंगा नदी की सहायक नदियों के ऊपर कई बड़े और छोटे हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर स्टेशन बनाए जा रहे हैं। इसलिए जल संसाधनों के समुचित नियोजन और प्रबंधन के लिए इस पहाड़ी राज्य के जल विज्ञान पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को समझना बहुत महत्त्वपूर्ण है। अध्ययन का मुख्य उद्देश्य पिछले 113 वर्षों में राज्य में वर्षा की प्रवृत्ति का निरीक्षण करना था। रेखीय प्रतिगमन विधि और मान-केंडल परीक्षण का उपयोग करके प्रवृत्ति विश्लेषण किया गया है।

अध्ययन क्षेत्र और प्रयुक्त डेटा

उत्तराखंड भारत के उत्तरी भाग में स्थित एक राज्य है। राज्य भर में पाए जाने वाले कई पवित्र हिंदू मंदिरों और तीर्थस्थलों के कारण इसे अक्सर ‘‘देवताओं की भूमि’’ के रूप में जाना जाता है। उत्तराखंड को हिमालय, भाभर और तराई की प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है। यह उत्तर में तिब्बत की सीमा से लगा है; सुदूर-पश्चिमी क्षेत्र के महाकाली क्षेत्र, पूर्व में नेपाल; और भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के दक्षिण और हिमाचल प्रदेश से उत्तर पश्चिम में लगा हुआ है। राज्य को दो प्रभागों, गढ़वाल और कुमाऊं में विभाजित किया गया है, जिसमें कुल 13 जिले हैं। हिंदू धर्म में सबसे महत्त्वपूर्ण नदियों में से दो का उष्म क्षेत्र गंगोत्री में गंगा और यमुनोत्री में यमुना है।

उत्तराखंड का कुल क्षेत्रफल 53,484 वर्ग किमी है, जिसमें से 93% पहाड़ी है और 65% जंगल से घिरा हुआ है। राज्य के अधिकांश उत्तरी भाग उच्च हिमालयी चोटियों और ग्लेशियरों द्वारा कवर किया गया आच्छादित है। उत्तराखंड हिमालय श्रृंखला के दक्षिणी ढलान पर स्थित है,और इसकी जलवायु और वनस्पति ऊंचाई के अनुसार भिन्न-भिन्न होते हैं। उच्चतम ऊंचाई बर्फ और नंगे चट्टान द्वारा आच्छादित है। उनके नीचे, 3,000 और 5,000 मीटर (9,800 और 16,400 फीट) के बीच पश्चिमी हिमालय अल्पाइन झाड़ी और घास के मैदान हैं। शीतोष्ण पश्चिमी हिमालयी उप-अल्पाइन शंकुवृक्ष वन वृक्ष की रेखा के ठीक नीचे उगते हैं। ऊपरी गंगा के मैदानी क्षेत्र नम पर्णपाती जंगलों और सूखने वाले तराई-डुअर सवाना और घास के मैदान स्थानीय स्तर पर उत्तर प्रदेश सीमा के साथ निचले इलाकों को कवर करते हैं, इनको भाभर के नाम से जाना जाता है।

ये तराई के जंगल ज्यादातर कृषि के लिए साफ कर दिए गए हैं, लेकिन अभी कुछ ही स्थान शेष हैं। जून 2013 में, कई दिनों की अत्यंत भारी बारिश के कारण इस क्षेत्र में विनाशकारी बाढ़ आई, जिसके परिणामस्वरूप 5000 से अधिक लोग लापता या मृत हो गए। भारतीय मीडिया में इस बाढ़ को ‘‘हिमालयी सुनामी’’ के रूप में संदर्भित किया गया था।

