सारांश:
सतही खनन से कोयले के उत्खनन तथा विद्युत उत्पादन हेतु ताप विद्युत संयंत्रों में कोयला दहन का पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि इससे बड़े पैमाने पर कोयला खनन अवशिष्ट डम्प एवं ताप विद्युत संयंत्रों से भारी मात्रा में उड़न राख निकलती है। उड़न राख मृदा सुधारक तथा पोषक तत्वों का अनुपूरक है जिसका प्रयोग झरिया कोयला क्षेत्र के खनन अवशिष्ट डम्प एवं निम्न तलीय भूमि में किया गया तथा प्रकाश संश्लेषित एवं मृदा संरक्षक पौधों द्वारा वृक्षारोपण कर उसके पुनरुद्धार का अध्ययन किया गया। खनन अवशिष्ट डम्प तथा निम्न तलीय भूमि का भौतिक एवं रासायनिक अभिलक्षणन करने पर बहुत हद तक सुधार पाया गया, साथ ही लगाये गये पौधों में प्रकाश संश्लेषण की दर तथा मृदा क्षरण को कम करने की क्षमता में भी वृद्धि हुई तथा कंट्रोल की तुलना में उड़नशील निलंबित कण, श्वसनीय निलंबित कण, कार्बन डाइऑक्साइड , सल्फर ऑक्साइड्स तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड्स की सांद्रता में भी कमी पाई गई। काष्ठीय प्रजातियाँ जैसे अकेसिया, शिरिश, शीशम तथा शाकीय पौधे जैसे नींबू घास तथा खस घास के रोपण से खनन अवशिष्ट में सुधार तथा पौधे में प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया तथा पत्रक क्षेत्रफल में उत्साहवर्धक परिणाम मिले। इसके अलावा मृदा क्षरण तथा जल बहाव में भी कमी पाई गई। इस तरह खनन अवशिष्ट डम्प तथा निम्न तलीय भूमि का सफलतापूर्वक पुनरुद्धार किया जा सकता है और उड़न राख एवं अन्य सुधारकों के साथ प्रयोग कर चयनित पौधारोपण द्वारा पर्यावरण को स्वच्छ एवं मनोरम बनाया जा सकता है।
Abstract
The extraction of coal through opencast mines and power generation from coal combustion in thermal power poses the concerns of environment due to huge production of overburden and fly ash, respectively. Considering fly ash as a soil ameliorant and other amendments as fertility supplement, reclamation of mine overburden and low land in Jharia coalfield was carried out through plantation of efficient photosynthetic and soil-binder species. The characteristics of mine spoil and low land significantly improved photosynthetic rate and soil conserving efficiency of the planted species enhanced. And concentration of SPM, RSPM, CO2 SOx and NOx reduced significantly over the control. Among the tree species, Acacia auriculiformis, Albizzia lebbek, Dalbergia sissoo and Cymbopogon flexuosus and Vetiveria zizanioides among the herbaceous plants showed most promising performance in respect of improving the physico-chemical characteristics of mine spoil, photosynthetic activity and leaf area along with significantly conserving the soil erosion and water runoff. Thus, the overburden and lowland in a coal mining area can be successfully reclaimed with improved aesthetic view and environment via selective plantation using fly ash and other amendments.
प्रस्तावना
भारत में कोयला एक महत्त्वपूर्ण तथा बड़ी मात्रा में उपलब्ध जीवाश्म ईंधन है जिससे 70% ऊर्जा की कुल आवश्यकता की पूर्ति होती है। सतही खनन से करीब 85% कोयले का उत्पादन होता है। जिससे मृदा एवं उसकी बनावट, जैवीय जनसंख्या, पोषकता में ह्रास, आदि के फलस्वरूप निहित वानस्पतिक एवं मृदा संरचना में भी कमी होती है। खुली खदान में योजनानुसार ढलान का अनुपात करीब 3.5-4.0 घन मी./टन होता है तथा नये खदान में करीब 6.0 घन मी./टन हो जाता है। जिससे बड़े पैमाने पर अधिभारित डम्प बनते हैं। परिणामतः कार्बनिक पदार्थ, पोषकता, जैविक प्रक्रिया, मृदा नमी आदि में कमी पाई जाती है। खनन अवशिष्ट के कारण मृदा क्षरण जल एवं वायु प्रदूषण तथा निहित जैव विविधता में भी कमी पाई जाती है। खुली कोयला खदान से बहुत अधिक मात्रा में पर्यावरण प्रदूषण होता है विशेषकर वायु की गुणवत्ता में कमी हो जाती है।
