विरल मृदा

Submitted by Hindi on Thu, 08/25/2011 - 13:43
विरल मृदा धातुओं के उन क्षारक ऑक्साइडों को कहते हैं जिनके तत्व तत्वों के आवर्त वर्गीकरण की सारणी के तृतीय समूह में आते हैं। इनमें 15 तत्व हैं, जिनकी परमाणुसंख्या 57 और 71 के बीच है। ये ऐसे खनिजों में पाए जाते हैं जो कहीं कहीं ही, और वह भी बड़ी अल्पमात्रा में ही, पाए जाते हैं। ऐसे खनिज स्कैंडिनेविया, साइबेरिया, ग्रीनलैंड, ब्राज़िल, भारत श्रीलंका, कैरोलिना, फ्लोरिडा, आइडाहो आदि देशों में मिलते हैं। खनिजों से विरल मृदा का पृथक्करण कठिन, परिश्रमसाध्य और व्ययसाध्य होता है। अत: ये बहुत महँगे बिकते हैं। इस कारण इनका अध्ययन विस्तार से नहीं हो सका है। 1887 ई. में क्रूक्स (Crookes) इस परिणग पर पहुँचे थे कि विरल मृदा के तत्व वस्तुत: कई तत्वों के मिश्रण हैं। एक्स-रे वर्णपट के अध्ययन से ही इनके संबंध में निश्चित ज्ञान प्राप्त किया जा सका है।

इन तत्वों के खनिजों को दो वर्गों में विभक्त किया गया है। एक को सेराइट (Cerite) और दूसरे को गैडोलाइट (Gadolite) कहते हैं। ये खनिज साधारणतया सिलिकेट होते हैं, पर फॉस्फेट के रूप में भी कुछ पाए गए हैं।

पृथक्करण और शोधन- तत्वों में बहुत समानता होने के कारण इनका पृथक्करण कठिन होता है। अत: कुछ तत्वों के संबंध में अभी भी संदेह है कि ये वस्तुत: एक तत्व हैं या तत्वों के मिश्रण हैं। खनिजों से इन्हें निकालने के लिए खनिजों को महीन पीसकर अम्लों से उपचारित पर निष्कर्ष निकालते अथवा गालक (flux) के साथ गलाते हैं। इन्हें फिर सीरियम और इट्रियम समूहों में पृथक्‌ करते हैं। सोडियम या पोटैशियम लवणों के साथ ये लवण बनते हैं। उपर्युक्त अभिकर्मकों की सहायता से ये अवक्षित किए जा सकते हैं। कुछ लवण अधिक विलेय होते हैं और कुछ कम। इन्हें फिर उपर्युक्त द्विगुण लवणों में परिणत कर, उनके प्रभाजी क्रिस्टलन, प्रभाजी अवक्षेपण, प्रभाजी विघटन, प्रभाजी जलविघटन द्वारा, जहाँ जो उपयुक्त हो, पृथक्‌ करते हैं। शुद्ध रूप में प्राप्त करने के लिए प्रक्रम को कई बार दोहराना पड़ सकता है। विरल मृदा के तत्व निम्नलिखित हैं :

लैंथेनम  संकेत लैं (La), परमाणुसंख्या 57। इसके लवण त्रिसंयोजक क्षारक होते हैं। ये अधिक वैज्ञानिक महत्व के हैं।

सीरियम  संकेत सर (Ce), परमाणुसंख्या 58। इस समूह के तत्वों में यह अधिक व्यापक पाया गया है। इसका पृथक्करण भी सरलता से हो जाता है। देखने में यह इस्पात सा लगता है तथा घातवर्ध्य, तन्य, कुछ कोमल तथा अनुचुंबकीय (paramagneic) होता है। सीरियम ऊष्मा का सुचालक, पर बिजली का कुचालक होता है। यह चमक के साथ जलता है तथा मिश्रधातुओं के निर्माण, उत्प्रेरक के रूप तथा धातुकर्म में काम आता है। इसका लवण सेरिक सल्फेट विश्लेषण में प्रयुक्त होता है।

प्रेजियोडियम  संकेत प्रे (Pr) परमाणुसंख्या 59। निओडिमियम से इसका पृथक्करण कुछ कठिन होता है। इसके लवण हरे रंग के होते हैं।