इस अध्ययन में भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के दस ग्रिड स्थानों (गढ़वाल और कुमाऊँ डिवीजनों में पांच-पांच) हरिद्वार, टिहरी, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, जोशीमठ, अल्मोड़ा, बागेश्वर, मुनस्यारी, पिथौरागढ़ और रुद्रपुर में दैनिक वर्षा के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है। इन स्टेशनों को चित्र 1 में दिखाया गया है जो अध्ययन क्षेत्र, अर्थात् उत्तराखंड राज्य का प्रतिनिधित्व करता है। विश्लेषण 113 वर्ष, 1901 से 2013, तक की अवधि के लिए किया गया है।

 चित्र 1 अध्ययन क्षेत्र चित्र 1 अध्ययन क्षेत्र

कार्य प्रणाली

प्रचलन विश्लेषण

वर्तमान अध्ययन में, दो तरीके अर्थात प्रतिगमन और एमके परीक्षण का उपयोग किया गया है। इनका वर्णन निम्नलिखित वर्गों में किया गया है।

प्रतिगमन मॉडल

प्रवृत्ति का पता लगाने के लिए सबसे उपयोगी पैरामीट्रिक मॉडल में से एक ‘‘सरल रैखिक प्रतिगमन’’ मॉडल है। रैखिक प्रतिगमन की विधि को अवशिष्टों की सामान्यता, निरंतर विचरण, और संबंधों की सच्ची रैखिकता (हेल्स और हर्श, 1992) की मान्यताओं की आवश्यकता होती है। Y के लिए मॉडल (उदाहरण वर्षा) को एक समीकरण फॉर्म द्वारा वर्णित किया जा सकता हैः

Y = at + b (1)

यहाँ पे,

t = समय (वर्ष)

a = ढलान गुणांक;

तथा b= इंटरसेप्ट का लीस्ट स्कुएर एस्टीमेट ढलान गुणांक

हाइड्रोलॉजिक विशेषता में परिवर्तन की वार्षिक औसत दर को इंगित करता है। यदि ढलान शून्य सांख्यिकीय से काफी अलग है, तो यह व्याख्या करना पूरी तरह से उचित है कि समय के साथ वास्तविक परिवर्तन होता है। ढलान का संकेत चर की प्रवृत्ति की दिशा को परिभाषित करता हैः यदि संकेत सकारात्मक है, तो बढ़ रहा है और संकेत नकारात्मक होने पर घटता है।

मान केंडल मॉडल

सरल रैखिक प्रतिगमन विश्लेषण समय-श्रृंखला डेटा में प्रवृत्ति की उपस्थिति का एक प्राथमिक संकेत प्रदान कर सकता है। गैर-पैरामीट्रिक मान-केंडल (एमके) परीक्षण जैसे अन्य तरीकों, जो आमतौर पर हाइड्रोलॉजिकल डेटा विश्लेषण के लिए उपयोग किया जाता है, का उपयोग उन रुझानों का पता लगाने के लिए किया जा सकता है जो मोनोटोनिक हैं लेकिन जरूरी नहीं कि रैखिक। एमके परीक्षण में सामान्यता की धारणा की आवश्यकता नहीं है, और केवल दिशा को इंगित करता है, लेकिन महत्त्वपूर्ण रुझानों का परिमाण नहीं (यूएसजीएस, 2005; हेलसेल और अल, 1992)।

मान-केंडल के एस-स्टेटिस्टिक (मान, 1 9 45; केंडल, 1 9 55) का उपयोग करके किसी भी मात्रा में डेटा का चलन quantify किया जाता है । एमके विधि मानती है कि अनुसंधान के तहत समय श्रृंखला स्थिर, स्वतंत्र और समान संभावना वितरण के साथ रैंडम है (झांग एट अल।, 2005)। एमके परीक्षण को असंबंधित डेटा पर लागू किया जाता है क्योंकि यह बताया गया था कि धारावाहिक सहसंबंध की उपस्थिति से null hypothesis संभावित रूप से गलत अस्वीकृति कि ओर अग्रसर होती है (हेल्सेल और हिर्श, 1992;और वांग, 2002; यू और पिलोन, 2003)।