वायु प्रदूषक जैसे निलंबित कण, श्वसनीय निलंबित कण, कार्बन डाइऑक्साइड्स, सल्फर ऑक्साइड्स तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड खनन की अन्य गतिविधियों से उत्पादित होते हैं और खनन क्षेत्र के आस-पास की वायु, मृदा, पौधे तथा नजदीकी जलाशयों को प्रदूषित करते हैं। कोयला खनन के उपरांत निम्न तलीय भूमि बन जाती है इस वजह से खनन अवशिष्ट डम्प तथा निम्न तलीय भूमि का पुनरुद्धार पर्याहितैषी तकनीक द्वारा करना आवश्यक हो जाता है। जैवीय पुनरुद्धार द्वारा निम्न तलीय भूमि की उर्वरकता पुनः स्थापित की जा सकती है। वनस्पतियों की जड़ें डम्प को स्थायित्व प्रदान करती हैं जिससे मृदा क्षरण को नियंत्रित तथा वाष्पीय आवागमन, मृदा उर्वरकता का स्थापन, जैवीय प्रक्रिया तथा सूक्ष्म जलवायु की स्थिति में सुधार होता है। परिणामतः बंजर/निम्न तलीय भूमि में पुनः वानस्पतिकीकरण एक पर्याहितैषी उपाय है। व्यापक जड़ प्रणाली जमी हुई मिट्टी को अधिक गहराई तक ढीली कर देती है। तथा खनन अवशिष्ट में सुधार जैसे मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ में वृद्धि, जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण, जल छाजन और भंडारण के माध्यम से तथा पोषक/मृदा क्षरण आदि को कम करने के रूप में होता है।
जैविक खाद और सूक्ष्मजैविक मिश्रित उड़न राख कम पोषक तत्व/निम्न तलीय मिट्टी के भौतिक रासायनिक तथा जैविय गुणवत्ता में सुधार तथा पौधों में जैवीय भार को बढ़ाते हैं। उड़न राख की दक्षता का सतही खनन मृदा, बंजर/निम्न तलीय भूमि में संशोधन कर पुनः वानस्पतिकीकरण का विस्तृत अध्ययन किया है। उड़न राख में नाइट्रोजन और ह्यूमस को छोड़कर पौधों के लिये आवश्यक सभी पोषक तत्व मौजूद हैं, इस परिप्रेक्ष्य में कार्बनिक पदार्थ एक सफल अनुपूरक है तथा चिलेशन द्वारा लीचिंग के माध्यम से कम करने में लाभदायी है। मृदा बंधक काष्ठीय प्रजातियाँ जैसे सिरिश, अकेसिया, नीम, शीशम, गम्हार, आंवला, करंज टीक, अर्जुन आदि निम्न तलीय भूमि तथा प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया को सुधारने में पूर्ण सक्षम हैं तथा कार्बन में कमी और खनन मृदा को अन्य प्रजातियों की अपेक्षा ज्यादा सुधार करती हैं और संतुलित पारिस्थितिक तंत्र को भी स्थापित करती हैं।
जैविक समुदाय पुनरुद्धार पद्धति को गतिशीलता और पुनःस्थापन प्रगति के सूचक के रूप में भी उपयोगी है तथा इसमें स्वदेशी प्रजातियों में भारी तत्वों की विषाक्तता वहन करने की क्षमता होती है और यह बंजर भूमि एवं खनन क्षेत्र में आसानी से सक्रिय रहता है। कुछ पौधों की प्रजातियों को खनन अवशिष्ट के पुनरुद्धार करने में सफलतापूर्वक प्रयोग किया गया है। स्थापित प्रजातियों के पौधरोपण से खनन क्षेत्र में कार्बन बजट संतुलित रहता है। वनस्पतियों का वायुमंडल स्वच्छ तथा निलंबित एवं गैसीय प्रदूषक को कम करने में महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। उपर्युक्त विचारों को ध्यान में रखते हुए झरिया कोयला क्षेत्र, झारखंड में उड़न राख को अन्य सुधारकों एवं उच्च प्रकाश संश्लेषित पौधे तथा उच्च मृदा संरक्षक प्रजातियों द्वारा वर्तमान अध्ययन किया गया है एवं प्राप्त परिणामों की विस्तृत व्याख्या की गई है।
सामग्री एवं विधि
दो तरह के अध्ययन क्षेत्र (क) भारत कोकिंग कोल लिमिटेड के अंतर्गत पूर्वी झरिया कोयला क्षेत्र के कोयला अधिभारित डम्प क्षेत्र जो करीब 20मी. ऊँचा और 30 प्रतिशत ढलान पर 2 हेक्टेयर भूमि तथा (ख) लगभग 8.4 एकड़ निम्न तलीय भूमि करीब 3-4 मी. गहराई को टाटा स्टील, जामाडोबा, घनबाद, के एफ बी सी संयंत्र जो 22.8 डिग्री उत्तर और 86.4 डिग्री पूर्व से 23.7 डिग्री उत्तर 86.4 डिग्री पूर्व द्वारा उत्पादित राख से भरकर क्षेत्र पर अध्ययन किया गया। दोनों चयनित क्षेत्रों को डोजर द्वारा समतलीकरण कर जानवरों से सुरक्षा के लिये कटीले तारों से घेराबंदी की गई। क्षेत्र क में 60X60X60 घन सेमी. के 6500 गड्ढे तथा क्षेत्र ख में 2 मी. के फासले पर 5400 गडढे खोदकर उसमें कीटनाशक फोरसटक्स 25 ग्राम प्रति गडढा अच्छी मिट्टी, ताल राख (संतालडीह विद्युत संयंत्र) तथा गोबर खाद 4:2:1 के अनुपात, कोकोपीट 250 ग्राम प्रति गड्ढा, वर्मी कम्पोस्ट 250 ग्राम प्रति गड्ढा, जैवीय खाद और नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाश खाद गडढे में समान रूप से उर्वरकता बनाये रखने के लिये प्रयोग किये गये। संतालडीह उड़न राख का अभिलक्षणन विस्तृत रूप से पूर्व में किया गया है।
