वायुमंडलीय विक्षोभ (Atmospheric Turbulence)

Submitted by Hindi on Wed, 08/24/2011 - 15:43
वायुमंडलीय विक्षोभ (Atmospheric Turbulence) में वैमानिकी की एक बहुत बड़ी समस्या है। विमानचालक इसे झटकों के रूप में अनुभव करते हैं और वायुगर्त (air pocket), वायुछिद्र (air hole), वायुप्रहार (dunt) आदि से नामों से पुकराते हैं, जिनका आशय वायुशून्यता है, पर जो प्रकृति में नहीं हो सकती। झटके की स्थितियाँ वायु के क्षैतिज संचलन में तेज उतार चढ़ाव, या वायु की स्थानीय ऊर्ध्व या अधो धाराओं के कारण उत्पन्न होती हैं। जिसे विमान चालक झटकों के रूप में अनुभव करते हैं। पाइलट को इन झटकों से लगभग वैसा ही संवेदन मिलता है जैसा लिफ्ट के एकाएक संचलन से शरीर की संतुलन व्यवस्था पर प्रभाव पड़ने से प्राप्त होता है। विक्षोभ या उसका अवयव (भँवर) अनेक प्रकार का हो सकता है। इस विविधता का कारण है उसके उत्पन्न होने की विविध परिस्थितियाँ। विक्षोभ के दो प्रकार मुख्य हैं : यांत्रिक और ऊष्मीय। यांत्रिक विक्षोभ घर्षणात्मक कारणों से होता है और ऊष्मीय विक्षोभ भूपृष्ठ के तापन के कारण।

यांत्रिक विक्षोभ- किसी रूक्ष पृष्ठ से वायु का घर्षण होने पर यांत्रिक विक्षोभ उत्पन्न होता है। पृथ्वी पर स्थित अवरोध वायु के मुक्त प्रवाह में बाधा उत्पन्न करते हैं, जिससे वायु के क्षैतिज संचलन की दिशा और चाल दोनों में परिवर्तन होता है। समतल भूभागों में भी लगभग 200 मीटर की ऊँचाई तक पृथ्वी के पृष्ठ के घर्षण के कारण वायु में पर्याप्त झोंकीलापन (gustiness) रहता है। पहाड़ी प्रदेशों में क्षैतिज संचलन के परिवर्तन के साथ पर्याप्त ऊर्ध्वधाराएँ भी रहती हैं, जो सामान्य मौसम में जिस ऊँचाई पर अवरोध होते हैं उसकी डेढ़ गुनी ऊँचाई तक फैलती हैं, और खराब मौसम में और भी अधिक ऊँचाई तक, विशेषतया ताजी वायु के अंतर्वाह की स्थिति में पहुँचती हैं। चित्र 1. द्वारा भूपृष्ठ पर स्थित विविध अवरोधों से वायुसंचलन में उत्पन्न यांत्रिक विक्षोभ के प्रभाव स्पष्ट हो जाएँगे। चित्र में (क) भूतल के ऊपर वायुप्रवाह में भँवर निर्माण, चित्र में (ख) आयताकार, अनुप्रस्थ काट के (जैसे ऊँची इमारत) के अवरोध से उत्पन्न भँवर और चित्र में (ग) पर्वतमाला से उत्पन्न भँवर निदर्शित करता है। पर्वतों के अनुवात पार्श्व (leeside) में उत्पन्न भँवर प्राय: पाइलटों के लिए संकट खड़ा कर देते हैं। इससे बचने के लिए उन्हें पर्वतीय प्रदेशों में वायु के विपरीत चलते समय काफी ऊँचाई पर उड़ना पड़ता है।

ऊष्मीय विक्षोभ- यह वायुमंडल के निचले भाग में वायु के संलग्न भागों के ताप में अंतर होने के कारण उत्पन्न होता है। भूपृष्ठ के अनियमित तापन की ऊष्मा से उत्पन्न ऊर्ध्व धाराएँ उच्छलन (bumpines) का प्रधान कारण हैं। ऊष्मीय विक्षोभ के लिए तीव्र सूर्यताप और रूक्ष स्थलाकृति अनुकूल होती है। जहाँ कहीं इन दो शर्तों की पूर्ति होती है, जैसे शुष्क कटिबंधों में, विक्षोभ स्पष्ट रूप से होने लगता है। ऊष्मीय विक्षोभ बड़ी झीलों और महासागरों के सीमांत में तथा वनभूमि और प्रेअरी भूभागों में प्राय: प्रबल रहता है।

घर्षण से उत्पन्न विक्षोभ


एक दूसरे प्रकार का ऊष्मीय विक्षोभ, जो अधिकतर एक स्पष्ट उभाड़ (hump) के रूप में होता है, तीव्र व्युत्क्रमण (inversion) की परतों में से उड़ते समय अनुभव किया जाता है। यहाँ पर वायुपन्नी (air foil) की उछाल एकाएक बदलने से उभाड़ अनुभव किया जाता है। कपासाभ मेघों (cumuliform cloud) में ऊर्ध्व मेघ और धाराएँ प्राय: होती हैं और ये प्राय: बहुत तीव्र होती हैं। कपासाभ मेघ और आसपास की वायुधारा के ऊर्ध्वाधर वेगों में जो विपर्यांस (contrast) होता है, उसी से विक्षुब्ध गति होती है। जब पाइलट असंतृप्त वायु से कपासाभ मेघ की ओर उड़ता है और जब मेघ में उड़ता रहता है, तब उसे प्रचंड झटकों की अनुभूति होती है।

भारत में गरमी की ऋतु में भूतापन के फलस्वरूप 10 बजे प्रात: से शाम पाँच बजे (स्थानीय समय) तक झटके सर्वाधिक होते हैं। सूर्योदय के समय झटके बिल्कुल नहीं लगते। ज्यों ज्यों दिन बढ़ता है, झटके तीव्र होने लगते हैं और सूर्यास्त के बाद समाप्त होने लगते हैं। भारत में विक्षोभ से प्रभावित अधिकतम ऊँचाई स्थलाकृति और ऋतु पर निर्भर करती है। उत्तर भारत के अंतरंग क्षेत्रों में मार्च से जून तक यह ऊँचाई 3 किमी. तक हो सकती है। दक्षिण भारत और बंगाल में यह ऊँचाई कुछ कम, अर्थात्‌ लगभग 2 किमी. होती है। मॉनसून के दिनों में (मध्य जून से सिंतबर तक) प्रधनतया मेघों के बनने के कारण झटके लगते हैं। (किरण चंद्र चक्रवर्ती)

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संदर्भ
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बाहरी कड़ियाँ
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