वनस्पतिविज्ञान

Submitted by Hindi on Wed, 08/24/2011 - 12:06
वनस्पतिविज्ञान में वनस्पति जगत्‌ में पाए जानेवाले सब पेड़ पौधों का अध्ययन होता है। जीवविज्ञान का यह एक प्रमुख अंग है। दूसरा प्रमुख अंग प्राणिविज्ञान है। सभी जीवों को जीवननिर्वाह करने, वृद्धि करने, जीवित रहने और जनन के लिए भोजन या ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है। यह ऊर्जा सूर्य से प्राप्त होती है। सूर्य में परमाणु के विखंडन या संलयन (fusion) से फ़ोटोन (photon) तरंगों के रूप में चलकर यह ऊर्जा पृथ्वी पर आती है। केवल पौधों में ही इस ऊर्जा के ग्रहण करने की क्षमता विद्यमान है। पृथ्वी के अन्य सब प्राणी पौधों से ही ऊर्जा प्राप्त करते हैं। अत: विज्ञान में वनस्पति के अध्ययन का विशिष्ट और बड़े महत्व का स्थान है।

वनस्पतिजगत्‌ के सदस्य अत्यंत सूक्ष्म से लेकर अत्यंत विशालकाय तक होते हैं। उत्पत्ति के विचार से शैवाल या एककोशिक पौधा सबसे साधारण और प्राचीनतम हो सकता है। यह अपना भोजन स्वयं बनाता है। आज कई प्रकार के गूढ़ आकार के भी शैवाल पाए जाते हैं। शैवालों से ही पृथ्वी पर के अन्य सब पौधों के उत्पन्न होने का अनुमान वैज्ञानिकों ने लगाया है। वनस्पतियों के अध्ययन में सबसे पहला कदम पेड़ पौधों का नामकरण और वर्गीकरण है। जबतक उनके नाम का पता न लगे और वे पहचान में न आवें, तब तक उनके अध्ययन का कोई महत्व नहीं है। अत: वनस्पतिविज्ञान का सबसे पुराना और सबसे अधिक महत्व का विभाग वर्गिकी या वर्गीकरण विज्ञान (Taxonomy) है। (देखें वर्गिकी)। इसमें केवल नाम का ही पता नहीं लगता, अपितु पेड़ पौधों के पारस्परिक संबंध का अध्ययन कर उन्हें विभिन्न समूहों में रखा भी जाता है। वर्गिकी का अध्ययन केवल जीवित पेड़ पौधों के संबंध में ही नहीं होता, बल्कि उन पेड़ पौधों के संबंध में भी होता है जो एक समय इस पृथ्वी पर थे पर वे, आज केवल जीवाश्म के रूप में ही उपलब्ध हैं।

वर्गिकी के लिए पौधों के रूप और संरचना का अध्ययन आवश्यक होता है। रूपों और संरचनाओं के अध्ययन के बिना पौधों का वर्गीकरण संभव नहीं है, अत: पेड़ पौधों के रूप और संरचना का अध्ययन आकारिकी या आकृति विज्ञान (Morphology) के अंतर्गत होता है। अन्य जीवों की भाँति पेड़ पौधे भी कोशिकाओं से बने होते है। सरलतम पौधा एक कोशिका का बना होता है, पर अधिकांश पौधे अनेक प्रकार की कोशिकाओं से बने होते हैं। कुछ कोशिकाएँ हरे पत्ते में रहती हैं और कुछ कोशिकाएँ काष्ठ का निर्माण करती हैं। कोशिका का अध्ययन कोशिकाविज्ञान (Cytology) के अंतर्गत और विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं ओर उनकी व्यवस्थाविधि का अध्ययन ऊतकविज्ञान (Histology) के अंतर्गत होता है। कोशिकाविज्ञान और ऊतकविज्ञान दोनों ही पादप आकारिकी की शाखाएँ हैं। इन्हीं के अध्ययन से हमें पता लगता है कि पेड़ पौधे कैसे बढ़ते हैं, कैसे जनन करते हैं, अपने विशिष्ट लक्षणों का अपनी संतानों में कैसे पहुंचाते हैं और कैसे अपना आहार बनाते तथा उनका उपयोग करते हैं।

