स्वस्थ विश्व हेतु स्वच्छ जल
विश्व जल दिवस की अंतरराष्ट्रीय पहल रियो डि जेनेरियो में 1992 में आयोजित पर्यावरण तथा विकास का संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCED) में की गई। इस वर्ष का विषय है, “स्वस्थ विश्व हेतु स्वच्छ जल”
हमारे ग्रह का 70% से अधिक हिस्सा जल से भरा है। परन्तु, जल की इस विशाल मात्रा में मीठे जल की मात्रा काफी कम है। पृथ्वी पर उपलब्ध कुल जल का करीब 2.7% मीठा जल है। इसका 75.2 फीसदी भाग ध्रुवीय क्षेत्रों में तथा 22.6 फीसदी भूमि जल के रूप में होता है। इस जल का शेष भाग झीलों, नदियों, वायुमंडल में, नमी के रूप में तथा हरे पेड़-पौधों में उपस्थित होता है। इनमें से उपयोग में आने वाला जल का हिस्सा थोड़ा है, जो नदियों, झीलों, तथा भूमि जल के रूप में मौजूद होता है।
दुनिया में उपस्थित मीठे जल की 1% मात्रा (पृथ्वी पर पाए जाने वाले कुल जल की मात्रा का 007%) हमारे सीधे उपयोग के लिए उपलब्ध है। हमें कहीं भी प्रतिदिन 30 से 50 लीटर स्वच्छ तथा सुरक्षित जल की आवश्यकता होती है और इसके बावजूद 884 मिलियन लोगों को सुरक्षित जल उपलब्ध नहीं है।
दुनियाभर में प्रत्येक वर्ष 1,500 घन किलोमीटर गंदे जल का निर्माण होता है। भले ही गंदगी तथा गंदे जल का ऊर्जा तथा सिंचाई के लिए उपयोग में लाया जा सकता हैं, पर ऐसा होता नहीं है। विकासशील देशों में 80 फीसदी कचरों को बिना शुद्ध किये हीं निष्कासित कर दिया जाता है, क्योंकि उनमें इसके लिए कोई नियम तथा संसाधन उपलब्ध नहीं है।
वहीं जनसंख्या तथा औद्योगिक विकास ने प्रदूषण में बढ़ोतरी की है जिससे अब स्वच्छ जल की मांग और भी बढ़ गई है। मानव तथा पर्यावरण दशा, पेय जल तथा कृषि जल की वर्तमान और भविष्य की उपलब्धता खतरे में है, इसके बावजूद जल प्रदूषण एक प्रभावशाली मुद्दा नहीं बन पा रहा है।
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