एमके टेस्ट के लिए कम्प्यूटेशनल प्रक्रिया का वर्णन एडमॉस्की और बुगाडिस (2003) में किया गया है । बता दें कि टाइम सीरीज़ में n डेटा पॉइंट और Ti और Tj डेटा के दो सब-सेट शामिल हैं, जहां i 1]2]3 …… --] n&1 v©j j ¾ i $ 1] i $ 2] i $ 3 ] ------------ nAप्रत्येक डेटा बिंदु T का उपयोग संदर्भ बिंदु के रूप में किया जाता है और सभी Tj डेटा बिंदुओं के साथ तुलना की जाती है जैसेः

वर्तमान अध्ययन में उपयोग किया जाने वाला एमके टेस्ट टेस्ट स्टेटिस्टिक, एस पर आधारित है, जिसे निम्नानुसार परिभाषित किया गया है

Variance को एस-स्टेटिस्टिक द्वारा परिभाषित किया गया है

जहां पर ti i एक्सटेंट तक संबंधों की संख्या को दर्शाता है। समीकरण 4 सिर्फ जब प्रयोग में आती है जब Tied मान होते हैं । टेस्ट सांख्यिकी, Z, की गड़ना निम्न प्रकार की जा सकती है।

जिसमें Zs एक मानक सामान्य वितरण का अनुसरण करता है। समीकरण (5) रिकॉर्ड लंबाई के लिए उपयोगी है जो 10 से अधिक है और यदि toed आंकड़ों की संख्या कम है (केंडल, 1962)। परीक्षण सांख्यिकीय, Zs, का उपयोग प्रवृत्ति के महत्व को मापने के रूप में किया जाता है। वास्तव में, इस परीक्षण सांख्यिकीय का उपयोग null hypothesis का परीक्षण करने के लिए किया जाता है, H0% डेटा में कोई मोनोटोनिक प्रवृत्ति नहीं है। अगर Zs A] Zα @ 2 से अधिक है जहां α चुने गए महत्व स्तर (आमतौर पर 5%] Z 0.025 = 1.96 के साथ) का प्रतिनिधित्व करता है, null hypothesis (शून्य परिकल्पना) को अस्वीकार कर दिया जाता है, जिसका अर्थ है कि प्रवृत्ति महत्त्वपूर्ण है। इस अध्ययन के लिए, सरल प्रतिगमन विश्लेषण तकनीक का उपयोग सांख्यिकीय महत्व के लिए ट्रेंड लाइनों के ढलानों का 5: स्तर पर परीक्षण करने के लिए किया गया था। मान-केंडल प्रवृत्ति परीक्षण प्रक्रिया को आगे माना जाने वाले हाइड्रोलॉजिकल चर के लिए प्रतिगमन विश्लेषण के परिणामों को सत्यापित करने के लिए लागू किया जाता है।

एमके परीक्षण गैर-ऑटो सहसंबद्ध समय श्रृंखला डेटा के मामले में अच्छा है। ऑटो-सहसंबद्ध डेटा के लिए, हैम और राव (1997) द्वारा प्रस्तावित संशोधित मान-केंडल परीक्षण का उपयोग किया गया था, जो autocorrelation की उपस्थिति में मजबूत है। यह Eq (5) द्वारा दिए गए S के संशोधित विचरण पर आधारित है।

अनुशंसित का अनुमानित मान Eq (7) द्वारा दिया गया है।

जहाँ n observations की वास्तविक संख्या है और observatios के रैंकों का autocorrelation function है। Eq (6) द्वारा दिए गए सन्निकटन की सटीकता का n वृद्धि के रूप में सुधार पाया गया था। प्रेक्षणों के रैंक के बीच स्वसंबंध का मूल्यांकन पहले किया जाता है। अवलोकनों के रैंक का मूल्य की गणना, हालांकि, एक उपयुक्त गैर-पैरामीट्रिक ट्रेंड एस्टीमेटर (सेन, 1968) को घटाकर की जानी चाहिए। Eq (5) में गणना की प्रकृति के कारण, जिसमें बड़ी संख्या में terms शामिल हैं, यह पाया गया कि S के अनुमानित विचरण की सटीकता पर महत्त्वहीन मूल्य का प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, इसलिए केवल eq (6) में उपयोग किए जाने वाले महत्त्वपूर्ण मूल्यों का उपयोग किया जाता है।

