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पुस्तक, राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून, 2013
जब हम सामुदायिक एकजुटता की बात करते हैं, तब सबसे जरूरी हो जाता है लोगों का यह जानना कि वास्तव में योजनाओं, कार्यक्रमों और कानूनों में चल क्या रहा है? जब समाज को किसी भी कानून या योजना में मूक हितग्राही मान लिया जाता है, ठीक तभी से समाज व्यवस्था से दूर हो जाता है और व्यवस्था की समाज के प्रति जवाबदेहिता खत्म हो जाती है। आज बहुत जरूरी है समाज को व्यवस्था से सवाल-जवाब करने के लिये तैयार करना। उन्हें यह अहसास करवाना कि वास्तव में व्यवस्था लोगों के प्रति जवाबदेय है और यदि समाज लोक कार्यक्रमों की निगरानी नहीं करेगा, तो उनके हक सीमित और सीमित किये जाते रहेंगे। 'राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून' में सामाजिक अंकेक्षण का प्रावधान वास्तव में एक सतही प्रावधान नहीं है, यह समाज को जगाने और भूख के खिलाफ समाज की लड़ाई का बड़ा औजार है। बेहतर होगा कि हम इस प्रावधान को लागू करने में जुट जाएँ।
सामाजिक अंकेक्षण का मतलब
वास्तव में सामाजिक अंकेक्षण एक नजरिया और दृष्टि आधारित काम करने का तरीका है। इसके तहत कुछ तरीकों (जैसे - लोगों को यह विश्वास दिलाना कि कार्यक्रम या योजना में उनकी भूमिका है, उनके साथ बातचीत करना और पंचायत-सरकारी कार्यालयों के दरवाजे खुले रखना) और तकनीकों (सहभागिता, जानकारी को खुले में रखना, आँकड़ों का मतलब साफ करना, कार्यक्रम या किसी योजना का उसके मानकों के मुताबिक क्रियान्वयन जाँचना आदि) के जरिए किसी योजना या कार्यक्रम (यहाँ जैसे 'राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून' में शामिल सार्वजनिक वितरण प्रणाली, एकीकृत बाल विकास कार्यक्रम, मध्यान्ह भोजन योजना, मातृत्व हक, कृषि क्षेत्र के तहत भोजन उत्पादन की नीति और व्यवस्था) के बारे में लोगों की जानकारी स्पष्ट की जाती है, ताकि समुदाय यह जान सके कि योजना या कानून के मुताबिक क्या हक दिये जाने थे, वे दिये गए या नहीं और जिसकी, जो जिम्मेदारी थी, उसका सही ढंग से निर्वहन किया गया या नहीं।
फिर वह यह मूल्यांकन करता है कि वह कार्यक्रम या योजना उसकी मंशा के मुताबिक लागू-क्रियान्वित हुई या नहीं? इस कानून का मकसद समाज में भुखमरी और खाद्य सुरक्षा की स्थिति को बदलना है। इस कानून के लागू होने से उनकी स्थिति बदली या नहीं और यदि बदली तो कितनी इन सवालों का जवाब तो समाज ही दे सकता है। इसीलिये सामाजिक अंकेक्षण का मतलब है कि समाज योजना कार्यक्रम के परिणामों को जाँचे। वास्तव में इससे सरकार या कार्यक्रम लागू करने वाली संस्था की जवाबदेयता सुनिश्चित करने की कोशिश की जाती है।
सामाजिक अंकेक्षण कुछ खास नजरियों से व्यवस्था में बदलाव के लिये हमें जमीनी ज्ञान दे सकता है। इससे हमें पता चल सकता है कि आँगनबाड़ी केन्द्र में लड़के और लड़कियों को समान अवसर/महत्त्व/सेवाएँ देने के लिये क्या कोशिशें की गई हैं? वहाँ भोजन पकाने वाले स्थान कितने सुरक्षित और साफ-सुथरे हैं? पोषण आहार के वितरण में समानता और सहृदयता हो, इसके लिये क्या प्रयास किये गए? पोषण आहार कार्यक्रम या जो सेवाएँ मिल रही हैं, उनके बारे में बच्चों और महिलाओं के विचार लिये जाते हैं क्या? क्या इससे जाति और लैंगिक आधार पर बनी सामाजिक व्यवस्था में भी बदलाव आ रहा है?
