स्थान- सल्सबील ग्रीन स्कूल, किरालूर, त्रिचूर, केरल
विकल्प क्या है? यह सवाल आज हर किसी गोष्ठी या संघर्ष के दायरे में एक चर्चा का विषय बना है। एक ओर जहां राजनैतिक पार्टियों का तीव्रगति से नैतिक पतन हो रहा है तो दूसरी ओर उदारवादी नीतियों का जनता पर प्रहार बढ़ता जा रहा है। जवाब में पूरे देश में जनता ने सरकार और उसकी पूंजीवादी नीतियों के खिलाफ मोर्चे खोल दिए हैं, जो कि न सिर्फ विकास परियोजना के प्रभावों को चुनौती दे रहे हैं बल्कि इस पूरे विकास के अवधारणा पर सवाल या निशान उठा रहे हैं। ये संघर्ष जल, जंगल, जमीन व खनिज जैसे संसाधनों पर लोगों के अधिकार, संसाधनों के इस्तेमाल में लोगों कि पहल, योगदान कि मांग के साथ-साथ उनके दोहन में सावधानी बरतने की भी मांग उठा रहे हैं। समता, न्याय, स्थिरता एवं प्रबंधन जैसे मूल्यों व सिद्धांतों के आधार पर प्रद्यौगिकी विकास एवं उसकी उचित प्रक्रिया व कार्य संरचना बनानी चाहिए एवं इसी आधार से ही उत्पादों, सेवाओं व लाभ का वितरण होना चाहिए। हमारे निरंतर संघर्ष ने आर्थिक एवं सामाजिक विकल्प की कई संरचना को उभारा है, लेकिन राजनैतिक विकल्प कैसा हो?हमारे संघर्षों में कई पड़ाव आते हैं, खासकर जब मौजूदा राजनैतिक व्यवस्था में विश्वास टूटता है, क्योंकि शासक वर्ग अपनी पूंजी और सत्ता की हिफाजत में संवैधानिक मूल्यों की अवहेलना करते हुए दमन का मार्ग अपनाता है। आज भी वैसे एक पड़ाव पर हमारे संघर्ष खड़े नजर आते हैं।
जन आंदोलन अपने संघर्षों से राज्य एवं शासन तंत्र की गहरे में जाते हैं और अपने अनुभवों से एक राजनैतिक विकल्प की बात उठाते हैं, उसकी परिणति ‘जन संसद’ या ‘जन मोर्चे’ के रूप में बनने वाले मंच भी हैं। निरंतर विभिन्न क्षेत्रों में इसी तरह के “विकल्प” पर रचनात्मक कार्य करते हैं – जैसे कि कृषि, जल, बिजली, निर्माण क्षेत्र से शुरू कर स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र तक। एक निहित परिवर्तन लाने के लिए यह अति आवश्यक है कि एक साथ संभव रूप में इन प्रक्रियाओं में सक्रियता लाया जाये। विकल्प एक सम्पूर्ण क्रांति की बात तक जाता है ना कि, सत्ता पर कब्जा और यही बात है कि चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने और नहीं लेने को लेकर वृहद बहस हमेशा होती रही है।
आर्थिक नवउदारवाद के बीस वर्षों बाद हम एक बार फिर इन बातों को लेकर एकजुट हो रहे हैं- अपने संघर्षों की समीक्षा के लिए, जीतों का जश्न मनाने के लिए और लड़ाई में शहीद हुए साथियों को याद करते हुए आगे की रणनीति बनाने के लिए।
इन्ही तमाम मुद्दों को ध्यान में रखकर जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय अपना 9वीं द्विवार्षिक अधिवेशन करने जा रहा है जिसमें उन तमाम संगठनों, व्यक्तियों, संघर्षों को आमंत्रण है जो इन विषयों पर पहल कर रहे हैं और संघर्षरत हैं। यह अधिवेशन सल्सबील ग्रीन स्कूल, त्रिचूर, केरल में आयोजित हो रहा है जहां के बच्चे केरल के प्लाचीमाड़ा से लेकर नर्मदा घाटी और अन्य संघर्षों में शामिल हुए हैं और शिक्षा के क्षेत्र में एक अनोखा पहल कर रहे हैं।
हम, इस अधिवेशन के लिए आपको आमंत्रित करते हैं। आप अपने सहयोगियों के साथ मिल कर जरूर आयें और दूसरे प्रगतिशील लोगों को भी यह खबर जरूर पहुंचाएं। आप अपने वैकल्पिक मॉडल, विचार, चित्र, प्रतिकृति, उपकरण, फिल्में या अन्य उपकारों के प्रदर्शन के साथ आयें तो आपका स्वागत है। हम आशा करते हैं कि आप अधिवेशन में जरूर शामिल होंगे। हम पूरी कोशिश करेंगे कि अधिवेशन स्थल पर आपको उचित स्थान, कार्यकर्ता समर्थन आदि उपलब्ध कराएं। हम, आपको यात्रा का खर्च देने कि स्थिति में नहीं हैं लेकिन रहने एवं भोजन कि व्यवस्था अधिवेशन स्थल पर रहेगा। हम उम्मीद करते हैं कि आप इसमें शामिल होने कि स्थिति में रहेंगे एवं विकास राजनीति के विकल्पों के इस सामूहिक यात्रा में साथ देंगे।
