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प्रजातंत्र लाइव, 01 अप्रैल 2015
प्रजातंत्र लाइव फीचर डेस्क की प्रस्तुति
शुद्ध और पर्याप्त पेयजल स्वस्थ जीवन की मुख्य जरूरत है। आंकड़ों के अनुसार, भारत में केवल 30 प्रतिशत लोगों को ही सुरक्षित पेयजल मिल पाता है। हमारे हिसाब से इसमें भी कई समस्याएँ हैं। देहाती लोगों के लिए इस सुविधा का सबसे अधिक अभाव है। देश के कई हिस्सों में भू-जल स्तर कम होने के कारण पानी की कमी है। औद्योगिक कचरे के कारण पानी के बहुत से स्रोत प्रदूषित हो रहे हैं। नदियाँ गन्दी नालियाँ बन चुकी हैं। पानी के अन्य स्रोत भी प्रदूषित हो चुके हैं।
पेयजल को कीटाणुरहित होना चाहिए। साथ ही, उसमें नुकसान पहुँचाने वाले रसायन, गन्ध और उन्हें बेस्वाद भी नहीं होना चाहिए। असुरक्षित और अपर्याप्त पीने का पानी आधी बीमारियों का कारण है, खासकर ग्रामीण इलाकों में। परन्तु शहरों में भी (बारिश के दिनों में) पीने का पानी असुरक्षित हो जाता है। हैजा, उल्टी-टट्टी (गेस्ट्रोएंटेरिइटिस), टायफाइड, पोलियो, पीलिया, दस्त, कीड़ों की छूत और त्वचा की छूत आदि प्रदूषित पानी से होने वाली बीमारियाँ हैं। पानी के कुछ स्रोतों में कुछ विषैले लवण जैसे आर्सेनिक होते हैं।
हर व्यक्ति को प्रतिदिन ग्रामीण इलाके में कम से कम 40 लीटर और शहरों में 60 लीटर पानी की जरूरत होती है। पानी की कमी के कारण लोग जैसा भी पानी मिले, वही इस्तेमाल करने पर मजबूर हो जाते हैं। इससे अक्सर पानी से होने वाले संक्रमण का शिकार हो जाते हैं। किसी भी विषय के उद्देश्य के अनुसार कौन-सा तरीका असरदार होगा, यह तय करना होगा।
हमारे देश की गंगा जैसी पवित्र नदियाँ बड़े पैमाने पर प्रदूषित हो चुकी हैं। वैसे भी, पानी अच्छा होने के कई मापदण्ड हैं। पानी का धूमिल होना ठीक नहीं, यह सभी जानते हैं हालाँकि इसे मापने का यन्त्र भी उपलब्ध है। धूमिल होना मिट्टी घुल जाने से प्रदूषण का सूचक है। इसको ठीक करने के तरीके हैं। जैसे, पानी को 24 घण्टे स्थिर रखने से पता चल जाता है। पानी का रंग भी प्रदूषण का सूचक है क्योंकि पानी का कोई रंग नहीं होता। पानी में रंग दिखना रासायनिक प्रदूषण का सूचक है। शुद्ध पानी गन्धहीन भी होता है। बू आने से पता चल जाता है कि इसमें प्रदूषण है। इसके भी मापक उपलब्ध हैं। इसी के साथ पानी का स्वाद भी सही होना जरूरी है। चखकर हम ये जाँच सकते हैं। प्रदूषित पानी का स्वाद अलग-अलग होता है। कुछ स्वाद रासायनिक या धातुओं के होने का संकेत है, जैसे मैग्नीशियम से मीठापन या नमक से खारापन।
इन सारे गुण-धर्मों के होते हुए भी रासायनिक जाँच जरूरी है। पानी में धातुओं का होना कुछ हद तक सामान्य बात मान सकते हैं। पानी के स्रोतों में मनुष्य और पशुओं के मल के मिल जाने से (चाहे थोड़ी-सी ही मात्रा में) पीने के पानी में बीमारी पैदा करने वाले कीटाणु पनपते हैं। अगर प्रदूषण ज्यादा है तो इससे पानी से होने वाले रोग भी हो जाते हैं। पानी के सभी स्रोत जैसे नदियाँ, जलधाराएँ, तालाब और