सामाजिक अंकेक्षण और व्यवस्था में बदलाव
सामाजिक अंकेक्षण एक बहुत उपयोगी साधन हो सकता है, बशर्ते कानून के तहत परिभाषित हकदार या कोई और भी व्यक्ति यह तय कर लें कि उन्हें हर योजना की निगरानी करना है, सवाल-जवाब करना है, जानकारी इकठ्ठा करना है और कानूनी प्रावधानों का उपयोग करना है। सामाजिक अंकेक्षण के लिये हमें न केवल योजना और कानून को पूरी तरह से समझना है, बल्कि अपने ग्रामसभा, वार्ड सभा में सक्रिय प्रशिक्षित सामाजिक अंकेक्षण कार्यकर्ताओं का समूह भी तैयार करना है। इसके बाद जहाँ भी गड़बड़ियाँ मिलें, वहाँ उनके सुधार के लिये संघर्ष भी करना होगा।
सोच तो यह कहती है कि सामाजिक अंकेक्षण एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया है, जिसमें सरकार और समाज मिल कर एक कार्यक्रम और व्यवस्था की निगरानी करते हैं और कोशिश करते हैं कि तय लक्ष्य हासिल हों। यह वंचित तबकों के सशक्तिकरण का एक प्रभावशाली माध्यम भी है।
सामाजिक अंकेक्षण का महत्त्व
हमें समझना होगा कि वैधानिक व्यवस्था के तहत भी ऑडिट किया जाता है। वह ऑडिट या अंकेक्षण वाणिज्य और वित्तीय नियमों के तहत निर्धारित व्यवस्था के मानकों पर होता है। उसमें समुदाय या हकधारकों या हितग्राहियों की कोई सहभागिता नहीं होती है।
सामाजिक अंकेक्षण में सबसे बुनियादी बात यह है कि इसमें समुदाय या हक धारकों की पूरी सहभागिता होती है। वे ही सूचना के सबसे बुनियादी और विश्वसनीय स्रोत होते हैं जो ये बता सकते हैं कि उन्हें कानून के तहत लिखे गए अधिकार मिले या नहीं!
दूसरी बात यह है कि जब सरकार या सरकार के प्रतिनिधि सामाजिक अंकेक्षण के तहत दस्तावेज और जानकारियाँ ग्रामसभा या वार्ड सभा के सामने पेश करेंगे, तो इससे समुदाय भी सवाल पूछने के लिये सशक्त होगा। यह एक ऐसा अवसर हो सकता है जहाँ सरकार और समुदाय बराबरी से संवाद कर सकते हैं। यहाँ सरकार और समुदाय के सम्बन्ध ग्राहता और दाता के नहीं हैं।
व्यक्तिगत शिकायतों, गाँव या शहरों की बसाहटों से निकल कर आये मुद्दों या समस्याओं का संज्ञान लेने के लिये सरकार बाध्य होगी। इससे नीतियों और उसके क्रियान्वयन में व्याप्त विसंगतियों को दूर किया जा सकेगा। कानून और नीति बनाने वालों को पता चलेगा कि कानून का क्रियान्वयन किस ढंग से हो रहा है।
सामाजिक अंकेक्षण से प्रचलित मान्यताएँ जाँची जा सकती हैं। आम तौर पर यह कह दिया जाता है कि कहीं कुछ नहीं हो रहा है, किसी को कोई अधिकार नहीं मिले हैं या सब कुछ ठीक चल रहा है। कहीं कोई शिकायत नहीं है, इन मान्यताओं का परीक्षण किया जा सकता है।
'राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून' और इसकी योजनाओं के सामाजिक अंकेक्षण के मकसद
सामाजिक अंकेक्षण या सम्परीक्षा के मुख्य मकसद हैं-
1. कानून-योजना के क्रियान्वयन की प्रक्रिया में समाज व हकदारों की सक्रिय सहभागिता सुनिश्चित करना
2. यह सुनिश्चित करना कि जो मंशा कानून में व्यक्त की गई है, उसके मुताबिक क्रियान्वयन ही रहा है अथवा नहीं?
