विषप्रतिकारक

Submitted by Hindi on Thu, 08/25/2011 - 15:36
विषप्रतिकारक विष कष्टकारक और घातक होते हैं। इनके प्रभाव के निराकरण के लिए कुछ औषधियाँ और उपचार प्रयुक्त होते हैं। इन्हें विषप्रतिकारक कहते हैं। विष के खाने के अनेक कारण हो सकते हैं। कुछ लोग आत्महत्या के लिए विष खाते हैं। कुछ लोग दूसरे का धनमाल हड़पने के लिए विष खिलाकर बेहोश कर, धनमाल लेकर चंपत हो जाना चाहते हैं। ऐसी बातें रेलयात्रियों के संबंध में बहुधा सुनी जाती हैं। कुछ लोग अनजान में विष खा लेते हैं और उसके अहितकर प्रभाव का शिकार बनते हैं। विषों के लाभकारी उपयोग भी हैं। कष्टकारक कीड़ों मकोड़ों, जैसे मच्छर और खटमल, और रोगोत्पादक जंतुओं, जैसे चूहों आदि, के नाश करने में विषों का प्रयोग होता है।

भारत में जो विष साधारणत: प्रयुक्त होते हैं, वे हैं अफीम, संखिया, तूतिया, धतूरे के बीज, कार्बोलिक अम्ल इत्यादि। कुछ विष अम्लीय होते हैं, जैसे प्रबल ऐसीटिक अम्ल, प्रबल हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, प्रबल नाइट्रिक अम्लख् प्रबल सल्फ्यूरिक अम्ल तथा आक्सैलिक अम्ल। कुछ विष क्षारीय होते हैं, जैसे ऐल्कलॉयड और कुछ उदासीन होते हैं, जैसे सीस, पारद के लवण, संखिया आदि। अम्लीय विषों के निराकरण के लिए किसी क्षारीय पदार्थ का प्रयोग होता है, जैसे बहुत तनु अमोनिया (आधे पाइंट जल में एक चाय चम्मच अमोनिया), चूने का पानी, प्लास्टर ऑव पेरिस, मैग्नीशिया, खड़िया इत्यादि। क्षारीय विषों के लिए अम्लीय प्रतिकारकों का प्रयोग होता है, जैसे हल्का ऐसीटिक अम्ल, सिरका, नींबू का रस इत्यादि। जिस विष की प्रकृति न मालूम हो, उसे बहुत पानी या दूध मिलाकर अंडा, तेल, आटा और पानी या चूना पानी देना चाहिए। कुछ विशिष्ट विषों के विषप्रतिकारक इस प्रकार हैं :

अम्लीय विष- बहुत तनु अमोनिया, पाकचूर्ण, मैग्नीशिया, खाड़िया, चूना या साबुन पानी। दंतमंजन तथा वमनकारी ओषधियों का सेवन निषिद्ध है।

क्षारीय विष- सिरका, नीबूरस, बहुत तनु ऐसीटिक अम्ल (2 से 3%) तथा शामक द्रव, जैसे तेल, घी, दूध मलाई आदि, का सेवन।

अफीम- आमाशय का धोना, विशेषत:। मंद पोटाशपरमैंगनेट के विलयन से धोना चाहिए। 7 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड मिले हुए ऑक्सीजन का सेवन, आवश्यकता पड़ने पर कृत्रिम श्वसन, वमनकारी एवं उद्दीपक का सेवन तथा रोगी को पूर्ण विश्राम देना चाहिए।

संखिया- आमाशय की धुलाई, विशेष रूप से सोडियम थायोसल्फेट के विलयन से। सोडियम थायोसल्फेट की अंत: शिरा सूई भी दी जा सकती है। पीने को गरम काफी, जल और मॉरफिन की सूई भी दी जाती है।

ऐल्कालॉयड- आमाशय को टैनिक अम्ल या पोटैशपरमैंगनेट से धोना चाहिए। कृत्रिम श्वसन तथा उत्तेजना रोकने के लिए बारबिट्यूरेट का सेवन कराना चाहिए।

पारद लवण- आमाशय को विशेषत: सोडियम फॉर्मल्डिहाइड सल्फोक्सिलेट से, धोना चाहिए। कच्चा अंडा या दूध का सेवन, अम्लोपचय (acidosis) पर कैल्सियम लैक्टेट।

सीस- आमाशय को धोना तथा वमनकारी औषधियों, जैसे सोडियम सल्फेट या एप्सम, देना चाहिए, ताकि सीस शीघ्र ही निकल जाए। प्रचुर मात्रा में कैल्सियम तथा फॉस्फ़रस वाला आहार देना चाहिए।

रजत- रजत लवण के विषों के लिए बड़ी मात्रा में नमक जल तथा दूध या साबुन पानी पिलाना चाहिए। पाकचूर्ण का सेवन कराना चाहिए।

ताम्र- ताम्र लवणों के विष के लिए दूध, अंडा, साबुन पानी, आटा और पानी का सेवन कराना चाहिए।

फॉस्फरस- तनु पोटैशपरमैंगनेट (1 भाग 1,000 भाग जल में)। जल में मैग्नीशिया; वमन के लिए पाँच ग्रेन तूतिया, एक गिलास दूध या जल में आधा चायचम्मच तारपीन देना चाहिए। तेल या घी का सेवन वर्जित है।

कार्बलिक अम्ल- एप्सम और ग्लोबर लवण (सोडियल सल्फेट) का सेवन, बहुत तनु ऐल्कोहॉल, कच्चा अंडा, आटा और पानी, दूध रेंड़ी का तेल देना चाहिए।

आयोडीन- स्टार्च और पानी देना चाहिए।

ऐंटीमनी- कड़ी चाय या कॉफी, आधे गिलास जल में आधा चायचम्मच टैनिक अम्ल; बाद में अंडा या दूध देना चाहिए।

विषैले पौधे  वमनकारी, उद्दीपक और रेंड़ी तेल सदृश कड़ी दस्तकारी औषधियाँ देना चाहिए।

टोमेन विष- सड़ी मछली, मांस, शाक भाजियों और डब्बे में बंद खाद्यान्नों के खाने से होता है। वमनकारी ओषधियाँ तथा दस्तकारी ओषधियाँ, जैसी रेंड़ी का तेल एवं एप्सम लवण देना, चाहिए एक चायचम्मच तारपीन या दोचाय चम्मच ग्लिसरीन डालकर, साबुन पानी से एनीमा देना चाहिए। (फलदेव सहाय वर्मा)

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संदर्भ
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