झीलें जो भी हैं, किसी न किसी तरह से दूषित हो सकती हैं। बार-बार उसी पानी में कपड़े धोने, बर्तन मंजाने, मवेशियों को नहलाने या मनुष्यों के नहाने से नुकसान पहुँचाने वाले कीटाणु पानी में आ जाते हैं। इसके अलावा, शहरों में उद्योगों का कचरा रासायनिक रूप से पानी को प्रदूषित करता है। अगर पानी का स्रोत विशाल है तो प्रदूषणकारी तत्वों की सान्द्रता कम हो जाती है और उनसे होने वाला नुकसान भी, परन्तु जहाँ पानी कम हो वहाँ यह भी नहीं हो पाता। इसलिए ऊपरी सतह का पानी तब तक पीने योग्य नहीं होता जब तक उसे जीवाणुरहति न कर दिया जाए।
भारत में अभी गंगा जैसी पवित्र मानी जाने वाली नदियाँ तक बुरी तरह गन्दी हो चुकी हैं। सैकड़ों शहरों से मलमूत्र तथा औद्योगिक गन्दगी आकर नदियों में घुल-मिल जाती है। खेतों से खाद के अंश भी पानी में उतर जाते हैं, जिससे कूपनलिकाएँ प्रदूषित हो चुकी हैं। भारत में जल प्रदूषण की रोकथाम के लिए बोर्ड हैं, लेकिन इनसे बात कुछ बन नहीं पा रही है।
जमीन के अन्दर का पानी यानी भूजल, तुलनात्मक रूप से जीवाणु रहति है। अगर धरती की ऊपरी परत का (भूपृष्ठीय) दूषित पानी रिसकर अन्दर न पहुँचे, तो यह पानी प्रदूषण से बचा रह सकता है। बोरवेल से निकाला जाने वाला पानी गाँवों में काफी आम है, यह अमूमन पूरी तरह जीवाणु रहित है। खुले कुओं का पानी, सतह के पानी के स्रोतों की तरह आसानी से दूषित हो जाता है। अगर खुले कुओं का पानी सुरक्षित रखना हो तो इनकी ठीक से देखभाल करना जरूरी है।
मोदी सरकार के राज में....
पानी से हो रहे विकलांग
बिहार के नवादा जिले कचहरियाडीह निवासी कारू राजवंशी की गाय ने दो दिन पहले एक बछड़े को जन्म दिया। वह पैदा हुआ, लेकिन विकलांग। यह दूषित पानी पीने का नतीजा है। दूषित जल के सेवन से डेढ़ दशक पहले कारू और उसकी पत्नी विकलांग हो गई थी। उनके दो स्वस्थ पुत्र पैदा हुए, लेकिन 10 साल की उम्र में ही उनके पुत्र शिवबालक (16 वर्ष) और गोवर्धन (14 वर्ष) विकलांग हो गए। दरअसल, विकलांगता की यह समस्या सिर्फ कारू परिवार तक सीमित नहीं है। कचहरियाडीह के शत-प्रतिशत लोगों की कहानी है, जो विकलांगता का अभिशाप झेल रहे हैं। स्थिति यह थी कि यहाँ जो भी पानी का सेवन करता है वह या तो विकलांग हो जाता है या उसे कोई गम्भीर बीमारी जकड़ लेती है। किसुन भूइयां का 20 साल का बेटा संतोष विकलांगता का शिकार है। उसका पूरा शरीर टेढ़ा हो गया है। कपिल राजवंशी, पंकज, विमला, ममता, नरेश, सरोज, पूजा, संगीता, सुशील जैसे दर्जनों ग्रामीण हैं, जिनका जीवन जैसा भी है, उनकी शरीर तो टेढ़ी-मेढ़ी है।
इलाके के बड़े डॉक्टर शत्रुघ्न प्रसाद सिंह कहते हैं कि आमतौर पर पानी में डेढ़ फीसदी फ्लोराइड की मात्रा पाई जाती है। जाँच में कचहरियाडीह गाँव में आठ फीसदी फ्लोराइड की मात्रा पाई गई है। लिहाजा, ग्रामीण फ्लोरोसिस नामक रोग के शिकार हो जाते हैं। इस रोग से बच्चों का अंग टेढ़ा होने लगता है और हड्डियाँ चौकोर होने लगती हैं। 15-16 साल की उम्र में ही लोग बुढ़ापा का अहसास करने लगते हैं।