वर्तमान अध्ययन में, गैर-पैरामीट्रिक मान-केंडल प्रवृत्ति परीक्षण और संशोधित मान-केंडल परीक्षण जैसा कि हैमेड और राव (1997) द्वारा प्रस्तावित किया गया था, को निम्नलिखित वर्गों में वर्णित वार्षिक और मासिक वर्षा में ऐतिहासिक प्रवृत्ति का अध्ययन करने के लिए लागू किया गया था।

डेटा तैयारी

विभिन्न ग्रिड/स्टेशनों पर उपर्युक्त अवधि के लिए उपलब्ध दैनिक हाइड्रोमौसम संबंधी आंकड़ों का उपयोग वार्षिक, मौसमी और वर्षा की मासिक श्रृंखला तैयार करने के लिए किया गया हैः

1) वार्षिकः दैनिक डेटा का उपयोग करते हुए, विभिन्न ग्रिड/स्टेशनों पर सभी चर के लिए औसत विश्लेषण के लिए औसत वार्षिक डेटा की श्रृंखला तैयार की गई है।

2) मौसमीः चार प्रकार की औसत मौसमी डेटा श्रृंखला तैयार की गई है। डेटा को भारत के प्रचलित जलवायु के आधार पर चार मौसमों में विभाजित किया गया था, अर्थात् प्री-मानसून (मार्च-मई), मानसून (जून-अगस्त), मानसून (सितंबर-नवंबर) और सर्दियों (दिसंबर-फरवरी)।

3) मासिकः दैनिक डेटा का उपयोग करते हुए, विभिन्न ग्रिड या स्टेशनों पर सभी चर के लिए औसत विश्लेषण के लिए औसत मासिक डेटा की श्रृंखला तैयार की गई है।

रुझान विश्लेषण और परिणाम

वर्तमान अध्ययन के तहत, दस ग्रिड केंद्र स्थानों (इसके बाद स्टेशनों के रूप में संदर्भित) के लिए आईएमडी से दैनिक वर्षा के अनुमानित आंकड़ों का उपयोग करके सभी दस स्टेशनों के लिए मासिक, मौसमी और वार्षिक वर्षा श्रृंखला तैयार की गई थी। फिर, मान-केंडल परीक्षण करने से पहले यादृच्छिकता (randomness), निरंकुशता (autocorrelation) और दीर्घकालिक दृढ़ता के लिए समय श्रृंखला की जाँच की गई। ट्रेंड का पता लगाने के लिए मान-केंडल टेस्ट के साथ कोई autocorrelation नहीं किए जाने की समय श्रृंखला का विश्लेषण किया गया और यदि डेटा में महत्त्वपूर्ण autocorrelation पाया गया, तो समय श्रृंखला को संशोधित मान-केंडल परीक्षण के साथ परीक्षण किया गया जैसा कि हमीद और राव (1997) द्वारा सुझाया गया था। इस अध्ययन में, दस ग्रिड बिंदुओं के लिए मासिक, मौसमी और वार्षिक वर्षा (यहां स्टेशनों के रूप में संदर्भित) का विश्लेषण किया गया था जैसा कि गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र के लिए तालिका 1 और तालिका 2 में दिया गया है। चयनित स्टेशनों में डाटा की प्रत्येक की लंबाई 113 साल है। सभी स्टेशनों के लिए रैखिक प्रतिगमन विश्लेषण किया गया है। सभी स्टेशनों के लिए वार्षिक और मानसूनी वर्षा के रुझानों के लिए चित्र 2 में चित्रमय प्रस्तुतियों को दिखाया गया है। उत्तराखंड राज्य में वार्षिक और मौसमी स्थानिक रुझान चित्र 3 में दिखाए गए हैं।