3. इस कानून-कार्यक्रम को सही ढंग से संचालित करने के लिये जिस तरह की व्यवस्था और ढाँचे की जरूरत है वह स्थापित किया गया है अथवा नहीं?
4. यह देखना कि सामाजिक/आर्थिक रूप से वंचित तबकों की इसमें सम्मानजनक सहभागिता है।
5. महिलाओं, बेघर, खाना-बदोश और घुमन्तू समुदायों, विकलांगता से प्रभावित, अनुसूचित जाति-जनजाति, गम्भीर बीमारियों से प्रभावित, पेशों के आधार पर बहिष्कृत तबकों को उनके हक मिल रहे हैं और उनकी स्थिति में बेहतरी हो रही है।
6. कानून के गुणवत्तापूर्ण क्रियान्वयन की प्रक्रिया में कोई विसंगति भ्रष्टाचार नहीं है।
7. कार्यक्रम और बेहतर किस तरह से हो सकता है, यह इसके लिये जमीनी बाते सामने आ सकें।
8. नीति में यदि कोई कमी है, तो अनुभव के आधार पर उसे दूर किया जा सके।
9. यह प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी ढंग से संचालित होना चाहिए।
10. शिकायत निवारण व्यवस्था अपना काम जिम्मेदारी से कर रही है।
सामाजिक अंकेक्षण के चरण
'राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून' के तहत सामाजिक अंकेक्षण करने के लिये व्यापक रूप से छह चरण होने चाहिए।
1. कम-से-कम 15 दिन पहले सम्बन्धित विभाग से जरूरी दस्तावेज प्राप्त करना। इसके लिये हर पंचायत के स्तर पर सामाजिक अंकेक्षण कार्यकर्ता समिति का गठन होना चाहिए।
2. सामाजिक अंकेक्षण कार्यकर्ता (जो ग्रामसभा द्वारा चयनित होगा) द्वारा समुदाय और परिवार को इस कानून के प्रावधानों, उनके हकों और शिकायत निवारण प्रक्रिया के बारे में बताना। केवल जानकारी नहीं देना उसके मायने भी बताना।
3. सामाजिक अंकेक्षण के लिये समुदाय के स्तर पर सामाजिक अंकेक्षण की प्रक्रिया से जुड़ने के लिये तैयार एक समूह (जिसमें हकधारक, महिलाएँ, अनुसूचित जाति-जनजाति के प्रतिनिधि अनिवार्य रूप से शामिल हों) होना।
4. अंकेक्षण का प्रारूप और जानकारियाँ इकठ्ठा करना (जानकारियों के स्रोतों, दस्तावेजों, व्यक्तियों के बारे में स्पष्टता होना कि सूचना कहाँ से मिलेगी। कुछ सूचनाओं की उपयोग पूर्व जाँच करना प्रमाण सहित विस्तृत जानकारियाँ, हकधारकों, परिवारों, समुदाय, क्रियान्वयन करने वाली संस्थाओं के बारे में इकठ्ठा करना)
5. प्रमाण आधारित जानकारियों/प्रमाणित जानकारियों पर संवाद और उसका विश्लेषण/जो जानकारियाँ इकठ्ठा हुई हैं, उनका विश्लेषण करना और जो निष्कर्ष निकल कर आ रहे हैं, उन्हें वापस समुदाय/सम्बन्धित परिवारों के बीच ले जाना और उन्हें विस्तार से बताना। इस प्रक्रिया में क्रियान्वयन के लिये जिम्मेदार लोगों/संस्था के प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाना होगा। सामाजिक सम्परीक्षा में उस पक्ष को अपनी बात कहने का पूरा अवसर मिलना चाहिए, जो क्रियान्वयन के लिये जिम्मेदार है।
6. जवाबदेयता सुनिश्चित करने के लिये निष्कर्षों को प्रमाण सहित सार्वजनिक करना/हर गाँव/बस्ती के सामाजिक अंकेक्षण से प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर कार्यवाही करने के लिये जिम्मेदार अधिकारियों/सतर्कता समिति/जिला शिकायत अधिकारी की उपस्थिति में बैठक करना। इन निष्कर्षों को मीडिया में भी जारी किया जाना चाहिए।
7. फॉलो-अप करना कि कार्यवाही क्या हुई?
