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नवभारत टाइम्स, 02 जून 2012
पवन चक्की (विंडमिल) वैकल्पिक ऊर्जा का बेहतर स्रोत है, लेकिन इसका सीधा लाभ आम लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है। वजह है कि पवन चक्की बनाने वाली कंपनियों के हाथों में ही इसका संचालन रह गया है। कंपनियां पठारी इलाकों में पवन चक्की स्थापित कर बिजली तैयार कर रही हैं और इसे बेचकर लाभ कमा रही हैं। महाराष्ट्र के सतारा जिले का उदाहरण लिया जा सकता है। यहां 1100 पवन चक्कियां स्थापित हैं जिनसे 1600 मेगावॉट बिजली का उत्पादन होता है। यहां के किसान मानते हैं कि पवन चक्कियों का असर बारिश लाने वाले बादल पर पड़ता है। इस वजह से इस क्षेत्र में कई बरसों से बारिश नहीं हो रही है।
हालांकि इंडियन विंड एनर्जी एसोसिएशन का मानना है कि पवन चक्की का टावर ज्यादा से ज्यादा 300 फुट ऊंचा होता है, जबकि वर्षा लाने वाले बादल 6000 फुट की ऊंचाई पर सक्रिय होते हैं। ऐसे में पवन चक्की का वर्षा से कोई लेना देना नहीं है। महाराष्ट्र सरकार ने तय किया था कि पवन चक्की वाली कंपनियां बिजली उत्पादन करने के बदले ग्राम पंचायत को प्रति मेगावॉट की दर से कुछ खास राशि टैक्स के रूप में भुगतान करेंगी।
ग्राम पंचायतों का कहना है कि जिस दर से राशि तय की गई थी उसका भुगतान भी नहीं हो पा रहा है। दूसरी तरफ पवन चक्की की वजह से स्थानीय लोगों को ध्वनि प्रदूषण भी झेलना पड़ रहा है। महाराष्ट्र के सतारा जिले के काठव तालुका के लोगों का कहना है कि वर्षा नहीं होने की वजह से वे ज्वार की खेती करते, लेकिन अब वह भी नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह पवन चक्की में स्वयं निवेश कर आम लोगों को लाभ पहुंचाए या किसानों को इसके लिए प्रोत्साहित करे। ऐसा करने पर ही सूखे इलाकों में पवन चक्की हरियाली का माध्यम बन सकेगी।
हालांकि इंडियन विंड एनर्जी एसोसिएशन का मानना है कि पवन चक्की का टावर ज्यादा से ज्यादा 300 फुट ऊंचा होता है, जबकि वर्षा लाने वाले बादल 6000 फुट की ऊंचाई पर सक्रिय होते हैं। ऐसे में पवन चक्की का वर्षा से कोई लेना देना नहीं है। महाराष्ट्र सरकार ने तय किया था कि पवन चक्की वाली कंपनियां बिजली उत्पादन करने के बदले ग्राम पंचायत को प्रति मेगावॉट की दर से कुछ खास राशि टैक्स के रूप में भुगतान करेंगी।
ग्राम पंचायतों का कहना है कि जिस दर से राशि तय की गई थी उसका भुगतान भी नहीं हो पा रहा है। दूसरी तरफ पवन चक्की की वजह से स्थानीय लोगों को ध्वनि प्रदूषण भी झेलना पड़ रहा है। महाराष्ट्र के सतारा जिले के काठव तालुका के लोगों का कहना है कि वर्षा नहीं होने की वजह से वे ज्वार की खेती करते, लेकिन अब वह भी नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह पवन चक्की में स्वयं निवेश कर आम लोगों को लाभ पहुंचाए या किसानों को इसके लिए प्रोत्साहित करे। ऐसा करने पर ही सूखे इलाकों में पवन चक्की हरियाली का माध्यम बन सकेगी।