पौधे जीवित रहने के लिए कैसे कार्य करते हैं ? इसका अध्ययन शरीरक्रिया विज्ञान, या फ़िज़ियोलॉजी (Physiology or Botany) के अंतर्गत होता है। पौधे कैसे अपना आहार प्राप्त करते हैं, उनकी कोशिकाएँ उनके बढ़ने और जनन में कैस कार्य करती हैं, उनपर बाह्य पदार्थों, प्रकाश, ऊष्मा और नमी का क्या प्रभाव पड़ता है, पौधे कैसी मिट्टी और वायु से पदार्थों को ग्रहण कर उनसे अपना आहार बनाते और उसे पचाते हैं, पौधों में उपापचय (metabolism) की क्रियाएँ कैसे होती हैं, अनावश्यक पदार्थों को कैसे निकाल बाहर करते हैं, प्रकाश संश्लेषण द्वारा पौधे विभिन्न प्रकार के पदार्थों का कैसे सृजन कर अपनी वृद्धि करते हैं और अन्य सब प्राणियों के लिए आहार प्रदान करते हैं, इन सबका अध्ययन फ़िज़ियॉलोजी में होता है।

विभिन्न परिस्थितियों, जैसे वन, मरुभूमि, अनूप मिट्टी (swamp soil), प्रशाद्वल मृदा (prairie) आदि में पौधे कैसे उगते हैं जलवायु जलभरण और मिट्टी का पौधे की वृद्धि पर क्या प्रभाव पड़ता है, इन सबका अध्ययन पादप परिस्थितिकी (Plantecology) के अंतर्गत किया जाता है। इनके अतिरिक्त वनों का संरक्षण, फसलों का वर्धन, मिट्टी का संरक्षण, पादपों का कीड़ों और रोगों से बचाव आदि तथा पादव वितरण, या पादप भूगोल का भी अध्ययन पादप परिस्थितिकी के अंतर्गत होता है।

जिस शाखा में हम पेड़ पौधों के रोगों का अध्ययन करते हैं, उसे रोगविज्ञान (Pathology) कहते हैं। उपयुक्त आहार के अभाव में, या जीवाणुओं या रोगाणुओं द्वारा, या कवकों द्वारा पौधों के रोग होते हैं। कवकों में क्लोरोफिल का अभाव रहता है। क्लोरोफिल प्रकाश विश्लेषण के लिए अत्यावश्यक है। कवक अपना आहार अन्य हरित पौधों से प्राप्त करते हैं। ऐसा करने में वे हरित पौधों को क्षतिग्रस्त कर सकते हैं, या नष्ट कर सकते हैं। पौधों के रोगों के अध्ययन के लिए रोगविज्ञानी सामान्य पौधों का अध्ययन कर उनके कार्य को समझता है। वह उन पौधों और जीवाणुओं का भी अध्ययन करता है जो सामान्य पौधों पर आक्रमण करते हैं। रोगों के निवारण के लिए वह रसायनों का भी उपयोग करता है।

पेड़ पौधे कैसे अपने विशिष्ट लक्षणों को अपनी संतानों को प्रदान करते हैं, इसका अध्ययन आनुवंशिक विज्ञान, या आनुवंशिकी (Genetics), के अंतर्गत होता है। विज्ञान की यह शाखा अपेक्षाकृत नई है और लगभग 1900 ई. से ही विकसित हुई है। विशेषत: ग्रेगर मेंडेल (Gregor Mendel) के प्रयोगों से आनुवंशिकी के कुछ नियमों का प्रतिपादन हुआ था, जिनसे बड़ी यथार्थता से उनके संबंध में भविष्यवाणी की जा सकती है।

वनस्पतिविज्ञान के व्यावहारिक उपयोग का अध्ययन आर्थिक वनस्पतिविज्ञान (Economic Botany) के अंतर्गत होता है। नए नए पेड़ पौधों की खोज करना, उनको उगाने के लिए किस उर्वरक की आवश्यकता होगी इसका पता लगाना और उनसे अधिक मात्रा में उत्पाद कैसे प्राप्त हो सकता है, इसका अध्ययन करना आर्थिक वनस्पतिविज्ञानी का कार्य है।

वनस्पतिविज्ञान की एक शाखा पादपाश्म विज्ञान (Paleobotany) है, जिसके अंतर्गत हम उन पौधों का अध्ययन करते हैं, जो एक समय पृथ्वी पर थे, किंतु अब नहीं उगते। पर उनके अवशेष ही अब चट्टानों, या पृथ्वीस्तरों में दबे यत्र तत्र पाए जाते हैं।पेड़ पौधों के नामकरण तथा वर्गीकरण इत्यादि के संबंध में देखें पादपविज्ञान। (राधेश्याम अंबष्ठ)

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संदर्भ
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