तालिका 1 वर्षा के आंकड़ों के लिए विभिन्न मौसमों में रुझान (गढ़वाल क्षेत्र)

अवधि

MKZस्टेटिस्टिक्स

जोशीमठ

रुद्रप्रयाग

उत्तरकाशी

टिहरी

हरिद्वार

प्रीमानसून

-1.01

-0.5

-0.26

-0.19

-0.33

मानसून

+ 2.92

+2.47

-0.32

-0.59

+2.81

पोस्ट-मानसून

+0.72

-0.17

-0.10

-0.05

+0.50

सर्दी

-0.36

+0.62

-0.87

-0.07

-2.25

वार्षिक

+2.27

+3.05

-0.07

-0.37

+2.78

 

तालिका 2 वर्षा के आंकड़ों के लिए विभिन्न मौसमों में रुझान (कुमाऊं क्षेत्र)

अवधि

MKZस्टेटिस्टिक्स

अल्मोड़ा

बागेश्वर

पिथौरागढ़

(हैश) द्दैर

मुनस्यारी

प्री मानसून

-0.62

-0.75

+0.52

+0.17

-0.22

मानसून

+2.00

+1.35

+0.38

+1.53

+2.27

पोस्ट मानसून

-0.41

+0.08

-0.02

+1.09

+0.90

सर्दी

-1.65

-0.06

-0.22

-1.67

+1.12

वार्षिक

+2.05

+1.73

+0.58

+1.73

+2.63

वर्षा के रुझान के वार्षिक विश्लेषण (तालिका 1 और 2) पांच वर्षा स्टेशनों पर, गढ़वाल क्षेत्र में तीन और कुमाऊँ क्षेत्र में दो, महत्त्वपूर्ण वृद्धि (5% significant स्तर पर) दिखाता है। मॉनसून वर्षा भी इसी तरह के रुझानों का अनुसरण करती है। हालांकि, मासिक वर्षा विश्लेषण राज्य के कुमाऊं क्षेत्र के बागेश्वर और पिथौरागढ़ स्टेशनों पर अप्रैल के महीने में वर्षा की बढ़ी प्रवृत्ति को दर्शाता है। अगस्त के महीने के दौरान गढ़वाल क्षेत्र के चमोली स्टेशन पर सांख्यिकीय रूप से बढ़ती वर्षा की प्रवृत्ति देखी गई है। उपरोक्त रुझानों के अलावा प्रतिगमन विश्लेषण (regression एनालिसिस) के अनुसार, विभिन्न समय अवधि के दौरान सभी स्टेशनों में वर्षा के रुझान घटते के रहने के साथ साथ बढ़ते भी हैं लेकिन ऐसी प्रवृत्ति सांख्यिकीय रूप से महत्त्वपूर्ण नहीं है।

 चित्र 2. सभी स्टेशनों के लिए वार्षिक और मानसूनी वर्षा में रुझान चित्र 2. सभी स्टेशनों के लिए वार्षिक और मानसूनी वर्षा में रुझान   चित्र 3 वार्षिक वर्षा के 113 वर्षो (1901-2013) के रुझान चित्र 3 वार्षिक वर्षा के 113 वर्षो (1901-2013) के रुझान

निष्कर्ष

हिमालय श्रेणी जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। वर्षा में कोई भी परिवर्तन धारा के डाउनस्ट्रीम बहाव क¨ प्रभावित करता है। हिमालयी नदियों ने हाल के दिनों में हिमनदों के पीछे हटने में तेजी देखी है। ये events उत्तराखंड राज्य में जलवायु परिवर्तन के मजबूत संकेत हैं। हालांकि, मानवजनित कारकों के प्रभाव को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। वर्तमान अध्ययन सरल रेखीय प्रतिगमन (simple लीनियर रिग्रेशन) और गैर-पैरामीट्रिक मान-केंडल प्रवृत्ति परीक्षण का उपयोग करते हुए विश्लेषण हैं जो दैनिक वर्षा डेटा पर आधारित है। यह पिछले 113 वर्षों के दौरान कुछ स्टेशनों पर वर्षा में सांख्यिकीय रूप से महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों को प्रदर्शित करता है।

