अल्कोहल के अणु घटा सकते हैं प्रदूषण

Submitted by Shivendra on Fri, 11/29/2019 - 11:19
Source
दैनिक जागरण, 29 नवम्बर, 2019

वायु प्रदूषण वर्तमान में सबसे बड़ी वैश्विक समस्याओं में से एक है। दुनियाभर के वैज्ञानिक इससे निपटने के लिए रास्ते तलाश रहे हैं। इसी दिशा में अमरिका शोधकर्ताओं की उम्मीद एक किरण दिखाई दी है। एक अध्ययन के आधार पर उन्होंने दावा किया है कि वातावरण में प्रचुर मात्रा में मौजूद अल्कोहल के अणु प्रदूषण फैलाने वाले उन खतरनाक कणों के निर्माण को कम कर सकते हैं, जो धुंध का कारण बनते हैं। इस अध्ययन के आधार पर वायु प्रदूषण, मौसम और जलवायु से सम्बन्धित अधिक सटीक मॉडल विकसित किए जा सकते हैं।

अमरिका की पेसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं इस अध्ययन में कई बातों पर फोकस किया। उन्होंने यह पता लगाया कि धुंध के अवयवों में मेथेनॉल किस प्रकार मिल जाता है। साथ ही इसके जरिए किस तरह सल्फर डाइऑक्साइड और बेहद सूक्ष्म प्रदूषण कणों (पीएम 2.5 और पीएम 10) के निर्माण को कम किया जा सकता है। बता दें कि ये प्रदूषक कण बेहद महीन होते हैं। इंसानों के बाल को मोटाई भी इन अतिसूक्ष्म कणों से 10 से 30 गुना अधिक होती है। ये प्रदूषक कण कितने खतरनाक होते हैं इसका पता लैंसेट नामक जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट से लगाया जा सकता है। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि पीएम 2.5 के कारण केवल वर्ष 2015 में ही करीब 5.25 लाख लोगों को समयपूर्व जान गंवानी पड़ी थी।

अमरिकी शोधकर्ताओं द्वारा किए गए ताजा अध्ययन को पीएनएएस नामक जर्नल में विस्तार से प्रकाशित किया गया है। अध्ययन में सामने आया है कि शुष्क और प्रदूषण की उस स्थिति में जब वातावरण में पर्याप्त मात्रा में अल्कोहल और सल्फर डाईऑक्साइड मौजूद होता है और पानी की मात्रा कम होती है, तब रासायनिक क्रिया जहरीले कणों का निर्माण कम कर देती है।

पेसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी में इस अध्ययन के सह-लेखक जोसफ एफ फ्रांसिस्को के मुताबिक, वर्तमान में हम पीएम 2.5 और पीएम 10 को लेकर चिंतित है क्योंकि ये प्रदूषण कण वायु की गुणवत्ता और मानव स्वास्थ्य पर असर डाल रहे हैं। वकौल जोसफ, वातावरण में मौजूद सल्फर डाइऑक्साइड पानी के अणुओं के साथ मिलकर सलफ्यूरिक एसिड बनाती है, जो अम्लीय वर्षा का एक प्रमुख घटक है। इसी क्रिया की वजह से वातावरण में कणों में वृद्धि और नेटवर्क संरचनाओं का निर्माण होता है। अध्ययन के दौरान हमारे सामने सबसे बड़ा सवाल यह उठा कि किस तरह से इन कणों के निर्माण का काम किया जा सकता?

इस तरह किया शोध

शोधकर्ताओं ने अध्ययन के लिए शक्तिशाली कम्प्यूटर मॉडल और अणुओं के सिमुलेशन का उपयोग किया। इसमें सामने आया कि यदि वातावरण में अल्कोहल जैसे कि मेथेनॉल आदि वातावरण में पर्याप्त मात्रा में मौजूद होता है तो सल्फर डाइऑक्साइड उससे रासायनिक क्रिया करती है। इस रासायनिक क्रिया के चलते मिथाइल हाइड्रोजन सल्फेट बनता है, जो प्रदूषक कणों के निर्माण के लिए पर्याप्त चिपचिपा माहौल बनाता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, चूँकि यह रासायनिक क्रिया, अल्कोहल को अधिक चिपचिपे यौगिक में परिवर्तित कर देती है, इसलिए शुरुआत में उन्होंने सोचा कि इसकी वजह से प्रदूषक कणों के बनने की प्रक्रिया को बढ़ावा मिलता है, लेकिन ऐसा नहीं होता। दरअसल, वातावरण में मौजूद ज्यादातर अल्कोहल सल्फर डाइऑक्साइड के निर्माण में ही खर्च हो जाता है। इसलिए सल्फ्यूरिक एसिड के निर्माण के लिए इसकी बेहद कम मात्रा ही रह जाती है। हालांकि, यह रासायनिक क्रिया पीएम 2.5 और पीएम 10 के कणों के निर्माण को कम करने में मददगार साबित हो सकती है। शोधकर्ताओं ने कहा, इस अध्ययन से हमें पता चला कि एक रासायनिक क्रिया के जरिए दूसरी रासायनिक क्रिया को संतुलित कर सकते हैं। यदि किसी तरह हम वातावरण में अल्कोहल की मात्रा को बदलने में कामयाब हो जाएं तो प्रदूषण कणों के निर्माण को कम किया जा सकता है।