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9 जून, 2017, इंडिया साइंस वायर
नई दिल्ली, 9 जून (इंडिया साइंस वायर) : केरल के मुन्नार में बेहद ऊँचाई पर एक नई मेघ भौतिक वेधशाला (हाई एल्टीट्यूड क्लाउड फिजिक्स लैबोरेटरी) स्थापित की गई है, जिसके जरिये बादलों की गतिविधियों की निगरानी और मानसून का सटीक अनुमान लगाना अब आसान हो जाएगा।
पश्चिमी घाट की सबसे ऊँची चोटी अन्नामुदी से महज पाँच किलोमीटर दूर इस वेधशाला का उद्घाटन शुक्रवार को पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ. एम. राजीवन द्वारा किया गया। अन्नामुदी की समुद्र तल से ऊँचाई 2695 मीटर है और यहीं से मानसून भारत में प्रवेश करता है। इसलिये इस क्षेत्र में उच्च मेघ भौतिक वेधशाला का होना काफी महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि इससे मानसून की स्थिति को बेहतर तरीके से समझा जा सकेगा।
मुन्नार क्षेत्र के राजमले में यह वेधशाला समुद्र तल से 1820 मीटर की ऊँचाई पर स्थापित की गई है। राष्ट्रीय पृथ्वी विज्ञान अध्ययन केंद्र द्वारा स्थापित यह दक्षिण एशिया के उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र में सबसे अधिक ऊँचाई पर स्थित इस तरह की पहली वेधशाला है। इस वेधशाला से प्राप्त आँकड़ों का उपयोग भारी वर्षा, तड़ित, झंझावातों, मानूसन, वायुमंडलीय प्राकृतिक आपदाओं, मौसमी पूर्वानुमान आदि में किया जाएगा। वेधशाला में शामिल प्रमुख यंत्रों में स्वचालित मौसम केंद्र, माइक्रो रेन राडार, सिलियोमीटर, डिसड्रोमीटर आदि शामिल हैं।
मुन्नार में स्थापित मेघ भौतिक वेधशाला अपनी तरह की देश की दूसरी वेधशाला होगी, जो बादलों की गतिविधियों को समझकर मानसून सहित अनेक मौसमी घटनाओं के बारे में जानकारी जुटाने में मदद करेगी। इससे पहले वर्ष 2012 में महाबलेश्वर (महाराष्ट्र) में भी अत्यधिक ऊँचाई पर मेघ भौतिक वेधशाला की स्थापना की गई थी। यह वेधशाला बादलों और बारिश के साथ ही पर्यावरण की स्थिति, जैसे- एरोसोल, वायु, तापमान, आर्द्रता जैसी सूक्ष्म भौतिक दशाओं का आकलन करने में मदद करती है।
पिछले एक दशक से भारत में मौसम पूर्वानुमान के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है। अब हुदहुद, पैलिन एवं मोरा जैसे चक्रवातों के समय रहते पूर्वानुमान से आम जनता को इन आपदाओं के कारण कम से कम नुकसान होता है। पूर्वानुमानों की सफलता के पीछे इस तरह की आधुनिक तकनीकों की भूमिका अहम है।
पूर्वानुमानों के साथ ही मौसम की जटिलता को समझने के लिये भी भारतीय वैज्ञानिक अनेक शोध करते रहते हैं। विज्ञान में शोध कार्यों के लिये आँकड़ों की आवश्यकता होती है। इसलिये पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय देश भर में विभिन्न वेधशालाओं की स्थापना करता रहा है। (इंडिया साइंस वायर)