विद्युतीकरण, ग्रामों का (Rural Electrification)

Submitted by Hindi on Thu, 08/25/2011 - 12:06
विद्युतीकरण, ग्रामों का (Rural Electrification) आजकल विद्युत्‌ का उपयोग बहुत सामान्य हो गया है। पहले इसका उपयोग नगरों तक ही सीमित था, पर अब ग्राम भी इसमें पीछे नहीं रहे है। प्रकाश और सिंचाई के अतिरिक्त आटे की चक्की, धान कूटने की मशीन, तेल पेरने की मशीन तथा दूसरे अनेक ग्रामीण उद्योगों के लिए विद्युत्‌ मशीनों का उपयोग अधिकाधिक हो रहा है। शक्ति की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विद्युत्‌ ही सबसे सामान्य तथा सुगम साधन आज समझा जाता है।

ग्रामों के विद्युतीकरण से अनेक लाभ हैं। भारत जैसे कृषिप्रधान देश में, जहाँ 85 प्रतिशत आबादी ग्रामों में रहती है, देश की प्रगति के लिए ग्रामीण क्षेत्रों की प्रगति आवश्यक है। प्रगति के लिए खेत की उपज बढ़ाना और उद्योग धंधों का चलाना आवश्यक है। कुएँ से पानी निकालने, अथवा नदी नालों आदि से पानी उलीचने, के लिए विद्युत्‌ पंप काम में लाया जा सकता है। विद्युत्‌ मोटरों से मशीने चलाकर उद्योग धंधे बढ़ाए जा सकते हैं। डेयरी व्यवसाय में विद्युत्‌ का उपयोग महत्वपूर्ण योग दे सकता है। कृषि की बहुत सी मशीनें विद्युत्‌ मोटरों द्वारा चलाई जा सकती हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में प्रकाश के अतिरिक्त, विद्युत्‌ का सबसे बड़ा उपयोग सिंचाई के लिए है। जहाँ सिंचाई के प्राकृतिक साधन उपलब्ध नहीं हैं, वहाँ बिजली पंप से कुएँ से, या नदी-नाले से, पानी उठाया जा सकता है। अमरीका तथा अन्य उन्नत देशों में फसल को सुखाने, दाना अलग करने तथा उसे एलिवेटर द्वारा भंडार में रखने के लिए भी विद्युत्‌ काम आती है। अनेक देशों में जोतने तथा फसल काटने की मशीने भी विद्युत्‌ मोटरों द्वारा चलाई जाती हैं। दूध निकालने तथा मक्खन बनाने के लिए विद्युत्‌ मशीनों का उपयोग किया जाता है। आज अनेक कुटीर उद्योगों में भी विद्युत्‌ मशीनों का उपयोग किया जा रहा है।

अभी तक भारत में ग्रामों का विकास अधिक नहीं हुआ है। सिंचाई के लिए ही आज विद्युत्‌ की इतनी माँग है कि हमारी शक्ति की आवश्यकताएँ पूरी नहीं होतीं। आटे की चक्की, धान कूटने की मशीन, आरा मशीन, तेल के कोल्हू इत्यादि में विद्युत्‌ मोटरों का उपयोग अब सामान्य होता जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युत्‌ की माँग इतनी बढ़ती जा रही है उसकी पूर्ति एक समस्या बन गई है।