स्वदेशी प्रजातियों के पौधों की उपलब्धता, प्रकाश संश्लेषण दक्षता, मृदा संरक्षण गुणों तथा विषम परिस्थितियों में भी जीवित रहने के आधार पर चुनाव किया गया। इसके अंतर्गत 19 विभिन्न परिवारों के 25 पौधे जिसमें शाकीय, झाड़ीदार तथा काष्ठीय पौधों का चुनाव किया गया। इसके पश्चात विभिन्न फलदार, वानिकी एवं तिलहन प्रजाति के पौधों को उनकी प्रकाश संश्लेषण दक्षता एवं मृदा संरक्षण क्षमता के आधार पर वृक्षारोपण किया गया। खनन अधिभारित एवं उड़न राख भरित मृदा के नमूनों का भौतिक, रासायनिक एवं जैवीय स्थिरांक का विश्लेषण पौधा रोपण के पूर्व एवं पश्चात किया गया। उगाये गये पौधों की नियमित रूप से देख-रेख तथा पर्यवेक्षण जैसे सिंचाई, निराई-गुड़ाइ एवं खाद का प्रयोग कर उनके विकास, प्रकाश संश्लेषण और भौतिक मापदंडों का समयांतराल पर निर्धारण किया गया।
भौतिक, रासायनिक एवं जैवीय गुणः
भौतिकीय गुण जैसे यांत्रिक संरचना, स्थूल घनत्व, सरंध्रता एवं जल ग्राह्य क्षमता, खनन अवशिष्ट डम्प एवं निम्न तलीय भूमि का परीक्षण मानक तरीके से किया गया। रासायनिक गुणों, पी एच, विद्युतीय चालकता, कुल और प्राप्य; (available) प्रमुख एवं माध्यमिक पोषक तत्वों जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, गंधक, कैल्शियम एवं मैग्नेशियम, उपलब्ध सूक्ष्म पोषक तत्वों (ताम्बा, जस्ता, मैंगनीज, लोहा) और गौण एवं लेश मात्र तत्वों (लेड, निकिल, कोबाल्ट, कैडमियम आदि) का खनन अवशिष्ट एवं एफ बी सी राख में DTPA विधि द्वारा प्राप्त तरल को ‘लिक्विड आयन क्रोमैटोग्राफी’ यंत्र से निर्धारित किया गया। मरकरी का परीक्षण यूनिकाम एस पी-2900 परमाणु अवशोषण स्पेक्ट्रोस्कोपी यंत्र में हाइड्राइड कोल्प वेपर जेनरेशन पद्धति से किया गया। मॉलिब्डेनम, सिलेनियम एवं आर्सेनिक का निर्धारण XRF यंत्र से इंस्टिट्यूट ऑफ फिजिक्स, भुवनेश्वर में किया गया। पौधरोपण के पूर्व एवं पश्चात नाइट्रोजन स्थिरीकरण बैक्टीरिया, फास्फोरस, घुलनशील बैक्टीरिया एवं एक्टोमाइकोराइजा का परीक्षण परम्परागत तरीके से किया गया। खनन अवशिष्ट डम्प एवं एफ बी सी राख में डिहाइड्रोजनेज प्रक्रिया का परीक्षण मानक विधि से किया गया।भौतिक गुणः उगाये गये पौधों की प्रकाश-संश्लेषण दर एवं पर्ण क्षेत्रफल क्रमशः र्पोटेबल प्रकाश-संश्लेषण पद्धति (CI-310, CID Inc., USA) तथा पोर्टेबल लीफ एरिया मीटर (CID Inc., USA) यंत्र से निर्धारण किया गया। वायु में कार्बन डाइऑक्साइड की माप पोर्टेबल प्रकाश संश्लेषण सिस्टम यंत्र से निर्धारित की गई। निलंबित कणों एस पी एम, आर एस पी एम नमूने हाई वोल्यूम सैम्पलर से एकत्र किये गये तथा आइ एस -5182 (पार्ट-4) विधि द्वारा जाँच की गई। गैसीय प्रदूषक जैसे साक्स एवं नाक्स के नमूने भी हाई वोल्यूम सैम्पलर से एकत्र किये गये और आइ एस-5182 (पार्ट-2) तथा आइ एस-5182 (पार्ट-6) विधि द्वारा क्रमशः उनकी जाँच की गई।
मृदा एवं जल संरक्षण: पाँच प्रमुख प्रजातियों (काष्ठीय समूह-शीशम, सिरिश, अकेसिया तथा शाक समूह-नींबू एवं खस घास) का मृदा एवं जल संरक्षण के अध्ययन हेतु चुनाव किया गया। प्रत्येक चयनित प्रजातियों के लिये 25-30% स्लोप वाले छः प्लाट तैयार किये गये जिनमें छठे प्लाट को बिना पौधा लगाये कंट्रोल के रूप में प्रयोग में लाया गया। सभी प्लाट 7 वर्ग मी. (3.5 मी. X 2 मी.) के बनाये गये तथा प्लाट को चारों तरफ से एल्युमिनियम की चादर से घेर दिया गया जिसका 10 सेमी. भाग जमीन के अंदर तथा 20 सेमी. जमीन के ऊपर था। ऐसा इसलिये किया गया कि एक प्लाट की जल तथा मिट्टी दूसरे प्लाट में न जा सके। प्लाट के निचले भाग में एक पात्र को लगाया गया जिसमें मिट्टी युक्त जल एकत्र किया जा सके। कृत्रिम तरीके से सभी छः प्लाटों में 8.5 मिनट तक 2 मिमी. व्यास वाले पानी देने वाले हजारे से 1 मी. ऊँचाई तथा 30 सेमी. प्रति घंटा की दर से नियमित रूप से वर्षा की गई। वर्षा की तीव्रता को इस प्रकार रखा गया जिससे कि कम समय में अधिक से अधिक जल का बहाव हो सके। यह प्रयोग 10 दिनों के अन्तराल पर तीन बार किया गया जिससे प्रत्येक प्लाट का अभिलक्षणन किया जा सके। वर्षा मापक यंत्र से प्रत्येक प्लाट का आयतन मापा गया तथा बहकर आये जल के साथ मृदा को ओवन में सुखाकर शुष्क विधि द्वारा वजन लिया गया। प्रत्येक नमूने को 0.45 फिल्टर पेपर से छानकर जल एवं मृदा को अलग किया गया ताकि वाष्पीकरण से ह्रास न हो सके। सभी प्रजातियों में मृदा एवं जल के संरक्षण के मान की गणना अम्बष्ट द्वारा सुझाये गये सूत्र के आधार पर की गई।