सामाजिक अंकेक्षण के लिये तैयारी
मूलतः इन दस्तावेजों व सामग्री का निरीक्षण किया जाएगा
1. योजना से सम्बन्धित दस्तावेज
2. सामान्य तौर पर विभाग से जारी निर्देशों के आवंटन आदेश की प्रति।
3. बैंक खाता सम्बन्धी जानकारी
4. सामग्री क्रय के बिल
5. किसी भी तरह के भुगतान से सम्बन्धित दस्तावेज की कैशबुक
6. राशन दुकान द्वारा सुरक्षित रखे गए खाद्यान्न के नमूने
7. सतर्कता समिति द्वारा की गई कार्यवाही
8. स्टाक से सम्बन्धित रिकॉर्ड
9. वितरण से सम्बन्धित रिकॉर्ड
10. जिस जगह पर योजना क्रियान्वित होती है, वहाँ का निरीक्षण (राशन की दुकान, आँगनबाड़ी केन्द्र, स्कूल आदि)
11. हितग्राहियों के वक्तव्य
12. पोषण आहार कार्यक्रम में मिलने वाले भोजन की गुणवत्ता की जाँच
यदि हम थोड़ी विस्तार से बात करें तो सामाजिक अंकेक्षण करने के लिये निम्न स्रोतों से जानकारियाँ इकठ्ठा करनी होगी -
दस्तावेज
जिस योजना या कार्यक्रम के बारे में सामाजिक सम्परीक्षा की जानी है, उससे सम्बन्धित दस्तावेज या उसके अधिकृत छायाप्रति कम-से-कम 15 दिन पहले समुदाय-स्थानीय निकाय के उस समूह को उपलब्ध करवाई जानी चाहिए, जो सामाजिक अंकेक्षण की प्रक्रिया चला रहा है। जैसे-
खाद्य और नागरिक आपूर्ति विभाग (राशन व्यवस्था) से
1. समुदाय को जानकारी देने के लिये किये गए प्रयासों की सामग्री का विवरण, उसकी प्रति और उपयोग की प्रक्रिया
2. राशन की दुकान से पात्र हितग्राहियों की सूची वाला रजिस्टर,
3. राशन कार्डधारियों की सूची
4. अनाज प्राप्ति वाला भण्डार रजिस्टर
5. अनाज वितरण वाला रजिस्टर
6. सतर्कता समिति द्वारा किये गए कामों की जानकारी
7. शिकायत निवारण अधिकारी द्वारा की गई कार्यवाही का विवरण
8. राशन/अनाज के नमूने
महिला एवं बाल विकास विभाग
(बच्चों और गर्भवती-धात्री महिलाओं का पोषण आहार) से
1. समुदाय को जानकारी देने के लिये किये गए प्रयासों/सामग्री का विवरण, उसकी प्रति और उपयोग की प्रक्रिया
2. आँगनबाड़ी से दर्ज गर्भवती-धात्री महिलाओं और बच्चों की सूची वाला रजिस्टर
3. उपस्थिति पंजीकरण रजिस्टर
4. गाँव का/आँगनबाड़ी केन्द्र के क्षेत्र के सर्वे रजिस्टर
5. पोषण आहार वितरण पंजी
6. वृद्धि निगरानी रजिस्टर
7. मातृत्व हक की पात्र महिलाओं की सूची
8. पोषण आहार उपलब्ध करवाने के लिये जिम्मेदार समूहों (स्वयं सहायता समूह, स्वयं सेवी संस्था/केन्द्रीयकृत रसोई आदि) से सम्बन्धित दस्तावेज
9. पोषण आहार बनाने के लिये मिलने वाले राशन से सम्बन्धित रिकॉर्ड
स्थानीय निकाय/स्कूल से (मध्यान्ह भोजन योजना)
1. समुदाय को जानकारी देने के लिये किये गए प्रयासों/सामग्री का विवरण, उसकी प्रति और उपयोग की प्रक्रिया