प्राविधिक दृष्टिकोण से ग्रामों में विद्युत्‌ भार कम तथा इधर-उधर बिखरे होते है। एक सामान्य ग्राम में शायद 4 या 5 किलोवाट का प्रकाश भार तथा लगभग इतना ही औद्योगिक भार होने की संभावना हो सकती है। साधारणतया, लगभग 3-5 अश्वशक्ति के दो या तीन पंप सिंचाई के लिए होंगे और हो सकता है, एक आटे की चक्की अथवा ऐसी ही किसी दूसरी मशीन का औद्योगिक भार हो। इतना कम भार संभरण करने के लिए, सामान्यत:, विद्युत्‌ लाइन का बनाना आर्थिक रूप से उचित नहीं होता। यही कारण है कि ग्रामों के विद्युतीकरण की समस्या, वस्तुत:, एक आर्थिक समस्या बन गई है। एक ओर तो सब यह चाहते हैं कि सभी ग्राम विद्युत्‌ से जगमगा उठें। दूसरी ओर जब मूल्यांकन करके प्रति यूनिट मूल्य निकाला जाता है, तब वह इतना अधिक होता है कि साधारण व्यक्ति की पहुँच के बाहर हो जाता है। इस आधार पर विद्युतीकरण संभव नहीं हो पाता। सरकार की ओर से आर्थिक सहायता मिलने पर भी उसका आर्थिक औचित्य गहरे विवाद का विषय है। ग्रामों के विद्युतीकरण में बचत करने के लिए, लाइनों की संरचना में समान्य मानक आधारों के स्थान पर सस्ते उपकरण प्रयोग कर, तथा और भी दूसरे उपायों से, लाइनों के मूल्य में कमी करने का प्रयत्न किया गया है। ये लाइनें, सधारणतया 11 कि.वो. की होती हैं। इन्हें उपचारित लकड़ी के पोलों पर ले जाया जाता है। जहाँ लंबे पोल उपलब्ध नहीं होते, वहाँ छोटे पोलों को संयुक्त करके काम चला लिया जाता है। ग्रामीण उपकेंद्र (substation) भी साधारणतया पोलों पर आरोपित परिणामित्र (transformer) मात्र ही होता है। 10 कि.वो.ऐं. (K.V.A.) तक के एक-कलीय परिणामित्र तो एक ही पोल पर आरोपित किए जा सकते हैं। बड़े परिणामित्र को (25 कि.वो.ऐं. तक) द्वि-पोल सरंचना पर आरोपित किया जा सकता है। औद्योगिक शक्ति की आवश्यकता मुख्यत: सिंचाई के पंप में होती है। ये खेतों में दूर-दूर स्थित होते हैं। इन्हें अलग उपकेंद्र से विद्युत्संभरण दिया जाता है।

लाइन संरचना में बचत करने पर भी अभी तक यह संभव नहीं हो पाया है कि ग्रामीण विद्युतीकरण आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर बन सके। वस्तुत: पारंपरिक संभरण विधियों के स्थान पर ऐसी संभरण विधि को विकसित करने की आवश्यकता है जो आर्थिक दृष्टि से इस समस्या को सुलझा सके। इस विषय में एक महत्वपूर्ण सुझाव यह है कि केवल एक कला एक तार लाइन द्वारा ही संभरण करना प्राविधिक दृष्टिकोण से संभव है। ऐसे तंत्र से, वर्तमान त्रिप्रावस्था तंत्र की अपेक्षा, पर्याप्त बचत की जा सकती है। संगणना के आधार पर इस तंत्र द्वारा विद्युतीकरण, सामान्य त्रिप्रावस्था तंत्र की अपेक्षा आधे मूल्य पर किया जा सकता है। इस तंत्र पर प्रयोग किए जा रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया एवं कैनाडा में दूरस्थ छोटे-छोटे भारों का संभरण करने के लिए इस तंत्र का प्रयोग किया गया है और भारत में भी प्रायोगिक लाइनें बनाई गई हैं।

इस तंत्र में विद्युत्‌ का संभरण सामान्य वोल्टता से श्गुणा अधिक पर किया जाता है। परंतु केवल पारेषण ही एक तार, भूमि वापसी लाइन द्वारा किया जाता है।