संरक्षण मान = 100 (1-Sp/So) जहाँ Sp और So का मान मृदा एवं जल की मात्रा है जो पौधों सहित तथा कंट्रोल प्लाट (पौधा रहित खण्डों) से प्राप्त हुई।
परिणाम एवं विवेचना
भौतिक, रासायनिक एवं जैवीय अभिलक्षणन
कोयला खनन अवशिष्ट: सारणी 1 में कोयला खनन अवशिष्ट के भौतिक, रासायनिक एवं जैवीय अभिलक्षणन को दर्शाया गया है। यांत्रिक संरचना में पत्थर/दानेदार पदार्थ >2.0 मिमी. आकार के कण की मात्रा वृक्षारोपण के पूर्व 73.6% थी जो वृक्षारोपण के पश्चात घटकर 70.9% प्रथम वर्ष, 68.9% द्वितीय वर्ष में तथा 64.5% तृतीय वर्ष में हो गई। 2.0 मिमी. से बड़े कणाकार में बड़े छिद्र पाये गये जिसके कारण उपलब्ध जल को उचित मात्रा में नहीं होने से गर्मी में पौधों की वृद्धि ज्यादा नहीं हो सकी। खनन अवशिष्ट में 50% से अधिक मोटे कण होने के कारण उर्वरकता कम पाई गई जो भूगर्भीय खनन की दशा और विभिन्न प्रकार की कोल सीमा के कारण हो सकती है। कुछ खनन अवशिष्ट में करीब 80-85% पत्थर की मात्रा पाई गई जबकि कुछ में यह मात्रा 35-65% थी। 2.0 मिमी. तक के कणाकार में जल एवं पोषक तत्व धारण करने की क्षमता अधिक पाई गई। इसमें प्रथम वर्ष में 26.4% से तृतीय वर्ष में 33.5% की बढ़ोतरी हुई जो अन्य सुधारकों के संयुक्त प्रभाव तथा खनन अवशिष्ट, मौसमीय प्रभाव एवं पौधों में वृद्धि के कारण भी हो सकती है। इसी तरह पौधरोपण से पूर्व स्थूल घनत्व 1.5 ग्रा. प्रति सीसी था जो खनन अवशिष्ट में जड़ों को अंदर प्रवेश करने में बाधक बनता था।
अन्य वैज्ञानिकों ने भी पाया है कि कोयला खनन अधिभारित डम्प का स्थूल घनत्व 1.8 ग्राम प्रति सीसी तथा 1.91 ग्राम प्रति सीसी था जबकि पौधरोपण के पश्चात स्थूल घनत्व में कमी पाई गई। पौधरोपण के पूर्व जल धारक क्षमता बहुत ही कम (11.3%) पाई गई जबकि सामान्य मृदा में यह 26-48% होता है, ये कार्बनिक पदार्थ, उच्च पत्थर धारक तथा खनन अवशिष्ट में दानेदार बालू के आकार का होने के कारण हो सकता है। सरंध्रता 40.67% पाई गई जबकि सामान्य मृदा में यह 35-50% होती है। पौधरोपण के पश्चात इनके मान में वृद्धि पाई गई जो कि उच्च सिल्ट कणों, मिट्टी, कार्बनिक पदार्थ और लगातार शाक एवं काष्ठीय प्रजातियों के पौधों में वृद्धि के कारण हो सकती है। खनन अवशिष्ट % एवं बंजर भूमि में उड़न राख के प्रयोग से उसकी जल धारक क्षमता में वृद्धि तथा स्थूल धनत्व तथा जमाव में कमी पाई गई। पौधे खनिज पोषकों को मृदा सतह पर लाकर उपलब्ध रूप में सहायक होते हैं। खनन अवशिष्ट का पीएच मान 7.8 से घटकर थोड़ा अम्लीय 6.83 (तृतीय वर्ष) हो गया जो कि उड़न राख की बफरिंग क्षमता में वृद्धि तथा पत्तों के सड़ने तथा आयन विनिमय के कारण हुई।
पौधों की जड़ों द्वारा मृदा में कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता बढ़ती है जिससे जल के साथ मिलकर कमजोर कार्बोनिक अम्ल बनता है तथा मृदा का पीएच मान घटता है। औसत कार्बनिक कार्बन खनन अवशिष्ट में पौधारोपण से पहले अधिक था जिसका कारण महीन कोयले के धूल तथा शेल एवं कार्बनिक पदार्थ के परस्पर जमा होने से हो सकता है। जैविक पुनरुद्धार के बाद पत्तियों के सड़ने तथा उनके जमाव के फलस्वरूप कार्बनिक पदार्थों में सुधार एवं पोषक तत्वों में वृद्धि पाई गई। प्रारम्भ में उपलब्ध प्राथमिक एवं सहपोषक तत्वों की मात्रा तथा जैविक क्रियाएँ कम पाई गई। अन्य शोधकर्ताओं ने भी कोयला खनन अवशिष्ट में उपलब्ध मुख्य पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटेशियम आदि की कमी को दर्शाया है।
पौधरोपण के बाद सभी पोषक तत्वों क्रमशः नाइट्रोजन 0.01 से 0.03%,फास्फोरस 3.1 से 5.2 मिग्रा./किग्रा., पोटेशियम 62.9 से 73.12 मिग्रा./किग्रा., सल्फर 21.5 से 33.82 मिग्रा./किग्रा., कैल्शियम 15.5 से 20.52 मिग्रा./किग्रा., तथा मैग्नीशियम 10.8 से 16.92 मिग्रा./किग्रा., की वृद्धि पाई गई जिसमें कम मान पौधरोपण से पूर्व तथा अधिकतम मान पौधरोपण के तृतीय वर्ष बाद का है। अतः विभिन्न प्रजातियों के पौधरोपण से खनन अवशिष्ट की उर्वरक क्षमता में सुधार पाया गया जहाँ लेग्युमिनस पौधे नॉन लेग्यूमिनस पौधों से अधिक उपयुक्त पाये गये क्योंकि उनकी जड़ों द्वारा वातावरणीय नाइट्रोजन को जमा करने की क्षमता है। कूड़ा करकट में नाइट्रोजन अधिक पाया जाता है और दूसरी प्रजातियों द्वारा मिनरलाइज्ड होता है और दूसरी प्रजातियों से नाइट्रोजन प्रदान करता है। जड़ों के नोडयूल्स द्वारा उच्च नाइट्रोजन क्रियाओं के कारण लेग्यूमिनस पौधे खनन डंप पर सफलतापूर्वक लगाये गये।