2. स्कूल से बच्चों की उपस्थिति पंजी3. मध्यान्ह भोजन पंजी
4. भोजन सामग्री का रजिस्टर/ प्राप्ति/उपभोग की जानकारी
5. मध्यान्ह भोजन उपलब्ध करवाने के लिये जिम्मेदार समूहों (स्वयं सहायता समूह/स्वयं सेवी संस्था/केन्द्रीयकृत रसोई आदि) से सम्बन्धित दस्तावेज
6. बाल सभा/बच्चों के द्वारा की गई समीक्षा/बच्चों द्वारा किये गए अंकेक्षण की जानकारी
7. शाला प्रबन्धन समिति के रिकॉर्ड/उनसे चर्चा
इन दस्तावेजों का अध्ययन करके एक रिपोर्ट तैयार की जानी चाहिए, जिसमें यह उल्लेख हो कि कितने लोग पात्र हैं, कितनों को हक मिल रहे हैं, कौन-कितने लोग वंचित हैं, क्या कोई विसंगति है, क्या शिकायत निवारण व्यवस्था सही ढंग से अपनी जिम्मेदारी निभा रही है आदि।
इसके साथ ही योजना के क्रियान्वयन के लिये जिम्मेदार लोगों के साथ रचनात्मक संवाद करना।
1. राशन दुकान संचालक/प्रबन्धक।2. आँगनबाड़ी कार्यकर्ता/पर्यवेक्षक/बाल विकास परियोजना अधिकारी (विकासखण्ड)
3. स्कूल प्रबन्धन समिति/स्वयं सहायता समूह/रसोइए/बच्चों के पालक/मुख्य कार्यपालन अधिकारी (जनपद पंचायत)
4. जिला शिकायत निवारण अधिकारी और जिला सतर्कता समिति के सदस्यों से संवाद
हकधारकों के संवाद और उनके अनुभव/तथ्यों/ वक्तव्य को दर्ज करना
1. प्राथमिक परिवार/अन्त्योदय परिवार
2. बच्चों/गर्भवती-धात्री महिलाओं से संवाद
3. स्कूल में बच्चों के साथ संवाद
4. मातृत्व हक के अन्तर्गत महिलाओं से संवाद
विश्लेषण की जानकारी को सार्वजनिक करना
दस्तावेजों और बातचीत और अवलोकन के आधार पर जो निष्कर्ष उभर कर सामने आएँगे उन्हें सामाजिक अंकेक्षण मंच/स्थानीय निकाय की सामाजिक अंकेक्षण की बैठक में सभी तथ्यों के साथ सामने रखा जाएगा। उस पर चर्चा होगी और जो भी निष्कर्ष निकलेंगे उन्हे स्पष्ट कार्यवाही अनुशंसा के साथ सम्बन्धित अधिकारी को सौंप दिया जाएगा।
'राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून' (उसमें शामिल योजनाओं) के सामाजिक अंकेक्षण में शामिल पक्ष
बुनियादी अधिकारों की उपलब्धता- 'राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून' के तहत प्राथमिक परिवारों, अन्त्योदय योजना के परिवारों, आँगनबाड़ी के तहत गर्भवती-धात्री महिलाओं, बच्चों, स्कूल के बच्चों और मातृत्व हकों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। सामाजिक अंकेक्षण के तहत स्थानीय निकाय यह जाँचेंगे कि इन सबको कानून के मुताबिक निश्चित समय पर गुणवत्तापूर्ण तरीके से बिना भेदभाव से सेवाएँ, जो उनके हक है, मिली या नहीं। कानून में प्रावधान है कि यदि सरकार हकधारकों को निर्धारित मात्रा में खाद्यान्न उपलब्ध नहीं करवा पाती है, तो वह खाद्य सुरक्षा भत्ता देगी, हम यह जाँचे कि भत्ता मिला या नहीं!
