अलग राज्य बन जाने के बाद भी उत्तराखण्ड जस-का-तस

Submitted by Shivendra on Sun, 01/11/2015 - 10:32
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यथावत, जनवरी 2015
उत्तराखण्ड का विकास एक लम्बी बाधा दौड़ बना हुआ है। हाल ही में उत्तरकाशी में इको सेंसटिव जोन के विरोध प्रदर्शन ने सरकार पर दबाव बढ़ाया है। सरकार इस विरोध को प्रायोजित बता रही है।

पर्यावरण संरक्षा के दृष्टिगत इसमें अनियोजित विकास और निर्माण कार्यों पर रोक लगाई गई है। केन्द्र सरकार ने दो साल के अन्तर्गत मास्टर प्लान बनाने का निर्देश राज्य सरकार को दिया था। यह समय बीत चुका है। इसमें विशेषकर महिलाओं की राय लिए जाने तथा वन एवं पर्यावरण, पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड, जल संसाधन, ग्राम्य विकास, शहरी विकास आदि विभागों की सहभागिता सुनिश्चित करने की बात कही गयी है। उत्तराखण्ड का विकास एक लम्बी बाधा दौड़ बना हुआ है। यहाँ जनता की अपेक्षाओं पर न कांग्रेस सरकारें खरी उतरती हैं, न भाजपा की। राज्य को बने चौदह वर्ष हो गए, इस बीच वह भाजपा के पाँच और कांग्रेस के तीन मुख्यमन्त्रियों के कार्यकाल देख चुका है। इनमें नारायण दत्त तिवारी अकेले ऐसे नेता हैं जिन्होंने पूरे पाँच वर्ष तक मुख्यमन्त्री के रूप में कार्य किया। वे राज्य को विकास के रास्ते पर अग्रसर करने में सफल भी रहे।

भाजपा के भुवन चन्द खण्डूरी के कार्य को भी सराहा गया। किन्तु पार्टी के आन्तरिक कलह के कारण उन्हें लगभग तीन-चार वर्ष का कार्यकाल टुकड़ों में मिला। राज्य के अन्य मुख्यमन्त्री अपने छोटे कार्यकाल अथवा कार्यशैली के कारण उस पर कोई छाप छोड़ने में असफल रहे। उत्तराखण्ड का अपेक्षित विकास न होने का यह एक राजनीतिक कारण है।

पिछले वर्ष जून में केदारनाथ घाटी में जो भीषण प्राकृतिक आपदा आई थी, वह विकास के पहिए को पीछे धकेलने जैसी ही थी। राज्य के सीमित संसाधनों को विकास कार्यों पर लगाने की बजाय उन्हें विध्वंस के बाद पुनर्निर्माण पर खर्च करना अनिवार्य हो गया। अपने संसाधनों को बढ़ाने के लिए राज्य के पास एक साधन जल विद्युत परियोजनाओं का है। किन्तु उन पर केन्द्र सरकार की निरन्तर पड़ती मार से राज्य की जनता त्रस्त है।

पिछले वर्ष अगस्त में उच्चतम न्यायालय ने अलकनन्दा-भागीरथी घाटी की 39 में से 23 परियोजनाओं पर रोक लगा दी। इसी सिलसिले में केन्द्र सरकार द्वारा उच्चतम न्यायालय में दिए ताज़ा शपथ पत्र से 10 हजार मेगावाट जल विद्युत उत्पादन क्षमता पर संकट आ गया है। स्वाभाविक है कि राज्य की जनता और उसके नेता इस रवैये को उसके विकास में बड़ी बाधा के रूप में देख रहे हैं।

जल विद्युत परियोजनाओं के पर्यावरण पर प्रभाव को लेकर जो चिन्ता व्यक्त की जाती है, उसे समझते हुए भी यहाँ की जनता को लगातार लग रहा है कि राज्य के पानी और उसकी जवानी दोनों का समुचित उपयोग नहीं होने दिया जा रहा है।