हालाँकि, इस रोग से बचाव के लिए हरदिया पंचायत में पानी टंकी का निर्माण कराया गया है। प्रभावित ग्रामीणों को विस्थापित भी किया है, लेकिन गाँववालों की परेशानी खत्म नहीं हो रही है। लोक-स्वास्थ्य अभियन्त्रण विभाग के कार्यपालक अभियन्ता प्रद्युम्न शर्मा कहते हैं कि ग्रामीणों को शुद्ध पानी की व्यवस्था करायी जा रही है।
पानी में प्रदूषण का 80 फीसदी कारण घरों से निकलने वाले प्रदूषित पानी ही हैं। इनसे बचने के लिए हम खुले मैदान और पानी में कूड़ा-करकट फेंकने की आदत छोड़ें।
मोदी सरकार को अगले माह पूरा एक साल हो जायेगा लेकिन इस दौरान देश-समाज की स्थिति वैसी ही है जैसी कांग्रेस के दौर में थी। भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में कहा था कि देश के नागरिकों को स्वच्छ पेयजल की सुविधाएँ मुहैया कराई जायेगी। लेकिन देश में पेयजल की समस्या में फिलहाल कोई बदलाव दिखाई नहीं दे रहा है।
किसी समाज के स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित पानी और स्वच्छता की सुविधाएँ बहुत महत्त्वपूर्ण हैं परन्तु कई कारणों से अभी तक इन दो पर बहुत कम ध्यान दिया गया है। इन कारणों में से मुख्य है- गरीबी। पानी और मलमूत्र निकास की उचित व्यवस्था से बीमारियों का पनपना बहुत बड़ी हद तक कम किया जा सकता है। आज भी भारत की देहाती जनसंख्या के लिए सुरक्षित और पर्याप्त पीने का पानी सपना ही है परन्तु कई ऐसे तरीके हैं जिनकी मदद से हम परिवार और समुदाय के स्तर पर पानी और स्वच्छता का इन्तजाम कर सकते हैं।पीने का पानी
शुद्ध और पर्याप्त पेयजल स्वस्थ जीवन की मुख्य जरूरत है। आंकड़ों के अनुसार, भारत में केवल 30 प्रतिशत लोगों को ही सुरक्षित पेयजल मिल पाता है। हमारे हिसाब से इसमें भी कई समस्याएँ हैं। देहाती लोगों के लिए इस सुविधा का सबसे अधिक अभाव है। देश के कई हिस्सों में भू-जल स्तर कम होने के कारण पानी की कमी है। औद्योगिक कचरे के कारण पानी के बहुत से स्रोत प्रदूषित हो रहे हैं। नदियाँ गन्दी नालियाँ बन चुकी हैं। पानी के अन्य स्रोत भी प्रदूषित हो चुके हैं।
पेयजल को कीटाणुरहित होना चाहिए। साथ ही, उसमें नुकसान पहुँचाने वाले रसायन, गन्ध और उन्हें बेस्वाद भी नहीं होना चाहिए। असुरक्षित और अपर्याप्त पीने का पानी आधी बीमारियों का कारण है, खासकर ग्रामीण इलाकों में। परन्तु शहरों में भी (बारिश के दिनों में) पीने का पानी असुरक्षित हो जाता है। हैजा, उल्टी-टट्टी (गेस्ट्रोएंटेरिइटिस), टायफाइड, पोलियो, पीलिया, दस्त, कीड़ों की छूत और त्वचा की छूत आदि प्रदूषित पानी से होने वाली बीमारियाँ हैं। पानी के कुछ स्रोतों में कुछ विषैले लवण जैसे आर्सेनिक होते हैं।
प्रति व्यक्ति जरूरत
हर व्यक्ति को प्रतिदिन ग्रामीण इलाके में कम से कम 40 लीटर और शहरों में 60 लीटर पानी की जरूरत होती है। पानी की कमी के कारण लोग जैसा भी पानी मिले, वही इस्तेमाल करने पर मजबूर हो जाते हैं। इससे अक्सर पानी से होने वाले संक्रमण का शिकार हो जाते हैं। किसी भी विषय के उद्देश्य के अनुसार कौन-सा तरीका असरदार होगा, यह तय करना होगा।