कहाँ से शुरू होगी प्रक्रिया?- इसके लिये जो जाँच की प्रक्रिया होगी वह व्यक्ति पात्र परिवार से शुरू होगी, फिर समुदाय के स्तर पर उसका क्रियान्वयन जाँचा जाएगा। यह तय है कि जमीनी क्रियान्वयन के सूत्र विकासखण्ड और जिला स्तर (पर्यवेक्षण, नियमित समीक्षा और जिला स्तर पर जिला शिकायत निवारण अधिकारी के सन्दर्भ में) से जुड़े होते हैं। अतः सामाजिक अंकेक्षण में उभरे विषयों को जिले स्तर तक जोड़ने का प्रयास होना चाहिए।
क्रियान्वयन संस्थाओं के स्तर पर - इसके बाद सम्बन्धित संस्थाओं (राशन की दुकान, आँगनबाड़ी केन्द्र, स्कूल, अनाज के भण्डारण वाले स्थान आदि) को भी देखा जाएगा कि वहाँ क्या व्यवस्थाएँ हैं? राशन की दुकान में सही तोल और अनाज के वैज्ञानिक तरीके से सुरक्षित भण्डारण की व्यवस्था है या नहीं? राशन की दुकान पर जानकारियों का बोर्ड लगा है और उस पर जानकारी लिखी है, सभी जरूरी रजिस्टर हैं और उनमें सही जानकारी दर्ज है आदि। इसी तरह आँगनबाड़ी केन्द्र में बच्चों के बैठने की व्यवस्था क्या है, भोजन पकाने का स्थान साफ है, वहाँ शौचालय और पीने के साफ पानी की व्यवस्था है, बच्चों को अच्छा पोषण आहार मिल रहा है, उसमें नियमितता है आदि। मध्यान्ह भोजन योजना में बच्चों के बैठने की व्यवस्था, भोजन की गुणवत्ता, व्यवहार, भोजन पकाने की व्यवस्था, भोजन पकाने के लिये उपयोग में ले जा रही सामग्री, मसालों, अनाज और सब्जी की गुणवत्ता को देखना और मापना।
शिकायत निवारण व्यवस्था- यह जाँचे कि क्या वास्तव में लोगों को बताया गया है कि खाद्य सुरक्षा से सम्बन्धित उनकी शिकायतों के निराकरण के लिये इस कानून में एक शिकायत निवारण व्यवस्था स्थापित की गई है। यह व्यवस्था जिला स्तर पर होगी। अब तक के अनुभव बताते हैं कि यदि लोगों की शिकायतों को ईमानदारी से दर्ज करके उस पर कार्यवाही की जाये, तो व्यवस्था बहुत हद तक बदल सकती है और शोषण में कमी आ सकती है। अब यह देखा जाना जरूरी है कि जिला शिकायत निवारण अधिकारी और सतर्कता समिति के प्रावधान के तहत लोगों की हर शिकायत या विचार को सुना और दर्ज किया जाये। हर एक को पावती मिले और सही ढंग से 30 दिन में उसका निराकरण हो।
विभागों का आपसी समन्वय - इस कानून को लागू करने में एक व्यक्ति या एक संस्था या एक विभाग ही शामिल नहीं होगा। इसे लागू करने में खाद्य और नागरिक आपूर्ति विभाग की मुख्य भूमिका तो है, परन्तु इसके साथ की महिला एवं बाल विकास विभाग, पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग, नगरीय प्रशासन विभाग, समाज कल्याण विभाग और वित्त विभाग की भी अहम भूमिकाएँ हैं। अतः इनके बीच सामंजस्य (एक परिवार से लेकर राज्य के स्तर तक) भी महत्त्वपूर्ण है। यदि इन सबके बीच सहज सम्बन्ध और सामंजस्य नहीं होगा, तो कानून के प्रावधानों का उल्लंघन होना तय है। अतः सामाजिक अंकेक्षण में व्यवस्था से सम्बन्धित पहलुओं को भी जाँचा-परखा जाता है ताकि अच्छाई और बुराई के कारणों को सामने लाया जा सके।
गुणवत्ता- सामाजिक अंकेक्षण के तहत यह देखा जाता है कि योजना/कार्यक्रम का क्रियान्वयन गुणवत्तापूर्ण ढंग से हुआ या नहीं? एक तरह से इस कानून के तहत समाज यह देखेगा कि राशन की दुकान से जो अनाज मिला, उसकी गुणवत्ता अच्छी थी! बच्चों और गर्भवती महिलाओं को आँगनबाड़ी से पोषण आहार मिला, उसकी गुणवत्ता अच्छी थी! स्कूल में बच्चों को मध्यान्ह भोजन मिला उसकी गुणवत्ता कैसी थी!
