लगभग 23 करोड़ आबादी के साथ जनसंख्या की दृष्टि से उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा राज्य है। इसका अधिकांश भाग हिमालय से आने वाली सदानीरा नदियों से अच्छादित है तथा केवल बुन्देलखण्ड का क्षेत्र ऐसा है जहां की नदियां मानसून पर ही आधारित हैं। 'सिंचनेन समृद्धि भवति' के मूल मंत्र को ध्यान में रखकर उत्तरप्रदेश के सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग द्वारा निरन्तर नई सिंचाई परियोजनाओं का विकास किया गया है। हिमालय से आने वाली नदियों की धारा को नहरों में मोड़कर और बुन्देलखण्ड व विन्ध्य क्षेत्र की नदियां के जलशयों का निर्माण कर प्रदेश में व्यापक स्तर पर सिंचाई की व्यवस्था बनाई गई है।जो क्षेत्र सिंचाई के लिए नदियों के जल से वंचित हो रहे थे, उनके लिये सिंचाई विभाग द्वारा नलकपू का निर्माण करने का प्रयास किया गया है।सिंचाई सुविधाओं के निरंतर विकास की दिशा में ही वर्ष 1978 में पूर्वी उत्तरप्रदेश के बहराइच व गोण्डा जिलों में 3 लाख 12 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई करने के लिये बांयी घाघरा नहर के निर्माण की परियोजना की परिकल्पना की गई थी।
वर्ष 1982 में इस सिंचाई परियोजना का विस्तार कर इसे घाघरा, सरयू, राप्ती, बाणगंगा एवं रोहिन नदियों को आपस में जोड़ते हुए सरयू नहर परियोजना के नाम से सिंचाई परियोजना के रूप में विकसित किया गया था। पांच नदियों के आपस में जोड़ने से नदियों में उपलब्ध जल के नहरों में समुचित उपयोग के साथ-साथ इनमें आने वाली बाढ़ को भी कुछ हद तक सीमित किया जा सकेगा। इस नई परियोजना से लाभान्वित जिलों की संख्या 02 से बढकर 09 हो गई और सिंचाई का प्रस्तावित क्षेत्रफल भी साढे चार गुना बढकर 14 लाख 4 हजार हेक्टेयर हो गया है । वर्ष 2012 में इस परियोजना को सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया गया था। सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना सिंचाई विभाग के साथ-साथ भारत सरकार की महत्वाकांक्षी नदी घाटी जोड़ो परियोजना से भी जुड़ती है। इसके जरिए घाघरा, सरयू, राप्ती, बाण गंगा और रोहिन नदी को भी जोड़ना है। इससे यूपी के कई जिलों में हर साल आने वाली बाढ़ की समस्या भी काफी हद तक स्थाई हल हो जाएगी ।
इस परियोजना से पूर्वाचंल के बहराइच, गोण्डा, बलरामपुर, श्रावस्ती, सन्तकबीर नगर, बस्ती, सिद्धार्थनगर, गोरखपुर और महराजगंज जिलों के 29 लाख कृषकों को सिंचाई की सुविधा मिल पायेगी। परियोजना के अन्तर्गत सरयू मुख्य नहर,राप्ती मुख्य नहर के आलावा 10 लाख नहरें और चार पम्प नहरों सहित करीब 6600 किमी0 की नहर प्रणाली का निर्माण करके हर खेत को पानी उपलब्ध कराने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है । ऐसे समय जब परियोजना धन की कमी से जूझ रही थी और निर्माण कार्यों की गति सुस्त थी, तब भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे 04 वर्षों में ही पूरा करने का संकल्प लिया। धन के अभाव के कारण परियोजना जो बेहद धीमी गति से चल रही थी उसमे तेजी लाने के लिए केंन्द्र सरकार से तालमेल बनाकर धनराशि की व्यवस्था की गई।जिसके फलस्वरूप ही यह परियोजना आज अपने मुकाम पर खड़ी है। पिछले चार वर्षों में स्वयं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस परियोजना की माइक्रो स्तर पर मॉनिटरिंग करते हुए सभी बाधाओं को दूर कराया।
सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना की सबसे बड़ी कठिनाई भूमि अधिग्रहण की थी। लगभग तीन लाख से अधिक भू स्वामियों से 25028 हेक्टेयर भूमि आपसी सहमति से खरीदना चुनौतीपूर्ण कार्य था,जो परियेाजना के प्रारम्भिक दशकों में देरी का भी प्रमुख कारण रहा, लेकिन, जल शक्ति मंत्री डा0 महेन्द्र सिंह के मार्गदर्शन में शासन-प्रशासन और विभागीय अधिकारियों के अथक प्रयास से इस कार्य को सफलता पूर्वक पूरा कर लिया गया और भूमि की व्यवस्था करने के लिए स्थानीय लोगों के अलावा देश विदेश में रहने वाले अनेक भू स्वामियों से सम्पर्क किया गया और उन्हें अपने जिलों में लाकर भूमि बेचने की कार्यवाही पूरी की गई। तो दूसरी तरफ अनेक भूखंडो पर चल रहे मुकदमों को भी सिंचाई विभाग ने स्थानीय प्रशासन के सहयोग से निपटाया । परियोजना की दूसरी बड़ी बाधा नहरों के मार्ग में पड़ने वाले बड़े-बड़े नाले व छोटी नदियां थी, जिन पर बड़ी-बड़ी ड्रेनेज क्रासिंग निर्मित कर नहरों को पार कराया गया।
यह कार्य पूरी तरह तकनीकी था, जिसे विभाग की उच्च तकनीकी क्षमताओं से ही पूर्ण किया जा सका। परियोजना की सरयू लिंक चैनल, घाघरा नदी पर स्थित गिरिजा बैराज से निकलती है तथा 47 किमी0 चलकर सरयू नदी में मिल जाती है। इसी स्थान से 63 किमी0 लम्बी सरयू मुख्य नहर निकलती है जो कि सरयू-राप्ती दोआब को सींचते हुए राप्ती नदी में राप्ती बैराज पर मिल जाती है। सरयू मुख्य नहर की नहर प्रणालियां 10 लाख 77 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचित करेगी। राप्ती नदी के राप्ती बैराज से राप्ती मुख्य नहर निकलकर 126 किमी0 चलकर बानगंगा बैराज पर बाणगंगा नदी में मिल जाती है तथा रास्ते में 2 लाख 10 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि सिंचाई करेगी। परियोजना की अंतिम लिकं कैम्पियरगंज शाखा है जो कि बानगंगा नदी को रोहिणी नदी से जोड़ती है साथ ही 62 किमी0 लम्बे मार्ग में 1 लाख 17 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराएगी। इस प्रकार परियेाजना के अन्तर्गत करीब 6600 किमी0 मुख्य शाखा एवं छोटी नहरों के नेटवर्क का निर्माण किया गया है ताकि कमाण्ड क्षेत्र के प्रत्येक हिस्से में आसानी से सिंचाई के लिए जल उपलब्ध कराया जा सके। कुल मिलाकर 9803 करोड़ की लागत से निर्मित इस परियाजना में सरयू एवं राप्ती नदी पर दो बड़े बैराज, अयोध्या,गोला,डुमरियागंज एवं उतरौला सहित चार पम्प कैनाल,10 प्रमुख नहरे, इमामगंज शाखा ,बस्ती शाखा, बांसी शाखा, खलीलाबाद शाखा, गोण्डा शाखा, तरबगंज शाखा, इटियाथोक शाखा, मनकापुर शाखा, टिकरी शाखा एवं कैम्पियरगंज शाखाओं के निर्माण के साथ इनके संचालन के लिए 10 हेड रेगुलटेर, 50 बड़े डेनेज क्रासिंग एवं करीब 21हजार पुलों का निर्माण किया गया है ।
आज जब यह परियोजना पूरी हो रही है इसके कुछ अप्रत्यक्ष लाभ भी दिख रहा है हैं, जैसे कि राप्ती मुख्य नहर के दोनो किनारों पर 8-8 मीटर चौड़े सेवा मार्ग का निर्माण किया गया है जो श्रावस्ती, बलरामपुर और सिद्धार्थनगर जैसे जिलों को तो आपस में जोड़ेगी ही साथ ही अधिक समय तक नेपाल के साथ बार्डर रोड के रूप में भी प्रयोग किया जा सकेगा। इसके अतिरिक्त नहरों की पटरियों पर बने करीब 5000 किमी0 सेवा मार्ग विभिन्न ग्रामों को जोड़ने वाले सम्पर्क मार्ग के रूप में भी इस्तेमाल हो सकेंगें।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कर कमलों से लोकार्पित हो रही सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना एक लम्बी यात्रा पूरा करने के पश्चात् लोक कल्याण के तैयार की गई है। जो लगभग 29 लाख कृषकों को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराकर करीब 24.00 लाख टन अतिरिक्त खाद्यान्न का उत्पादन कर देश एवं प्रदेश की प्रगति में योगदान देगी। पीएम मोदी की अत्यन्त महत्वकांशी और बहुप्रतीक्षित यह परियोजना - 'सिंचनेन समृद्धि भवति' की मूल भावना को आवश्य पूरा करेगी और उत्तरप्रदेश के पूर्वांचल के नौ जिलों के सर्वांगीण विकास की और ले जाएगी।