विश्लेषण से पता चलता है कि कुछ स्टेशनों पर वार्षिक और मानसून की वर्षा में काफी वृद्धि हुई है, हालांकि, कुछ स्टेशनों पर कुछ महीनों के लिए मासिक वर्षा में बढ़ती प्रवृत्ति देखी गई है। इस अध्ययन में देखे गए परिणाम क्षेत्र के स्थानीय जलवायु पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का पता लगाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इसके अलावा, उत्तराखंड राज्य की वर्षा को और अधिक वर्षा स्टेशन डेटा और भविष्य के लिए जल संसाधनों की योजना बनाने और प्रबंधित करने के लिए जलवायु परिवर्तन के संभावित प्रभाव के साथ विस्तार से समझने की आवश्यकता है।

 

Reference

• Barros, A. P., Kim, G., Williams, E. and Nesbitt, S. W., 2004, Probing orographic controls in the Himalayas during the monsoon using satellite imagery, Natural Hazards and Earth System Science, 2004, 4, 1–23

• Bown, F., and Rivera, A., 2007, Climate changes and recent glacier behaviour in the Chilean Lake District, Global and Planetary Change, 2007, doi:10.1016/j.gloplacha.2006.11.015

• Burn, D. H., and Elnur, M. A. H., 2002, Detection of hydrological trends and variability, Journal of Hydrology, Vol. 255, pp. 107-122

• Burns D. A., Klaus, J., McHale, M. R., 2007, Recent climate trends and implications for water resources in the Catskill Mountain region, New York, USA, Journal of Hydrology, Vol. 336, pp. 155– 170

• Burn, D. H., Cunderlik, J. M., & Pietroniro, A. (2004) Hydrological trends and variability in the Liard river basin. Hydrol. Sci. J., 49, 53–67

. • Carter, T.R., M. Hulme, J.F. Crossley, S. Malyshev, M.G. New, M.E. Schlesinger, and H. Tuomenvirta, 2000, Climate Change in the 21st Century - Interim Characterizations based on the New IPCC Emissions Scenarios, The Finnish Environment 433, Finnish Environment Institute, Helsinki, 148 pp.

• Diaz, H. F. and Bradley, R. S., 1997, Temperature variations during the last century at high elevation sites, Climatic Change, Vol. 36, pp. 253–279

• Dore, M.H.I., 2005. Climate change and changes in global precipitation patterns: What do we know? Environmental International. 31, 1167-1181.

• Douglas, E. M., Vogel, R. M. & Knoll, C. N. (2000) Trends in flood and low flows in the United States: impact of spatial correlation. J. Hydrol. 240, 90–105.

• Dye, D.G., 2002: Variability and trends in the annual snow-cover cycle in Northern Hemisphere land areas, 1972–2000. Hydrolog. Process, 16, 3065–3077

. • Gangwar, S., 2006, Climate Change Influences On Hydrological Elements, M. Tech Thesis (unpublished), Department of Hydrology, IIT Roorkee, India

• Gosain, A.K., Rao, S. and Basuray, D. (2006) Climate change impact assessment on hydrology of Indian river basins. Current Science, 90, 346-353.

• Hamed, K. H., and Rao, A. R., 1998, A modified Mann-Kendall trend test for autocorrelated data. Journal of Hydrology, Vol. 204, pp. 182 196

• Hameed, T., Marino, M.A., De Vries, J.J., and Tracy, J.C., 1997, Method for trend detection in climatological variables, Journal of Hydrologic Engineering, Vol. 4, pp. 154–160

• Helsel, D.R. and Hirsch, R.M., 1992, Statistical Methods in Water Resources, Elsevier, Amsterdam, pp. 522

• Hess, A., Iyer, H., Malm, W., 2001, Linear trend analysis: a comparison of methods, Atmos. Environment, Vol. 35, pp. 5211–5222

• Houghton, J. T., Y. Ding, D.J. Griggs, M. Noguer, P.J. van der Linden & D. Xiaosu (eds.) (2001), Climate Change 2001: The Scientific Basis, Cambridge, Cambridge University Press

• Hirsch, R.M., Helsel, D.R., Cohn, T.A. & Gilroy, E.J. (1993) Statistical treatment of hydrologic data. In Handbook of Hydrology. Maidment D.R. (ed). McGraw-Hill, New York; 17.1-17.52.

