विद्युततरंग

Submitted by Hindi on Thu, 08/25/2011 - 12:41
विद्युततरंग विद्युत्‌ के नियमित रूप से होनेवाले विस्थापन (displacement) को कहते हैं, जो काल के साथ नियमित रूप से विचरण करे। कुछ दशाओं में विद्युत्‌ का परिचालन स्थिर मान का होता है और समय के अनुसार विचरण नहीं करता। इस प्रकार के विस्थापन को दिष्ट धारा (Direct Current) कहते हैं। इसमें धारा का मान और दिशा दोनों ही नहीं बदलते। बहुत सी दशाओं में विचरण आवर्ती प्ररूप का होता हैं और धारा का मान एवं दिशा समय के साथ नियमित रूप से विचरण करती है। इस प्रत्यावर्ती धारा (Alternating Current) कहते हैं और सामान्यत: इसे प्र.धा. (A.C.) द्वारा व्यक्त करते हैं। प्रत्यावर्ती विचरण भी कई प्रकार का हो सकता है। सबसे सामान्य विचरण ज्यावक्रीय (Sinusoidal) कहलाता है, जिसें धारा का मान ज्यावक्र (sine curve) के अनुसार घटता बढ़ता है।

कुछ दशाओं में प्रत्यावर्ती विचरण, वर्गीय अथवा आयताकार (rectangular) प्ररूप का होता है। ऐसे विचरण को वर्गीय अथवा आयतामार वक्रों द्वारा व्यक्त किया जा सकता है और तरंग का प्ररूप वर्गीय अथवा आयताकार तरंग कहलाता है।

कुछ दशाओं में यह विचरण अनियमित रूप का प्रतीत होता है, परंतु वास्तव में एक से अधिक नियमित विचरणों के संयुक्त होने पर प्राप्त होता है। ऐसे विचरण को फूरिये श्रेणी (Fourier's series) द्वारा नियमित वक्रों (regular curves) से संघटित हुआ दिखाया जा सकता है।

विद्युत्‌ प्रभावों का तरंगों के रूप में होने का विश्वास, वस्तुत: बहुत पुराना है। परंतु गणितीय विश्लेषण द्वारा इसका प्रतिपादन उन्नीसवीं शताब्दी की ही देन है। फैराडे (Faraday) ने विद्युत्चुंबकीय सिद्धांतों का प्रतिपादन करते हुए विद्युत तरंगों के रूप पर भी प्रकाश डाला और अंतत: यह सिद्ध किया कि विद्युत्प्रभाव तरंगों के रूप में होते हैं। इन तरंगों का वेग भी ज्ञात करने का प्रयत्न किया गया, परंतु सुग्राही यंत्रों के अभाव में ठीक ठीक न ज्ञात किया जा सका। तत्पश्चात्‌ यह सिद्ध किया गया कि विद्युत तरंगों का वेग प्रकाश के बराबर है और वस्तुत: दोनों प्रकार की तरंगें एक ही ऊर्जा के विभिन्न रूप हैं। इसी प्रकार पराबैंगनी तथा अवरक्त (Infra-red) विकिरण भी वस्तुत: इन्हीं के सदृश ऊर्जा के दूसरे रूप हैं, और उसी प्रकार की तरंगें हैं।

किसी भी तरंग के मुख्य लक्षण उसकी आवृत्ति (frequency) एवं आयाम (amplitude) होते हैं। आवृत्ति अथवा बारंबारता, तरंग द्वारा किए गए प्रति सेकंड एकांतरण (alternations) की संख्या होती है। विद्युत्‌ बल, सामान्यत:, शून्य से अधिकतम मान तक बढ़ता है और फिर धीरे धीरे घटकर फिर शून्य हो जाता है। इसके पश्चात्‌ अपनी दिशा बदलकर फिर अधिकतम मान पर पहुँचने के बाद शून्य स्थिति में आ जाता है। इसी प्रकार विद्युत्तरंग भी दोनों दिशाओं में अधिकतम मानों के बीच विचरण करती है। इस संपूर्ण एकांतरण का एक चक्र (cycle) कहते हैं और प्रति सेकंड चक्रसंख्या को तरंग की आवृत्ति या बारंबारता कहा जाता है।