उपलब्ध सूक्ष्म पोषक तत्वों (ताम्बा, जस्ता, मैगनीज एवं लोहा) सांद्रता का झुकाव भी मुख्य पोषक तत्व जैसा ही पाया गया जिसमें उड़न राख का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। लेश मात्र/भारी तत्वों जैसे लेड, कैडमियम, क्रोमियम, आर्सेनिक एवं पारा की सांद्रता पौधारोपण के पूर्व एवं पश्चात में निर्धारण सीमा से नीचे पाई गई। जबकि निकिल में 1.9 से 2.5 मिग्रा./किग्रा., की वृद्धि पाई गई तथा कोबाल्ट पौधारोपण पूर्व में नहीं के बराबर थी और पौधरोपण के पश्चात 0.2 मिग्रा./किग्रा., पाई गई। ये सभी तत्व स्वीकार्य सीमा के भीतर पाये गये। खनन अवशिष्ट आम तौर पर पौधों एवं सूक्ष्मजीवों दोनों के लिये उपयुक्त नहीं है। कार्बनिक पदार्थ में कमी तथा प्रतिकूल भौतिक एवं सूक्ष्म जैविक गुणों के कारण जैविक गतिविधि एवं पोषक तत्वों के आदान-प्रदान को प्रभावित करते हैं। वृक्षारोपण के पूर्व जैविक गतिविधि पूरी तरह से अनुपस्थित थी परन्तु वृक्षारोपण के क्रमिक विकास के पश्चात उनमें वृद्धि पाई गई। माइक्रोराइजा मृदा कणों को बाँध कर पोषक तत्वों में वृद्धि करता है तथा जड़ प्रसार में सुधार कर मृदा स्थिरीकरण में महत्त्वपूर्ण योगदान करता है। डिहाइड्रोजिनेज गतिविधि में 0.01 से 1.02 मिग्रा./किग्रा.,रु/घंटा की वृद्धि पाई गई जिसका प्रमुख कारण वृक्षारोपण हो सकता है।
साधारणतया मृदा सूक्ष्मजीव पारिस्थितिकी तंत्र में पोषक तत्वों तथा मृदा संरचना, नाइट्रोजन स्थायित्व, पत्तों का सड़ना, पोषक तत्वों के आवागमन, माइक्रोराइजा समूह तथा मृदा अभिलक्षणन में वृद्धि करता है। मृदा सूक्ष्मजीवी (बैक्टीरिया) कूड़े करकट एवं फफूँदों के द्वारा पौधों को नाइट्रोजन एवं फास्फोरस को उपलब्ध कराता है। तथा कार्बन विनिमय में मदद करता है। जिसके फलस्वरूप पॉलीसैकेराइड्स बनते हैं जो मृदा कणों को बाँधे रहते हैं तथा पौधे की वृद्धि में सहायक होते हैं। इसके अतिरिक्त पौधरोपण के पूर्व खनन अवशिष्ट के प्रयोग में लाये गये विभिन्न सुधारकों तथा सड़े हुए कूड़े करकट मिलकर जैविक गतिविधि एवं उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
निम्न तलीय भूमि: राख भरित निम्न तलीय भूमि का भौतिक रासायनिक गुण भी खनन अवशिष्ट के जैसा ही पाया गया (सारणी 1)। वृक्षारोपण के पूर्व बालू, दानेदार कण एवं मिट्टी की प्रतिशतता 71.9, 20.4 तथा 4.7 थी। वृक्षारोपण के पश्चात (प्रथम से तृतीय वर्ष) बालू की प्रतिशतता में कमी। (71.9 से 68.5), दानेदार कण एवं मृदा में बढ़ोत्तरी (22.7 से 25.2 तथा 5.4 से 6.3% क्रमशः) पाई गई। स्थूल घनत्व वृक्षारोपण के पूर्व 0.987 ग्राम/सीसी से 1.02 ग्राम/सीसी (प्रथम वर्ष), 1.04 ग्राम/सीसी से (द्वितीय वर्ष) तथा 1.05 ग्राम/सीसी (तृतीय वर्ष) पाया गया। इसी प्रकार कणीय घनत्व वृक्षारोपण के पूर्व 2.0 ग्राम/सीसी से 2.3 ग्राम/सीसी (तृतीय वर्ष) पाया गया। सरंध्रता में वृक्षारोपण के पूर्व 50.6% से तृतीय वर्ष में 46.6% की कमी पाई गई। राख भराव क्षेत्र में मौसमीय प्रभाव तथा जमाव मिट्टी में निरंतर बदलाव के कारण बदलाव हुआ जो विभिन्न प्रजातियों के पौधों का अन्य सुधारकों के साथ उगाने के कारण राख के भौतिकीय अभिलक्षण में बदलाव तथा पौधे की वृद्धि के लिये उचित वातावरण होने के कारण हुआ।
वृक्षारोपण के पूर्व विद्युतीय चालकता राख भरित क्षेत्र में बहुत कम 0.003 डीएस/मी थी जो तृतीय वर्ष में बढ़कर 0.04 डीएस/मी हो गई जो एफ बी सी राख में मौजूद उच्च अकार्बनिक पदार्थ के कारण हो सकती है, यह पौधों की वृद्धि के लिये सहायक होता है। वृक्षारोपण के पूर्व पीएच 8.09 से तृतीय वर्ष में 7.86 हो गई। कार्बनिक कार्बन में परिवर्तन वृक्षारोपण के पूर्व 0.34% से तृतीय वर्ष में 0.37% हो गया जो पत्तों के सड़ने तथा पौधारोपित क्षेत्र में स्तर गिरावट के साथ सूक्ष्म जैवीय भार के जमाव के कारण हुआ। मृदा में अवस्थित कार्बनिक पदार्थ जल एवं पोषक ग्राह्य क्षमता, सतही स्थायित्व, वायु संचार तथा जल प्रवेश में वृद्धि से मृदा संरचना, भौतिक अभिलक्षणन तथा पोषकता में सुधार होता है।
सारणी 1 कोयला अवशिष्ट डम्प तथा निम्न तलीय भूमि पर लगाये गये सामान्य प्रजातियों की सूची | |||