• Helsel, D.R. & Hirsch, R.M. (1992). Statistical Methods in Water Resources. Elsevier, New York.

• Hulme, M., 1999, Global Warming, Progress in Physical Geography, Vol. 23, pp. 283-291 • ICIMOD, 2007, Why should we be concerned about climate change and glacial melting?, ICIMOD press release, available online at http://www.icimod.org/home/news/news.content.php?nid=61 , (accessed on July 3, 2007)

• IPCC (Intergovernmental Panel on Climate Change), 2001, In: Houghton, J.T. et al. (Eds.), The Third Assessment Report of Working Group I of the Intergovernmental Panel on Climate Change (IPCC), Cambridge Univ. Press, New York, PP. 881

• Jones, P.D., K.R. Briffa, T.P. Barnett, and S.F.B. Tett, 1998, High-resolution palaeoclimatic records for the last millennium: interpretation, integration and comparison with GCM control-run temperatures, The Holocene Vol. 8, pp. 455-471

• Kapoor, R, 2007, Himachal Pradesh Certainly Need-A Disaster Mitigation Action Plan Functional at Lowest Level, available online at http://123himachal.com/dharamsala/links/rakesh.htm, (accessed on June 2, 2007)

• Kendall, M.G., 1955. Rank Correlation Methods, Griffin, London

• Kulkarni, A. and von Storch, H., 1995, Monte Carlo experiments on the effect of serial correlation on the Mann-Kendall test of trend, Meteorol. Z. Vol. 4, No. 2, 82–85

• Kulkarni, A. V., Rathore, B. P., Mahajan, S., and Mathur, P., 2005, Alarming retreat of Parbati glacier, Beas basin, Himachal Pradesh, Current Science, Vol. 88, No. 11, available online at http://www.ias.ac.in/currsci/jun102005/1844.pdf, (accessed on June 4, 2007)

• Lal, M. (2001) Climatic change- Implications for India’s water resources. J. of Indian Water Resources Society, 21, 101-119.

• Mann, H.B., 1945, Nonparametric tests against trend, Econometrica, Vol. 13, pp. 245-259

• McBean, E. and H. Motiee, Assessment of impacts of climate change on water resources- a case study of the Great Lakes of North America, Hydrol. Earth Syst. Sci. Discuss., 3, 3183-3209, 2006 (www.hydrol-earth-systm-sci-discusss.net/3/318/2006)

• Modarresa, R. and Silva, V. P. R., 2007, Rainfall trends in arid and semi-arid regions of Iran, Journal of Arid Environments, Vol. 70, pp. 344–355

• Overland J.E., D. B. Percival and H. O. Mofjeld (2006), `Regime Shifts and Red Noise in the North Pacific,' Deep-Sea Research I, 53, no. 4, pp. 582-8.

• Rajendran, K., & Kitoh, A. (2008). Indian summer monsoon in future climate projection by a super high-resolution global model. Current Science, 95: 1560-1569.

• Rupa Kumar, K., Pant, G.B., Parthasarathy, B., & Sontakke, N.A. (1992). Spatial and sub seasonal patterns of the long term trends of Indian summer monsoon rainfall. International Journal of Climatology, 12: 257-268.

• Rupa Kumar, K., Sahai, A.K., Kumar, K.K., Patwardhan, S.K., Mishra, P.K., Revadekar, J.V., Kamala, K., & Pant, G. B. (2006). High-resolution climate change scenarios for India for the 21st century. Current Science, 90: 334-345.