सामाजिक असमानता या भेदभाव - खाद्य असुरक्षा और कुपोषण की एक मूल कारण सामाजिक असामनता भी है। 'राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून' के तहत मिलने वाले लाभों में केवल अनाज या खाना ही महत्त्वपूर्ण नहीं हैं। यह भी महत्त्वपूर्ण है कि हकधारकों को बिना किसी भेदभाव के हक मिलें। सामाजिक अंकेक्षण में यह देखा जाएगा कि पात्र परिवारों की सूची में शामिल करने, राशन कार्ड जारी करने, राशन की दुकान से अनाज दिये जाने, आँगनबाड़ी में पोषण आहार और स्कूल से मध्यान्ह भोजन के वितरण, मातृत्व हक उपलब्ध करवाने सहित किसी भी प्रक्रिया में कोई भी भेदभाव या असमानतापूर्ण व्यवहार तो नहीं हुआ? हम जाति, सम्प्रदाय, लिंग, आर्थिक-सामाजिक पृष्ठभूमि के आधार पर होने वाले व्यवहार को जाँचेंगे।
बहिष्कार- कुछ तबके ऐसे होते हैं, जो अपने हकों से अलग-अलग कारणों से वंचित रहे हैं। उन्हें सम्मानजनक तरीके से खाद्य सुरक्षा का हक मिले इसके लिये अतिरिक्त व्यवस्थाएँ बनाने और मानक तय करने की जरूरत होती है। जैसे विकलांगता से प्रभावित व्यक्तियों के हक छूट न जाएँ। हमें यह देखना है कि आँगनबाड़ी में ऐसा तो नहीं है कि विकलांगता से प्रभावित बच्चे दर्ज ही न हों या दर्ज तो हैं पर वे आते ही न हों और कार्यक्रम लागू करने वालों का उस पर कोई ध्यान ही न हो। यदि ऐसा हुआ तो यह बहिष्कार की स्थिति है। इसी तरह वृद्ध या गम्भीर बीमारी से पीड़ित व्यक्ति राशन की दुकान जाकर अपने हक का खाद्यान्न ले ही न पा रहा हो और इस स्थिति पर किसी की नजर ही न हो। इस कानून का मकसद सबसे वंचित तबकों को संवैधानिक संरक्षण प्रदान करना है और ऐसे में यदि असमानता और बहिष्कार वाला व्यवहार बना रहता है, तो यह माना जाएगा कि कानून अपने मकसद को हासिल करने में असफल हो रहा है। ऐसे तबकों के हकों को संरक्षित कर देना इस कानून की सबसे बड़ी सफलता है।
अधोसंरचनात्मक ढाँचा- इस कानून के क्रियान्वयन में ढाँचागत सुविधाओं की भी बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी। राशन के सुरक्षित भण्डारण की व्यवस्था के लिये भण्डार गृह, आँगनबाड़ी के साफ-हवादार भवन, स्कूल और आँगनबाड़ी में खाना पकाने, पीने के पानी और स्वच्छता की व्यवस्था होना जरूरी है।
कानून के मुताबिक व्यवस्थाएँ बनना/सामाजिक अंकेक्षण के दौरान यह भी देखा जाना चाहिए कि राशन की दुकान के स्तर पर सतर्कता समिति बनी या नहीं? उसमें किन लोगों को शामिल किया गया है? इस समिति के गठन की प्रक्रिया क्या रही? क्या यह अपनी भूमिका निभा रही है? क्या विकासखण्ड स्तरीय सतर्कता समिति बनी? उसमें कौन शामिल हैं? क्या इन समितियों के बारे में व्यापक प्रचार किया गया या क्या लोगों को इसके बारे में पता है?