निओडियम  संकेत, निय (Nd), परमाणुसंख्या 60। प्रेजियोडियम से इसका पूर्ण रूप से पृथक्करण कठिन होता है। इसके लवण गुलाबी रंग के होते हैं। यह बीटा-रेडियधर्मी समझा जाता है।

प्रोमिथियम  संकेत प्रोम (Pm), परमाणुसंख्या 61। यह रेडियाधर्मी होता है और बड़ी अल्प मात्रा में पाया जाता है। इसका नाम पहले इलिनियम (Illinium) और फ्लोरेंटिनियम (Florentenium) पड़ा था। 1949 ई. में प्रोमिथियम नाम दिया गया।

समेरियम  संकेत स (Sm) परमाणुसंख्या 62। इसके लवण हल्के पीले रंग के होते हैं। यह रेडियधर्मी होता है और बहुत धीरे-धीरे ऐल्फा कण उत्सर्जित करता है।

यूरोपियम  संकेत यूर (Eu), परमाणुसंख्या 63। यह बहुत कम पाया जाता है। इसके सल्फेट अविलेय होने के कारण इसका पृथक्करण सरल है। इसके द्विसंयोजक लवण हरे रंग के और त्रिसंयोजक लवण हलके गुलाबी रंग के होते हैं।

विरल मृदा के अन्य तत्वों में गैडोलिनियम [संकेत, गैड, (GD), परमाणुसंख्या 64], टर्बियम [संकेत टर (Tb), परमाणुसंख्या 65], डिस्प्रोशियम [संकेत डि (Dy), परमाणुसंख्या 66], हील्यिम संकेत, हो (Ho), परमाणुसंख्या 67], इट्रियम [संकेत, इट (Y), परमाणुसंख्या 39], एर्वियम [संकेत ए, (Eb), थूलियम [संकेत, थू (Tm) परमाणुसंख्या 69], इटर्बियम [संकेत इय (Yb), परमाणुसंख्या 70] तथा ल्यूटीशियम [संकेत, ल्यू (Lu), परमाणुसंख्या 71] है।

धातुनिर्माण- इस समूह के तत्वों की धातु के रूप में प्राप्ति उनके द्रवित क्लोराइट के विद्युत्‌ अपघटन से होती है। इट्रियम समूह की धातुएँ अब भी बिल्कुल शुद्धावस्था में प्राप्त नहीं हो सकी है। अशुद्ध इट्रियम भी कठिनता से प्राप्य है। इनकी मिश्रधातु 'मिश धातु' (Misch metal) बड़े महत्व की है। लोहे या जस्ते के साथ ये स्फुलिंग (pyrophoric) गुणवाले होते हैं। फॉस्फरस के ऐसी यही मिश्रधातु है, जिससे आग पैदा हो सकती है। इसी का उपयोग 'सिगरेट लाइटर' में होता है। विरलमृदा के लवणों का अध्ययन अधिक विस्तार से हुआ है। इन लवणों के अनेक उपयोग पाए गए हैं। ऑक्साइड या फ्लोराइड गतिमान प्रक्षेपित्र (projectorse), सर्चलाइट (search light) तथा क्षणदीप (flash light) में काम आनेवाले कार्बन-आर्क इलेक्ट्रोड के क्रोडों (cores) के निर्माण में काम आते हैं। उदीप्त गैस मैंटल में सीरियम और थोरियम के ऑक्साइडों का मिश्रण प्रयुक्त होता है। विशिष्ट प्रकार के काँच निर्माण में इन धातुओं के हाइड्रेट प्रयुक्त होते हैं। कुछ लवण वस्त्र व्यवसाय और काँच की पालिश में भी काम आते हैं। निम्न ताप, अर्थात्‌ परमशून्य ताप, की प्राप्ति में गैडोलियम का अष्ट या औक्टा हाइड्रेट काम आता है। प्रकाश फिल्टर में निओडिमियम और प्रौज़ियोडिनियम काम आते हैं।

सं. ग्रं.  जे. एन. फ्रेंड : टेक्स्टबुक ऑव इनार्गैनिक केमिस्ट्री, खंड 4। (सत्येंद्र वर्मा)

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