विभाजन तंत्र में कोई परिवर्तन नहीं किया जाता और उपभोक्ताओं के प्रतिष्ठापन (installation) ठीक वर्तमान पद्धति के अनुसार ही रहते हैं। एककलीय संभरण की सबसे बड़ी समस्या, औद्योगिक भारों के संभरण की है। एककलीय मोटर, त्रिकलीय (triphase) मोटरों की अपेक्षा मँहगे होते हैं और उनकी दक्षता तथा सामान्य निष्पादन भी उतना अच्छा नहीं होता। त्रिकलीय मोटरों को एक कलीय संभरण से संभरण करने के विषय में पर्याप्त शोध हो चुका है। एककला में संधारित्र (condenser) तथा स्वपरिणामित्र (autotransformer) के प्रयोग से, त्रिकलीय मोटरों को एककलीय संभरण पर भी लगभग पूर्ण क्षमता एवं निष्पादन पर प्रवर्तित कराया जा सकता है। इस विधि से मोटर ठीक त्रिकलीय मोटर की भाँति एक संतुलित भार के रूप में ही प्रवर्तन करती है, यद्यपि इसे एककलीय संभरण से संभरण किया जाता है। त्रिकलीय मोटरों में इस प्रकार एककला पर प्रवर्तन संभव होने के कारण, एककलीय, एकसंवाहक लाइन तंत्र की उपयोगिता और ग्राम के विद्युतीकरण के आर्थिक औचित्य की संभावनाएँ बहुत बढ़ जाती हैं।

भारत में ग्रामों का विद्युतीकरण तीव्रता से हो रहा है और पंचवर्षीय योजनाओं में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। भारत में लगभग 6 लाख ग्राम हैं, जिनकी जनसंख्या 5,000 से कम है। उनमें से अभी तक केवल 15,000 ग्रामों में ही, जो कुल का लगभग 4 प्रतिशत हैं, बिजली पहुँच सकी है। दूसरे देशों की तुलना में भारत के ग्रामीण विद्युतीकरण की स्थिति निम्नलिखित आँकड़ों से स्पष्ट हो जाएगी :

देश

कुल का प्रतिशत

1. स्विट्सरलैंड

100

2. इटली

95

3. फ्रांस

91

4. जापान

90

5. डेनमार्क

85

6. न्यूज़ीलैंड

66

7. स्वीडन

65

8. भारत

4.0



यद्यपि रूस के आँकड़े प्राप्य नहीं हैं, तथापि वहाँ पर ग्रामों का विद्युतीकरण शीघ्रता से हो रहा है। वहाँ के सहकारी फार्मों में अधिकांश कृषिव्यवस्था का विद्युतीकरण किया जा रहा है, यहाँ तक कि हल चलाने के लिये विद्युत्‌ मशीनें काम में लाई जा रही हैं, जिन्हें ऊपरी लाइनों से ट्रेलिंग केबिल (trailing cable) द्वारा विद्युत्‌ संभरण दिया जाता है। रूस तथा अमरीका में विद्युत्‌ का एक नया उपयोग किया जा रहा है। इसमें खेत की मिट्टी को गरम करके बीजों को शीघ्रता से अंकुरित किया जाता है। उसके बाद उचित ताप नियंत्रण द्वारा उनकी वृद्धि भी त्वरित की जाती है। मिट्टी गरम करने के लिए एक विशेष प्रकार के केबिल को मिट्टी में दबाकर उसमें से धारा प्रवाहित की जाती है, जिससे उसमें उत्पन्न होनेवाली ऊष्मा आस-पास की मिट्टी को गरम कर सके। बहुत से स्थानों में भूसा सुखाने के लिए धूप पर निर्भर न रहकर विद्युत्‌ का उपयोग किया जाता है। फसलें भी समय से पहले तैयार की जा सकती हैं और वर्ष में तीन फसलें सुगमता से उगाई जा सकती हैं।

विद्युतीकरण, ग्रामीण प्रगति में महत्वपूर्ण योग दे सकता है। ग्रामीण विद्युतीकरण, वस्तुत:, 'बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय' उद्योग है और इसे इसी दृष्टिकोण से देखना उचित होगा, केवल आर्थिक औचित्य के दृष्टिकोण से नहीं। ग्रामीण विद्युतन का तात्पर्य है ग्रामों का विकास, जिसपर किसी भी देश की प्रगति निर्भर करती है। (राम कुमार गर्ग)

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अन्य स्रोतों से




संदर्भ
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बाहरी कड़ियाँ
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