सधन्यवाद,
मेधा पाटकर, जियो जोस, प्रफुल्ला समंतारा, हुसैन मास्टर, सुनीति एस आर, सिस्टर सीलिया, गाब्रिएले दीत्रीच, अरुंधती धुरु, सरस्वती कवुला, जार्ज जकॉब, मधुरेश कुमार।
आयोजक समूह एवं राष्ट्रीय समन्वयक टीम की ओर से
संपर्क
मधुरेश (9818905316),
हुसैन मास्टर (9447375279),
शीला (9212587159)
या लिखे 6/6, जंगपुरा बी, नयी दिल्ली – 110014,
ईमेल- napmindia@gmail.com
web: http://www.napm-india.org/
आप फेसबुक पर भी जानकारी हासिल कर सकते हैं।
NAPM के नौवें द्विवार्षिक अधिवेशन, त्रिचुर, केरल का कार्यक्रम (ड्रॉफ्ट)
पहला दिन, शनिवार, 17 नवम्बर, 2012 | |
समय | कार्यक्रम |
9:00-10:00 | पंजीकरण |
10:00-10:30 | गीत और सांस्कृतिक प्रस्तुति |
10:30-11:30 | उद्घाटन, NAPM केरल की टीम के द्वारा स्वागत और अधिवेशन के परिप्रेक्ष्य की प्रस्तुति |
11:30-13:00 | पूर्ण सत्र – विकास एवं राजनीति – विकल्प। खुली चर्चा |
13:00-14:00 | भोजन |
14:00-16:00 | समानांतर सत्र-मुद्दे, विकल्प और भविष्य के कार्यक्रमों के ऊपर चर्चा।
· प्राकृतिक संसाधनों पर समुदायों का हक। · कृषि एवं खाद्य संकट और आज का किसान और मजदूर · फैलते शहर, मजदूरों और कामगारों के अधिकार और जनतंत्र · औद्यौगिक एवं आर्थिक विकास :आज का मजदूर वर्ग और उनके हक · सबको बिजली सबको पानी, कैसे? |
16:30 - 18:00 | समानांतर सत्रों कि प्रस्तुति और चर्चा |
18:30 - 19:30 | वैकल्पिक व्यवस्थाएं एवं प्रक्रियाएं :पानी, ऊर्जा, स्वास्थ्य, जीविका के साधन, चरखा, संस्कृति, ज्ञान प्रणाली आदि |
18:30 - 21:00 | भोजन |
दूसरा दिन, रविवार, नवंबर 18,2012 | |
9:00-11:30 | पूर्ण सत्र – वैश्वीकरण के दौर में सामाजिक न्याय का एजेंडा दलितों, आदिवासियों महिलाओं, अल्पसंख्यक समुदायों के लिए। खुली चर्चा। |
11:30 - 13:00 | समानांतर सत्र – मुद्दे, विकल्प और भविष्य के कार्यक्रमों के ऊपर चर्चा। · शिक्षा और स्वास्थ्य हो सबका अधिकार। · लोक संस्कृति एवं मीडिया · भ्रष्टाचार मुक्त समाज, संभावनाएं। · हिंसा, अहिंसा और राज्य का दमन · विरोध के स्वर, रणनीति और जनतंत्र में असहमति का स्थान |
13:00 - 14:00 | भोजन |
14:00 - 15:30 | समानांतर सत्रों कि प्रस्तुति और चर्चा |
15:30 - 16:00 | चाय |
16:00 - 18:00 | सांगठनिक चर्चा क्षेत्रवार समूहों में (राजनीति, ढांचा, प्रक्रिया, सहयोगी, माध्यम, संयुक्त कार्यक्रम, भविष्य की रणनीति, कार्यक्रम आदि) |
18:30 – 20:00 | राज्य अधिवेशनों के रिपोर्ट के प्रस्तुति एवं अगले दो वर्षों के लिए कार्य योजना |
20:00 – 20:30 | वैकल्पिक व्यवस्थाएं एवं प्रक्रियाएं :पानी, ऊर्जा, स्वास्थ्य, जीविका के साधन, चरखा, संस्कृति, ज्ञान प्रणाली आदि |
20:30 -22:00 | फिल्में और सांस्कृतिक प्रस्तुति |
22:00 - 23:00 | भोजन |
तीसरा दिन, सोमवार, नवंबर, 19,2012 | |
9:00 - 11:00 | पूर्ण सत्र :सम्पूर्ण क्रांति :जन आंदोलन और आगे का रास्ता |
11:00 - 13:00 | समूहों में हुए सांगठनिक चर्चा की प्रस्तुति और चर्चा:राज्य अधिवेशनों के रिपोर्ट की प्रस्तुति, प्रमुख राज्य और राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों पर चर्चा |
13:00 - 14:00 | भोजन |
14:00 - 15:00 | चुनाव और नए राष्ट्रीय संयोजक टीम का गठन |
15:00 - 16:00 | अगले दो वर्षों के कार्यक्रम का अगले दो वर्षों के लिए कार्य योजना एवं 2014 चुनाव में जन आंदलोनों कि भूमिका |
16:00 - 18:00 | समापन सत्र जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्यव |