वाष्पखनिजन (Pneumatolysis)

Submitted by Hindi on Thu, 08/25/2011 - 10:03
वाष्पखनिजन (Pneumatolysis) शैलविज्ञान के इस शब्द का अर्थ है आग्नेय मैग्मा से वाष्पउन्मुक्ति तथा शैलसमूहों पर उसके प्रभाव। ऊष्मा तथा मैग्मा निस्तृति के, जिसमें मुख्यत: हैलोजन तत्व, जल तथा बोरॉन, फ़ॉस्फोरस एवं अन्य क्षारीय धातुओं के यौगिक होते हैं, सम्मिलित प्रभाव के कारण शैलों में हुए परिवर्तन को वाष्पखनिजीय कायांतरण (preumatolytic metamorphism) कहा जाता है। अतएव वाष्पखनिजन शब्द (वाष्प क्रिया) मुख्यत: उच्च ताप पर वाष्पीय अवस्था में, उपर्युक्त तत्वों से प्रभावित कायांतरण प्रक्रिया की ओर इंगित करता है। इस क्रिया के मुख्य उत्पाद खनिजों में मस्कोवाइट, लीथियम अभ्रक, फ्लुराइट, टोपैज़, टूरमैलीन, ऐक्सीनाइट, ऐपाटाइट तथा स्कैपोलाइट आते हैं। परिवर्तन स्वयं आग्नेय शैलों को तो प्रभावित कर ही सकता है, आसन्न प्रदेशीय शैलों को भी प्रभावित करता है।

वाष्पखनिजन में भाग लेनेवाले ततव मैग्मा की प्रकृति के अनुसार भिन्न भिन्न होते हैं। ग्रेनाइट (granite) के साथ क्रिया करनेवाले पदार्थां में जल के अतिरिक्त क्लोरीन, बोरॉन, क्षारीय धातुओं (लीथियम तथा बेरिलियम सम्मिलित हैं) के यौगिक तथा वंग, ताँबा, जस्ता, सीसा, टंग्सटन, मोलिब्डेनम और यूरेनियम जैसे विशिष्ट धातुसमूहों के यौगिकों का समावेश है। क्षारीय मैग्मा के वाष्पखनिजन से संबंधित पदार्थों में जल के साथ मुख्यत: क्लोरीन, फॉस्फोरस तथा वंग के यौगिक निकालते हैं।

ग्रेनाइट-मैग्मा के अंतर्वेधन (intrusion) से वाष्प खनिजन के तीन प्रकार मुख्यत: संबंधित हैं : टूरमैलिनीभवन, ग्राइजेक एवं के ओलिनीकरण।

टूरमैलीनीभवन (tourmalinisation) जल, बोरॉन तथा फ्लुओरीन, जो ग्रेनाइट के क्रिस्टलन के अंत में अवशिष्टलिकर (solidified) भागों पर ये आक्रमण करते हैं तथा फेल्स्पार अंशत: 'टूरमैलीन द्वारा प्रतिस्थापित हो जाते हैं जिसके फलस्वरूप टूरमैलीन ग्रेनाइट का प्रादुर्भाव होता है। क्रिया की उग्रता अधिक होने पर फेलस्पार पूर्णत: नष्ट हो जाते हैं और तब शैल क्वार्ट्ज तथा टूरमैलीन के समुच्चय (aggregale) में, जिसे 'थाल-शैल' कहा जाता हैं, परिवर्तित हो जाती है।

ग्राइज़ेनन (greisening), अतितप्त जलवाष्प तथा फ्लुओरीन की क्रिया के फलस्वरूप कायांतरण की प्रक्रिया को कहते हैं। ग्रेनाइट में फेल्स्पार आक्रांत होकर, अभ्रक में जो बहुधा लीथियम युक्त होता है, परिवर्तित हो जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप मस्कोबाइट और क्वार्ट्ज का समुच्चय, जिसे 'ग्रीसेन' कहते हैं, का निर्माण होता है। ऐल्बाइट इस प्रकार के वाष्पखनिजन से अप्रभावित रह कर बच जाता है, जब कि पोटैश, फेल्स्पार पूर्णत: नष्ट हो जाते हैं। टोपैज़ बहुधा ग्रीसेन का मुख्य संघटक है, और जब इसकी मात्रा इस शैल प्रकार में अत्यधिक हो जाती है, तब शैल को 'टापैज़ शैल' कहा जाता है। ग्राइजेनन के कारण आसन्न प्रदेशीय शैलों का अत्यधिक 'मस्कोवाइटीकरण' हो जाता है, तथा उनकी सरंचना में टोपैज़ और फलुओराइट का भी समावेश हो जाता है।

केओलिनीकरण (kaolinisation) अतितप्त जलवाष्प के साथ थोड़ी फ्लुओरीन और बोरॉन के कारण होता है। ग्रेनाइट के फेल्स्पार आक्रांत होते हैं और केओलिनाइट (Al2O2. 2 Sio2. 2 H2O) जो चीनी मिट्टी का प्रमुख संघटक है, बन जाता है।

क्षारीय शैलों के अंतर्वेधन के साथ वाष्पखनिजीय प्रभावों संबंध ग्रेनाइट की अपेक्षा असामान्य है और जब संबंध होता है, तब इसका कारण सदा उपस्थित जल के साथ क्लोरीन, फ़ॉस्फ़ोरस वंग तथा उनके यौगिकों की क्रिया ही पाया गया है। ऐपाटाइट [क्लोरऐपाटाइट, Ca3 (PO4)2 CaCl2] तथा रूटाइल की पट्टिकाएँ यहाँ ग्रेनाइट अंतर्वेधों से संबंद्ध फ्लुओराइट, टूरमैलीन एवं टिनस्टोन पट्टिकाओं के सदृश ही होती है। फेल्स्पार के अणु में क्लोरीन के समावेश से स्केपोलाइट नामक खनिज बन जाता है। (विद्यासागर दुबे)

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संदर्भ
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