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नेशनल दुनिया, 28 मई 2012
एक अनुमान के अनुसार देश में प्रतिवर्ष लगभग 60 हजार करोड़ रुपए का अनाज नष्ट हो जाता है। सरकार ने बफर नॉर्म्स तय किए हैं। कई बार उससे दोगुना व तीन गुना अनाज भंडारों में जमा रहता है। बफर नॉर्म अधिक से अधिक 300 लाख टन हैं पर सरकार के पास 600 से 700 लाख टन रखा है। यह जमाखोरी अनावश्यक ही नहीं बल्कि एक अपराध भी है। खाद्यन्न महंगाई का एक बड़ा कारण यही है। इसमें से किसी भी रूप में अनाज बाजार में आ जाए, गरीब को दिया जाए या निर्यात हो जाए तो महंगाई अपने आप दूर हो जाएगी।
भारत में कुपोषण से मरने वाले बच्चों की संख्या विश्व में सबसे अधिक हो गई है। विश्व में भूख से त्रस्त 81 देशों में भारत 67वें स्थान पर पहुंच गया है। पिछले दिनों उड़ीसा के गांव में एक गरीब महिला ने भूखमरी से विवश होकर अपने एक साल के बेटे को एक हजार रुपए में बेचने की कोशिश की। भुखमरी और कुपोषण के ऐसे समाचार मीडिया के जरिए निरंतर आते रहते हैं। देश में एक तरफ इस तरह की लज्जाजनक स्थिति है तो दूसरी ओर सरकारें खाद्यान्न संभालने की स्थिति में नहीं है। इस समय देश के गोदामों में लगभग 640 लाख टन अनाज रखा है। इस वर्ष खाद्यान्न की भरपूर पैदावार हुई है। लगभग 170 लाख टन और आने वाला है। सरकार की भंडारण क्षमता केवल 450 लाख टन की है। लाखों टन अनाज गोदामों के बाहर खुले में रखा है। एक अनुमान के अनुसार देश में प्रतिवर्ष लगभग 60 हजार करोड़ रुपए का अनाज नष्ट हो जाता है। गत 26 अप्रैल को मैंने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से मिलकर इस संबंध में चर्चा की थी। इसके बाद गत 14 मई को एक विशेष चर्चा के दौरान मैंने यह मामला राज्यसभा में भी उठाया था। मुझे दुख है कि अति महत्वपूर्ण मुद्दा होने के बावजूद मीडिया में इसे स्थान नहीं मिला।बहरहाल, सार्वजनिक वितरण प्रणाली के द्वारा एक महीने का राशन दिया जाता है। इसे एक महीने की बजाए 6 महीने का एक साथ देने का निर्णय किया जाना चाहिए। सरकार के गोदामों में एक किलो अनाज 6 मास तक रखने में लगभग 2 रुपये 40 पैसे प्रति किलो खर्च आता है। योजना आयोग के एक अध्ययन के अनुसार एक रुपये का अनाज उपभोक्ता तक पहुंचाने में सरकार के 3 रुपए 65 पैसे खर्च हो जाते हैं। अनाज खुले में रखने के कारण लगभग 60 हजार करोड़ का अनाज हर साल खराब हो जाता है। 6 मास का अनाज इकट्ठा देने से लगभग 175 लाख टन भंडारण क्षमता खाली हो जाएगी। सरकार की करोड़ों की बचत होगी। इसलिए 6 मास का अनाज इकट्ठा उठाने वालों को अनाज दो रुपए किलों सस्ता दे दिया जाए। इससे 40 पैसे प्रति किलो सरकार के भी बच जाएंगे। आज की कमरतोड़ महंगाई में दो रुपए किलो सस्ता अनाज गरीब आदमी के लिए एक बहुत बड़ी राहत होगी।
यदि सब लोग 6 महीने का इकट्ठा अनाज उठा लें तो लगभग 175 लाख टन भंडारण कम हो जाता है। यदि प्रारंभ में आधे लोग भी इकट्ठा अनाज उठा लें तो भी सरकार के पास 87 लाख टन की जगह खाली हो जाती है और इसके लिए कोई भी अतिरिक्त धन खर्च नहीं करना पड़ता। किसानों से अनाज लेते समय एक नई योजना शुरू की जाए। इस योजना को स्वीकार करने वाले किसानों से अनाज लेते समय उनसे इकरार हो जाए। आधा मूल्य दे दिया जाए और अनाज उन्हीं के पास रहने दिया जाए। सरकार आवश्यकता पड़ने पर यह अनाज उठाए। एक क्विंटल अनाज रखने का सरकार का एक वर्ष में 480 रुपए खर्च आता है। यह अनाज किसान से लेते समय इतना धन किसान को अतिरिक्त दे दिया जाए। वाणिज्य मंत्रालय संसदीय स्थायी समिति जब चंडीगढ़ गई थी तो पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल से इस संबंध में बात हुई थी। उन्होंने इस सुझाव को अतिशीघ्र लागू करने को कहा था।
जितने भी किसान इस योजना को स्वीकार करेंगे उतनी भंडारण क्षमता सरकार के पास खाली हो जाएगी। इसके लिए कोई अतिरिक्त धन खर्च नहीं करना पड़ेगा। किसान को 480 रुपए प्रति क्विंटल और अधिक मिल जाएगा। स्थायी समिति के आग्रह पर पिछले वर्ष बासमती चावल का निर्यात खोला गया जिसे सरकार ने बिना कारण रोका हुआ था। इसके परिणाम बहुत अच्छे रहे। 45 लाख टन चावल अब तक निर्यात हो चुका है। गेहूं के निर्यात की भी अपार संभावनाएं हैं। विश्व बाजार में भारत एक स्थायी अनाज निर्यातक देश बन सकता है। सरकार ने बफर नॉर्म्स तय किए हैं। कई बार उससे दोगुना व तीन गुना अनाज भंडारों में जमा रहता है। बफर नॉर्म अधिक से अधिक 300 लाख टन हैं पर सरकार के पास 600 से 700 लाख टन रखा है। यह जमाखोरी अनावश्यक ही नहीं बल्कि एक अपराध भी है। खाद्यन्न महंगाई का एक बड़ा कारण यही है। इसमें से किसी भी रूप में अनाज बाजार में आ जाए, गरीब को दिया जाए या निर्यात हो जाए तो महंगाई अपने आप दूर हो जाएगी।
स्थायी समिति ने गोदामों में खराब होने वाले अनाज के संबंध में गंभीर चिंता प्रकट की है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह कहा है कि किसी भी परिस्थिति में गोदामों में पड़ा अनाज खराब नहीं होना चाहिए। खराब होने से पहले वितरित कर दिया जाए। नीलाम कर दिया जाए। उच्चतम न्यायालय के सुझाव पर यदि मुफ्त बांटना है तो वह भी किया जा सकता है परंतु एक भी दाना खराब नहीं होना चाहिए। समिति ने सरकार को बड़े आग्रह के साथ कहा है कि इस सबके बाद भी अनाज खराब होता है तो उसका पूरा मूल्य जिम्मेदार अधिकारियों से वसूला जाना चाहिए।
(लेखक संसद सदस्य और हिमाचल क्षेत्र के पूर्व मुख्यमंत्री हैं।)