तरंग का आयाम, ऊर्ध्वाधर दिशा में शून्य स्थिति से अधिकतम मान तक, उसकी दूरी है। इसी प्रकार, एक चक्र की क्षैतिज दूरी उसकी तरंग लंबाई कहलाती है। यह, वस्तुत:, तरंग के दो संगत (corresponding) बिंदुओं के बीच की दूरी होती है। तरंग लंबाई, तरंग के वेग और उसकी आवृत्ति से भी ज्ञात की जा सकती है।

चूँकि विद्युत्तरंग का वेग, प्रकाश के वेग के बराबर होता है (अर्थात्‌ 3108 मीटर प्रति सेकंड), इसलिए उच्च आवृत्ति की तरंगों की तरंग लंबाई, अल्प आवृत्ति की तरंगों की अपेक्षा काफी कम होती है।

विद्युत्‌ शक्ति का संचारण करनेवाली तरंगें, कम आवृत्ति की होती हैं। भारत एवं दूसरे कॉमनवेल्थ देशों में, सामान्यत: 50 साइकिल आवृत्ति का उपयोग किया जाता है। अमरीका तथा दूसरे देशों में सामान्य शक्ति की आवृत्ति 60 साइकिल प्रति सेकंड है। शक्ति आवृत्ति की तरंगों की तरंग लंबाई बहुत अधिक होती है (लगभग 3,000 किमी.)। उच्च आवृत्ति की तरंगों की तरंग लंबाई कम होने के कारण उन्हें छोटी तरंगें (short waves) भी कहा जाता है, और ये दूर रेडियो संचारण में प्रयुक्त की जाती है।

विद्युततरंगों का प्रेषण (transmission), पदार्थ एवं आकाश दोनों में ही संभव है। कुछ पदार्थ, जिनमें धातुएँ मुख्य हैं, ऐसे होते हैं कि उनमें स्वतंत्र इलेक्ट्रॉनों की संख्या पर्याप्त होती है, और विद्युत्‌ बल के आरोपित होने से ये गतिमान किए जा सकते है। इन इलेक्ट्रॉनों का चलन ही विद्युत्धारा कहलाता है, तथा किसी बिंदु से पारित होनेवाला विद्युत्‌ आवेश ही धारा की माप है। धात्विक पदार्थों के तार, धारा के अच्छे चालक होते हैं। इनमें व्यावहारिक रूप से ताँबा एवं ऐलुमिनियम मुख्य हैं। कुछ पदार्थ ऐसे भी होते हैं जिनमें अधिकांश इलेक्ट्रॉन अणुओं से संबद्ध होते हैं और सहज चलायमान नहीं किए जा सकते। ऐसे पदार्थ परावैद्युत्‌ (Dielectric) कहलाते हैं और ये विद्युतरोधी (insulator) होते हैं।

विश्व के सभी पदार्थ किसी न किसी रूप में आवेशित रहते हैं। कुछ धनात्मक आवेशित तथा कुछ ऋणात्मक आवेशित होते हैं। एक ही प्ररूप के आवेशित तथा कुछ ऋणात्मक आवेशित होते हैं। एक ही प्ररूप के आवेशित कण एक दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं। स्थैतिक विद्युत्करण विद्युत्बल के क्षेत्र से घिरे रहते हैं तथा चलनशील कण चुंबकीय क्षेत्र से घिरे होते हैं। यदि किसी आवेशित कण को दूसरे आवेशित कणों के समीप लाया जाए, तो उसपर एक बल आरोपित होगा। बल का वह भाग जो केवल आवेश पर निर्भर करता है (और उसके वेग पर नहीं) विद्युत्‌ बल कहलाता है। वेग पर निर्भर करनेवाला भाग चुंबकीय होता है और इस प्रकार गतिमान विद्युत्‌ आवेश पर विद्युत्‌ चुंबकीय बल आरोपित होता है। यह बल, वस्तुत:, विद्युत्चुंबकीय तरंगों द्वारा संधारित एवं परिचालित होता है।

