प्रिय मित्रों,
मेरे सामने पीपल्स साइंस इंस्टीट्यूट (पीएसआई) का सन् 2010 का कैलेण्डर रखा हुआ है, हो सकता है कि सुनने में यह थोड़ा बेशर्मी भरा लगे, लेकिन सच यही है कि यह कैलेण्डर बेहद आश्चर्यजनक और उम्दा है। पीपल्स साइंस इंस्टीट्यूट के 2009 का कैलेण्डर भी “गंगा” नदी पर आधारित था, इस बार का कैलेण्डर 'गोरी गंगा' पर आधारित है और सौंदर्यबोध की दृष्टि से देखा जाये तो इस वर्ष का कैलेण्डर अधिक बेहतर है।
मैं आप लोगों से आग्रह करता हूं कि कृपया कैलेण्डर मंगवाने के लिये अपने-अपने ऑर्डर समय से दे दें, कहीं ऐसा न हो कि सभी जल्दी बिक जायें और आपको अपनी प्रति न मिल पाये… कीमतें निम्नानुसार होंगी…
भारत में (डाक खर्च सहित) 1 से 49 कैलेण्डर रु 150/- प्रति, 50 से 99 कैलेण्डर रु 125/- प्रति
सन् 2010 का यह कैलेण्डर पूर्णतः उत्तराखण्ड में स्थित “गोरी गंगा” पर आधारित है, जो कि इलाके की प्राचीन और दूरस्थ नदी है। कैलेण्डर की तस्वीरों में सूर्य-आच्छादित निचली घाटी की सुन्दर तस्वीरें हैं, जिसमें ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र के साथ आई हुई जलराशि और जंगल की एकांतता का सुन्दर चित्रण होता है। दो ऊर्जावान फ़ोटोग्राफ़रों देवराज अग्रवाल तथा सलिल दास ने चार दिनों की मुंसियारी से मिलम ग्लेशियर तक की पैदल और घोड़ी यात्रा के बाद आपके लिये बेहद रोमांचक और सांसें रोक देने वाले फ़ोटो खींचे हैं।
उत्तराखण्ड की यह गोरी गंगा नदी, उस श्रेणी में आती है, जिसे प्रकृतिप्रेमी “जंगली नदी” कहते हैं। इस नदी का कथित “जंगली” सौन्दर्य अब तक अछूता है, अद्वितीय है, अनुपम है और अतुलनीय भी है। लेकिन ऐसी नदियाँ आजकल तेजी से कम होती जा रही हैं। गोरी गंगा के अस्तित्व को खतरा भी उत्पन्न हो चुका है, क्योंकि सरकार द्वारा इस नदी के 107 किमी की लम्बाई में पाँच हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट लगाने का फ़ैसला किया है। प्रत्येक हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्लांट नदी के पानी को एक-एक सुरंग में से निकालकर पावरहाउस को ले जायेगा। नदी के बाँध का निचला हिस्सा दिन में कई बार सूखा छोड़ दिया जायेगा और इस वजह से नदी के बहाव के साथ ही इसके पर्यावरण और जलीय प्रजातियाँ भी नष्ट होंगी। पीएसआई उत्तराखण्ड के स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर इस बात के लिये प्रयासरत है कि जलविद्युत परियोजनाओं की वजह से पर्यावरण को कोई नुकसान न हो, तथा विकास के नाम पर प्रकृति का विनाश नहीं होना चाहिये। जैसा कि आप जानते हैं पिछले दो दशकों से पीएसआई इलाके में विभिन्न वाटरशेड परियोजनाओं, घरेलू उपयोग तथा सिंचाई हेतु रेनवाटर हार्वेस्टिंग की तकनीक निर्माण करने में जुटा हुआ है ताकि इसे बड़े बाँधों का विकल्प बनाया जा सके, साथ ही नदियों के पानी की गुणवत्ता भी बनाये रखी जाये। हाल ही में पीएसआई ने पहाड़ी समुदायों की मदद से “जल अभयारण्यों” के निर्माण तथा इलाके के झरनों और छोटी नदियों को पुनर्जीवित करने का काम भी शुरु किया। नदियों को बचाये रखने के लिये पीएसआई ने अध्ययन के तौर पर पर्यावरणीय प्रवाह को ही अपना आधार बनाया हुआ है। साथ ही पीएसआई उच्च स्तर पर नीति-निर्माताओं के साथ भी सम्पर्क मे हैं, ताकि वांछित परिणाम हासिल किये जा सकें। सौभाग्य से पीएसआई के इन प्रयासों की वजह से जनता की राय और सरकारी अधिकारियों के रवैये में भी परिवर्तन देखने को मिला है। इस सम्बन्ध में आपका योगदान और नैतिक समर्थन भी अति-आवश्यक है।
पीएसआई का यह कैलेण्डर लोगों को हिमालय क्षेत्र की नदियों, उनकी समृद्ध विरासत तथा पर्यावरण के बारे में शिक्षित करने और सूचित करने के प्रयासों का एक हिस्सा है। मैं आपसे यह कैलेण्डर खरीदने का आग्रह करता हूं साथ ही पीएसआई को मुक्त हस्त से दान की अपील भी करता हूं, ताकि इन अमूल्य हिमालयी नदियों को बचाया जा सके। आपका सहयोग बेहद महत्वपूर्ण है, और हम चाहते हैं कि यह जारी रहे।
सम्पर्क - पीपल्स साइंस इंस्टीट्यूट,
252 वसन्त विहार, फेज 1
देहरादून– 248 006
उत्तराखंड
0135- 277 3849, 276 3649
psiddoon@gmail.com
www.peoplesscienceinstitute.com
पूरे कैलेंडर को देखने के लिए आप नीचे के गूगल डाक्स के लिंक पर जाएं