बदबू भी है और मिट्टी भी
हमारे देश की गंगा जैसी पवित्र नदियाँ बड़े पैमाने पर प्रदूषित हो चुकी हैं। वैसे भी, पानी अच्छा होने के कई मापदण्ड हैं। पानी का धूमिल होना ठीक नहीं, यह सभी जानते हैं हालाँकि इसे मापने का यन्त्र भी उपलब्ध है। धूमिल होना मिट्टी घुल जाने से प्रदूषण का सूचक है। इसको ठीक करने के तरीके हैं। जैसे, पानी को 24 घण्टे स्थिर रखने से पता चल जाता है। पानी का रंग भी प्रदूषण का सूचक है क्योंकि पानी का कोई रंग नहीं होता। पानी में रंग दिखना रासायनिक प्रदूषण का सूचक है। शुद्ध पानी गन्धहीन भी होता है। बू आने से पता चल जाता है कि इसमें प्रदूषण है। इसके भी मापक उपलब्ध हैं। इसी के साथ पानी का स्वाद भी सही होना जरूरी है। चखकर हम ये जाँच सकते हैं। प्रदूषित पानी का स्वाद अलग-अलग होता है। कुछ स्वाद रासायनिक या धातुओं के होने का संकेत है, जैसे मैग्नीशियम से मीठापन या नमक से खारापन।
इन सारे गुण-धर्मों के होते हुए भी रासायनिक जाँच जरूरी है। पानी में धातुओं का होना कुछ हद तक सामान्य बात मान सकते हैं। पानी के स्रोतों में मनुष्य और पशुओं के मल के मिल जाने से (चाहे थोड़ी-सी ही मात्रा में) पीने के पानी में बीमारी पैदा करने वाले कीटाणु पनपते हैं। अगर प्रदूषण ज्यादा है तो इससे पानी से होने वाले रोग भी हो जाते हैं। पानी के सभी स्रोत जैसे नदियाँ, जलधाराएँ, तालाब और झीलें जो भी हैं, किसी न किसी तरह से दूषित हो सकती हैं। बार-बार उसी पानी में कपड़े धोने, बर्तन मंजाने, मवेशियों को नहलाने या मनुष्यों के नहाने से नुकसान पहुँचाने वाले कीटाणु पानी में आ जाते हैं। इसके अलावा, शहरों में उद्योगों का कचरा रासायनिक रूप से पानी को प्रदूषित करता है। अगर पानी का स्रोत विशाल है तो प्रदूषणकारी तत्वों की सान्द्रता कम हो जाती है और उनसे होने वाला नुकसान भी, परन्तु जहाँ पानी कम हो वहाँ यह भी नहीं हो पाता। इसलिए ऊपरी सतह का पानी तब तक पीने योग्य नहीं होता जब तक उसे जीवाणुरहति न कर दिया जाए।
भारत में अभी गंगा जैसी पवित्र मानी जाने वाली नदियाँ तक बुरी तरह गन्दी हो चुकी हैं। सैकड़ों शहरों से मलमूत्र तथा औद्योगिक गन्दगी आकर नदियों में घुल-मिल जाती है। खेतों से खाद के अंश भी पानी में उतर जाते हैं, जिससे कूपनलिकाएँ प्रदूषित हो चुकी हैं। भारत में जल प्रदूषण की रोकथाम के लिए बोर्ड हैं, लेकिन इनसे बात कुछ बन नहीं पा रही है।
जमीन के अन्दर का पानी यानी भूजल, तुलनात्मक रूप से जीवाणु रहति है। अगर धरती की ऊपरी परत का (भूपृष्ठीय) दूषित पानी रिसकर अन्दर न पहुँचे, तो यह पानी प्रदूषण से बचा रह सकता है। बोरवेल से निकाला जाने वाला पानी गाँवों में काफी आम है, यह अमूमन पूरी तरह जीवाणु रहित है। खुले कुओं का पानी, सतह के पानी के स्रोतों की तरह आसानी से दूषित हो जाता है। अगर खुले कुओं का पानी सुरक्षित रखना हो तो इनकी ठीक से देखभाल करना जरूरी है।
मोदी सरकार के राज में....