जब विद्युत्‌आवेश का अकस्मात्‌ विस्थापन किया जए, तो विद्युत्‌ और चुंबकीय बल उसी प्रकार जनित हो जाते हैं जैसे तालाब में ढेला फेंकने पर लहरें। पानी की लहर भी, वस्तुत: पानी का ऊपर और नीचे विस्थापन मात्र ही है, जो सब दिशाओं में पानी के तल पर कुछ वेग से संचारित (propagate) होता है। धीरे धीरे विस्थापन कम होता जाता है और तरंगों का फैलाब बढ़ता जाता है। कुछ देर बाद लहरें समाप्त हो जाती हैं और पानी फिर शांत हो जाता है। विद्युत्‌ तरंगें भी ठीक इसी भाँति संचारित होती हैं। अंतर केवल इतना ही है कि पानी की लहरों के लिए संचारण का माध्यम आवश्यक है, परंतु विद्युत्‌ तरंगों के लिए माध्यम का होना अवश्यक नहीं। वे आकाश (space) में भी संचारित हो सकती है, जैसे रेडियो तरंगें (radio waves), जो विद्युत्तरंगों का ही एक रूप है।

विद्युततरंगों को प्रयोगशाला में एक दोलक (oscillator) द्वारा जनित किया जा सकता है। वास्तव में दोलक परिपथ के अवयवों (elements) का व्यवस्थापन कर किसी भी आवृत्ति की तरंगें जनित की जा सकती हैं।

विद्युततरंगों का सबसे बड़ा उपयोग ध्वनि के संचारण के माध्यम के रूप में हुआ है, जिसमें इन्हीं तरंगों के एक रूप, अर्थात्‌ उच्च आवृत्ति की विद्युत्चुंबकीय तरंगों का उपयोग किया जाता है। इनका मुख्य प्रयोग बेतार के तार और रेडियो में हुआ है। इन तरंगों से चित्र भी प्रेषित किए जा सकते हैं, और टेलीविजन द्वारा ध्वनि के साथ साथ चित्र भी देखे जा सकते हैं। विद्युत्‌ तरंगों का यह क्षेत्र निरंतर बढ़ता ही जा रहा है।

विद्युत्‌ शक्ति के प्रेषण में, विद्युत्‌ तरंगों की जानकारी विशेष महत्व की है। आकाश बिजली, अर्थात्‌ तड़ित, के प्रभावों का अध्ययन करने के लिए तथा स्विच (switch) ऑन और ऑफ़ करने से उत्पन्न होनेवाले प्रोत्कर्ष (surge) का अध्ययन करने के लिए विद्युततरंगों की जानकारी आवश्यक है। इसके आधार पर विद्युत्‌ प्रेषणतंत्रों को विश्वसनीय बनाया जा सका है और उनकी क्षमता को बढ़ाया जा सकना भी संभव हुआ है। साथ ही, अकस्मात्‌ हो जानेवाली दुर्घटनाओं को कम कर पाना संभव हो सका है।

किसी भी विद्युत्‌ युक्ति का प्रवर्तन, जिसमें ऊर्जा परिवर्तन निहित हो, अनिवार्य रूप से विद्युत्‌ ऊर्जा का विद्युत्‌ तरंग के रूप में स्थानांतरित किया जाता है। चाहे वह, औद्योगिक शक्ति के लिए विद्युत्‌ प्रेषण हो, अथवा टेलीफ़ोन के तारों पर बातचीत, बेतारी तार से ध्वनि का संचारण, अथवा टेलीविजन से चित्र का संचारण, सभी में विद्युत्‌ तरंगें कार्यशील हैं।

विद्युत्‌ तरंगों का क्षेत्र भी बहुत बड़ा है। शक्ति आवृत्ति से भी कम आवृत्ति की तरंगों से लेकर अत्यधिक आवृत्ति वाली रेडियो तरंगें, माइक्रो तरंगें, एवं सभी प्रकार के विद्युत्‌ चुंबकीय विकिरण (electromagnetic radiation) विद्युत्‌ तरंगों के ही क्षेत्र में हैं और यह क्षेत्र विस्तार एवं उपयोग दोनों में ही निरंतर बढ़ता जा रहा है। (राम कुमार गर्ग.)

Hindi Title


विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia)




अन्य स्रोतों से




संदर्भ
1 -

2 -

बाहरी कड़ियाँ
1 -
2 -
3 -