क्रमांक | वानस्पतिकीय नाम | स्थानीय नाम | परिवार |
1. | अल्बिजिया लेबेक | सिरिश | मिमोजेसी |
2. | डाल्बर्जिया सीसू | शीशम | पेपिलियोनेसी |
3. | अकेशिया ऑरिकुलीफॉर्मिस | अकेसिया | मिमोजेसी |
4. | कैजुआरिना इक्वीसेटीफोलिया | कैजूरिना | कैजुरिनेसी |
5. | मुरेया कोनिगाई | करी पत्ता | मेलियेसी |
6. | स्वीटेनिया माइक्रोफिला | मोहगनी | मेलियेसी |
7. | अजेडिरेक्टा इंडिका | नीम | मेलियेसी |
8. | मेलिना आर्बोरिया | गम्हार | बर्वेनेसी |
9. | टेक्टोना ग्रांडिस | टीक | कम्ब्रेटेसी |
10. | पोंगैमिया पिन्नेटा | करंज | सीजलपिनेसी |
11. | जैट्रोफा करकस | जंगली अरंड | यूफारबिएसी |
12. | म्यूज़ा पैराडिजियेका | केला | म्यूजेसी |
13. | कैरिका पपाया | पपीता | केरिकेसी |
14. | सीडियम गुआवजा | अमरूद | मिरटेसी |
15. | एमब्लिका ऑफिसिनेलिस | आंवला | यूफारबिएसी |
16. | यूजीनिया जैम्बोलेना | जामुन | मिरटेसी |
17. | मैंगीफेरा इंडिका | आम | एनाकार्डिएसी |
18. | क्रोटन स्पीशीज | क्रोटोन | स्क्रोफुलेरिएसी |
19. | कैलिस्टीमान लेन्सियोलेटस | बोतल ब्रश | मिरटेसी |
20. | माइकेलिया स्पीशीज | सोनचंपा | मैग्नेलिएसी |
21. | बोगेनविलिया स्पीशीज | बोगनविलिया | निक्टेजिनेसी |
22. | जैस्मिनम मुडिलोरम | चमेली | ओलिकेसी |
23. | वेटीवेरिया जिजेनिऑयडीज | खस घास | पोएसी |
24. | सिम्बोपोगॉन फलेक्सुयोसस | नींबू घास | पोएसी |
25. | साइनोडॉन डैक्टिलॉन | दूब घास | पोएसी |
निम्न तलीय भूमि में उपलब्ध मुख्य एवं मध्यम पोषकों (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, गंधक, कैल्शियम तथा मैगनीशियम) में प्रारम्भिक स्थिति से समयांतराल में वृद्धि पाई गई। चूँकि उड़न राख में सूक्ष्म जीवाणु या नाइट्रोजन प्रारम्भ से नहीं होते हैं। इस कारण समय के साथ मौसमीय प्रभाव, सूक्ष्म जीवों तथा निराई आदि के कारण वृक्षारोपण के पश्चात इनमें धीरे-धीरे वृद्धि होती है। कोयला राख अन्य सुधारकों के साथ प्रयोग करने पर वानस्पतिक वृद्धि अधिक होती है जहाँ कोयला राख को चूना एवं जिप्सम के साथ उपयोग करने पर पीएच, कार्बनिक कार्बन, विद्युतीय चालकता तथा पौधों की प्रजातियों में नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाश की वृद्धि होती है। उपलब्ध पोषक तत्वों में सिर्फ लौह को छोड़कर सभी तत्वों में उत्साहजनक वृद्धि पाई गई, जैसे पौधरोपण के पूर्व से तीसरे वर्ष तक ताम्बे में 0.26 से 0.28 मिग्रा./किग्रा., मैगनीज 0.70 से 0.76 मिग्रा./किग्रा., लोहा में 9.12 से 9.95 मिग्रा./किग्रा., तथा जस्ता में 0.38 से 0.34 मिग्रा./किग्रा., की कमी पाई गई। धीरे-धीरे राख में मौसमीय प्रभाव तथा पत्तों के अपघटन के कारण सूक्ष्म जीवों की सांद्रता में वृद्धि हुई। उपलब्ध गौण एवं भारी धातुएँ राख भरित निम्न भूमि में निकिल, लेड, कैडमियम, क्रोमियम, कोबाल्ट, आर्सेनिक एवं पारा जाँच सीमा के अंदर पाई गई। सिलिनियम 2.7 से 3.9 मिग्रा./किग्रा., तथा मालिब्डेनम 3.3 से 4.4 पीपीएम की कुल सांद्रता में थोड़ी वृद्धि पाई गई जो निर्धारण सीमा (0.1-4.0 मिग्रा./किग्रा. तथा मॉलिब्डेनम 0.1-7.0 मिग्रा./किग्रा.) के अंदर है। सिलिनियम और मॉलिब्डेनम की सांद्रता क्षारीय पीएच में अधिक होती है। सिलेनियम एक उड़नशील तत्व है जो उड़न राख की सतह पर जम जाता है।
सभी पौधरोपित प्रजातियों में जीवितांश दर 80-90 प्रतिशत पाई गई तथा उनमें क्रमशः वृद्धि पाई गई। काष्ठीय प्रजातियों जैसे आम, महोगनी, सिरिश, नीम, शीशम, गम्हार, टीक, करंज, अकेसिया एवं शाकीय वनस्पति जैसे नींबू घास एवं खस घास वृक्षारोपण के लिये काफी उपयुक्त पाये गये तथा प्रकाश-संश्लेषण दक्षता तथा कैनोपी अभिलक्षण में भी वृद्धि पाई गई। प्रकाश संश्लेषण दर प्रथम से तृतीय वर्ष के वृक्षारोपण से विभिन्न समयान्तरालों में वृद्धि उत्तरोत्तर वृद्धि पाई गई। शीशम में अधिकतम प्रकाश संश्लेषण दर 4.7-7.6 µmo1/m2/Sec (प्रथम वर्ष), 7.2-10.6 µmo1/m2/Sec (द्वितीय वर्ष) तथा 11.6-13.2 µmo1/m2/Sec (तृतीय वर्ष) पाई गई, वही खस घास में संश्लेषण दर कम पाई गई। समय के साथ पौधों की वृद्धि तथा सीमा मान में एक रैखिक संबंध पाया गया। प्रकाश-संश्लेषण दर में वृद्धि से पौधों में कार्बन के जमाव से कार्बन में कमी हुई तथा वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड भी अधिग्रहण हुआ। पौधों में प्रकाश संश्लेषण दर उसके कार्बन डाइऑक्साइड की अवशोषण क्षमता, पौधों में निहित आंतरिक क्षमता, वातावरणीय स्थिति, वनस्पतियों के प्रकार, उम्र एवं घनत्व पर निर्भर करती है।