पानी से हो रहे विकलांग
बिहार के नवादा जिले कचहरियाडीह निवासी कारू राजवंशी की गाय ने दो दिन पहले एक बछड़े को जन्म दिया। वह पैदा हुआ, लेकिन विकलांग। यह दूषित पानी पीने का नतीजा है। दूषित जल के सेवन से डेढ़ दशक पहले कारू और उसकी पत्नी विकलांग हो गई थी। उनके दो स्वस्थ पुत्र पैदा हुए, लेकिन 10 साल की उम्र में ही उनके पुत्र शिवबालक (16 वर्ष) और गोवर्धन (14 वर्ष) विकलांग हो गए। दरअसल, विकलांगता की यह समस्या सिर्फ कारू परिवार तक सीमित नहीं है। कचहरियाडीह के शत-प्रतिशत लोगों की कहानी है, जो विकलांगता का अभिशाप झेल रहे हैं। स्थिति यह थी कि यहाँ जो भी पानी का सेवन करता है वह या तो विकलांग हो जाता है या उसे कोई गम्भीर बीमारी जकड़ लेती है। किसुन भूइयां का 20 साल का बेटा संतोष विकलांगता का शिकार है। उसका पूरा शरीर टेढ़ा हो गया है। कपिल राजवंशी, पंकज, विमला, ममता, नरेश, सरोज, पूजा, संगीता, सुशील जैसे दर्जनों ग्रामीण हैं, जिनका जीवन जैसा भी है, उनकी शरीर तो टेढ़ी-मेढ़ी है।
पानी में डेढ़ फीसद फ्लोराइड
इलाके के बड़े डॉक्टर शत्रुघ्न प्रसाद सिंह कहते हैं कि आमतौर पर पानी में डेढ़ फीसदी फ्लोराइड की मात्रा पाई जाती है। जाँच में कचहरियाडीह गाँव में आठ फीसदी फ्लोराइड की मात्रा पाई गई है। लिहाजा, ग्रामीण फ्लोरोसिस नामक रोग के शिकार हो जाते हैं। इस रोग से बच्चों का अंग टेढ़ा होने लगता है और हड्डियाँ चौकोर होने लगती हैं। 15-16 साल की उम्र में ही लोग बुढ़ापा का अहसास करने लगते हैं।
पानी की टंकी भी बेकार
हालाँकि, इस रोग से बचाव के लिए हरदिया पंचायत में पानी टंकी का निर्माण कराया गया है। प्रभावित ग्रामीणों को विस्थापित भी किया है, लेकिन गाँववालों की परेशानी खत्म नहीं हो रही है। लोक-स्वास्थ्य अभियन्त्रण विभाग के कार्यपालक अभियन्ता प्रद्युम्न शर्मा कहते हैं कि ग्रामीणों को शुद्ध पानी की व्यवस्था करायी जा रही है।
घरेलू कचरा से कौन करेगा तौबा
पानी में प्रदूषण का 80 फीसदी कारण घरों से निकलने वाले प्रदूषित पानी ही हैं। इनसे बचने के लिए हम खुले मैदान और पानी में कूड़ा-करकट फेंकने की आदत छोड़ें।