• Salas, J.D. (1993). Analysis and modeling of hydrologic time series. In Handbook of Hydrology. Maidment DR (ed). McGraw-Hill, New York; 19.1-19.72.

• Sen, P.K. (1968). Estimates of the regression coefficient based on Kendall's tau. Journal of the American Statistical Association, 63:1379-1389.

• Singh, P., Kumar, V., Thomas, T. & Arora, M. (2008a). Changes in rainfall and relative humidity in different river basins in the northwest and central India, Hydrological Processes. 22, pp. 2982-2992.

• Singh, P., Kumar, V., Thomas, T. & Arora, M. (2008b). Basin-wide assessment of temperature trends in the north-west and central India. Hydrol. Sci. J., 53(2): 421-433.

• Sinha Ray, K.C. & De, U.S. (2003). Climate change in India as evidenced from instrumental records. WMO Bulletin, 52: 53-58.

• Srivastava, H.N., Sinha Ray, K.C., Dikshit, S.K. & Mukhopadhaya, R.K. (1998). Trends in rainfall and radiation over India. Vayu Mandal, 41-45.

• Scafetta, N., and West, B.J., 2005, Estimated solar contribution to the global surface warming using the ACRIM TSI satellite composite. Geophysical Research Letters 32, L18713, doi:10.1029/ 2005GL023849.

• Shan Yu, P., Yang, T. C. and Wu, C. K., 2002, Impact of climate change on water resources in southern Taiwan, Journal of Hydrology, Vol. 260, pp. 161-175

• Sharma, D. D., 2007, Floods and Flash Floods in Himachal Pradesh: A Geographical Analysis, available online at http://www.nidm.net/idmc/Proceedings/Flood/B2-%206.pdf, (accessed on June 2, 2007)

• Shrestha, A. B., Wake, C. P., Mayewski, P. A. and Dibb, J. E., Maximum temperature trends in the Himalaya and its vicinity: An analysis based on temperature records from Nepal for the period 1971–94. J. Climate, 1999, 12, 2775–2786.

• Thapliyal, V. & Kulshreshtha, S.M. (1991). Climate changes and trends over India. Mausam, 42: 333-338.

• WAPCOS, 2007, Environmental and Socio-Economic Baseline Setup, available online at http://sjvn.nic.in/Society-Environ/Chap-4%20revised_4.pdf, (accessed on April 06, 2007)

• Wikipedia, 2006, Chenab River, Available online at: http://en.wikipedia.org/wiki/Chenab_River, (accessed on 18 August, 2006)

• Yatagai A, Arakawa O, Kamiguchi K, Kawamoto1 H, Nodzu1 M. I., and Hamada A., 2009, “A 44-Year Daily Gridded Precipitation Dataset for Asia Based on a Dense Network of Rain Gauges”, SOLA, 2009, Vol. 5, 137-140, doi:10.2151

• Yue, S. and Pilon, P., 2003, Interaction between deterministic trend and autoregressive process, Water Resources and Research, Vol. 39, No. 4, doi:10.1029/ 2001WR001210.

• Yue, S. and Wang, C.Y., 2002, Applicability of prewhitening to eliminate the influence of serial correlation on the mann-kendall test, Water Resources and Research, Vol. 38, 6, doi:10.1029/2001WR000861.

• Yue, S., Pilon, P., and Cavadias, G., 2002, Power of the Mann-Kendall and Spearman’s rho tests for detecting monotonic trends in hydrological series, Journal of Hydrology, Vol. 259, pp. 254–271

• Yue, S., Pilon, P. & Phinney, B. (2003). Canadian streamflow trend detection: impacts of serial and cross-correlation. Hydrol. Sci. J., 48, 51–63.

• Zhang, Q., Jiang, T., Gemmer, M., and Becker, S., 2005, Precipitation, temperature and runoff analysis from 1950 to 2002 in the Yangtze basin, China, Hydrological Sciences, Vol. 50, No. 1, pp. 65-79.