निराशा की इसी मन:स्थिति में उत्तरकाशी के 88 गाँवों के लोगों को मालूम हुआ कि उन पर एक नया संकट आ गया है। केन्द्र सरकार ने 18 दिसम्बर, 2012 को एक अधिसूचना जारी की थी। इसके अनुसार गोमुख से उत्तरकाशी तक के 100 किलोमीटर एवं कुल 4189 वर्ग किलोमीटर के सारे जल आपूर्ति क्षेत्र को इको सेंसटिव जोन अर्थात् पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र मान लिया गया है।

गाँवों के लोगों को बताया गया कि इससे उनके विकास के तमाम कार्य बाधित होंगे। अपने विकास की रही-सही उम्मीद भी उन्हें समाप्त होती दिखने लगी। फिर क्या था, लोग सड़कों उतर आए और तरह-तरह से विरोध प्रदर्शन होने लगे।

उत्तरकाशी से गंगोत्री तक यातायात बाधित किया गया। सरकारी-गैरसरकारी सभी स्कूल बन्द कराए गए। प्रदर्शनकारियों की बड़ी संख्या ने उत्तरकाशी के जिलाधिकारी के आवास पर पहुँचकर नारेबाजी की। उन्हें इको सेंसटिव जोन बनाए जाने के निर्णय के खिलाफ ज्ञापन दिया, जो केन्द्र सरकार को सम्बोधित था।

अधिसूचना के दो साल बीतने के बाद राज्य के दोनों बड़े दल सरकार के इस निर्णय के विरुद्ध खड़े हैं। इसके लिए एक-दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं। 19 दिसम्बर को एक प्रेस वार्ता में नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट ने इसके लिए यूपीए सरकार को कोसा और इसे काला कानून कहा। उनके अनुसार भाजपा केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मन्त्रालय से इस निर्णय पर पुनर्विचार का आग्रह करने के लिए पत्र लिखेगी।

भट्ट ने यह भी कहा कि अधिसूचना के कारण लगाई जाने वाली बन्दिशों से विकास का पहिया थम जाएगा। इससे लोग पलायन को विवश होंगे, जो सामरिक दृष्टि से घातक सिद्ध होगा। मुख्यमन्त्री हरीश रावत ने भी उसी दिन इस निर्णय के प्रति विरोध जताया। उन्होंने सभी दलों के नेताओं को साथ लेकर इस सम्बन्ध में प्रधानमन्त्री से मुलाकात की बात भी कही। मुख्यमन्त्री का कहना है कि सरकार के इस निर्णय से विकास कार्यों में बढ़ा उत्पन्न होगी तथा आपदा प्रभावित क्षेत्रों में पुनर्निर्माण के कार्य भी नहीं हो सकेंगे। उनकी कोशिश होगी कि इको सेंसिटिव जोन का क्षेत्रफल बदला जाए।

कहा जा रहा है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल इको सेंसिटिव जोन के विरोध में उत्तरकाशी में हाल में हुए विरोध प्रदर्शन के बाद जागे हैं। मुख्यमन्त्री शीघ्र ही सर्वदलीय बैठक बुलाने वाले हैं, जिसमें इस विषय पर आम राय बनाने की कोशिश होगी। उसके बाद प्रधानमन्त्री से मिलकर इसमें यथासम्भव परिवर्तन के लिए प्रयत्न किया जाएगा। सूत्रों के अनुसार, इको सेंसिटिव जोन घोषित क्षेत्र भारत-चीन की सीमा से लगा हुआ है।

पर्यावरण संरक्षा के दृष्टिगत इसमें अनियोजित विकास और निर्माण कार्यों पर रोक लगाई गई है। केन्द्र सरकार ने दो साल के अन्तर्गत मास्टर प्लान बनाने का निर्देश राज्य सरकार को दिया था। यह समय बीत चुका है। इसमें विशेषकर महिलाओं की राय लिए जाने तथा वन एवं पर्यावरण, पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड, जल संसाधन, ग्राम्य विकास, शहरी विकास आदि विभागों की सहभागिता सुनिश्चित करने की बात कही गयी है।