कानून के मुताबिक व्यवस्थाएँ बनना- सामाजिक अंकेक्षण के दौरान यह भी देखा जाना चाहिए कि राशन की दुकान के स्तर पर सतर्कता समिति बनी या नहीं? उसमें किन लोगों को शामिल किया गया है? इस समिति के गठन की प्रक्रिया क्या रही? क्या यह अपनी भूमिका निभा रही है? क्या विकासखण्ड स्तरीय सतर्कता समिति बनी? उसमे कौन शामिल हैं? क्या इन समितियों के बारे में व्यापक प्रचार किया गया या क्या लोगों को इसके बारे में पता है?
जानकारियाँ इकठ्ठा करना
सामाजिक अंकेक्षण में गुणवत्ता से सम्बन्धित जानकारी या जो जानकारियाँ कागजों से नहीं मिलती, उन्हें सामने लाने के लिये सामुदायिक रिपोर्ट कार्ड या समुदाय की रिपोर्ट का उपयोग किया जा सकता है। इस रिपोर्ट कार्ड में हम समुदाय या हकधारकों से यह जानकारी लेते हैं कि उन्हें क्या पूरे हक मिल रहे हैं? जो पोषण आहार या खाद्यान्न मिल रहा है वह नियमित रूप से मिलता है और अच्छी गुणवत्ता का है? क्या वे अपने बच्चों को सुरक्षित मानते हैं? आदि।
हम लोगों से पूछ सकते हैं कि अलग-अलग सेवाओं अधिकारों के सन्दर्भ में वे इस कानून को कितने अंक देते हैं और इसमें सुधार कैसे हो सकता है? इसका स्वरूप सरल और स्पष्ट होना चाहिए।
राज्य सरकार 'राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून' और उसमें शामिल योजनाओं के सामाजिक अंकेक्षण के लिये विस्तृत नियम बनाने के लिये जिम्मेदार है। हमें अपनी राज्य सरकार से यह जानकारी माँगना चाहिए कि उन्होंने सामाजिक अंकेक्षण के लिये क्या व्यवस्था बनाई है?
विभागीय सामंजस्य
'राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून' में राशन व्यवस्था, आँगनबाड़ी कार्यक्रम, मध्यान्ह भोजन योजना, मातृत्व हक और कृषि विभाग से जुड़े हिस्से हैं। यह किसी एक विभाग के पूरी तरह संचालित होने वाला कानून नहीं है। ऐसी स्थिति में यह सुनिश्चित करना है कि सभी सम्बन्धित विभागों के बीच सामंजस्य की व्यवस्था बने और उनकी जवाबदेहिता तय हो।
अलग-अलग विभागों की भूमिकाओं को हम यूँ देख सकते हैं-
1. खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग-कानून के तहत केन्द्रीय और समन्वयक विभाग/राशन प्रणाली का संचालन भी यही करेगा।
2. महिला और बाल विकास विभाग - यह विभाग बच्चों और महिलाओं के पोषण आहार से सम्बन्धित योजना के लिये जिम्मेदार है। साथ ही मातृत्व हक भी इसी विभाग के अन्तर्गत हैं।
3. लोक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग - स्तनपान को बढ़ावा देने, कुपोषित बच्चों की पहचान और मातृत्व हक में इस विभाग की भूमिका है।
4. ग्रामीण विकास और नगरीय प्रषासन विभाग - मध्यान्ह भोजन योजना का क्रियान्वयन और स्थानीय निकायों की यह जिम्मेदारी है कि इस कानून में शामिल सभी योजनाओं का सही क्रियान्वयन सुनिश्चित करें।
5. समाज कल्याण विभाग - वंचित तबकों की पहचान में अहम भूमिका।
6. कृषि विभाग - खाद्य सुरक्षा के लिये खेती की व्यवस्था में सुधार लाने के लिये।
‘राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून-2013 और सामुदायिक निगरानी मैदानी पहल के लिए पुस्तक (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें) | |
क्रम और अध्याय | |
पुस्तक परिचय : राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून 2013 | |
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