काष्ठीय प्रजातियों में कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण जो जल के साथ सूर्य के प्रकाश में संश्लेषित होकर जैवीय भार में वृद्धि करता है जिससे पौधा बड़ा या विकसित होता है। पौधों के पर्ण क्षेत्रफल की उसकी इकोफिजियोलॉजी में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, विशेषकर पत्तियों से कैनापी आवरण तक गैस में विनिमय का। अधिक पर्ण क्षेत्रफल उस क्षेत्र की उत्पादकता तथा दक्षता को बढ़ाता है। काष्ठीय प्रजातियों में टीक का अधिकतम पर्ण क्षेत्रफल पाया गया जो पहले वर्ष में 975 से 1123 वर्ग सेमी. द्वितीय वर्ष में 1316 से 1425 वर्ग सेमी. तथा तृतीय वर्ष में 1485-1513 वर्ग सेमी. था, सबसे कम क्षेत्रफल नीम में मिला जो पहले वर्ष में 4.3-5.4 वर्ग सेमी., द्वितीय वर्ष में 6.2-6.8 वर्ग सेमी, तथा तृतीय वर्ष में 6.9-7.6 वर्ग सेमी. था (सारणी 3)। शाकीय प्रजातियों जैसे नींबू घास में अधिकतम पर्ण क्षेत्रफल मापा गया जो पहले वर्ष में 66.5 से 68.4 वर्ग सेमी, द्वितीय वर्ष में 116 से 118 वर्ग सेमी. तथा तृतीय वर्ष में 178-182 वर्ग सेमी. तथा खस घास में सबसे कम (प्रथम वर्ष में 26.7 से 28.7 वर्ग सेमी. द्वितीय वर्ष में 38.9 से 39.3 वर्ग सेमी. तथा तृतीय वर्ष में 72.5 से 73.7 वर्ग सेमी.) पाया गया। उच्च पर्ण क्षेत्रफल का कैनोपी तथा प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया से सीधा संबंध पाया गया जोकि वर्षा से मृदा क्षरण को कम करने में सहायक होता है। इसके अलावा पर्ण आकार, कैनोपी क्षेत्रफल तथा जड़ प्रणाली जैसे भौतिक गुण भी खनन अवशिष्ट के पोषक स्तर को बढ़ाते हैं। पुनरुद्वारित खनन मृदा में उच्च पोषकता के कारण पत्रक क्षेत्रफल तथा प्रकाश संश्लेषण दक्षता में भी वृद्धि होती है। विशेषतः उन वृक्षों में जो कम पोषक तत्वों वाली मृदा में उगाये जाते हैं।
खनन अवशिष्ट में वायु प्रदूषकों की सांद्रता: अपुनरुद्धारित क्षेत्र में निलंबित कण, एस पी एम, आर एस पी एम तथा जैवीय प्रदूषक जैसे SOx तथा NOx उच्च सांद्रता में पाये गये (एस पी एम 432.6 µm3, आर एस पी एम 96.56 µm3, 42.06 µm3, NOx 48.7 µm3) जोकि क्रमशः वृक्षारोपण के पश्चात 207.8, 62.7, 12.8 एवं 8.9 µm3 विभिन्न विकास स्तर पर घटते गये। NAAQ मानक की तुलना में एस पी एम तथा आर एस पी एम की सांद्रता अधिक थी परन्तु SOx (42.0 µm3) एवं NOx (48.7 µm3) की सांद्रता अपेक्षाकृत कम थी। अपुनरुद्धारित क्षेत्र में प्रदूषकों की सांद्रता उसके आस-पास होने वाली अन्य गतिविधियों के कारण भी हो सकते हैं।
कोयला खनन अवशिष्ट पर लगाये गये पौधों की प्रजातियों का निष्पादन एवं घनत्व का उम्र के साथ रैखिक संबंध पाया गया। सभी क्षेत्रों में एस पी एम तथा आर एस पी एम की सांद्रता वर्षा ऋतु में कम तथा गर्मी में अधिकतम थी। यह वर्षा ऋतु में निलंबित कणों के स्थिर होने तथा उच्च सौर विकिरण के कारण अधिकतम पाया गया जो शुष्क एवं कणों में ढीलापन तथा गर्मी में कणों की जमावट परिपूर्ण न होने के कारण हो सकता है। कणों की सांद्रता लगाये गये पौधों की प्रजातियों की उम्र पर निर्भर करती है। प्रथम वर्ष से तृतीय वर्ष तक एस पी एम में 16.7% आर एस पी एम में 41.2% तथा सल्फर एवं नाइट्रोजन ऑक्साइड 52-63% की कमी पाई गई। ऐसा सभी उच्च आर्द्रता तथा वर्षा के कारण SOx एवं NOx वर्षाजल में घुलकर बह जाने के कारण हो सकता है। जबकि सर्दी के मौसम में कम आर्द्रता एवं स्थिर तापमान के कारण प्रदूषक की सांद्रता अधिक होती है। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार अधिकतर पत्तियों में प्रदूषकों के जहरीलेपन को कम करने की क्षमता पाई जाती है। जो घुलकर बाई सल्फाइट तथा सल्फाइट आयन बनाती है जो जहरीला है परंतु गैस के कम सांद्रण के कारण यह क्लोरोप्लास्ट के द्वारा सल्फेट में बदल जाता है जो पौधों के लिये उपयोगी है तथा सल्फर का एक स्रोत भी है। पत्तियों के आस-पास के वातावरण में गैस प्रदूषकों की अधिकता होने से पत्तियों के स्टोमेटा बंद हो जाते हैं। जो पत्तियों को और प्रदूषकों से बचाते हैं परन्तु इसके कारण प्रकाश संश्लेषण बाधित हो जाता है।
कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता अपुनरुद्धारित क्षेत्र में 388.4 से 523.6 पीपीएम के बीच थी जो NAAQ मानक से अपेक्षाकृत ज्यादा (360-390 पीपीएम) है। कोपेहेगन सम्मेलन 2009 में भारत ने अपनी वचनबद्धता जताई है कि वह प्रति इकाई सकल घरेलू उत्पाद का 20 से 25% तक कार्बन उत्सर्जन में कमी तथा 2020 तक 10% की दर से वानिकी लगाकर अपने सालाना उत्सर्जन को कम करेगा। वृक्षारोपण के बाद कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता कम पाई गई अर्थात 369.1 से 431.8 पी पी एम हो गई जिसका मुख्य कारण विभिन्न प्रजातियों का वृक्षारोपण था जिसके पश्चात कार्बनडाइ ऑक्साइड की सांद्रता में काफी कमी पाई गई है और प्रकाश संश्लेषण की दक्षता एवं विकास अधिक हुआ। सामान्यतः कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता में अधिकतम कमी तृतीय वर्ष में 22.7% द्वितीय वर्ष में 14.8% तथा प्रथम वर्ष में 12.2% दर्ज की गई। छोटी एवं स्वस्थ काष्ठीय प्रजातियाँ वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता कम करती हैं क्योंकि इनमें प्रकाश-संश्लेषण की दर अधिक होती है।
खनन अवशिष्ट में मृदा एवं जल संरक्षण: काष्ठीय प्रजातियों में शीशम एवं सिरीश में मृदा संरक्षण क्षमता 71.4% और 62.0% तथा जल संरक्षण क्षमता 48.2% और 42.6% क्रमशः पाई गई जो उच्च कैनापी तथा पत्तियों के अपघटन के कारण हो सकती है अकेसिया में 49.5% मृदा संरक्षण और 38.0% जल संरक्षण क्षमता पाई गई। पौधों के कारण वर्षा की बूँदों के मृदा पर गिरने में रुकावट होती है तथा मृदा बहाव में कमी होती है एक अन्य शोध में यह पाया गया है कि पौधों से आच्छादित मृदा पर मृदा क्षरण करीब 96% कम होता है। शाकीय पौधे जैसे नींबू घास में मृदा एवं जल संरक्षण क्षमता क्रमशः 68% और 92% पाई गई वहीं खस घास में क्रमशः 64% और 89% पाई गई। घनी वनस्पतियाँ जल बहाव तथा मृदा क्षरण को कम करने में सहायक थी। ये मृदा को अच्छी तरह से बाँध कर रखती हैं जिससे बहाव के साथ मृदा नहीं बह पाता है। इसके अतिरिक्त पतली जड़ों से मृदा में वाष्पोत्सर्जन से जल के नीचे के बहाव में सुधार तथा जल संग्रहण क्षमता में वृद्धि होती है जबकि इसके विपरीत बिना पौधे वाले प्लाट में वर्षा की बूँदे सीधे मृदा में पहुँचती है और जल तथा मृदा का क्षरण अधिक होता है।
उपसंहार
कोयला खनन अधिभारित डम्प तथा राख भरीय निम्न तलीय भूमि पर उड़न राख का अन्य सुधारकों के साथ उपयोग कर चयनित पौधारोपण करने पर उसके भौतिकीय, रासायनिक एवं जैवीय अभिलक्षणन में उत्साहजनक सुधार पाया गया। अकेसिया में संश्लेषण प्रक्रिया तथा पर्ण क्षेत्रफल, सिरिश तथा शीशम की तुलना में अधिक पाये गये। एस पी एम, आर एस पी एम, कार्बनडाइ ऑक्साइड, सल्फर ऑक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड की सांद्रता में वृक्षारोपण के तृतीय वर्ष के उपरांत 16.7-52.0% की कमी पाई गई, नई प्रजातियों के पौधों की अपेक्षा पुरानी प्रजातियों के पौधे अधिक प्रभावी रहे। नींबू घास में मृदा एवं जल संरक्षण क्षमता 68.0 और 92.0% थी जबकि शीशम में 71.4 और 62.0% तथा सिरिश में 48.2 और 42.6%। उड़न राख एवं अन्य सुधारकों के साथ कोयला खनन अधिभारित डम्प तथा राख भरित निम्न तलीय भूमि पर चयनित पौधों की प्रजातियों को लगाने से उसके अभिलक्षण में उत्साहजनक परिणाम मिले। पौधे मृदा में पोषक तत्वों को बनाये रखते हैं तथा पर्यावरणीय प्रदूषण में कमी के साथ-साथ आस-पास की प्राकृतिक छटा को मनोरम बनाते हैं।
आभार
लेखकगण कोयला मंत्रालय, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार तथा टाटा स्टील जामाडोबा, धनबाद (झारखंड) द्वारा परियोजना के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान करते हेतु आभारी है। वे निदेशक, सीएसआईआर-सी आइ एम एफ आर के प्रति भी आभारी हैं जिन्होंने इस शोध पत्र के प्रकाशन हेतु सहमति प्रदान की है।
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ए के सिन्हा, एन के श्रीवास्तव एवं एल सी राम, Ak Sinha, NK Srivastava & LC Ram
पर्यावरण प्रबंधन विभाग, सीएसआईआर-केन्द्रीय खनन एवं ईधन अनुसंधान संस्थान (डिगवाडीह परिसर)पे.-एफ आर आइ- 828 108 धनबाद, झारखंड, Environmental Management Division, CSIR-Central Institute of Mining Fuel Research (Digwadih Campus) P.O. F.R.I. Dhanbad 828 108 (Jharkhand)