विंध्य पर्वश्रेणियाँ मालवा पठार के उत्तरी भाग में हैं, जो दक्षिण में नर्मदा घाटी के समीप 2,500 फुट ऊँची दीवार की भाँति तथा उत्तर की ओर केवल 1,400 फुट की ऊँचाई में खड़ी हैं। यह प्रदेश बहुत ऊबड़खाबड़, शुष्क एवं वीरान है, जिसमें जगह जगह शिखर और उनके बीच थाले गिलते हैं। मुख्य शिखर लगभग 2,000 फुट ऊँचा है, जो मुख्यत: स्तरित बलुआ पत्थरों का, जिनमें कहीं कहीं चूना पत्थर और शेल मिलते हैं, बना है। बनास और चंबल के मध्य, पूर्व में बुँदेलखंड की ओर तथा उत्तर-पश्चिम में चंबल के बाई ओर मिलनेवाले बृहत् शिखर पर धौलपुर तथा करौली स्थित हैं। अनुमानत: अरावली की ओर से दबाव के कारण विंध्य चट्टानों में मोड़ तथा दरारें पड़ गई। मध्यजीवी महाकल्प के अंत में आवरण क्षय द्वारा निर्मित मैदान, दबाव के फलस्वरूप, लगभग 5,000 फफट ऊँचा भूभाग बन गया था। यहाँ नदियाँ शिखरों को पार करती हुई आरोपित जलप्रवाह प्रस्तुत करती हैं और अपने ऊपरी भाग में अपरदन के अनुरूप जलप्रवाहवाली हैं। काली, सिंध, पार्वती और चंबल के संगम पर कोटा में 800-900 फुट ऊँचा कछारी पंख बन जाता है, किंतु चंबल अपने अग्रभाग में संकीर्ण गहरी घाटी बनाती है।
श्रेणियों पर मिट्टी की मोटाई कुछ ही इंच है। शुष्क शिखरों पर मिट्टी बिल्कुल नहीं मिलती। कहीं कहीं साधारण घास के मैदान एवं काँटेदार झाड़ियाँ मिलती हैं। पहाड़ियों पर सागौन के वन मिलते हैं। निचाई पर लोग पत्थरों के मकान बनाकर रहते हैं। ग्वालियर, इंदौर तथा भोपाल विंध्य क्षेत्र के प्रमुख नगर हैं। श्रेणियों के मध्य ही काठी में होकर बंबई-आगरा रेलमार्ग गुजरता है। (राम सहाय खरे.)
श्रेणियों पर मिट्टी की मोटाई कुछ ही इंच है। शुष्क शिखरों पर मिट्टी बिल्कुल नहीं मिलती। कहीं कहीं साधारण घास के मैदान एवं काँटेदार झाड़ियाँ मिलती हैं। पहाड़ियों पर सागौन के वन मिलते हैं। निचाई पर लोग पत्थरों के मकान बनाकर रहते हैं। ग्वालियर, इंदौर तथा भोपाल विंध्य क्षेत्र के प्रमुख नगर हैं। श्रेणियों के मध्य ही काठी में होकर बंबई-आगरा रेलमार्ग गुजरता है। (राम सहाय खरे.)
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संदर्भ
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बाहरी कड़ियाँ
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